Font by Mehr Nastaliq Web

अल्बर्ट और उसका जहाज़

albart aur uska jahaz

कीथ वॉटरहाउस

कीथ वॉटरहाउस

अल्बर्ट और उसका जहाज़

कीथ वॉटरहाउस

और अधिककीथ वॉटरहाउस

    शहर के मेन मार्केट के बीचोबीच, घंटों वाली फ़ौजी घड़ी के ठीक नीचे खिलौनों की एक आलीशान दुकान हुआ करती थी और जहाँ तक मुझे मालूम है। आज भी है।

    यह दुकान एक सुसज्जित जादुई गुफा जैसी थी, जिसका एक हिस्सा चिड़ियाघर जैसा था तो दूसरा सरकसनुमा। कहीं रेलगाड़ियों की प्रदर्शनी थी, तो कहीं चाभी से चलने हिलने वाले बेशुमार प्राणियों का जमघट, कहीं गुड्डे-गुड़ियों के खेल, तो कहीं किताबों की मोहक लायब्रेरी। कहीं खेल-कूद के अनगिनत सामान तो कहीं बच्चों के लिए बक्सों में बंद गेमों का एक पूरा संग्रहालय। बस यूँ समझिए कि सर्दियों की छुट्टियों का भरपूर मज़ा लेने का अंतहीन सिलसिला यहाँ मौजूद था। पर पहले उस घंटों वाली फ़ौजी घड़ी की बात।

    साल में एक बार हमें घंटाघर की उस घड़ी में दुपहर के बारह घंटों की टंकार सुनाने के लिए वहाँ ले जाया जाता। बकिंघम पैलेस के सिपाहियों की ‘टूपिंग ऑफ दि कलर’ रस्म की तरह यह हमारी ज़िंदगी की सबसे रंगीन, स्थायी और महत्वपूर्ण घटना बन चुकी थी। भव्य शोभायात्रा के शानदार प्रदर्शन में अपने आप में अनोखी। बारह बजने से कुछ मिनट पहले ही शहर के सारे विशिष्ट बाशिंदे फ़ौजी घड़ी के नीचे, घिसी टूटी टाइल्स के चबूतरे पर, जहाँ मोजेक से टमाटर के सॉसेज का एक विज्ञापन बना था, इस दृश्य को देखने के लिए इकट्ठे हो जाते थे।

    वहाँ मैं था, जैक कॉरिगन था, और 43 नंबर घर वाला वह अपंग लड़का था और था अल्बर्ट स्किनर—जिसके डैड उसे कहीं भी लेकर नहीं जाते थे। स्कूल के ऑफ़िस में इस बात की सफ़ाई देने भी नहीं कि जब तब वह स्कूल से बेवजह भागा क्यों फिरता है।

    अल्बर्ट स्किनर अपना मुंडा हुआ सफाचट सिर और पतलून से बाहर लटकती क़मीज़ लिए किसी एक के पीछे, सड़क के आवारा कुत्ते की तरह चिपक लेता। शहर जाकर फ़ौजी घड़ी के घंटे बजने के शानदार आयोजन के लिए तैयार, इतवार की अपनी ख़ास पोशाक में सजे-धजे ट्राम। हम ट्राम स्टॉप पर खड़े इंतज़ार कर रहे होते कि अचानक हवा में से किसी जिन्न की तरह अल्बर्ट प्रकट हो जाता।

    और हमारी माँ, जैसा कि उन्हें कहना चाहिए होता, हैरान होकर कहती, “अल्बर्ट! तुम इस तरह, इस हाल में शहर जाओगे?”

    “नहीं, जाना तो है, पर ट्राम के किराए के पैसे खो गए।” अल्बर्ट कहता।

    इस पर माँ तरस खाकर कहतीं, “कोई बात नहीं, तुम हमारे साथ सकते हो, पर अपने को ज़रा साफ कर लो। कम से कम अपनी क़मीज़ को तो अंदर खोंस लो!”

    और इस तरह क्रिसमस के दिनों में अल्बर्ट हमारे साथ फ़ौजी घड़ी के घंटे सुनता। और जब राजा के मशीनी सिपाही प्लास्टर ऑफ पेरिस के दुर्ग में वापस मुड़ जाते तो हम सबके साथ उसे भी आलीशान खिलौनों की दुकान की काँच की खिड़की पर अपनी नाक गड़ाने की इजाज़त मिल जाती।

    काफ़ी देर उस खिड़की पर ध्यान जमा चुकने के बाद हमें पेपरमिंट की गोलियों का एक पैकेट मिलता। (‘इसे सबको आपस में बाँटकर खाना है!’) खड़खड़ाती ट्रामों में बैठकर हम घर लौटते, और तब जलते अलाव के सामने अपने ठंड से अकड़े पैरों को पिघलाते हुए हमें फादर क्रिसमस के नाम अपनी फ़रमाइश लिखनी होती...

    ‘डियर फादर क्रिसमस, इस बार क्रिसमस में मुझे चाहिए...’

    ‘समझ में नहीं रहा, क्या लिखें...’ हम एक-दूसरे की सामूहिक सलाह और प्रेरणा की तलाश में आपस में पूछते।

    ‘तुम फादर से एक स्लेज (बर्फ़ पर फिसलने वाली बिना पहिए की गाड़ी) क्यों नहीं माँगते? मैं तो अपने लिए वही मागूँगा।’

    ‘बेवक़ूफ़, स्लेज का क्या करना है तुम्हें? इस साल अगर बर्फ़ ही पड़ी तो?’

    अच्छा तो एक क्रिकेट बैट और स्टम्प्स और...!’

    ‘क्रिसमस में भी कोई क्रिकेट खेलता है? बेवक़ूफ़!’

    अल्बर्ट स्किनर कुछ नहीं कहता। वैसे तो स्वैच्छिक संरचना कर पाने के उन यातनादायक घंटों में किसी के पास भी कहने लायक कुछ नहीं होता था।

    अपनी-अपनी कॉपियों के कोरे काग़ज़ों को घुटनों पर फैलाए, दाँतों तले अपनी स्याही वाली पेंसिलों को हम तब तक कुतरते जब तक हमारी जीभें बैंगनी हो जातीं। ऐसा नहीं था कि हम सबमें मौलिक फ़रमाइशों की कोई कमी थी, बल्कि हक़ीक़त इससे उल्टी ही थी। स्लेज, क्रिकेट बैट, स्टंप्स, फाउंटेन पेन, डायनेमो और मिकी माउस की फिल्में—दरअसल इतनी ज़्यादा चीज़ें थीं कि उनमें से चुनाव करना मुश्किल था।

    खिलौनों की वह आलीशान दुकान, जिसने हमारी कोरी कल्पनाओं में रंग भरे थे, सांता क्लॉज़ के जादुई पिटारे के बहुत नज़दीक थी। जैसे जन्नत में किसी उठती हुई दुकान की सेल लगी हो। धुएँ वाली बड़ी रेलगाड़ी घड़ी की सुइयों की तरह बाँए से दाँए चलती थी और छोटी बिजली की ट्रेन उल्टी घड़ी की तरह दाँए से बाँए ओर। और वहाँ नोआज़ आर्क था, ट्राम कंडक्टर सेट था। रोशनी से जगमगाते काँच के शेल्फ़ पर घूमता टाइपराइटर था और अदृश्य तारों के सहारे छत से लटकी एक परियों-सी ख़ूबसूरत साइकिल। इसके अलावा बोर्ड गेम्स थीं, केमिस्ट्री सेट और कारपेंटरी सेट थे, टिप टॉप-फिल्म फन-रेडियो और फन जिंगल, जोकर और जेस्टर के आकर्षक वार्षिक अंक थे। यानी कि हमारी उम्र का हर आधुनिक लड़का, जिन्हें देखकर अपनी जमा पूँजी लुटाने के लिए तैयार हो जाए, ऐसी हर चीज़ वहाँ मौजूद थी।

    या यूँ कहा जाए कि वहाँ हर ऐसी चीज़ थी, जिसे देखकर अल्बर्ट स्किनर जैसा लड़का अपना सब कुछ देने के लिए तैयार हो जाए, फिर भी उसमें से कोई चीज़ उसे कभी मिले। उस दुकान की अधिकांश चीज़ें ऐसी थीं, जिन्हें अल्बर्ट क्या, अच्छे खाते-पीते घर का लड़का भी अपने सारे सद्व्यवहार के बावजूद क्रिसमस के तकिए के नीचे पाने की उम्मीद नहीं रख सकता था।

    उस आलीशान खिलौनों की दुकान की काँच की खिड़की का मुख्य आकर्षण हमेशा सामान्य इंसानों की पहुँच से बाहर का कोई अति-भव्य नमूना होता। जैसे, मेकैनो पर समूचा ब्लैकपूल टावर या हज़ारों ईंटों से बना विंडसर कैसेल का मॉडल या पीतल के डंडों पर सचमुच ऊपर-नीचे होते घूमते घोड़ों का ‘मेरी गो राउंड’ या फिर पहियों पर खड़ा चौंधियाती रोशनी वाला शाही बकिंघम पैलेस। हममें से किसी को भी बताए जाने की ज़रूरत नहीं थी कि ये सारी ऐय्याशियाँ फादर क्रिसमस के बजट से बाहर की चीज़ें थीं।

    इस साल खिड़की में क्लाइड बैंक बंदरगाह पर पिछले दिनों लाँच किए गए विशालकाय जहाज ‘क्वीन मेरी’ का एक भव्य मॉडल था। चार फ़ीट लंबे इस मॉडल के झरोखों पर सचमुच की लाइट्स लगी थीं और उसकी चिमनियों से सचमुच के धुँए के छल्ले ऊपर उठते दिखाई देते थे। ख़ूबसूरती से तराशे गए कर्मचारियों, क्रू, लाइफबोट्स, केबिन ट्रंक्स और यात्रियों से लैस यह मॉडल ज़ाहिर है कि हम जैसों के लिए नहीं था।

    उस दर्शनीय जहाज़ को चमत्कृत भाव से भरपूर देख चुकने के बाद हमने एक महँगे सपने की तरह उसे अपने दिमाग़ से स्थगित कर दिया था और फिर से अपनी स्याही वाली पेंसिलों को कुतरते हुए हम फादर क्रिसमस के नाम अपनी अपेक्षाकृत व्यावहारिक फ़रमाइशें (यानी प्लास्टिसीन, या चंद फुटकर सस्ते खिलौने या दो जनों के बीच रोलर स्केट्स का एक साझा जोड़ा) लिखने पर जुट गए थे।

    ‘हम’ यानी हम सब, अल्बर्ट स्किनर के अलावा। आठ इलेक्ट्रिक स्पोर्ट्स कार वाले रेसिंग ट्रैक या अपने मनपसंद फेलिक्स कैट के दस्ताने पर बने हथगुड्डे के प्रस्ताव सहित कई संभावनाओं पर विचार कर चुकने के बाद अल्बर्ट ने बड़े शांत भाव से घोषणा की थी कि उसने सारे सुझावों को तरजीह दी है, पर वह फादर क्रिसमस से ‘क्वीन मेरी’ की ही माँग करने जा रहा है।

    आप ठीक ही सोच रहे हैं कि अल्बर्ट की इस असंभव फ़रमाइश का स्वागत कुछ संशयात्मक ढंग से हुआ।

    ‘क्या? वह आर्केड विंडो पर रखा ‘क्वीन मेरी’? वह सारी लाइट्स और चिमनियों से उठते धुँए वाला जहाज़? तुम कहीं उसकी बात तो नहीं कर रहे हो?”

    ‘जी हाँ बिल्कुल ! मैं उसी की बात कर रहा हूँ। और क्यों करूँ?’

    ‘यह बेसिर-पैर की हाँक रहा है। स्किनो, तुम उन सिपाहियों को क्यों नहीं माँग लेते, जो परेड करते हुए दरवाज़े से अंदर बाहर जाते हैं और घड़ी का घंटा बजाते हैं? ‘क्वीन मेरी’ के मुकाबले उन्हें पाना ज़्यादा आसान होगा!’

    अगर मुझे वे सिपाही चाहिए होते तो मैं ज़रूर उन्हें माँग लेता, पर मुझे वे चाहिए ही नहीं। इसलिए मैंने उनसे ‘क्वीन मेरी’ की ही फ़रमाइश की है।’

    ‘उनसे किनसे? फादर क्रिसमस से?”

    ‘और नहीं तो क्या, क्वैकर ओट्स के डिब्बे पर बने बुड्ढे बाबा से?’

    ‘कम ऑन मैन! तुम हमें उल्लू बना रहे हो!’

    ‘मैं सच कह रहा हूँ, भगवान कसम! मैंने उनसे ‘क्वीन मेरी’ जहाज़ ही माँगा है।’

    ‘चलो, हमें फिर चिट्ठी देखने दो।’

    ‘चिट्ठी क्या मेरे पास पड़ी है? उसे तो मैंने चिमनी से अंदर डाल दिया है।’

    ‘हाँ, ज़रूर डाल दिया होगा! एनी वे, तुम्हारे डैड तुम्हें उसे लेकर देने वाले नहीं हैं, क्योंकि वे उसे अफोर्ड ही नहीं कर सकते!’

    ‘डैड का इससे क्या लेना-देना है? मैं उनसे थोड़े ही माँग रहा फादर क्रिसमस से माँग रहा हूँ, बेवक़ूफ़!’

    ‘तो फिर ज़रा हम भी सुनें स्किनो, और क्या-क्या माँगा है तुमने?’

    ‘कुछ नहीं। मुझे और कुछ नहीं लेना है! बस सिर्फ़ ‘क्वीन मेरी’ चाहिए मुझे और उसे मैं लेकर रहूँगा, देख लेना!’

    उस समय तो बात यहीं ख़त्म हो गई, लेकिन हम सब की व्यक्तिगत धारणा थी कि अल्बर्ट कुछ ज़्यादा ही आशावादी हो रहा है। अव्वल तो रोशनियों से जगमगाता ‘क्वीन मेरी’ इतना विशालकाय और भव्य था कि शायद वह बिक्री के लिए था ही नहीं। दूसरे, हम सब जानते थे कि स्किनर परिवार में फादर क्रिसमस का इकलौता प्रतिनिधि, कोयले की खदान में काम करने वाला एक मनहूस, बददिमाग़ मज़दूर था, जो फ़िलहाल बेरोज़गार भी था।

    सबको पता था कि अल्बर्ट को पिछले जन्मदिन पर जूतों की एक मामूली जोड़ी मिली थी, जबकि उसका दिल दरअसल पहियों वाले स्कूटर पर आया हुआ था।

    लेकिन फिर भी अल्बर्ट सबके सामने ज़ोर देकर कहता रहा कि उसे इस बार क्रिसमस पर ‘क्वीन मेरी’ ही मिल रहा है ‘मेरे डैड से पूछ लो!’ वह कहता, अगर मेरा यकीन नहीं, तो मेरे डैड से पूछो।’

    हममें से किसी में ग़ुस्सैले मिस्टर स्किनर से यह सवाल करने की हिम्मत नहीं थी। लेकिन कभी-कभार उसके घर जब हम कॉमिक्स एक्सचेंज करने जाते, तो वह ख़ुद ही इस विषय को छेड़ देता।

    ‘डैड, मिल रहा है मुझे? नहीं डैड? इस बार क्रिसमस पर वह ‘क्वीन मेरी?’

    आग के पास बैठकर एकाग्रता से लकड़ी के एक टुकड़े को छीलते मिस्टर स्किनर कोयला मज़दूरों वाले ख़ास अंदाज़ में बग़ैर सिर ऊपर उठाए गुर्राते, ‘एक झापड़ पड़ेगा कान के ऊपर, अगर ज़्यादा पटर-पटर की तो!’

    और अल्बर्ट निहायत संतुष्ट भाव से हमारी ओर मुड़ता, ‘देखा, कहा था मैंने! ‘क्वीन मेरी’ मिल रहा है मुझे मिल रहा है न, डैड! डैड! है न?’

    कभी-कभी जब उसके डैड नशे में धुत काफ़ी ख़राब मूड में पब से लौटते (और ऐसा अक्सर ही होता था) तो अल्बर्ट की इन अनुनय भरी फ़रमाइशों का और भी चिड़चिड़ा उत्तर मिलता। ‘अब साली उस ब्लडी क्वीन मेरी का रोना बंद करेगा कि नहीं?’ मिस्टर स्किनर चिल्लाते, ‘नामुराद पिल्ले! समझता है मेरे पास पैसे पेड़ पर उगते हैं?’

    लेकिन डैड के ज़ोरदार दुहत्थड़ से झनझनाता कान लिए अल्बर्ट बाहर निकलते ही अपने आँसू धकेलते हुए पहले से दुगुनी ज़िद में घोषणा करता, ‘फिर भी मुझे वह जहाज़ मिल रहा है। क्रिसमस आने पर देख लेना!’

    क्रिसमस ईव को अब सिर्फ़ पंद्रह दिन रह गए थे। हममें से अधिकांश को अब तक अपनी माँओं से मिलने वाले संकेतों की बदौलत अंदाज़ा लग चुका था कि फादर क्रिसमस हमारे लिए क्या लाएँगे, या यूँ कहें कि क्या नहीं ला पाएँगे।

    ‘मुझे नहीं लगता, टेरी बेटे, कि फादर क्रिसमस इस साल इलेक्ट्रिक ट्रेन का सेट जुटा सकेंगे। वे कहते हैं, वो सेट बहुत महँगा है, हो सका तो वे तुम्हारे लिए पीछे से उठने वाली एक टिप अप लॉरी लाएँगे।’

    हम सब काफ़ी व्यावहारिक थे, और इस नाते हमारे लिए फादर क्रिसमस की प्राथमिकताओं की सूची में अपने फिसड्डीपन को चुपचाप मंज़ूर करने के सिवा कोई चारा नहीं था। और हमने बहुत कोशिश की कि अल्बर्ट भी इस स्थिति को स्वीकार कर ले।

    ‘ऐसी कोई ज़बर्दस्ती तो नहीं है कि तुम्हें वह ‘क्वीन मेरी’ ही मिले, स्किनो!’

    ‘कौन कहता है कि नहीं है?’

    ‘मेरी मम्मी कहती है कि वह फादर क्रिसमस के झोले के लिए बहुत बड़ा है, उसमें अंट नहीं पाएगा!’

    ‘हाँ, बस इतना ही उन्हें मालूम है। उन्हें क्या पता कि वे जैकी कॉरिगन के लिए परियों वाली साइकिल लाने वाले हैं, तो अगर फादर के झोले में ‘क्वीन मेरी’ नहीं सकता तो वह सड़ी हुई खटारा परियों वाली साइकिल कैसे आएगी?’

    ‘नहीं सकती, तभी तो मुझे वह साइकिल नहीं मिल रही है, फादर मेरे लिए जॉन बुल की प्रिंटेड ड्रेस ला रहे हैं, उन्होंने मेरी मम्मी को बताया है।’

    ‘मुझे कोई फ़र्क़ नहीं पड़ता कि उन्होंने तुम्हारी मम्मी को क्या बताया है और क्या नहीं बताया! मेरे लिए तो वह ‘क्वीन मेरी’ ही लेकर आने वाले हैं!’

    पूरी बहस मिस्टर स्किनर के रसोई की खिड़की पर अचानक प्रकट हो जाने से बीच में ही रुक गई, ‘अब अगर मैंने एक लफ़्ज़ भी तेरी ज़बान से उस साली क्वीन ब्लडी मेरी के बारे में सुना तो यह पक्का समझना कि तुझे क्रिसमस पर कुछ भी नहीं मिलने वाला! सुनाई दे रहा है या नहीं?’ और मामला वहीं ख़त्म हो गया।

    लेकिन कुछ दिन बाद 43 नंबर के घर वाला अपंग लड़का चर्च की लेडीज़ गिल्ड के साथ फ़ौजी घड़ी के घंटे बजने का समारोह देखने गया तो उसने लौटकर बताया कि ‘क्वीन मेरी’ जहाज का शानदार मॉडल उस आलीशान दुकान की जगमगाती खिड़की से ग़ायब हो चुका है!

    ‘मुझे मालूम है!’ अल्बर्ट ने इधर-उधर देखा और यह तय कर चुकने के बाद कि उसके डैड उसकी आवाज़ की पहुँच के बाहर हैं, बड़े शांत भाव से कहा, ‘मुझे क्रिसमस पर वह जहाज मिल जो रहा है।’

    और सचमुच उस वक़्त तो हमें उसके ग़ायब होने की यही एक ठोस वजह लगी, क्योंकि आज से पहले कभी ऐसा नहीं हुआ था कि उस आलीशान खिलौनों की दुकान की काँच की खिड़की का मुख्य प्रदर्शन बॉक्सिंग डे से पहले हटा दिया जाए। कुछ छोटी-मोटी चीज़ें ज़रूर खिड़की से ग़ायब हो जाया करती थीं, जैसे नोआ’ज़ आर्क या मोनोपोली की गेम्स या ऐसे ही कुछ नामालूम से खिलौने।

    लेकिन इसका भी समझ में सकने वाला कारण था। फादर क्रिसमस के पास सबको बाँटने के लिए खिलौने कम पड़ जाते होंगे और तब कभी-कभार उनके लिए अपने उप-ठेकेदारों की मदद लेना ज़रूरी हो जाता होगा। पर मेकैनो का ब्लैकपूल टॉवर या शाही सवारी वाले गोल-गोल घूमने वाले घोड़े, इस तरह की चीज़ें आँखों को लुभाने के लिए रखी जाती थीं और उन्हें हटाए जाने का सवाल ही नहीं उठता था। फिर भी इस बार ‘क्वीन मेरी’ को हटा दिया गया था! आख़िर क्यों? क्या फादर क्रिसमस का दिमाग़ चल गया था? या मिस्टर स्किनर ने उन्हें रिश्वत देकर पटा लिया था? लेकिन रिश्वत के पैसे कहाँ से आए? क्या मिस्टर स्किनर की कोई लॉटरी लग गई थी? या फिर यह कि अल्बर्ट का अटूट विश्वास पहाड़ों को हिला देने की ताक़त रखता था? क्या वह समुद्र पर चलने वाले, चिमनी से सचमुच का धुआँ उगलने वाले और जगमगाते झरोखों से सचमुच की रोशनी बिखेरने वाले जहाज़ों को भी चला सकता था? या फिर, जैसा हममें से एक शंकालु लड़के ने कहा, ‘क्वीन मेरी’ को शहर के दूसरी ओर बसे संभ्रांत इलाक़े के किसी बिगड़ैल बच्चे के लिए ख़ासतौर पर ख़रीद लिया गया था?

    ‘बस, तुम लोग क्रिसमस तक रुको और फिर देखना,’ अल्बर्ट ने कहा।

    और फिर आई क्रिसमस की सुबह। घरों में सारी चॉकलेटें खा चुकने के बाद और जब पूरी सड़कें बादामों के खोलों और संतरों के छिलकों से भर गई तो हम सब अपने-अपने उपहार देखने और दिखाने के लिए एक जगह इकट्ठा हुए। जिन्हें काठ के बने हुए किले चाहिए थे, वे अपनी पेंटिंग की किताब में किलों की चित्रकारी कर ख़ुश थे, जिन्हें बिजली से दौड़ने वाली रेसिंग कार चाहिए थीं, वे डिंकी टॉयज़ की बित्ता भर कारों से संतुष्ट हो गए थे और जिन्होंने रोलर स्केट्स की माँग की थी, वे अपने पेंसिल बॉक्सों से बहल गए थे। पर अल्बर्ट! उसका तो कहीं नामो-निशान नहीं था।

    सच पूछा जाए तो किसी को उम्मीद नहीं थी कि वह दिखाई भी देगा। पर जैसे ही हमने उसके बारे में अटकलें लगाना शुरू किया कि फादर क्रिसमस उसके लिए क्या लाए होंगे—एक नई जर्सी या शायद हेलमेट या...वह उछलता-कूदता, कुलांचे भरता, सड़क को ख़ुशी से पैरों तले रौंदता, आता हुआ दिखाई दिया, ‘मिल गया! मिल गया! मुझे मिल गया!’

    किताबें और खिलौने, कंचे और कूचियाँ सबको जैसे गटर में उपेक्षित छोड़कर हम अल्बर्ट को घेरकर खड़े हो गए। अल्बर्ट, जिसने अपनी बाँहों के घेरे में कुछ ऐसा उठा रक्खा था, जो पहली नज़र में लकड़ी के किसी कुंदे-सा लगता था। धीरे-धीरे हमने उसे ध्यान से देखा, उस कुंदे के दोनों सिरों को खुरदुरे तरीक़े से तराश कर जहाज़ का अगला और पिछला हिस्सा बनाया गया था और चिमनियों की जगह धागों की तीन रीलें फिट की हुई थीं। टिन के पतरे से जहाज़ की ‘प्लिमसोल रेखा’ बनायी गई थी और झरोखों के लिए कार्डबोर्ड के गोल टुकड़े चिपके थे। सामने के नाम वाले हिस्से को छोड़कर उस पूरी चीज़ को काले चिपचिपे ऑयल पेंट से रंगा गया था।

    ‘द क्वीन मेरी’ सामने सफ़ेद काँपते अक्षरों में लिखा था। बड़ा टी, छोटा एच, बड़ा ई, ‘क्वीन’ में बड़ा क्यू, दो बड़े और छोटा एन। मेरी के लिए बड़ा एम, छोटा ए, बड़ा आर, छोटा व्हाई, शुरू से ही मिस्टर स्किनर का लेखन कला से कोई ख़ास सरोकार नहीं रहा था।

    ‘देखा!’ अल्बर्ट ने ख़ुशी से किलकारी भरते हुए कहा, ‘मैंने कहा था न, वे मेरे लिए यही लेकर आएँगे और वे ले आए, देखो।’

    हम सबकी प्रशंसात्मक प्रतिक्रिया कुछ दबी-दबी होने के बावजूद काफ़ी सहज और सच्ची थी। अल्बर्ट का ‘क्वीन मेरी’ कला का एक अनगढ़ नमूना ज़रूर था, लेकिन फिर भी इसमें कोई शक नहीं था कि उस नमूने में हथेलियों के पूरे दुलार के साथ कड़ी मशक़्क़त के घंटों खपाए गए थे। लकड़ी के उस कुंदे को जहाज़ की आकृति देने में ही जलते अलाव के सामने लकड़ी छीलते हुए जाने कितनी रातें जागते हुए गुज़ारी गई होंगी।

    मिस्टर स्किनर अपनी पतलून में क़मीज़ और जैकेट खोंसते हुए तब तक घर से बाहर गए थे और अपने बग़ीचे के गेट के सामने खड़े थे। उछाह में भरकर अल्बर्ट अपने डैड की ओर दौड़ा और दोनों बाँहें चौड़ी खोलकर उनसे लिपट गया। फिर उसने ‘क्वीन मेरी’ को ऊपर हवा में हिलाकर दिखाया।

    ‘देखो डैड! देखो, क्या मिला मुझे क्रिसमस में! देखो फादर क्रिसमस क्या लेकर आए मेरे लिए! लेकिन तुम्हें तो पता ही था कि वो लाएँगे, शुरू से ही पता था! पता था न! बोलो!’

    ‘चल, परे भी हट अब, कमबख़्त!’ मिस्टर स्किनर ने कहा। फिर अपने ख़ाली पाइप में संतुष्ट भाव से एक सुट्टा मारकर उन्होंने आदतन अल्बर्ट के सर पर हल्की-सी चपत जमाई और घर के भीतर चले गए।

    स्रोत :
    • पुस्तक : विश्व की श्रेष्ठ कहानियाँ (खण्ड-2) (पृष्ठ 65)
    • संपादक : ममता कालिया
    • रचनाकार : कीथ वॉटर हाउस
    • प्रकाशन : लोकभारती प्रकाशन
    • संस्करण : 2005
    हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों का व्यापक शब्दकोश : हिन्दवी डिक्शनरी

    हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों का व्यापक शब्दकोश : हिन्दवी डिक्शनरी

    ‘हिन्दवी डिक्शनरी’ हिंदी और हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों के शब्दों का व्यापक संग्रह है। इसमें अंगिका, अवधी, कन्नौजी, कुमाउँनी, गढ़वाली, बघेली, बज्जिका, बुंदेली, ब्रज, भोजपुरी, मगही, मैथिली और मालवी शामिल हैं। इस शब्दकोश में शब्दों के विस्तृत अर्थ, पर्यायवाची, विलोम, कहावतें और मुहावरे उपलब्ध हैं।

    Additional information available

    Click on the INTERESTING button to view additional information associated with this sher.

    OKAY

    About this sher

    Lorem ipsum dolor sit amet, consectetur adipiscing elit. Morbi volutpat porttitor tortor, varius dignissim.

    Close

    rare Unpublished content

    This ghazal contains ashaar not published in the public domain. These are marked by a red line on the left.

    OKAY

    जश्न-ए-रेख़्ता | 13-14-15 दिसम्बर 2024 - जवाहरलाल नेहरू स्टेडियम, गेट नंबर 1, नई दिल्ली

    टिकट ख़रीदिए