Font by Mehr Nastaliq Web

सैनफ़्रांसिस्को के महाशय

sainfransisko ke mahashay

इवान अलेक्सेयेविच बुनिन

इवान अलेक्सेयेविच बुनिन

सैनफ़्रांसिस्को के महाशय

इवान अलेक्सेयेविच बुनिन

और अधिकइवान अलेक्सेयेविच बुनिन

    वह सैनफ़्रांसिस्को के जिस तबक़े का आदमी था, उसके लोग ज़्यादातर अपने मनबहलाव की शुरुआत यूरोप, भारत और मिस्र की यात्रा से करते थे। उसने भी यही ठीक समझा और दौरे की समूची रूपरेखा बना डाली।

    नवंबर के अंतिम दिनों में ख़राब मौसम के बावजूद जहाज़ समुद्र की लहरों को चीरता ज़िबराल्टर की ओर बढ़ा जा रहा था। स्टीमर 'एटलांटिस' के तमाम यात्री यूरोप के बेहद ख़र्चीले होटल में पहुँचे। यह होटल तमाम आधुनिक साधनों से संपन्न था।

    शाम की पोशाक पहने वह बहुत कम उम्र का लग रहा था। उसके पास ही जोहानिसबर्ग का एक आदमी अपनी पत्नी के साथ खड़ा था। उसकी पत्नी महँगी पारदर्शी पोशाक पहने हुए थी। जब-जब वह साँस लेती, लगता सुगंध उड़ रही है।

    पूरे दो घंटे में जाकर कहीं रात का भोजन प्राप्त हुआ। साथ ही डांस हॉल में डांस भी शुरू हो गया। वह भी लोगों के साथ रिेफ़्रेशमेंट बार की ओर बढ़ लिया, जहाँ लाल जैकिट पहने बड़ी-बड़ी आँखों वाले नीग्रो उनका इंतज़ार कर रहे थे। मेज़ों पर पैर रखे हुए होंठों में हवाना का सिगार दबाए, वे ताज़ातरीन राजनीतिक घटनाओं से लेकर स्टॉक एक्सचेंज पर बहसों में खोए हुए थे।

    ज़िबराल्टर पहुँचकर सूरज की रोशनी देख सभी लोग बहुत ख़ुश हुए। मौसम वसंत के शुरुआती दिनों-सा था। यहाँ एक नया यात्री आया, जिसने आते ही अन्य यात्रियों का ध्यान अपनी ओर खींच लिया। शायद वह किसी एशियन राजघराने का राजकुमार था। नाटे क़द का यह आदमी उम्रदार होते हुए भी किसी युवक-सा लग रहा था।

    सैनफ़्रांसिस्को से आए परिवार की लड़की राजकुमार से कुछ फ़ासले पर खड़ी थी और ग़ौर से उसकी हरकतें देख रही थी। पिछली शाम दरअसल उसका परिचय राजकुमार से हो चुका था।

    नेपल्स अब नज़दीक रहा था। बैंडवालों ने अपने चमचमाते पीतल के वाद्ययंत्रों समेत डेक पर घेरा-सा बना लिया था। तभी लंबा-चौड़ा जहाज़ का कप्तान ब्रिज पर पहुँचा और अपना हाथ उठा-उठाकर यात्रियों को संबोधित करने लगा। सैनफ़्रांसिस्को के उस आदमी को लगा कि कप्तान अकेले उसे ही संबोधित कर रहा है। उसने सफ़र के आराम से ख़त्म होने पर कप्तान को बधाई भी दी।

    सुबह-सुबह डायनिंग रूम में नाश्ता किया गया। डायनिंग रूम की खुली खिड़कियों से आकाश में छाए घने बादल और उदास मौसम साफ़ नज़र रहा था...पर थोड़ी देर बाद सूरज की पहली किरण के साथ समूचा मौसम बदल गया।

    दुपहर को वे लोग ऊँची-ऊँची इमारतों के बीच से होकर गुज़रे, जिनमें खिड़कियों की बहुतायत थी। वे संग्रहालयों में गए जहाँ सफ़ाई और प्रकाश व्यवस्था देखते ही बनती थी। इसके बाद सभी चर्च गए। दुपहर का भोजन सैन मारटियम की पहाड़ी पर किया। यहाँ कुछ गण्यमान्य लोग ही इकट्ठे हुए। तभी सैनफ़्रांसिस्को के परिवार की लड़की तो ख़ुशी से उत्साह में क़रीब-क़रीब बेहोश ही हो गई। असलियत यह थी कि उसने अख़बार में राजकुमार के रोम रवाना होने की ख़बर पढ़ ली थी।

    पाँच बजे होटल के रिवाज के मुताबिक वहीं चाय ली गई... धीरे-धीरे भोजन का वक़्त भी पहुँचा।

    चलने वाला दिन इस परिवार के लिए बहुत यादगार साबित हुआ। इस दिन सूरज निकला ही नहीं। समूचा कैपरी अँधेरे में खोया हुआ था, लगता था जैसे वह कभी इस ज़मीन का हिस्सा रहा ही नहीं। स्टीमबोट के परेशानीतलब केबिन के सोफ़े पर वे पाँव सिकोड़कर बैठ गए... उबकाई आने के कारण ज़्यादातर लोग अपनी आँखें बंद ही किए थे। परिवार की औरत इस लंबी समुद्री यात्रा में ऊब चुकी थी।

    छोटी लड़की डरी-सी लग रही थी। वह लगातार पीली पड़ती जा रही थी। अकसर वह अपने दाँतों के बीच नीबू का टुकड़ा फँसाए रहती। ओवरकोट और बड़ा-सा टोप पहने हुए उस परिवार का आदमी लड़की के पीछे लेटा हुआ था।

    उसके चेहरे का रंग गहरा, मूँछें सफ़ेद थीं और उसके सिर का दर्द तेज़ होता जा रहा था। दरअसल, पिछली कुछ शामों से वह ज़्यादा ही पी रहा था।

    कैपरी के टापू पर शाम को काफ़ी धुँघ छाई हुई थी। सैनफ़्रांसिस्को से आए आदमी के स्वागत के लिए कुछ लोग खड़े थे। किसी और को इनकी परवाह भी नहीं थी।

    जवान और सुंदर नज़र आने वाला होटल का मालिक मुस्कराते हुए, अतिथियों के सामने झुका-झुका ही अभिवादन कर रहा था। सैनफ़्रांसिस्को के आदमी ने एक नज़र उसे देखा, और सोचा, यह वही शख़्स है जिसने उसे कल रात कल्पना में सोने नहीं दिया था, 'एकदम वैसा ही है वह आदमी, 'उसने सोचा 'फ्रॉक कोट, वही सिर...एकदम वही बाल...’ वह कॉरीडोर पार करता हुआ तेज़ी से अपनी पत्नी और बेटी को कल्पना और यथार्थ के इस अद्भुत संयोग के बारे में बताने के लिए चल दिया।

    उसकी तबीयत ठीक नहीं थी। धीरे से... लेकिन कुछ बेहूदे ढंग से उसने खिड़की बंद कर दी। तभी होटल का एक आदमी पहुँचा। उसके पूछने पर उसने दुपहर के भोजन का आदेश दिया... कि उनकी मेज़ दरवाज़े से ख़ासे फ़ासले पर होनी चाहिए... वे लोकल वाइन और शैंपेन लेंगे।

    सैनफ़्रांसिस्को का आदमी अब तैयारियाँ करने लगा, जैसे किसी शादी में जाना हो। इस शाम इस आदमी ने क्या सोचा और महसूसा, यह बताना बहुत ज़रूरी है। यह भी कहा जा सकता है कि इसमें कुछ भी अजीबोग़रीब नहीं था। परेशानी तो यही है कि इस ज़मीन पर हर चीज़, बड़ी आसानी के साथ उतर आती है...पर, क्या उसके ज़ेहन में कोई चीज़ गहराई से उतरी थी?

    दाढ़ी बनाने के बाद वह शीशे के सामने खड़ा हो गया। देर तक ग़ौर से देखता रहा कि उसके मोती-से रंग वाले बालों में कुछ छूट तो नहीं गया है!

    कितना भयानक है यह! उसके मुँह से निकला...बग़ैर यह सोचे-समझे कि 'भयानक' क्या होता है। उसने अपने हाथों की उँगलियों के जोड़ों को ग़ौर से देखा। फिर नाख़ूनों के रंग को देखते हुए एक बार फिर बड़बड़ाया।

    उसने अपनी टॉर्च को कॉलर के गिर्द कसा और फिर डिनर कोट पहनते हुए कफों को सेट किया। उसने आख़िरी बार फिर अपना रूप शीशे में निहारा। फिर ख़ुशी से अपना कमरा छोड़ते हुए वह अपनी पत्नी के कमरे की ओर चल दिया। पत्नी के कमरे के पास पहुँचकर ऊँची आवाज़ में पूछा, “अभी ज़्यादा देर लगेगी क्या?

    पापा, सिर्फ़ पाँच मिनट। बेटी ने जवाब दिया।

    ...इसके बाद वह लाल दरी पर चलता हुआ धीरे-धीरे लाइब्रेरी की ओर बढ़ लिया। हल्के सलेटी रंग की स्कर्ट पहने एक बूढ़ी औरत तेज़ी से उसके आगे से निकल गई उसे शायद डिनर के लिए तैयार होने में देर हो गई थी। होटल के नौकर भी तेज़ी से इधर-उधर आ-जा रहे थे...वह इस तरह चलता रहा, जैसे उसे इन सबकी कोई परवाह ही हो।

    शीशे के दरवाज़े वाले डाइनिंग रूम में मेहमान पहले ही इकट्ठे हो चुके थे। कुछ ने भोजन शुरू भी कर दिया था। वह इजिप्शियन सिगरेट और माचिसों वाली मेज़ के सामने रुका और एक महिला से सिगार लेते हुए उसने तीन लीरा मेज़ पर उछाल दिए। अब वह लाइब्रेरी की ओर चल दिया।

    लाइब्रेरी में एक जर्मन अख़बार पढ़ने में तन्मय था। उसने जर्मन पर एक टेढ़ी नज़र डाली और चमड़े की आर्मचेयर पर बैठ गया। कसी हुई कॉलर उसके गले को घोटे दे रही थी। उसने अपना सिर झटका और अख़बार के शीर्षक पढ़ने लगा। कुछ पंक्तियाँ बाल्कन युद्ध के विषय में पढ़कर उसने अपनी आदत के मुताबिक पेज पलट दिया। धीरे-धीरे उसे लगा कि आँखों के आगे धुँघलका-सा छाता जा रहा है। उसके गले की नसें भी फूलने लगीं...और आँखें बाहर निकलने को हो आईं। उसने हवा लेने की गर्ज से आगे की ओर बढ़ने की कोशिश की और... फिर अचानक उसके मुँह से अजीबोग़रीब आवाज़ निकलने लगी। कंधे ढीले छोड़ते हुए उसने काँपना शुरू कर दिया...उसकी क़मीज़ बाहर निकल आई। आख़िरकार सँभलने की काफ़ी कोशिश करने के बावजूद वह फ़र्श पर गिर ही पड़ा। जर्मन उसकी यह हालत देखकर तेज़ी से बाहर की ओर पलटा और अलार्म बजा दिया।

    सभी लोग अपना-अपना खाना छोड़कर तेज़ी से लाइब्रेरी की तरफ़ भागे और 'क्या हुआ-क्या हुआ' कहने लगे। तभी होटल का मालिक मेहमानों के बीच में रास्ता बनाता हुआ बमुश्किल वहाँ पहुँचा, कुछ नहीं हुआ, सैनफ़्रांसिस्को के महाशय बेहोश हो गए बस।

    निचले कॉरीडोर में ले जाकर छोटे किंतु ठंडे कमरे में बिस्तर पर उसे अभी लिटाया ही था कि उसकी बेटी बेतहाशा भागती हुई आई। उसके बाल कंधों तक झूल रहे थे। उसकी स्कर्ट और ड्रेसिंग गाउन क़रीब-क़रीब अधखुले-से थे। इसके बाद उसकी पत्नी वहाँ पहुँची, जो डिनर के लिए लगभग तैयार थी। उसके चेहरे पर आतंक छाया हुआ था।

    कुछ लोग वापस डायनिंग हॉल में आकर भोजन करने लगे थे। वे सभी अपने-आप में ख़ामोश थे।

    उधर सैनफ़्रांसिस्को का आदमी एक सस्ते लोहे की पलंग पर गुमसुम पड़ा था। मद्धिम रोशनी का बल्ब हल्का प्रकाश फेंक रहा था। और उसके माथे पर बर्फ़ रखकर ठंडक पहुँचाने की कोशिश की जा रही थी। पर धीरे-धीरे उसका चेहरा पीला पड़ने लगा...

    ...और अब वह ख़त्म हो चुका था।

    तभी होटल का मालिक वहाँ पहुँचा। उसने डॉक्टर से कुछ बातचीत की और ख़ामोश हो गया। मृतक की पत्नी ने कहा कि लाश पहले उसके कमरे में पहुँचाई जानी चाहिए।

    नहीं मैडम, यह एकदम नामुमकिन है! उसने विनम्रता से जर्मन भाषा में कहा।

    लड़की जो अब तक भौचक-सी अपने पिता के शव को देखे जा रही थी, ज़मीन पर पसर गई और मुँह पर रुमाल ढाँपे ज़ोर-ज़ोर से रो पड़ी। उसकी माँ के आँसू एकदम सूख गए और वह अपने हाथ उठाकर कहने लगी कि अब मेरी इज़्ज़त नहीं की जा रही।

    रात को जब होटल सो चुका था, एक वेटर ने रूम नं० 43 की खिड़की खोली, खिड़की बगीचे के कोने की तरफ़ थी। वेटर ने रोशनी का रुख मोड़ा और दरवाज़े की ओर नज़र मारकर लौट गया। शव अँधेरे में पड़ा रहा।

    कॉरीडोर में बैठे होटल के नौकर कुछ बना रहे थे। तभी स्लीपर पहने लुइजी ने प्रवेश किया। उसने फुसफुसाते हुए कुछ पूछा और कमरे की ओर हाथ का इशारा किया। फिर वह फुसफुसाने के अंदाज़ में ही चीख़ा...नौकरों के गले जैसे घोट ही दिए गए थे। उसने इसके तुरंत बाद एक-दूसरे के कंधों पर एक-दूसरे के सिरों को टिकाया और कमरे की ओर बढ़ लिया। दरवाज़ा खोला और कुछ पूछा, फिर कुछ क्षण बाद वह ख़ुद ही दुखी स्वर में बोला, हाँ, अंदर जाओ!

    और जब रूम नं० 43 की खिड़कियों का रंग सफ़ेद हो गया, केले के पेड़ के पत्ते हवा में फड़फड़ाने लगे, केसरी के आसपास का रंग पीला होने लगा, सभी घुमंतू अपने-अपने कामों में लग गए तो एक बड़ा संदूक लाया गया।

    छोटी बाँहों का पुराना कोट पहने लाल आँखों वाला गाड़ीवान लगातार चाबुक मारते हुए अपने छोटे लेकिन शक्तिवान घोड़े को दौड़ाए चला जा रहा था। उसके सिर में काफ़ी दर्द था। इसी वजह से वह ख़ामोश था, पर उसकी बगल में रखे संदूक में पड़े सैनफ़्रांसिस्को के आदमी के शव ने उसे अचानक होने वाली आमदनी से ख़ुश कर दिया था।

    घाट के पास हेड डोरमैन गाड़ीवान से आगे निकल गया। वह मृतक की पत्नी और बेटी को ऑटो में लेकर आया था।

    मृतक का शव अपने गंतव्य के रास्ते पर था। एक नई दुनिया का समुद्र-तट, जहाँ एक क़ब्र उसके इंतज़ार में थी। संयोग की बात यह थी कि यह वही जहाज़ था, जो सैनफ़्रांसिस्को के उस परिवार को पूरी शान से लेकर आया था।

    विलासमय केबिनों, डाइनिंग रूम और हॉलों में प्रकाश और उल्लास फैला हुआ था। लोग बढ़िया और चुस्त कपड़े पहने और ऑरकेस्ट्रा की धुनों में मस्त थे। सभी बेख़बर होकर संगीत की लहरों के साथ-साथ एक-दूसरे में खोए हुए प्रेमीयुगल आनंददायी आदान-प्रदान कर रहे थे। वे सभी बेख़बर थे कि दूसरी तरफ़ समुद्र के बीचोबीच जहाज़ ने समुद्री तूफ़ान और अँधेरे के साथ कितना संघर्ष किया है।

    स्रोत :
    • पुस्तक : नोबेल पुरस्कार विजेताओं की 51 कहानियाँ (पृष्ठ 119-124)
    • संपादक : सुरेन्द्र तिवारी
    • रचनाकार : इवान बुनिन
    • प्रकाशन : आर्य प्रकाशन मंडल, सरस्वती भण्डार, दिल्ली
    • संस्करण : 2008
    हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों का व्यापक शब्दकोश : हिन्दवी डिक्शनरी

    हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों का व्यापक शब्दकोश : हिन्दवी डिक्शनरी

    ‘हिन्दवी डिक्शनरी’ हिंदी और हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों के शब्दों का व्यापक संग्रह है। इसमें अंगिका, अवधी, कन्नौजी, कुमाउँनी, गढ़वाली, बघेली, बज्जिका, बुंदेली, ब्रज, भोजपुरी, मगही, मैथिली और मालवी शामिल हैं। इस शब्दकोश में शब्दों के विस्तृत अर्थ, पर्यायवाची, विलोम, कहावतें और मुहावरे उपलब्ध हैं।

    Additional information available

    Click on the INTERESTING button to view additional information associated with this sher.

    OKAY

    About this sher

    Lorem ipsum dolor sit amet, consectetur adipiscing elit. Morbi volutpat porttitor tortor, varius dignissim.

    Close

    rare Unpublished content

    This ghazal contains ashaar not published in the public domain. These are marked by a red line on the left.

    OKAY

    जश्न-ए-रेख़्ता | 13-14-15 दिसम्बर 2024 - जवाहरलाल नेहरू स्टेडियम, गेट नंबर 1, नई दिल्ली

    टिकट ख़रीदिए