प्रस्तुत पाठ एनसीईआरटी की कक्षा आठवीं के पाठ्यक्रम में शामिल है।
समुद्र के किनारे ऊँचे पर्वत की अँधेरी गुफ़ा में एक साँप रहता था। समुद्र की तूफ़ानी लहरें धूप में चमकतीं, झिलमिलातीं और दिन भर पर्वत की चट्टानों से टकराती रहती थीं।
पर्वत की अँधेरी घाटियों में एक नदी भी बहती थी। अपने रास्ते पर बिखरे पत्थरों को तोड़ती, शोर मचाती हुई यह नदी बड़े ज़ोर से समुद्र की ओर लपकती जाती थी। जिस जगह पर नदी और समुद्र का मिलाप होता था, वहाँ लहरें दूध के झाग-सी सफ़ेद दिखाई देती थीं।
अपनी गुफ़ा में बैठा हुआ साँप सब कुछ देखा करता—लहरों का गर्जन, आकाश में छिपती हुई पहाड़ियाँ, टेढ़ी-मेढ़ी बल खाती हुई नदी की ग़ुस्से से भरी आवाज़ें। वह मन-ही-मन ख़ुश होता था कि इस गर्जन-तर्जन के होते हुए भी वह सुखी और सुरक्षित है। कोई उसे दु:ख नहीं दे सकता। सबसे अलग, सबसे दूर, वह अपनी गुफ़ा का स्वामी है। न किसी से लेना, न किसी से देना। दुनिया की भाग-दौड़, छीना-झपटी से वह दूर है। साँप के लिए यही सबसे बड़ा सुख था।
एक दिन एकाएक आकाश में उड़ता हुआ ख़ून से लथपथ एक बाज साँप की उस गुफ़ा में आ गिरा। उसकी छाती पर कितने ही ज़ख़्मों के निशान थे, पंख ख़ून से सने थे और वह अधमरा-सा ज़ोर-शोर से हाँफ रहा था। ज़मीन पर गिरते ही उसने एक दर्द भरी चीख़ मारी और पंखों को फड़फड़ाता हुआ धरती पर लोटने लगा। डर से साँप अपने कोने में सिकुड़ गया। किंतु दूसरे ही क्षण उसने भाँप लिया कि बाज जीवन की अंतिम साँसें गिन रहा है और उससे डरना बेकार है। यह सोचकर उसकी हिम्मत बँधी और वह रेंगता हुआ उस घायल पक्षी के पास जा पहुँचा। उसकी तरफ़ कुछ देर तक देखता रहा, फिर मन-ही-मन ख़ुश होता हुआ बोला—क्यों भाई, इतनी जल्दी मरने की तैयारी कर ली?
बाज ने एक लंबी आह भरी ऐसा ही दिखता है कि आख़िरी घड़ी आ पहुँची है लेकिन मुझे कोई शिकायत नहीं है। मेरी ज़िंदगी भी ख़ूब रही भाई, जी भरकर उसे भोगा है। जब तक शरीर में ताक़त रही, कोई सुख ऐसा नहीं बचा जिसे न भोगा हो। दूर-दूर तक उड़ानें भरी हैं, आकाश की असीम ऊँचाइयों को अपने पंखों से नाप आया हूँ। तुम्हारा बड़ा दुर्भाग्य है कि तुम ज़िंदगी भर आकाश में उड़ने का आनंद कभी नहीं उठा पाओगे।
साँप बोला—आकाश! आकाश को लेकर क्या मैं चाटूँगा! आकाश में आख़िर रखा क्या है? क्या मैं तुम्हारे आकाश में रेंग सकता हूँ। ना भाई, तुम्हारा आकाश तुम्हें ही मुबारक, मेरे लिए तो यह गुफ़ा भली। इतनी आरामदेह और सुरक्षित जगह और कहाँ होगी?
साँप मन-ही-मन बाज की मूर्खता पर हँस रहा था। वह सोचने लगा कि आख़िर उड़ने और रेंगने के बीच कौन-सा भारी अंतर है। अंत में तो सबके भाग्य में मरना ही लिखा है—शरीर मिट्टी का है, मिट्टी में ही मिल जाएगा।
अचानक बाज ने अपना झुका हुआ सिर ऊपर उठाया और उसकी दृष्टि साँप को गुफ़ा के चारों ओर घूमने लगी। चट्टानों में पड़ी दरारों से पानी गुफ़ा में टपक रहा था। सीलन और अँधेरे में डूबी गुफ़ा में एक भयानक दुर्गंध फैली हुई थी, मानो कोई चीज़ वर्षों से पड़ी-पड़ी सड़ गई हो।
बाज के मुँह से एक बड़ी ज़ोर की करुण चीख़ फूटी पड़ी—आह! काश, मैं सिर्फ़ एक बार आकाश में उड़ पाता।
बाज की ऐसी करुण चीख़ सुनकर साँप कुछ सिटपिटा-सा गया। एक क्षण के लिए उसके मन में उस आकाश के प्रति इच्छा पैदा हो गई जिसके वियोग में बाज इतना व्याकुल होकर छटपटा रहा था। उसने बाज से कहा—यदि तुम्हें स्वतंत्रता इतनी प्यारी है तो इस चट्टान के किनारे से ऊपर क्यों नहीं उड़ जाने की कोशिश करते। हो सकता है कि तुम्हारे पैरों में अभी इतनी ताक़त बाक़ी हो कि तुम आकाश में उड़ सको। कोशिश करने में क्या हर्ज़ है?
बाज में एक नई आशा जग उठी। वह दूने उत्साह से अपने घायल शरीर को घसीटता हुआ चट्टान के किनारे तक खींच लाया। खुले आकाश को देखकर उसकी आँखें चमक उठीं। उसने एक गहरी, लंबी साँस ली और अपने पंख फैलाकर हवा में कूद पड़ा।
किंतु उसके टूटे पंखों में इतनी शक्ति नहीं थी कि उसके शरीर का बोझ सँभाल सकें। पत्थर-सा उसका शरीर लुढ़कता हुआ नदी में जा गिरा। एक लहर ने उठकर उसके पंखों पर जमे ख़ून को धो दिया, उसके थके-माँदे शरीर को सफ़ेद फेन से ढक दिया, फिर अपनी गोद में समेटकर उसे अपने साथ सागर की ओर ले चली।
लहरें चट्टानों पर सिर धुनने लगीं मानो बाज की मृत्यु पर आँसू बहा रही हों। धीरे-धीरे समुद्र के असीम विस्तार में बाज आँखों से ओझल हो गया।
चट्टान की खोखल में बैठा हुआ साँप बड़ी देर तक बाज की मृत्यु और आकाश के लिए उसके प्रेम के विषय में सोचता रहा।
आकाश की असीम शून्यता में क्या ऐसा आकर्षण छिपा है जिसके लिए बाज ने अपने प्राण गँवा दिए? वह ख़ुद तो मर गया लेकिन मेरे दिल का चैन अपने साथ ले गया। न जाने आकाश में क्या ख़ज़ाना रखा है? एक बार तो मैं भी वहाँ जाकर उसके रहस्य का पता लगाऊँगा चाहे कुछ देर के लिए ही हो। कम-से-कम उस आकाश का स्वाद तो चख लूँगा।
यह कहकर साँप ने अपने शरीर को सिकोड़ा और आगे रेंगकर अपने को आकाश की शून्यता में छोड़ दिया। धूप में क्षण भर के लिए साँप का शरीर बिजली की लकीर-सा चमक गया।
किंतु जिसने जीवन भर रेंगना सीखा था, वह भला क्या उड़ पाता? नीचे छोटी-छोटी चट्टानों पर धप्प से साँप जा गिरा। ईश्वर की कृपा से बेचारा बच गया, नहीं तो मरने में क्या कसर बाक़ी रही थी। साँप हँसते हुए कहने लगा—
सो उड़ने का यही आनंद है—भर पाया मैं तो! पक्षी भी कितने मूर्ख हैं। धरती के सुख से अनजान रहकर आकाश की ऊँचाइयों को नापना चाहते थे। किंतु अब मैंने जान लिया कि आकाश में कुछ नहीं रखा। केवल ढेर-सी रोशनी के सिवा वहाँ कुछ भी नहीं, शरीर को सँभालने के लिए कोई स्थान नहीं, कोई सहारा नहीं। फिर वे पक्षी किस बूते पर इतनी डींगें हाँकते हैं, किसलिए धरती के प्राणियों को इतना छोटा समझते हैं। अब मैं कभी धोखा नहीं खाऊँगा, मैंने आकाश देख लिया और ख़ूब देख लिया। बाज तो बड़ी-बड़ी बातें बनाता था, आकाश के गुण गाते थकता नहीं था। उसी की बातों में आकर मैं आकाश में कूदा था। ईश्वर भला करे, मरते-मरते बच गया। अब तो मेरी यह बात और भी पक्की हो गई है कि अपनी खोखल से बड़ा सुख और कहीं नहीं है। धरती पर रेंग लेता हूँ, मेरे लिए यह बहुत कुछ है। मुझे आकाश की स्वच्छंदता से क्या लेना-देना? न वहाँ छत है, न दीवारें हैं, न रेंगने के लिए ज़मीन है। मेरा तो सिर चकराने लगता है। दिल काँप-काँप जाता है। अपने प्राणों को ख़तरे में डालना कहाँ की चतुराई है?
साँप सोचने लगा कि बाज अभागा था जिसने आकाश की आज़ादी को प्राप्त करने में अपने प्राणों की बाज़ी लगा दी।
किंतु कुछ देर बाद साँप के आश्चर्य का ठिकाना नहीं रहा। उसने सुना, चट्टानों के नीचे से एक मधुर, रहस्यमय गीत की आवाज़ उठ रही है। पहले उसे अपने कानों पर विश्वास नहीं हुआ। किंतु कुछ देर बाद गीत के स्वर अधिक साफ़ सुनाई देने लगे। वह अपनी गुफ़ा से बाहर आया और चट्टान से नीचे झाँकने लगा। सूरज की सुनहरी किरणों में समुद्र का नीला जल झिलमिला रहा था। चट्टानों को भिगोती हुई समुद्र की लहरों में गीत के स्वर फूट रहे थे। लहरों का यह गीत दूर-दूर तक गूँज रहा था।
साँप ने सुना, लहरें मधुर स्वर में गा रही हैं।
हमारा यह गीत उन साहसी लोगों के लिए है जो अपने प्राणों को हथेली पर रखे हुए घूमते हैं।
चतुर वही है जो प्राणों की बाज़ी लगाकर ज़िंदगी के हर ख़तरे का बहादुरी से सामना करे।
ओ निडर बाज! शत्रुओं से लड़ते हुए तुमने अपना क़ीमती रक्त बहाया है। पर वह समय दूर नहीं है, जब तुम्हारे ख़ून की एक-एक बूँद ज़िंदगी के अँधेरे में प्रकाश फैलाएगी और साहसी, बहादुर दिलों में स्वतंत्रता और प्रकाश के लिए प्रेम पैदा करेगी।
तुमने अपना जीवन बलिदान कर दिया किंतु फिर भी तुम अमर हो। जब कभी साहस और वीरता के गीत गाए जाएँगे, तुम्हारा नाम बड़े गर्व और श्रद्धा से लिया जाएगा।
हमारा गीत ज़िंदगी के उन दीवानों के लिए है जो मर कर भी मृत्यु से नहीं डरते।
samudr ke kinare uunche parvat ki andheri gufa mein ek saanp rahta tha. samudr ki tufani lahren dhoop mein chamaktin, jhilamilatin aur din bhar parvat ki chattanon se takrati rahti theen.
parvat ki andheri ghatiyon mein ek nadi bhi bahti thi. apne raste par bikhre patthron ko toDti, shor machati hui ye nadi baDe zor se samudr ki or lapakti jati thi. jis jagah par nadi aur samudr ka milap hota tha, vahan lahren doodh ke jhaag si safed dikhai deti theen.
apni gufa mein baitha hua saanp sab kuch dekha karta—lahron ka garjan, akash mein chhipti hui pahaDiyan, teDhi meDhi bal khati hui nadi ki ghusse se bhari avazen. wo man hi man khush hota tha ki is garjan tarjan ke hote hue bhi wo sukhi aur surakshit hai. koi use duhakh nahin de sakta. sabse alag, sabse door, wo apni gufa ka svami hai. na kisi se lena, na kisi se dena. duniya ki bhaag dauD, chhina jhapti se wo door hai. saanp ke liye yahi sabse baDa sukh tha.
ek din ekayek akash mein uDta hua khoon se lathpath ek baaj saanp ki us gufa mein aa gira. uski chhati par kitne hi zakhmon ke nishan the, pankh khoon se sane the aur wo adhamra sa zor shor se haanph raha tha. zamin par girte hi usne ek dard bhari cheekh mari aur pankhon ko phaDaphData hua dharti par lotne laga. Dar se saanp apne kone mein sikuD gaya. kintu dusre hi kshan usne bhaanp liya ki baaj jivan ki antim sansen gin raha hai aur usse Darna bekar hai. ye sochkar uski himmat bandhi aur wo rengta hua us ghayal pakshi ke paas ja pahuncha. uski taraf kuch der tak dekhta raha, phir man hi man khush hota hua bola—kyon bhai, itni jaldi marne ki taiyari kar lee?
baaj ne ek lambi aah bhari aisa hi dikhta hai ki akhiri ghaDi aa pahunchi hai lekin mujhe koi shikayat nahin hai. meri zindagi bhi khoob rahi bhai, ji bharkar use bhoga hai. jab tak sharir mein taqat rahi, koi sukh aisa nahin bacha jise na bhoga ho. door door tak uDanen bhari hain, akash ki asim uunchaiyon ko apne pankhon se naap aaya hoon. tumhara baDa durbhagya hai ki tum zindagi bhar akash mein uDne ka anand kabhi nahin utha paoge.
saanp bola—akash! akash ko lekar kya main chatunga! akash mein akhir rakha kya hai? kya main tumhare akash mein reng sakta hoon. na bhai, tumhara akash tumhein hi mubarak, mere liye to ye gufa bhali. itni aramdeh aur surakshit jagah aur kahan hogi?
saanp man hi man baaj ki murkhata par hans raha tha. wo sochne laga ki akhir uDne aur rengne ke beech kaun sa bhari antar hai. ant mein to sabke bhagya mein marna hi likha hai—sharir mitti ka hai, mitti mein hi mil jayega.
achanak baaj ne apna jhuka hua sir uupar uthaya aur uski drishti saanp ko gufa ke charon or ghumne lagi. chattanon mein paDi dararon se pani gufa mein tapak raha tha. silan aur andhere mein Dubi gufa mein ek bhayanak durgandh phaili hui thi, mano koi cheez varshon se paDi paDi saD gai ho.
baaj ke munh se ek baDi zor ki karun cheekh phuti paDi—ah! kaash, main sirf ek baar akash mein uD pata.
baaj ki aisi karun cheekh sunkar saanp kuch sitapita sa gaya. ek kshan ke liye uske man mein us akash ke prati ichchha paida ho gai jiske viyog mein baaj itna vyakul hokar chhatapta raha tha. usne baaj se kaha—yadi tumhein svtantrta itni pyari hai to is chattan ke kinare se uupar kyon nahin uD jane ki koshish karte. ho sakta hai ki tumhare pairon mein abhi itni taqat baqi ho ki tum akash mein uD sako. koshish karne mein kya harz hai?
baaj mein ek nai aasha jag uthi. wo dune utsaah se apne ghayal sharir ko ghasitta hua chattan ke kinare tak kheench laya. khule akash ko dekhkar uski ankhen chamak uthin. usne ek gahri, lambi saans li aur apne pankh phailakar hava mein kood paDa.
kintu uske tute pankhon mein itni shakti nahin thi ki uske sharir ka bojh sanbhal saken. patthar sa uska sharir luDhakta hua nadi mein ja gira. ek lahr ne uthkar uske pankhon par jame khoon ko dho diya, uske thake mande sharir ko safed phen se Dhak diya, phir apni god mein sametkar use apne saath sagar ki or le chali.
lahren chattanon par sir dhunne lagin mano baaj ki mrityu par ansu baha rahi hon. dhire dhire samudr ke asim vistar mein baaj ankhon se ojhal ho gaya.
chattan ki khokhal mein baitha hua saanp baDi der tak baaj ki mrityu aur akash ke liye uske prem ke vishay mein sochta raha.
akash ki asim shunyata mein kya aisa akarshan chhipa hai jiske liye baaj ne apne praan ganva diye? wo khud to mar gaya lekin mere dil ka chain apne saath le gaya. na jane akash mein kya khazana rakha hai? ek baar to main bhi vahan jakar uske rahasya ka pata lagaunga chahe kuch der ke liye hi ho. kam se kam us akash ka svaad to chakh lunga.
ye kahkar saanp ne apne sharir ko sikoDa aur aage rengkar apne ko akash ki shunyata mein chhoD diya. dhoop mein kshan bhar ke liye saanp ka sharir bijli ki lakir sa chamak gaya.
kintu jisne jivan bhar rengna sikha tha, wo bhala kya uD pata? niche chhoti chhoti chattanon par dhapp se saanp ja gira. iishvar ki kripa se bechara bach gaya, nahin to marne mein kya kasar baqi rahi thi. saanp hanste hue kahne laga—
so uDne ka yahi anand hai—bhar paya main to! pakshi bhi kitne moorkh hain. dharti ke sukh se anjan rahkar akash ki uunchaiyon ko napna chahte the. kintu ab mainne jaan liya ki akash mein kuch nahin rakha. keval Dher si roshni ke siva vahan kuch bhi nahin, sharir ko sanbhalane ke liye koi sthaan nahin, koi sahara nahin. phir ve pakshi kis bute par itni Dingen hankte hain, kisaliye dharti ke praniyon ko itna chhota samajhte hain. ab main kabhi dhokha nahin khaunga, mainne akash dekh liya aur khoob dekh liya. baaj to baDi baDi baten banata tha, akash ke gun gate thakta nahin tha. usi ki baton mein aakar main akash mein kuda tha. iishvar bhala kare, marte marte bach gaya. ab to meri ye baat aur bhi pakki ho gai hai ki apni khokhal se baDa sukh aur kahin nahin hai. dharti par reng leta hoon, mere liye ye bahut kuch hai. mujhe akash ki svachchhandta se kya lena dena? na vahan chhat hai, na divaren hain, na rengne ke liye zamin hai. mera to sir chakrane lagta hai. dil kaanp kaanp jata hai. apne pranon ko khatre mein Dalna kahan ki chaturai hai?
saanp sochne laga ki baaj abhaga tha jisne akash ki azadi ko praapt karne mein apne pranon ki bazi laga di.
kintu kuch der baad saanp ke ashcharya ka thikana nahin raha. usne suna, chattanon ke niche se ek madhur, rahasyamay geet ki avaz uth rahi hai. pahle use apne kanon par vishvas nahin hua. kintu kuch der baad geet ke svar adhik saaf sunai dene lage. wo apni gufa se bahar aaya aur chattan se niche jhankne laga. suraj ki sunahri kirnon mein samudr ka nila jal jhilmila raha tha. chattanon ko bhigoti hui samudr ki lahron mein geet ke svar phoot rahe the. lahron ka ye geet door door tak goonj raha tha.
saanp ne suna, lahren madhur svar mein ga rahi hain.
hamara ye geet un sahasi logon ke liye hai jo apne pranon ko hatheli par rakhe hue ghumte hain.
chatur vahi hai jo pranon ki bazi lagakar zindagi ke har khatre ka bahaduri se samna kare.
o niDar baaj! shatruon se laDte hue tumne apna qimti rakt bahaya hai. par wo samay door nahin hai, jab tumhare khoon ki ek ek boond zindagi ke andhere mein parkash phailayegi aur sahasi, bahadur dilon mein svtantrta aur parkash ke liye prem paida karegi.
tumne apna jivan balidan kar diya kintu phir bhi tum amar ho. jab kabhi sahas aur virata ke geet gaye jayenge, tumhara naam baDe garv aur shraddha se liya jayega.
hamara geet zindagi ke un divanon ke liye hai jo mar kar bhi mrityu se nahin Darte.
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saanp ne suna, lahren madhur svar mein ga rahi hain.
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tumne apna jivan balidan kar diya kintu phir bhi tum amar ho. jab kabhi sahas aur virata ke geet gaye jayenge, tumhara naam baDe garv aur shraddha se liya jayega.
hamara geet zindagi ke un divanon ke liye hai jo mar kar bhi mrityu se nahin Darte.
हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों का व्यापक शब्दकोश : हिन्दवी डिक्शनरी
‘हिन्दवी डिक्शनरी’ हिंदी और हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों के शब्दों का व्यापक संग्रह है। इसमें अंगिका, अवधी, कन्नौजी, कुमाउँनी, गढ़वाली, बघेली, बज्जिका, बुंदेली, ब्रज, भोजपुरी, मगही, मैथिली और मालवी शामिल हैं। इस शब्दकोश में शब्दों के विस्तृत अर्थ, पर्यायवाची, विलोम, कहावतें और मुहावरे उपलब्ध हैं।