‘दुनिया का सबसे अनमोल रत्न’ प्रेमचंद की पहली कहानी है। यह उस कहानी संग्रह का हिस्सा है जिसे अंग्रेज़ सरकार ने बैन कर दिया था।
दिलफ़िगार एक कँटीले पेड़ के नीचे दामन चाक किए बैठा हुआ ख़ून के आँसू बहा रहा था। वह सौंदर्य की देवी यानी मलका दिलफ़रेब का सच्चा और जान देनेवाला प्रेमी था। उन प्रेमियों में नहीं, जो इत्र-फुलेल में बसकर और शानदार कपड़ों से सजकर आशिक़ के वेश में माशूक़ियत का दम भरते हैं। बल्कि उन सीधे-सादे भोले-भाले फ़िदाइयों में जो जंगल और पहाड़ों से सर टकराते हैं और फ़रियाद मचाते फिरते हैं। दिलफ़रेब ने उससे कहा था कि अगर तू मेरा सच्चा प्रेमी है, तो जा और दुनिया की सबसे अनमोल चीज़ लेकर मेरे दरबार में आ। तब मैं तुझे अपनी ग़ुलामी में क़बूल करूँगी। अगर तुझे वह चीज़ न मिले तो ख़बरदार इधर रुख़ न करना, वर्ना सूली पर खिंचवा दूँगी। दिलफ़िगार को अपनी भावनाओं के प्रदर्शन का, शिकवे-शिकायत का, प्रेमिका के सौंदर्य दर्शन का तनिक भी अवसर न दिया गया। दिलफ़रेब ने ज्योंही यह फ़ैसला सुनाया, उसके चोबदारों ने ग़रीब दिलफ़िगार को धक्के देकर बाहर निकाल दिया। और आज तीन दिन से यह आफ़त का मारा आदमी उसी कँटीले पेड़ के नीचे उसी भयानक मैदान में बैठा हुआ सोच रहा है कि क्या करूँ। दुनिया की सबसे अनमोल चीज़ मुझको मिलेगी? नामुमकिन! और वह है क्या? क़ारून का ख़ज़ाना? आबे हयात? ख़ुसरो का ताज? जामेजम? तख़्ते ताऊस? परवेज़ की दौलत? नहीं, यह चीज़ें हरगिज़ नहीं। दुनिया में ज़रूर इनसे भी महँगी, इनसे भी अनमोल चीज़ें मौजूद हैं, मगर वह क्या है? कहाँ है? कैसे मिलेगी? या ख़ुदा, मेरी मुश्किल क्योंकर आसान होगी?
दिलफ़िगार इन्हीं ख़यालों में चक्कर खा रहा था और अक्ल कुछ काम नहीं करती थी। मुनीर शामी को हातिम-सा मददगार मिल गया। ऐ काश, कोई मेरा भी मददगार हो जाता, ऐ काश मुझे भी उस चीज़ का, जो दुनिया की सबसे बेशक़ीमत चीज़ है, नाम बतला दिया जाता! बला से वह चीज़ें हाथ न आती मगर मुझे इतना तो मालूम हो जाता कि वह किस क़िस्म की चीज़ है। मैं घड़े बराबर मोती की खोज में जा सकता हूँ। मैं समुंदर का गीत, पत्थर का दिल, मौत की आवाज़ और इनसे भी ज़्यादा बेनिशान चीज़ों की तलाश में कमर कस सकता हूँ। मगर दुनिया की सबसे अनमोल चीज़! यह मेरी कल्पना की उड़ान से बहुत ऊपर है।
आसमान पर तारे निकल आए थे। दिलफ़िगार यकायक ख़ुदा का नाम लेकर उठा और एक तरफ़ को चल खड़ा हुआ। भूखा-प्यासा, नंगे बदन, थकन से चूर, वह बरसों वीरानों और आबादियों की ख़ाक छानता फिरा, तलवे काँटों से छलनी हो गए, शरीर में हड्डियाँ ही हड्डियाँ दिखाई देने लगी मगर वह चीज़, जो दुनिया की सबसे बेशक़ीमती चीज़ थी, न मिली और न उसका कुछ निशान मिला।
एक रोज़ वह भूलता-भटकता एक मैदान में जा निकला जहाँ हज़ारों आदमी ग़ोल बाँधे खड़े थे। बीच में कई अमामे और चोग़ेवाले दढ़ियल काज़ी अफ़सरी शान से बैठे हुए आपस में कुछ सलाह-मशविरा कर रहे थे और इस जमात से ज़रा दूर पर एक सूली खड़ी थी। दिलफ़िगार कुछ तो कमज़ोरी की वजह से और कुछ यहाँ की कैफ़ियत देखने के इरादे से ठिठक गया। क्या देखता है, कि कई लोग नंगी तलवारें लिए, एक क़ैदी को, जिसके हाथ-पैर में ज़ंजीरें थीं, पकड़े चले आ रहे हैं। सूली के पास पहुँचकर सब सिपाही रुक गए और क़ैदी की हथकड़ियाँ-बेड़ियाँ सब उतार ली गईं। इस अभागे आदमी का दामन सैकड़ों बेगुनाहों के ख़ून के छींटों से रंगीन था, और उसका दिल नेकी के ख़्याल और रहम की आवाज़ से ज़रा भी परिचित न था। उसे काला चोर कहते थे। सिपाहियों ने उसे सूली के तख़्ते पर खड़ा कर दिया, मौत की फाँसी उसकी गर्दन में डाल दी और जल्लादों ने तख़्ता खींचने का इरादा किया कि वह अभागा मुजरिम चीख़कर बोला, ख़ुदा—के वास्ते मुझे एक पल के लिए फाँसी से उतार दो ताकि अपने दिल की आख़िरी आरज़ू निकाल लूँ। यह सुनते ही चारों तरफ़ सन्नाटा छा गया। लोग अचंभे में आकर ताकने लगे। क़ाज़ियों ने एक मरने वाले आदमी की अंतिम याचना को रद्द करना उचित न समझा और बदनसीब पापी काला चोर ज़रा देर के लिए फाँसी से उतार लिया गया।
इसी भीड़ में एक ख़ूबसूरत भोला-भाला लड़का एक छड़ी पर सवार होकर अपने पैरों पर उछल-उछल फ़र्ज़ी घोड़ा दौड़ा रहा था, और अपनी सादगी की दुनिया में ऐसा मगन था कि जैसे वह इस वक़्त सचमुच अरबी घोड़े का शहसवार है। उसका चेहरा उस सच्ची ख़ुशी से कमल की तरह खिला हुआ था जो चंद दिनों के लिए बचपन ही में हासिल होती है और जिसकी याद हमको मरते दम तक नहीं भूलती। उसका दिल अभी तक पाप की गर्द और धूल से अछूता था और मासूमियत उसे अपनी गोद में खिला रही थी।
बदनसीब काला चोर फाँसी से उतरा। हज़ारों आँखें उस पर गड़ी हुई थीं। वह उस लड़के के पास आया और उसे गोद में उठाकर प्यार करने लगा। उसे इस वक़्त वह ज़माना याद आया जब वह ख़ुद ऐसा ही भोला-भाला, ऐसा ही ख़ुश-व-ख़ुर्रम और दुनिया की गंदगियों से ऐसा ही पाक-साफ़ था। माँ गोदियों मे खिलाती थी, बाप बलाएँ लेता था और सारा कुनबा जान न्योछावर करता था। आह, काले चोर के दिल पर इस वक़्त बीते हुए दिनों की याद का इतना असर हुआ कि उसकी आँखों से, जिन्होंने दम तोड़ती हुई लाशों को तड़पते देखा और न झपकीं, आँसू, का एक क़तरा टपक पड़ा। दिलफ़िगार ने लपककर उस अनमोल मोती को हाथ में ले लिया और उसके दिल ने कहा—बेशक यह दुनिया की सबसे अनमोल चीज़ है जिस पर तख़्ते ताऊस और जामेजम और आबे हयात और ज़रे परवेज़ सब न्योछावर हैं।
इस ख़्याल से ख़ुश होता, कामयाबी की उम्मीद में सरमस्त, दिलफ़िगार अपनी माश़ूका दिलफ़रेब के शहर मीनोसाबाद को चला। मगर ज्यों-ज्यों मंज़िलें तय होती जाती थीं उसका दिल बैठा जाता था कि कहीं उस चीज़ की, जिसे मैं दुनिया की सबसे बेशक़ीमत चीज़ समझता हूँ, दिलफ़रेब की आँखों में क़द्र न हुई तो मैं फाँसी पर चढ़ा दिया जाऊँगा और इस दुनिया से नामुराद जाऊँगा। लेकिन जो हो सो हो, अब तो क़िस्मत-आज़माई है। आख़िरकार पहाड़ और दरिया तय करते वह शहर मीनोसबाद में आ पहुँचा और दिलफ़रेब की ड्योढ़ी पर जाकर विनती की कि थकान से टूटा हुआ दिलफ़िगार ख़ुदा के फ़ज़ल से हुक्म की तामील करके आया है, और आपके क़दम चूमना चाहता है। दिलफ़रेब ने फ़ौरन अपने सामने बुला भेजा और एक सुनहरे पर्दे की ओट से फ़रमाइश की कि वह अनमोल चीज़ पेश करो। दिलफ़िगार ने आशा और भय की एक विचित्र मन:स्थिति में वह बूँद पेश की और उसकी सारी कैफ़ियत बहुत पुरअसर लफ़्ज़ों में बयान की। दिलफ़रेब ने पूरी कहानी बहुत ग़ौर से सुनी और वह भेंट हाथ में लेकर ज़रा देर तक ग़ौर करने के बाद बोली—दिलफ़िगार, बेशक तूने दुनिया की एक बेशक़ीमत चीज़ ढूँढ़ निकाली, तेरी हिम्मत और तेरी सूझ-बूझ की दाद देती हूँ! मगर यह दुनिया की सबसे बेशक़ीमत चीज़ नहीं, इसलिए तू यहाँ से जा और फिर कोशिश कर, शायद अब की तेरे हाथ वह मोती लगे और तेरी क़िस्मत में मेरी ग़ुलामी लिखी हो। जैसा कि मैंने पहले ही बतला दिया था, मैं तुझे फाँसी पर चढ़वा सकती हूँ मगर मैं तेरी जाँबख़्शी करती हूँ इसलिए कि तुझमें वह गुण मौजूद हैं, जो मैं अपने प्रेमी में देखना चाहती हूँ और मुझे यक़ीन है कि तू ज़रूर कभी-न-कभी कामयाब होगा।
नाकाम और नामुराद दिलफ़िगार इस माश़ूकाना इनायत से ज़रा दिलेर होकर बोला—ऐ दिल की रानी, बड़ी मुद्दत के बाद तेरी ड्योढ़ी पर सजदा करना नसीब होता है। फिर ख़ुदा जाने ऐसे दिन कब आएँगे, क्या तू अपने जान देने वाले आश़िक के बुरे हाल पर तरस न खाएगी और क्या तू अपने रूप की एक झलक दिखाकर इस जलते हुए दिलफ़िगार को आने वाली सख्तियों को झेलने की ताक़त न देगी? तेरी एक मस्त निगाह के नशे में चूर होकर मैं वह कर सकता हूँ जो आज तक किसी से न बन पड़ा हो।
दिलफ़रेब आश़िक की यह चाव भरी बातें सुनकर ग़ुस्सा हो गई और हुक्म दिया कि इस दीवाने को खड़े-खड़े दरबार से निकाल दो। चोबदार ने फ़ौरन ग़रीब दिलफ़िगार को धक्का देकर यार के कूचे से बाहर निकाल दिया।
कुछ देर तक तो दिलफ़िगार अपनी निष्ठुर प्रेमिका की इस कठोरता पर आँसू बहाता रहा, और फिर वह सोचने लगा कि अब कहाँ जाऊँ। मुद्दतों रास्ते नापने और जंगलों में भटकने के बाद आँसू की यह बूँद मिली थी, अब ऐसी कौन-सी चीज़ है जिसकी क़ीमत इस आबदार मोती से ज़्यादा हो। हज़रते ख़िज़्र! तुमने सिकंदर को आबे हयात के कुएँ का रास्ता दिखाया था, क्या मेरी बाँह न पकड़ोगे? सिकंदर सारी दुनिया का मालिक था। मैं तो एक बेघरबार मुसाफ़िर हूँ। तुमने कितनी ही डूबती किश्तियाँ किनारे लगाई हैं, मुझ ग़रीब का बेड़ा भी पार करो। ए आलीमुक़ाम जिबरील! कुछ तुम्हीं इस नीमजान, दुखी आश़िक पर तरस खाओ। तुम ख़ुदा के एक ख़ास दरबारी हो, क्या मेरी मुश्किल आसान न करोगे? ग़रज़ यह है कि दिलफ़िगार ने बहुत फ़रियाद मचाई मगर उसका हाथ पकड़ने के लिए कोई सामने न आया। आख़िर निराश होकर वह पागलों की तरह दुबारा एक तरफ़ को चल खड़ा हुआ।
दिलफ़िगार ने पूरब से पश्चिम तक और उत्तर से दक्खिन तक कितने ही जंगलों और वीरानों की ख़ाक छानी, कभी बर्फ़िस्तानी चोटियों पर सोया, कभी डरावनी घाटियों में भटकता फिरा मगर जिस चीज़ की धुन थी वह न मिली, यहाँ तक कि उसका शरीर हड्डियों का एक ढाँचा रह गया।
एक रोज़ वह शाम के वक़्त किसी नदी के किनारे खस्ताहाल पड़ा हुआ था। बेख़ुदी के नशे से चौंका तो क्या देखता है कि चंदन की एक चिता बनी हुई है और उस पर एक युवती सुहाग के जोड़े पहने सोलहों सिंगार किए बैठी है। उसकी जाँघ पर उसके प्यारे पति का सर है। हज़ारों आदमी गोल बाँधे खड़े हैं और फूलों की बरखा कर रहे हैं। यकायक चिता मे से ख़ुद-ब-ख़ुद एक लपट उठी। सती का चेहरा उस वक़्त एक पवित्र भाव से आलोकित हो रहा था, चिता की पवित्र लपटें उसके गले से लिपट गईं और दम के दम में वह फूल-सा शरीर राख का ढेर हो गया। प्रेमिका ने अपने को प्रेमी पर न्योछावर कर दिया और दो प्रेमियों के सच्चे, पवित्र, अमर प्रेम की अंतिम लीला आँख से ओझल हो गई। जब सब लोग अपने घरों को लौटे तो दिलफ़िगार चुपके से उठा और अपने चाक-दामन कुरते में यह राख का ढेर समेट लिया और इस मुट्ठी भर राख को दुनिया की सबसे अनमोल चीज़ समझता हुआ, सफलता के नशे में चूर, यार के कूचे की तरफ़ चला। अबकी ज्यों-ज्यों वह मंज़िल के क़रीब आता था, उसकी हिम्मत बढ़ती जाती थी। कोई उसके दिल में बैठा हुआ कह रहा था—अबकी तेरी जीत है और इस ख़्याल ने उसके दिल को जो-जो सपने दिखाए उनकी चर्चा व्यर्थ है। आख़िरकार वह शहर मीनोसबाद में दाख़िल हुआ और दिलफ़रेब की ऊँची ड्योढ़ी पर जाकर ख़बर दी कि दिलफ़िगार सुर्ख़-रू होकर लौटा है, और हुज़ूर के सामने आना चाहता है। दिलफ़रेब ने जाँबाज़ आश़िक को फ़ौरन दरबार मे बुलाया और उस चीज़ के लिए, जो दुनिया की सबसे बेशक़ीमत चीज़ थी, हाथ फैला दिया। दिलफ़िगार ने हिम्मत करके उसकी चाँदी जैसे कलाई को चूम लिया और मुट्ठी भर राख को उसकी हथेली मे रखकर सारी कैफ़ियत दिल को पिघला देने वाले लफ़्ज़ों में कह सुनाई और अपनी सुंदर प्रेमिका के होंठों से अपनी क़िस्मत का मुबारक फ़ैसला सुनने के लिए इंतज़ार करने लगा। दिलफ़रेब ने उस मुट्ठीभर राख को आँखों से लगा लिया और कुछ देर तक विचारों के सागर में डूबे रहने के बाद बोली—ऐ जान निछावर करने वाले आश़िक दिलफ़िगार! बेशक यह राख जो तू लाया है, जिसमें लोहे को सोना कर देने की सिफ़त है, दुनिया की बहुत बेशक़ीमत चीज़ है और मैं सच्चे दिल से तेरी एहसानमंद हूँ कि तूने ऐसी अनमोल भेंट मुझे दी। मगर दुनिया में इससे भी ज़्यादा अनमोल कोई चीज़ है, जा उसे तलाश कर और तब मेरे पास आ। मैं तहेदिल से दुआ करती हूँ कि ख़ुदा तुझे कामयाब करे। यह कहकर वह सुनहरे पर्दे से बाहर आई और माश़ूकाना अदा से अपने रूप का जलवा दिखाकर फिर नज़रों से ओझल हो गई। एक बिजली सी कौंधी और फिर बादलों के पर्दे में छिप गई। अभी दिलफ़िगार के होश-हवास ठिकाने पर न आने पाए थे कि चोबदार ने मुलायमियत से उसका हाथ पकड़कर यार के कूचे से उसको निकाल दिया और फिर तीसरी बार वह प्रेम का पुजारी निराशा के अथाह समुंदर में ग़ोता खाने लगा।
दिलफ़िगार का हियाव छूट गया। उसे य़कीन हो गया कि मैं दुनिया में उसी तरह नाशाद और नामुराद मर जाने के लिए पैदा किया गया था और अब इसके सिवा और कोई चारा नहीं कि किसी पहाड़ पर चढ़कर नीचे कूद पड़ूँ ताकि माशूक़ के ज़ुल्मों की फ़रियाद करने के लिए एक हड्डी भी बाक़ी न रहे। वह दीवाने की तरह उठा और गिरता-पड़ता एक गगनचुंबी पहाड़ की चोटी पर जा पहुँचा। किसी और समय वह ऐसे ऊँचे पहाड़ पर चढ़ने का साहस न कर सकता था मगर इस वक़्त जान देने के जोश में उसे वह पहाड़ एक मामूली टेकरी से ज़्यादा ऊँचा न नज़र आया। क़रीब था कि वह नीचे कूद पड़े कि हरे-हरे कपड़े पहने हुए और हरा अमामा बाँधे एक बुज़ुर्ग एक हाथ में तसबीह और दूसरे हाथ में लाठी लिए बरामद हुए और हिम्मत बढ़ाने वाले स्वर में बोले—दिलफ़िगार, नादान दिलफ़िगार, यह क्या बुज़दिलों जैसी हरकत है! तू मुहब्बत का दावा करता है और तुझे इतनी भी ख़बर नहीं कि मज़बूत इरादा मुहब्बत के रास्ते की पहली मंज़िल है? मर्द बन कर हिम्मत न हार। पूरब की तरफ़ एक देश है जिसका नाम हिंदोस्तान है, वहाँ जा और तेरी आरज़ू पूरी होगी।
यह कहकर हज़रते ख़िज़्र ग़ायब हो गए। दिलफ़िगार ने शुक्रिये की नमाज़ अदा की और ताज़ा हौंसले, ताज़ा जोश और अलौकिक सहायता का सहारा पाकर ख़ुश-ख़ुश पहाड़ से उतरा और हिंदोस्तान की तरफ़ चल पड़ा।
मुद्दतों तक काँटों से भरे हुए जंगलों, आग बरसाने वाले रेगिस्तानों, कठिन घाटियों और अलंध्य पर्वतों को तय करने के बाद दिलफ़िगार हिंद की पाक सरज़मीन में दाख़िल हुआ और एक ठंडे पानी के सोते में सफ़र की तकलीफ़े धोकर थकान के मारे नदी के किनारे लेट गया। शाम होते-होते वह एक चटियल मैदान में पहुँचा जहाँ बेशुमार अधमरी और बेजान लाशें बिना कफ़न के पड़ी हुई थीं। चील, कौए और वहशी दरिंदे भरे पड़े थे और सारा मैदान ख़ून से लाल हो रहा था। यह डरावना दृश्य देखते ही दिलफ़िगार का जी दहल गया। या ख़ुदा, किस मुसीबत मे जान फँसी, मरने वालों को कराहना, सिसकना और एड़ियाँ रगड़कर जान देना, दरिंदों का हड्डियों को नोचना और गोश्त के लोथड़ों को लेकर भागना-ऐसा हौलनाक सीन दिलफ़िगार ने कभी न देखा था। यकायक उसे ख़्याल आया, यह लड़ाई का मैदान है और यह लाशें सूरमा सिपाहियों की हैं। इतने में क़रीब से कराहने की आवाज़ आई। दिलफ़िगार उस तरफ़ फिरा तो देखा कि एक लंबा-तगड़ा आदमी, जिसका मर्दाना चेहरा जान निकलने की कमज़ोरी से पीला हो गया है, ज़मीन पर सर झुकाए पड़ा हुआ है। सीने से ख़ून का फव्वारा जारी है, मगर आबदार तलवार की मूठ पंजे से अलग नहीं हुई। दिलफ़िगार ने एक चीथड़ा लेकर घाव के मुँह पर रख दिया ताकि ख़ून रुक जाए और बोला—ऐ जवाँमर्द, तू कौन है? जवाँमर्द, तू कौन है? जवाँमर्द ने यह सुनकर आँखें खोलीं और वीरों की तरह बोला—क्या तू नहीं जानता मैं कौन हूँ, क्या तूने आज इस तलवार की काट नहीं देखी? मैं अपनी माँ का बेटा और भारत का सपूत हूँ। यह कहते-कहते उसकी त्योरियों पर बल पड़ गए। पीला चेहरा ग़ुस्से से लाल हो गया और आबदार शमशीर फिर अपना जौहर दिखाने के लिए चमक उठी। दिलफ़िगार समझ गया कि यह इस वक़्त मुझे दुशमन समझ रहा है, नरमी से बोला—ऐ जवाँमर्द, मैं तेरा दुश्मन नहीं हूँ। अपने वतन से निकला हुआ एक ग़रीब मुसाफ़िर हूँ। इधर भूलता-भटकता आ निकला। बराए मेहरबानी मुझसे यहाँ की कुल कैफ़ियत बयान कर।
यह सुनते ही घायल सिपाही बहुत मीठे स्वर में बोला—अगर तू मुसाफ़िर है तो आ और मेरे ख़ून से तर पहलू में बैठ जा क्योंकि यही दो अंगुल ज़मीन है जो मेरे पास बाक़ी रह गई है और जो सिवाए मौत के कोई नहीं छीन सकता। अफ़सोस है कि तू यहाँ ऐसे वक़्त में आया जब तेरा आतिथ्य-सत्कार करने के योग्य नहीं। हमारे बाप-दादा का देश आज हमारे हाथ से निकल गया और इस वक़्त हम बेवतन हैं। मगर (पहलू बदलकर) हमने हमलावर दुश्मन को बता दिया कि राजपूत अपने देश के लिए कैसी बहादुरी से अपनी जान देता है यह आस-पास जो लाशें तू देख रहा है, यह उन लोगों की हैं, जो इस तलवार के घाट उतरे हैं। (मुस्कराकर) और गो कि मैं बेवतन हूँ, मगर ग़नीमत है कि दुश्मन की ज़मीन पर नहीं मर रहा हूँ। (सीने के घाव से चीथड़ा निकालकर) क्या तूने यह मरहम रख दिया? ख़ून निकलने दे, इसे रोकने से क्या फ़ायदा? क्या मैं अपने ही देश में ग़ुलामी करने के लिए ज़िंदा रहूँ? नहीं, ऐसी ज़िंदगी से मर जाना अच्छा। इससे अच्छी मौत मुमकिन नहीं।
जवाँमर्द की आवाज़ मद्धिम हो गई, अंग ढीले पड़ गए, ख़ून इतना ज़्यादा बहा कि ख़ुद-ब-ख़ुद बंद हो गया। रह-रहकर एकाध बूँद टपक पड़ता था। आख़िरकार सारा शरीर बेदम हो गया, दिल की हरकत बंद हो गई और आँखें मुँद गईं। दिलफ़िगार ने समझा अब काम तमाम हो गया कि मरनेवाले ने धीमे से कहा—भारतमाता की जय! और उनके सीने से ख़ून का आख़िरी क़तरा निकल पड़ा। एक सच्चे देशप्रेमी और देशभक्त ने देशभक्ति का हक़ अदा कर दिया। दिलफ़िगार पर इस दृश्य का बहुत गहरा असर पड़ा और उसके दिल ने कहा, बेशक दुनिया में ख़ून के इस क़तरे से ज़्यादा अनमोल चीज़ कोई नहीं हो सकती। उसने फ़ौरन ख़ून की बूँद को, जिसके आगे यमन का लाल हेच भी है, हाथ में ले लिया और इस दिलेर राजपूत की बहादुरी पर हैरत करता हुआ अपने वतन की तरफ़ रवाना हुआ और सख्तियाँ झेलता हुआ आख़िरकार बहुत दिनों के बाद रूप की रानी मलका दिलफ़रेब की ड्यौढ़ी पर जा पहुँचा और पैग़ाम दिया कि दिलफ़िगार सुर्ख़रू और कामयाब होकर लौटा है और दरबार में हाज़िर होना चाहता है। दिलफ़रेब ने उसे फ़ौरन हाज़िर होने का हुक्म दिया। ख़ुद हस्बे मालूम सुनहरे पर्दे की ओट में बैठी और बोली—दिलफ़िगार, अबकी तू बहुत दिनों के बाद वापस आया है। ला, दुनिया की सबसे बेशक़ीमत चीज़ कहाँ है?
दिलफ़िगार ने मेंहदी-रची हथेलियों को चूमते हुए ख़ून का क़तरा उस पर रख दिया और उसकी पूरी कैफ़ियत पुरजोश लहजे में कह सुनाई। वह ख़ामोश भी न होने पाया था कि यकायक यह सुनहरा पर्दा हट गया और दिलफ़िगार के सामने हुस्न का एक दरबार सजा हुआ नज़र आया, जिसकी एक-एक नाज़नीन जुलेखा से बढ़कर थी। दिलफ़रेब बड़ी शान के साथ सुनहरी मसनद पर सुशोभित हो रही थी। दिलफ़िगार हुस्न का यह तिलिस्म देखकर अचंभे मे पड़ गया और चित्रलिखित-सा खड़ा रहा कि दिलफ़रेब मसनद से उठी और कई क़दम आगे बढ़कर उससे लिपट गई। गानेवालियों ने ख़ुशी के गाने शुरू किए, दरबारियों ने दिलफ़िगार को नज़रें भेंट कीं और चाँद-सूरज को बड़ी इज़्ज़त के साथ मसनद पर बैठा दिया। जब वह लुभावना गीत बंद हुआ तो दिलफ़रेब खड़ी हो गई और हाथ जोड़कर दिलफ़िगार से बोली—ऐ जाँनिसार आश़िक दिलफ़िगार! मेरी दुआएँ बर आईं और ख़ुदा ने मेरी सुन ली और तुझे कामयाब व सुर्ख़रू किया। आज से तू मेरा मालिक है और मैं तेरी लौंडी!
यह कहकर उसने एक रत्नजटित मंजूषा मँगाई और उसमें से एक तख़्ती निकाली जिस पर सुनहरे अक्षरों से लिखा हुआ था—
‘ख़ून का वह आख़िरी क़तरा जो वतन की हिफ़ाज़त में गिरे दुनिया की सबसे अनमोल चीज़ है।’
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dilafigar inhin khayalon mein chakkar kha raha tha aur akl kuch kaam nahin karti thi. munir shami ko hatim sa madadgar mil gaya. ai kaash, koi mera bhi madadgar ho jata, ai kaash mujhe bhi us cheez ka, jo duniya ki sabse beshaqimat cheez hai, naam batala diya jata! bala se wo chizen haath na aati magar mujhe itna to malum ho jata ki wo kis qim ki cheez hai. main ghaDe barabar moti ki khoj mein ja sakta hoon. main samundar ka geet, patthar ka dil, maut ki avaz aur inse bhi zyada benishan chizon ki talash mein kamar kas sakta hoon. magar duniya ki sabse anmol cheez! ye meri kalpana ki uDaan se bahut upar hai.
asman par tare nikal aaye the. dilafigar yakayak khuda ka naam lekar utha aur ek taraf ko chal khaDa hua. bhukha pyasa, nange badan, thakan se choor, wo barson viranon aur abadiyon ki khaak chhanta phira, talve kanton se chhalni ho gaye, sharir mein haDDiyan hi haDDiyan dikhai dene lagi magar wo cheez, jo duniya ki sabse beshqimti cheez thi, na mili aur na uska kuch nishan mila.
ek roz wo bhulta bhatakta ek maidan mein ja nikla jahan hazaron adami ghol bandhe khaDe the. beech mein kai amame aur choghevale daDhiyal kazi afsari shaan se baithe hue aapas mein kuch salah mashavira kar rahe the aur is jamat se zara door par ek suli khaDi thi. dilafigar kuch to kamzori ki vajah se aur kuch yahan ki kaifiyat dekhne ke irade se thithak gaya. kya dekhta hai, ki kai log nangi talvaren liye, ek qaidi ko, jiske haath pair mein zanjiren theen, pakDe chale aa rahe hain. suli ke paas pahunchakar sab sipahi ruk gaye aur qaidi ki hathakaDiyan beDiyan sab utaar li gain. is abhage adami ka daman saikDon begunahon ke khoon ke chhinton se rangin tha, aur uska dil neki ke khyaal aur rahm ki avaz se zara bhi parichit na tha. use kala chor kahte the. sipahiyon ne use suli ke takhte par khaDa kar diya, maut ki phansi uski gardan mein Daal di aur jalladon ne takhta khinchne ka irada kiya ki wo abhaga mujrim chikhkar bola, khuda—ke vaste mujhe ek pal ke liye phansi se utaar do taki apne dil ki akhiri aarzu nikal loon. ye sunte hi charon taraf sannata chha gaya. log achambhe mein aakar takne lage. qaziyon ne ek marne vale adami ki antim yachana ko radd karna uchit na samjha aur badansib papi kala chor zara der ke liye phansi se utaar liya gaya.
isi bheeD mein ek khubsurat bhola bhala laDka ek chhaDi par savar hokar apne pairon par uchhal uchhal farzi ghoDa dauDa raha tha, aur apni sadgi ki duniya mein aisa magan tha ki jaise wo is vaqt sachmuch arbi ghoDe ka shahsavar hai. uska chehra us sachchi khushi se kamal ki tarah khila hua tha jo chand dinon ke liye bachpan hi mein hasil hoti hai aur jiski yaad hamko marte dam tak nahin bhulti. uska dil abhi tak paap ki gard aur dhool se achhuta tha aur masumiyat use apni god mein khila rahi thi.
badansib kala chor phansi se utra. hazaron ankhen us par gaDi hui theen. wo us laDke ke paas aaya aur use god mein uthakar pyaar karne laga. use is vaqt wo zamana yaad aaya jab wo khu aisa hi bhola bhala, aisa hi khush va khurram aur duniya ki gandagiyon se aisa hi paak saaf tha. maan godiyon mae khilati thi, baap balayen leta tha aur sara kunba jaan nyochhavar karta tha. aah, kale chor ke dil par is vaqt bite hue dinon ki yaad ka itna asar hua ki uski ankhon se, jinhonne dam toDti hui lashon ko taDapte dekha aur na jhapkin, ansu, ka ek qatra tapak paDa. dilafigar ne lapakkar us anmol moti ko haath mein le liya aur uske dil ne kaha—beshak ye duniya ki sabse anmol cheez hai jis par takhte taus aur jamejam aur aabe hayat aur zare parvez sab nyochhavar hain.
is khyaal se khush hota, kamyabi ki ummid mein sarmast, dilafigar apni mashuka dilafare ke shahr minosabad ko chala. magar jyon jyon manzilen tay hoti jati theen uska dil baitha jata tha ki kahin us cheez ki, jise main duniya ki sabse beshaqimat cheez samajhta hoon, dilafare ki ankhon mein qadr na hui to main phansi par chaDha diya jaunga aur is duniya se namurad jaunga. lekin jo ho so ho, ab to qimat azmai hai. akhiraka pahaD aur dariya tay karte wo shahr minosbad mein aa pahuncha aur dilafare ki DyoDhi par jakar vinti ki ki thakan se tuta hua dilafigar khuda ke fazal se hukm ki tamil karke aaya hai, aur aapke qadam chumna chahta hai. dilafare ne fauran apne samne bula bheja aur ek sunahre parde ki ot se farmaish ki ki wo anmol cheez pesh karo. dilafigar ne aasha aur bhay ki ek vichitr manhasthiti mein wo boond pesh ki aur uski sari kaifiyat bahut purasar lafzon mein byaan ki. dilafare ne puri kahani bahut ghaur se suni aur wo bhent haath mein lekar zara der tak ghaur karne ke baad boli—dilafigar, beshak tune duniya ki ek beshaqimat cheez DhoonDh nikali, teri himmat aur teri soojh boojh ki daad deti hoon! magar ye duniya ki sabse beshaqimat cheez nahin, isliye tu yahan se ja aur phir koshish kar, shayad ab ki tere haath wo moti lage aur teri qimat mein meri ghulami likhi ho. jaisa ki mainne pahle hi batala diya tha, main tujhe phansi par chaDhva sakti hoon magar main teri janbakhshi karti hoon isliye ki tujhmen wo gun maujud hain, jo main apne premi mein dekhana chahti hoon aur mujhe yaqin hai ki tu zarur kabhi na kabhi kamyab hoga.
nakam aur namurad dilafigar is mashukana inayat se zara diler hokar bola—ai dil ki rani, baDi muddat ke baad teri DyoDhi par sajda karna nasib hota hai. phir khuda jane aise din kab ayenge, kya tu apne jaan dene vale ashik ke bure haal par taras na khayegi aur kya tu apne roop ki ek jhalak dikhakar is jalte hue dilafigar ko aane vali sakhtiyon ko jhelne ki taqat na degi? teri ek mast nigah ke nashe mein choor hokar main wo kar sakta hoon jo aaj tak kisi se na ban paDa ho.
dilafare ashik ki ye chaav bhari baten sunkar ghussa ho gai aur hukm diya ki is divane ko khaDe khaDe darbar se nikal do. chobdar ne fauran gharib dilafigar ko dhakka dekar yaar ke kuche se bahar nikal diya.
kuch der tak to dilafigar apni nishthur premika ki is kathorta par ansu bahata raha, aur phir wo sochne laga ki ab kahan jaun. muddaton raste napne aur jangalon mein bhatakne ke baad ansu ki ye boond mili thi, ab aisi kaun si cheez hai jiski qimat is abadar moti se zyada ho. hazarte khizr! tumne sikandar ko aabe hayat ke kuen ka rasta dikhaya tha, kya meri baanh na pakDoge? sikandar sari duniya ka malik tha. main to ek begharbar musafi hoon. tumne kitni hi Dubti kishtiyan kinare lagai hain, mujh gharib ka beDa bhi paar karo. e alimuqam jibril! kuch tumhin is nimjan, dukhi ashik par taras khao. tum khuda ke ek khaas darbari ho, kya meri mushkil asan na karoge? ghar ye hai ki dilafigar ne bahut fariyad machai magar uska haath pakaDne ke liye koi samne na aaya. akhir nirash hokar wo pagalon ki tarah dubara ek taraf ko chal khaDa hua.
dilafigar ne purab se pashchim tak aur uttar se dakhkhin tak kitne hi jangalon aur viranon ki khaak chhani, kabhi barfistani chotiyon par soya, kabhi Daravni ghatiyon mein bhatakta phira magar jis cheez ki dhun thi wo na mili, yahan tak ki uska sharir haDDiyon ka ek Dhancha rah gaya.
ek roz wo shaam ke vaqt kisi nadi ke kinare khastahal paDa hua tha. bekhudi ke nashe se chaunka to kya dekhta hai ki chandan ki ek chita bani hui hai aur us par ek yuvati suhag ke joDe pahne solahon singar kiye baithi hai. uski jaangh par uske pyare pati ka sar hai. hazaron adami gol bandhe khaDe hain aur phulon ki barkha kar rahe hain. yakayak chita mae se khu ba khu ek lapat uthi. sati ka chehra us vaqt ek pavitra bhaav se alokit ho raha tha, chita ki pavitra lapten uske gale se lipat gain aur dam ke dam mein wo phool sa sharir raakh ka Dher ho gaya. premika ne apne ko premi par nyochhavar kar diya aur do paremiyon ke sachche, pavitra, amar prem ki antim lila ankh se ojhal ho gai. jab sab log apne gharon ko laute to dilafigar chupke se utha aur apne chaak daman kurte mein ye raakh ka Dher samet liya aur is mutthi bhar raakh ko duniya ki sabse anmol cheez samajhta hua, saphalta ke nashe mein choor, yaar ke kuche ki taraf chala. abki jyon jyon wo manzil ke qarib aata tha, uski himmat baDhti jati thi. koi uske dil mein baitha hua kah raha tha—abki teri jeet hai aur is khyaal ne uske dil ko jo jo sapne dikhaye unki charcha byarth hai. akhiraka wo shahr minosbad mein dakhil hua aur dilafare ki unchi DyoDhi par jakar khabar di ki dilafigar surkh ru hokar lauta hai, aur huzur ke samne aana chahta hai. dilafare ne janbaz ashik ko fauran darbar mae bulaya aur us cheez ke liye, jo duniya ki sabse beshaqimat cheez thi, haath phaila diya. dilafigar ne himmat karke uski chandi jaise kalai ko choom liya aur mutthi bhar raakh ko uski hatheli mae rakhkar sari kaifiyat dil ko pighla dene vale lafzon mein kah sunai aur apni sundar premika ke honthon se apni qimat ka mubarak faisla sunne ke liye intज़aar karne laga. dilafare ne us mutthibhar raakh ko ankhon se laga liya aur kuch der tak vicharon ke sagar mein Dube rahne ke baad boli—ai jaan nichhavar karne vale ashik dilafigar! beshak ye raakh jo tu laya hai, jismen lohe ko sona kar dene ki sifat hai, duniya ki bahut beshaqimat cheez hai aur main sachche dil se teri ehsanamand hoon ki tune aisi anmol bhent mujhe di. magar duniya mein isse bhi zyada anmol koi cheez hai, ja use talash kar aur tab mere paas aa. main tahedil se dua karti hoon ki khuda tujhe kamyab kare. ye kahkar wo sunahre parde se bahar i aur mashukana ada se apne roop ka jalva dikhakar phir nazron se ojhal ho gai. ek bijli si kaundhi aur phir badalon ke parde mein chhip gai. abhi dilafigar ke hosh havas thikane par na aane pae the ki chobdar ne mulayamiyat se uska haath pakaDkar yaar ke kuche se usko nikal diya aur phir tisri baar wo prem ka pujari nirasha ke athah samundar mein ghota khane laga.
dilafigar ka hiyav chhoot gaya. use yakin ho gaya ki main duniya mein usi tarah nashad aur namurad mar jane ke liye paida kiya gaya tha aur ab iske siva aur koi chara nahin ki kisi pahaD par chaDhkar niche kood paDun taki mashuq ke zulmon ki fariyad karne ke liye ek haDDi bhi baqi na rahe. wo divane ki tarah utha aur girta paDta ek gaganchumbi pahaD ki choti par ja pahuncha. kisi aur samay wo aise unche pahaD par chaDhne ka sahas na kar sakta tha magar is vaqt jaan dene ke josh mein use wo pahaD ek mamuli tekari se zyada uncha na nazar aaya. qarib tha ki wo niche kood paDe ki hare hare kapDe pahne hue aur hara amama bandhe ek buzurg ek haath mein tasbih aur dusre haath mein lathi liye baramad hue aur himmat baDhane vale svar mein bole—dilafigar, nadan dilafigar, ye kya buzadilon jaisi harkat hai! tu muhabbat ka dava karta hai aur tujhe itni bhi khabar nahin ki mazbut irada muhabbat ke raste ki pahli manzil hai? mard ban kar himmat na haar. purab ki taraf ek desh hai jiska naam hindostan hai, vahan ja aur teri aarzu puri hogi.
ye kahkar hazarte khizr ghayab ho gaye. dilafigar ne shukriye ki namaz ada ki aur taza haunsle, taza josh aur alaukik sahayata ka sahara pakar khush khush pahaD se utra aur hindostan ki taraf chal paDa.
muddaton tak kanton se bhare hue jangalon, aag barsane vale registanon, kathin ghatiyon aur alandhya parvton ko tay karne ke baad dilafigar hind ki paak sarazmin mein dakhil hua aur ek thanDe pani ke sote mein safar ki taklife dhokar thakan ke mare nadi ke kinare let gaya. shaam hote hote wo ek chatiyal maidan mein pahuncha jahan beshumar adhamri aur bejan lashen bina kafan ke paDi hui theen. cheel, kaue aur vahshi darinde bhare paDe the aur sara maidan khoon se laal ho raha tha. ye Daravna drishya dekhte hi dilafigar ka ji dahal gaya. ya khuda, kis musibat mae jaan phansi, marne valon ko karahna, sisakna aur eDiyan ragaDkar jaan dena, darindon ka haDDiyon ko nochna aur gosht ke lothDon ko lekar bhagna aisa haulnak seen dilafigar ne kabhi na dekha tha. yakayak use khyaal aaya, ye laDai ka maidan hai aur ye lashen surma sipahiyon ki hain. itne mein qarib se karahne ki avaz i. dilafigar us taraf phira to dekha ki ek lamba tagDa adami, jiska mardana chehra jaan nikalne ki kamzori se pila ho gaya hai, zamin par sar jhukaye paDa hua hai. sine se khoon ka phavvara jari hai, magar abadar talvar ki mooth panje se alag nahin hui. dilafigar ne ek chithDa lekar ghaav ke munh par rakh diya taki khoon ruk jaye aur bola—ai javanmard, tu kaun hai? javanmard, tu kaun hai? javanmard ne ye sunkar ankhen kholin aur viron ki tarah bola—kya tu nahin janta main kaun hoon, kya tune aaj is talvar ki kaat nahin dekhi? main apni maan ka beta aur bharat ka saput hoon. ye kahte kahte uski tyoriyon par bal paD gaye. pila chehra ghusse se laal ho gaya aur abadar shamshir phir apna jauhar dikhane ke liye chamak uthi. dilafigar samajh gaya ki ye is vaqt mujhe dushman samajh raha hai, narmi se bola—ai javanmard, main tera dushman nahin hoon. apne vatan se nikla hua ek gharib musafi hoon. idhar bhulta bhatakta aa nikla. baraye mehrbani mujhse yahan ki kul kaifiyat byaan kar.
ye sunte hi ghayal sipahi bahut mithe svar mein bola—agar tu musafi hai to aa aur mere khoon se tar pahlu mein baith ja kyonki yahi do angul zamin hai jo mere paas baqi rah gai hai aur jo sivaye maut ke koi nahin chheen sakta. afsos hai ki tu yahan aise vaqt mein aaya jab tera atithy satkar karne ke yogya nahin. hamare baap dada ka desh aaj hamare haath se nikal gaya aur is vaqt hum bevtan hain. magar (pahlu badalkar) hamne hamlavar dushman ko bata diya ki rajput apne desh ke liye kaisi bahaduri se apni jaan deta hai ye aas paas jo lashen tu dekh raha hai, ye un logon ki hain, jo is talvar ke ghaat utre hain. (muskrakar) aur go ki main bevtan hoon, magar ghanimat hai ki dushman ki zamin par nahin mar raha hoon. (sine ke ghaav se chithDa nikalkar) kya tune ye marham rakh diya? khoon nikalne de, ise rokne se kya fayda? kya main apne hi desh mein ghulami karne ke liye zinda rahun? nahin, aisi zindagi se mar jana achchha. isse achchhi maut mumkin nahin.
javanmard ki avaz maddhim ho gai, ang Dhile paD gaye, khoon itna zyada baha ki khu ba khu band ho gaya. rah rahkar ekaadh boond tapak paDta tha. akhiraka sara sharir bedam ho gaya, dil ki harkat band ho gai aur ankhen mund gain. dilafigar ne samjha ab kaam tamam ho gaya ki marnevale ne dhime se kaha—bharatmata ki jay! aur unke sine se khoon ka akhiri qatra nikal paDa. ek sachche deshapremi aur deshabhakt ne deshabhakti ka haq ada kar diya. dilafigar par is drishya ka bahut gahra asar paDa aur uske dil ne kaha, beshak duniya mein khoon ke is qatre se zyada anmol cheez koi nahin ho sakti. usne fauran khoon ki boond ko, jiske aage yaman ka laal hech bhi hai, haath mein le liya aur is diler rajput ki bahaduri par hairat karta hua apne vatan ki taraf ravana hua aur sakhtiyan jhelta hua akhiraka bahut dinon ke baad roop ki rani malaka dilafare ki DyauDhi par ja pahuncha aur paigham diya ki dilafigar surख़ru aur kamyab hokar lauta hai aur darbar mein hazir hona chahta hai. dilafare ne use fauran hazir hone ka hukm diya. khu hasbe malum sunahre parde ki ot mein baithi aur boli—dilafigar, abki tu bahut dinon ke baad vapas aaya hai. la, duniya ki sabse beshaqimat cheez kahan hai?
dilafigar ne menhdi rachi hatheliyon ko chumte hue khoon ka qatra us par rakh diya aur uski puri kaifiyat purjosh lahje mein kah sunai. wo khamosh bhi na hone paya tha ki yakayak ye sunahra parda hat gaya aur dilafigar ke samne husn ka ek darbar saja hua nazar aaya, jiski ek ek naznin julekha se baDhkar thi. dilafare baDi shaan ke saath sunahri masnad par sushobhit ho rahi thi. dilafigar husn ka ye tilism dekhkar achambhe mae paD gaya aur chitralikhit sa khaDa raha ki dilafare masnad se uthi aur kai qadam aage baDhkar usse lipat gai. ganevaliyon ne khushi ke gane shuru kiye, darbariyon ne dilafigar ko nazren bhent keen aur chaand suraj ko baDi izzat ke saath masnad par baitha diya. jab wo lubhavana geet band hua to dilafare khaDi ho gai aur haath joDkar dilafigar se boli—ai jannisar ashik dilafigar! meri duaen bar ain aur khuda ne meri sun li aur tujhe kamyab va surख़ru kiya. aaj se tu mera malik hai aur main teri launDi!
ye kahkar usne ek ratnajtit manjusha mangai aur usmen se ek takhti nikali jis par sunahre akshron se likha hua tha—
‘khoon ka wo akhiri qatra jo vatan ki hifazat mein gire duniya ki sabse anmol cheez hai. ’
dilafigar ek kantile peD ke niche daman chaak kiye baitha hua khoon ke ansu baha raha tha. wo saundarya ki devi yani malaka dilafare ka sachcha aur jaan denevala premi tha. un paremiyon mein nahin, jo itr phulel mein baskar aur shanadar kapDon se sajkar ashiq ke vesh mein mashuqiyat ka dam bharte hain. balki un sidhe sade bhole bhale fidaiyon mein jo jangal aur pahaDon se sar takrate hain aur fariyad machate phirte hain. dilafare ne usse kaha tha ki agar tu mera sachcha premi hai, to ja aur duniya ki sabse anmol cheez lekar mere darbar mein aa. tab main tujhe apni ghulami mein qabu karungi. agar tujhe wo cheez na mile to khabardar idhar rukh na karna, varna suli par khinchva dungi. dilafigar ko apni bhaunaun ke pradarshan ka, shikve shikayat ka, premika ke saundarya darshan ka tanik bhi avsar na diya gaya. dilafare ne jyonhi ye faisla sunaya, uske chobdaron ne gharib dilafigar ko dhakke dekar bahar nikal diya. aur aaj teen din se ye aafat ka mara adami usi kantile peD ke niche usi bhayanak maidan mein baitha hua soch raha hai ki kya karun. duniya ki sabse anmol cheez mujhko milegi? namumkin! aur wo hai kyaa? qarun ka khazana? aabe hayat? khusro ka taaj? jamejam? takhte taus? parvez ki daulat? nahin, ye chizen hargiz nahin. duniya mein zarur inse bhi mahngi, inse bhi anmol chizen maujud hain, magar wo kya hai? kahan hai? kaise milegi? ya khuda, meri mushkil kyonkar asan hogi?
dilafigar inhin khayalon mein chakkar kha raha tha aur akl kuch kaam nahin karti thi. munir shami ko hatim sa madadgar mil gaya. ai kaash, koi mera bhi madadgar ho jata, ai kaash mujhe bhi us cheez ka, jo duniya ki sabse beshaqimat cheez hai, naam batala diya jata! bala se wo chizen haath na aati magar mujhe itna to malum ho jata ki wo kis qim ki cheez hai. main ghaDe barabar moti ki khoj mein ja sakta hoon. main samundar ka geet, patthar ka dil, maut ki avaz aur inse bhi zyada benishan chizon ki talash mein kamar kas sakta hoon. magar duniya ki sabse anmol cheez! ye meri kalpana ki uDaan se bahut upar hai.
asman par tare nikal aaye the. dilafigar yakayak khuda ka naam lekar utha aur ek taraf ko chal khaDa hua. bhukha pyasa, nange badan, thakan se choor, wo barson viranon aur abadiyon ki khaak chhanta phira, talve kanton se chhalni ho gaye, sharir mein haDDiyan hi haDDiyan dikhai dene lagi magar wo cheez, jo duniya ki sabse beshqimti cheez thi, na mili aur na uska kuch nishan mila.
ek roz wo bhulta bhatakta ek maidan mein ja nikla jahan hazaron adami ghol bandhe khaDe the. beech mein kai amame aur choghevale daDhiyal kazi afsari shaan se baithe hue aapas mein kuch salah mashavira kar rahe the aur is jamat se zara door par ek suli khaDi thi. dilafigar kuch to kamzori ki vajah se aur kuch yahan ki kaifiyat dekhne ke irade se thithak gaya. kya dekhta hai, ki kai log nangi talvaren liye, ek qaidi ko, jiske haath pair mein zanjiren theen, pakDe chale aa rahe hain. suli ke paas pahunchakar sab sipahi ruk gaye aur qaidi ki hathakaDiyan beDiyan sab utaar li gain. is abhage adami ka daman saikDon begunahon ke khoon ke chhinton se rangin tha, aur uska dil neki ke khyaal aur rahm ki avaz se zara bhi parichit na tha. use kala chor kahte the. sipahiyon ne use suli ke takhte par khaDa kar diya, maut ki phansi uski gardan mein Daal di aur jalladon ne takhta khinchne ka irada kiya ki wo abhaga mujrim chikhkar bola, khuda—ke vaste mujhe ek pal ke liye phansi se utaar do taki apne dil ki akhiri aarzu nikal loon. ye sunte hi charon taraf sannata chha gaya. log achambhe mein aakar takne lage. qaziyon ne ek marne vale adami ki antim yachana ko radd karna uchit na samjha aur badansib papi kala chor zara der ke liye phansi se utaar liya gaya.
isi bheeD mein ek khubsurat bhola bhala laDka ek chhaDi par savar hokar apne pairon par uchhal uchhal farzi ghoDa dauDa raha tha, aur apni sadgi ki duniya mein aisa magan tha ki jaise wo is vaqt sachmuch arbi ghoDe ka shahsavar hai. uska chehra us sachchi khushi se kamal ki tarah khila hua tha jo chand dinon ke liye bachpan hi mein hasil hoti hai aur jiski yaad hamko marte dam tak nahin bhulti. uska dil abhi tak paap ki gard aur dhool se achhuta tha aur masumiyat use apni god mein khila rahi thi.
badansib kala chor phansi se utra. hazaron ankhen us par gaDi hui theen. wo us laDke ke paas aaya aur use god mein uthakar pyaar karne laga. use is vaqt wo zamana yaad aaya jab wo khu aisa hi bhola bhala, aisa hi khush va khurram aur duniya ki gandagiyon se aisa hi paak saaf tha. maan godiyon mae khilati thi, baap balayen leta tha aur sara kunba jaan nyochhavar karta tha. aah, kale chor ke dil par is vaqt bite hue dinon ki yaad ka itna asar hua ki uski ankhon se, jinhonne dam toDti hui lashon ko taDapte dekha aur na jhapkin, ansu, ka ek qatra tapak paDa. dilafigar ne lapakkar us anmol moti ko haath mein le liya aur uske dil ne kaha—beshak ye duniya ki sabse anmol cheez hai jis par takhte taus aur jamejam aur aabe hayat aur zare parvez sab nyochhavar hain.
is khyaal se khush hota, kamyabi ki ummid mein sarmast, dilafigar apni mashuka dilafare ke shahr minosabad ko chala. magar jyon jyon manzilen tay hoti jati theen uska dil baitha jata tha ki kahin us cheez ki, jise main duniya ki sabse beshaqimat cheez samajhta hoon, dilafare ki ankhon mein qadr na hui to main phansi par chaDha diya jaunga aur is duniya se namurad jaunga. lekin jo ho so ho, ab to qimat azmai hai. akhiraka pahaD aur dariya tay karte wo shahr minosbad mein aa pahuncha aur dilafare ki DyoDhi par jakar vinti ki ki thakan se tuta hua dilafigar khuda ke fazal se hukm ki tamil karke aaya hai, aur aapke qadam chumna chahta hai. dilafare ne fauran apne samne bula bheja aur ek sunahre parde ki ot se farmaish ki ki wo anmol cheez pesh karo. dilafigar ne aasha aur bhay ki ek vichitr manhasthiti mein wo boond pesh ki aur uski sari kaifiyat bahut purasar lafzon mein byaan ki. dilafare ne puri kahani bahut ghaur se suni aur wo bhent haath mein lekar zara der tak ghaur karne ke baad boli—dilafigar, beshak tune duniya ki ek beshaqimat cheez DhoonDh nikali, teri himmat aur teri soojh boojh ki daad deti hoon! magar ye duniya ki sabse beshaqimat cheez nahin, isliye tu yahan se ja aur phir koshish kar, shayad ab ki tere haath wo moti lage aur teri qimat mein meri ghulami likhi ho. jaisa ki mainne pahle hi batala diya tha, main tujhe phansi par chaDhva sakti hoon magar main teri janbakhshi karti hoon isliye ki tujhmen wo gun maujud hain, jo main apne premi mein dekhana chahti hoon aur mujhe yaqin hai ki tu zarur kabhi na kabhi kamyab hoga.
nakam aur namurad dilafigar is mashukana inayat se zara diler hokar bola—ai dil ki rani, baDi muddat ke baad teri DyoDhi par sajda karna nasib hota hai. phir khuda jane aise din kab ayenge, kya tu apne jaan dene vale ashik ke bure haal par taras na khayegi aur kya tu apne roop ki ek jhalak dikhakar is jalte hue dilafigar ko aane vali sakhtiyon ko jhelne ki taqat na degi? teri ek mast nigah ke nashe mein choor hokar main wo kar sakta hoon jo aaj tak kisi se na ban paDa ho.
dilafare ashik ki ye chaav bhari baten sunkar ghussa ho gai aur hukm diya ki is divane ko khaDe khaDe darbar se nikal do. chobdar ne fauran gharib dilafigar ko dhakka dekar yaar ke kuche se bahar nikal diya.
kuch der tak to dilafigar apni nishthur premika ki is kathorta par ansu bahata raha, aur phir wo sochne laga ki ab kahan jaun. muddaton raste napne aur jangalon mein bhatakne ke baad ansu ki ye boond mili thi, ab aisi kaun si cheez hai jiski qimat is abadar moti se zyada ho. hazarte khizr! tumne sikandar ko aabe hayat ke kuen ka rasta dikhaya tha, kya meri baanh na pakDoge? sikandar sari duniya ka malik tha. main to ek begharbar musafi hoon. tumne kitni hi Dubti kishtiyan kinare lagai hain, mujh gharib ka beDa bhi paar karo. e alimuqam jibril! kuch tumhin is nimjan, dukhi ashik par taras khao. tum khuda ke ek khaas darbari ho, kya meri mushkil asan na karoge? ghar ye hai ki dilafigar ne bahut fariyad machai magar uska haath pakaDne ke liye koi samne na aaya. akhir nirash hokar wo pagalon ki tarah dubara ek taraf ko chal khaDa hua.
dilafigar ne purab se pashchim tak aur uttar se dakhkhin tak kitne hi jangalon aur viranon ki khaak chhani, kabhi barfistani chotiyon par soya, kabhi Daravni ghatiyon mein bhatakta phira magar jis cheez ki dhun thi wo na mili, yahan tak ki uska sharir haDDiyon ka ek Dhancha rah gaya.
ek roz wo shaam ke vaqt kisi nadi ke kinare khastahal paDa hua tha. bekhudi ke nashe se chaunka to kya dekhta hai ki chandan ki ek chita bani hui hai aur us par ek yuvati suhag ke joDe pahne solahon singar kiye baithi hai. uski jaangh par uske pyare pati ka sar hai. hazaron adami gol bandhe khaDe hain aur phulon ki barkha kar rahe hain. yakayak chita mae se khu ba khu ek lapat uthi. sati ka chehra us vaqt ek pavitra bhaav se alokit ho raha tha, chita ki pavitra lapten uske gale se lipat gain aur dam ke dam mein wo phool sa sharir raakh ka Dher ho gaya. premika ne apne ko premi par nyochhavar kar diya aur do paremiyon ke sachche, pavitra, amar prem ki antim lila ankh se ojhal ho gai. jab sab log apne gharon ko laute to dilafigar chupke se utha aur apne chaak daman kurte mein ye raakh ka Dher samet liya aur is mutthi bhar raakh ko duniya ki sabse anmol cheez samajhta hua, saphalta ke nashe mein choor, yaar ke kuche ki taraf chala. abki jyon jyon wo manzil ke qarib aata tha, uski himmat baDhti jati thi. koi uske dil mein baitha hua kah raha tha—abki teri jeet hai aur is khyaal ne uske dil ko jo jo sapne dikhaye unki charcha byarth hai. akhiraka wo shahr minosbad mein dakhil hua aur dilafare ki unchi DyoDhi par jakar khabar di ki dilafigar surkh ru hokar lauta hai, aur huzur ke samne aana chahta hai. dilafare ne janbaz ashik ko fauran darbar mae bulaya aur us cheez ke liye, jo duniya ki sabse beshaqimat cheez thi, haath phaila diya. dilafigar ne himmat karke uski chandi jaise kalai ko choom liya aur mutthi bhar raakh ko uski hatheli mae rakhkar sari kaifiyat dil ko pighla dene vale lafzon mein kah sunai aur apni sundar premika ke honthon se apni qimat ka mubarak faisla sunne ke liye intज़aar karne laga. dilafare ne us mutthibhar raakh ko ankhon se laga liya aur kuch der tak vicharon ke sagar mein Dube rahne ke baad boli—ai jaan nichhavar karne vale ashik dilafigar! beshak ye raakh jo tu laya hai, jismen lohe ko sona kar dene ki sifat hai, duniya ki bahut beshaqimat cheez hai aur main sachche dil se teri ehsanamand hoon ki tune aisi anmol bhent mujhe di. magar duniya mein isse bhi zyada anmol koi cheez hai, ja use talash kar aur tab mere paas aa. main tahedil se dua karti hoon ki khuda tujhe kamyab kare. ye kahkar wo sunahre parde se bahar i aur mashukana ada se apne roop ka jalva dikhakar phir nazron se ojhal ho gai. ek bijli si kaundhi aur phir badalon ke parde mein chhip gai. abhi dilafigar ke hosh havas thikane par na aane pae the ki chobdar ne mulayamiyat se uska haath pakaDkar yaar ke kuche se usko nikal diya aur phir tisri baar wo prem ka pujari nirasha ke athah samundar mein ghota khane laga.
dilafigar ka hiyav chhoot gaya. use yakin ho gaya ki main duniya mein usi tarah nashad aur namurad mar jane ke liye paida kiya gaya tha aur ab iske siva aur koi chara nahin ki kisi pahaD par chaDhkar niche kood paDun taki mashuq ke zulmon ki fariyad karne ke liye ek haDDi bhi baqi na rahe. wo divane ki tarah utha aur girta paDta ek gaganchumbi pahaD ki choti par ja pahuncha. kisi aur samay wo aise unche pahaD par chaDhne ka sahas na kar sakta tha magar is vaqt jaan dene ke josh mein use wo pahaD ek mamuli tekari se zyada uncha na nazar aaya. qarib tha ki wo niche kood paDe ki hare hare kapDe pahne hue aur hara amama bandhe ek buzurg ek haath mein tasbih aur dusre haath mein lathi liye baramad hue aur himmat baDhane vale svar mein bole—dilafigar, nadan dilafigar, ye kya buzadilon jaisi harkat hai! tu muhabbat ka dava karta hai aur tujhe itni bhi khabar nahin ki mazbut irada muhabbat ke raste ki pahli manzil hai? mard ban kar himmat na haar. purab ki taraf ek desh hai jiska naam hindostan hai, vahan ja aur teri aarzu puri hogi.
ye kahkar hazarte khizr ghayab ho gaye. dilafigar ne shukriye ki namaz ada ki aur taza haunsle, taza josh aur alaukik sahayata ka sahara pakar khush khush pahaD se utra aur hindostan ki taraf chal paDa.
muddaton tak kanton se bhare hue jangalon, aag barsane vale registanon, kathin ghatiyon aur alandhya parvton ko tay karne ke baad dilafigar hind ki paak sarazmin mein dakhil hua aur ek thanDe pani ke sote mein safar ki taklife dhokar thakan ke mare nadi ke kinare let gaya. shaam hote hote wo ek chatiyal maidan mein pahuncha jahan beshumar adhamri aur bejan lashen bina kafan ke paDi hui theen. cheel, kaue aur vahshi darinde bhare paDe the aur sara maidan khoon se laal ho raha tha. ye Daravna drishya dekhte hi dilafigar ka ji dahal gaya. ya khuda, kis musibat mae jaan phansi, marne valon ko karahna, sisakna aur eDiyan ragaDkar jaan dena, darindon ka haDDiyon ko nochna aur gosht ke lothDon ko lekar bhagna aisa haulnak seen dilafigar ne kabhi na dekha tha. yakayak use khyaal aaya, ye laDai ka maidan hai aur ye lashen surma sipahiyon ki hain. itne mein qarib se karahne ki avaz i. dilafigar us taraf phira to dekha ki ek lamba tagDa adami, jiska mardana chehra jaan nikalne ki kamzori se pila ho gaya hai, zamin par sar jhukaye paDa hua hai. sine se khoon ka phavvara jari hai, magar abadar talvar ki mooth panje se alag nahin hui. dilafigar ne ek chithDa lekar ghaav ke munh par rakh diya taki khoon ruk jaye aur bola—ai javanmard, tu kaun hai? javanmard, tu kaun hai? javanmard ne ye sunkar ankhen kholin aur viron ki tarah bola—kya tu nahin janta main kaun hoon, kya tune aaj is talvar ki kaat nahin dekhi? main apni maan ka beta aur bharat ka saput hoon. ye kahte kahte uski tyoriyon par bal paD gaye. pila chehra ghusse se laal ho gaya aur abadar shamshir phir apna jauhar dikhane ke liye chamak uthi. dilafigar samajh gaya ki ye is vaqt mujhe dushman samajh raha hai, narmi se bola—ai javanmard, main tera dushman nahin hoon. apne vatan se nikla hua ek gharib musafi hoon. idhar bhulta bhatakta aa nikla. baraye mehrbani mujhse yahan ki kul kaifiyat byaan kar.
ye sunte hi ghayal sipahi bahut mithe svar mein bola—agar tu musafi hai to aa aur mere khoon se tar pahlu mein baith ja kyonki yahi do angul zamin hai jo mere paas baqi rah gai hai aur jo sivaye maut ke koi nahin chheen sakta. afsos hai ki tu yahan aise vaqt mein aaya jab tera atithy satkar karne ke yogya nahin. hamare baap dada ka desh aaj hamare haath se nikal gaya aur is vaqt hum bevtan hain. magar (pahlu badalkar) hamne hamlavar dushman ko bata diya ki rajput apne desh ke liye kaisi bahaduri se apni jaan deta hai ye aas paas jo lashen tu dekh raha hai, ye un logon ki hain, jo is talvar ke ghaat utre hain. (muskrakar) aur go ki main bevtan hoon, magar ghanimat hai ki dushman ki zamin par nahin mar raha hoon. (sine ke ghaav se chithDa nikalkar) kya tune ye marham rakh diya? khoon nikalne de, ise rokne se kya fayda? kya main apne hi desh mein ghulami karne ke liye zinda rahun? nahin, aisi zindagi se mar jana achchha. isse achchhi maut mumkin nahin.
javanmard ki avaz maddhim ho gai, ang Dhile paD gaye, khoon itna zyada baha ki khu ba khu band ho gaya. rah rahkar ekaadh boond tapak paDta tha. akhiraka sara sharir bedam ho gaya, dil ki harkat band ho gai aur ankhen mund gain. dilafigar ne samjha ab kaam tamam ho gaya ki marnevale ne dhime se kaha—bharatmata ki jay! aur unke sine se khoon ka akhiri qatra nikal paDa. ek sachche deshapremi aur deshabhakt ne deshabhakti ka haq ada kar diya. dilafigar par is drishya ka bahut gahra asar paDa aur uske dil ne kaha, beshak duniya mein khoon ke is qatre se zyada anmol cheez koi nahin ho sakti. usne fauran khoon ki boond ko, jiske aage yaman ka laal hech bhi hai, haath mein le liya aur is diler rajput ki bahaduri par hairat karta hua apne vatan ki taraf ravana hua aur sakhtiyan jhelta hua akhiraka bahut dinon ke baad roop ki rani malaka dilafare ki DyauDhi par ja pahuncha aur paigham diya ki dilafigar surख़ru aur kamyab hokar lauta hai aur darbar mein hazir hona chahta hai. dilafare ne use fauran hazir hone ka hukm diya. khu hasbe malum sunahre parde ki ot mein baithi aur boli—dilafigar, abki tu bahut dinon ke baad vapas aaya hai. la, duniya ki sabse beshaqimat cheez kahan hai?
dilafigar ne menhdi rachi hatheliyon ko chumte hue khoon ka qatra us par rakh diya aur uski puri kaifiyat purjosh lahje mein kah sunai. wo khamosh bhi na hone paya tha ki yakayak ye sunahra parda hat gaya aur dilafigar ke samne husn ka ek darbar saja hua nazar aaya, jiski ek ek naznin julekha se baDhkar thi. dilafare baDi shaan ke saath sunahri masnad par sushobhit ho rahi thi. dilafigar husn ka ye tilism dekhkar achambhe mae paD gaya aur chitralikhit sa khaDa raha ki dilafare masnad se uthi aur kai qadam aage baDhkar usse lipat gai. ganevaliyon ne khushi ke gane shuru kiye, darbariyon ne dilafigar ko nazren bhent keen aur chaand suraj ko baDi izzat ke saath masnad par baitha diya. jab wo lubhavana geet band hua to dilafare khaDi ho gai aur haath joDkar dilafigar se boli—ai jannisar ashik dilafigar! meri duaen bar ain aur khuda ne meri sun li aur tujhe kamyab va surख़ru kiya. aaj se tu mera malik hai aur main teri launDi!
ye kahkar usne ek ratnajtit manjusha mangai aur usmen se ek takhti nikali jis par sunahre akshron se likha hua tha—
‘khoon ka wo akhiri qatra jo vatan ki hifazat mein gire duniya ki sabse anmol cheez hai. ’
हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों का व्यापक शब्दकोश : हिन्दवी डिक्शनरी
‘हिन्दवी डिक्शनरी’ हिंदी और हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों के शब्दों का व्यापक संग्रह है। इसमें अंगिका, अवधी, कन्नौजी, कुमाउँनी, गढ़वाली, बघेली, बज्जिका, बुंदेली, ब्रज, भोजपुरी, मगही, मैथिली और मालवी शामिल हैं। इस शब्दकोश में शब्दों के विस्तृत अर्थ, पर्यायवाची, विलोम, कहावतें और मुहावरे उपलब्ध हैं।