स्वामी की दादी
svami ki dadi
नोट
प्रस्तुत पाठ एनसीईआरटी की कक्षा पाँचवी के पाठ्यक्रम में शामिल है।
बैठक और भोजन-कक्ष के बीच कम हवादार अँधेरे गलियारे की बंद-सी कोठरी में स्वामीनाथन की दादी अपने सारे सामान के साथ रहती थीं। उनका सामान था—पाँच दरियों, तीन चादरों, पाँच तकियों वाला भारी-भरकम बिस्तर, पटसन के रेशे का बना एक वर्गाकार बक्सा और लकड़ी का एक छोटा बक्सा जिसमें ताँबे के सिक्के, इलायची, लौंग और सुपारी पड़े रहते थे।
रात के भोजन के बाद स्वामीनाथन दादी के पास उनकी गोद में सिर रखे लौंग, इलायची की गंध भरे वातावरण में अपने को बहुत प्रसन्न और सुरक्षित महसूस कर रहा था।
बड़ी प्रसन्नता से भरकर वह बोला, “ओह दादी! तुम नहीं जानती, राजम कितनी ऊँची चीज़ है।” उसने दादी को राजम और मणि की पहले दुश्मनी और फिर दोस्ती की कहानी कह सुनाई।
“तुम्हें पता है उसके पास सचमुच की पुलिस की वर्दी है,” स्वामीनाथन बोला।
“सच...? उसे पुलिस की वर्दी क्यों चाहिए?” दादी ने पूछा।
“उसके पिता पुलिस अधीक्षक हैं। वह यहाँ की पुलिस के सबसे बड़े अफ़सर हैं।” दादी काफ़ी प्रभावित हुईं। “उनका सच में काफ़ी बड़ा दफ़्तर होगा।” उन्होंने कहा। फिर उन्होंने उन दिनों की कहानी सुनानी शुरू की जब स्वामीनाथन के दादा रौबदार सब-मजिस्ट्रेट थे, जिनके दफ़्तर में पुलिसवाले काँपते हुए खड़े रहते थे। उनसे डरकर ख़ूँख़ार से ख़ूँख़ार डाकू तक भाग खड़े होते थे। स्वामीनाथन अधीर होकर उनकी कहानी ख़त्म होने का इंतज़ार करने लगा लेकिन दादी बोलती ही गई, इधर-उधर भटकती हुई और अलग-अलग समय पर घटी घटनाओं को गड्डमड्ड करती हुई।
“बस काफ़ी है दादी” उसने रूखे स्वर में कहा, “मैं तुम्हें राजम के बारे में कुछ बताना चाहता हूँ। जानती हो, उसे गणित में कितने नंबर मिलते हैं?”
“सारे नंबर मिलते होंगे है न?” दादी ने पूछा।
“अरे नहीं, उसे सौ में से नब्बे मिलते हैं।”
“चलो अच्छा है लेकिन तुम्हें भी मेहनत करके उसकी तरह नंबर लेने चाहिए...तुम्हें पता है तुम्हारे दादा कभी-कभी ऐसे उत्तर लिखते थे कि परीक्षकों को भी चकित कर देते थे। किसी सवाल का जवाब देने में वे दूसरों के मुक़ाबले दसवाँ हिस्सा वक़्त लेते थे। और फिर उनके जवाब इतने शानदार होते थे कि कभी-कभी उनके अध्यापक उन्हें दो सौ नंबर तक दे देते थे।...जब उन्होंने एम.ए. किया तो उन्हें इतना बड़ा मैडल मिला था। मैं कई सालों तक उसे गले में पहनती रही। पता नहीं, मैंने कब उसे उतारा...हाँ, जब तुम्हारी बुआ पैदा हुई...। नहीं, तुम्हारी बुआ नहीं, तुम्हारे पिता। याद आया, तब बच्चा दस दिन का था। अरे नहीं, मैंने पहले ठीक कहा था। तुम्हारी बुआ ही पैदा हुई थीं। पता है, वह मैडल अब कहाँ है? मैंने वह तुम्हारी बुआ को दिया और उस बेवकूफ़ ने उसे गलवाकर चार चूड़ियाँ बनवा लीं। और वह भी इतनी मामूली सी चूड़ियाँ कि...। मैं हमेशा कहती रही हूँ कि हमारे परिवार में उस जैसा महामूर्ख कोई नहीं, और... अब बस भी करो दादी! तुम बेकार की पुरानी कहानियाँ सुनाती रहती हो। क्या तुम राजम के बारे में नहीं सुनना चाहती?”
“हाँ, हाँ, बोलो।”
“दादी जब राजम छोटा-सा लड़का था तो उसने शेर मारा था।”
“सच? बड़ा बहादुर लड़का है।”
“तुम यह बात मुझे ख़ुश करने के लिए कह रही हो। तुम्हें यक़ीन नहीं हुआ होगा।” स्वामीनाथन ने बड़े उत्साह से कहानी शुरू की, “राजम के पिता एक जंगल में डेरा डाले हुए थे। राजम उनके साथ था। अचानक दो शेर उन पर झपटे और एक में पीछे से हमला करके पिता को गिरा दिया। दूसरे ने राजम का पीछा किया। राजम एक झाड़ी के पीछे छुप गया और वहीं से गोली चलाकर शेर को मार डाला। दादी! क्या तुम सो गई?” उसने कहानी ख़त्म होने पर पूछा।
“नहीं बेटा, सुन रही हूँ।”
“अच्छा बताओ कितने शेर आए थे?”
“दो शेर राजम पर झपटे थे।” दादी ने जवाब दिया। स्वामीनाथन दादी के ग़लत जवाब से चिढ़ गया। “मैं तुम्हें इतनी ज़रूरी बातें बता रहा हूँ और तुम नींद में न जाने क्या-क्या ऊलजलूल कल्पना किए जा रही हो। अब मैं तुम्हें कुछ नहीं बताऊँगा। मैं जानता हूँ, तुम क्यों ऐसा कर रही हो। तुम राजम को पसंद नहीं करतीं।”
“नहीं, नहीं, वह तो बहुत प्यारा लड़का है।” दादी ने बड़े विश्वास से कहा, उन्होंने राजम को देखा तक नहीं था। स्वामीनाथन ख़ुश हो गया। दूसरे ही क्षण उसके मन में एक नया संदेह पैदा हुआ। “दादी, शायद तुम्हें शेर की कहानी पर विश्वास नहीं हो रहा है।”
“मैं एक-एक शब्द पर विश्वास करती हूँ” दादी ने स्वर में मिठास भरकर कहा। स्वामीनाथन को इससे ख़ुशी हुई, लेकिन उसने चेतावनी के तौर पर जोड़ा, “जो भी उसे झूठा कहेगा वह उसे गोली मार देगा।”
दादी ने इसका समर्थन किया और हरिश्चंद्र की कहानी सुनाने की बात कही जिसने वचन का पालन करने के लिए सिंहासन, पत्नी और बच्चे को खो दिया और अंत में उसे सब कुछ वापस मिल गया। उसने कहानी आधी ही सुनाई थी कि स्वामीनाथन ख़र्राटे लेने लगा। दादी भी रुक-रुककर बोलने लगीं, फिर वह भी सो गई।
- पुस्तक : रिमझिम (पृष्ठ 103)
- रचनाकार : आर.के. नारायण
- प्रकाशन : एनसीईआरटी
- संस्करण : 2022
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