प्रस्तुत पाठ एनसीईआरटी की कक्षा आठवीं के पाठ्यक्रम में शामिल है।
घर में हम तीन ही व्यक्ति रहते हैं—माँ, पिताजी और मैं। पर पिताजी कहते हैं कि यह घर सराय बना हुआ है। हम तो जैसे यहाँ मेहमान हैं, घर के मालिक तो कोई दूसरे ही हैं।
आँगन में आम का पेड़ है। तरह-तरह के पक्षी उस पर डेरा डाले रहते हैं। जो भी पक्षी पहाड़ियों-घाटियों पर से उड़ता हुआ दिल्ली पहुँचता है, पिताजी कहते हैं वही सीधा हमारे घर पहुँच जाता है, जैसे हमारे घर का पता लिखवाकर लाया हो। यहाँ कभी तोते पहुँच जाते हैं, तो कभी कौवे और कभी तरह-तरह की गौरैयाँ। वह शोर मचता है कि कानों के पर्दे फट जाएँ, पर लोग कहते हैं कि पक्षी गा रहे हैं!
घर के अंदर भी यही हाल है। बीसियों तो चूहे बसते हैं। रात-भर एक कमरे से दूसरे कमरे में भागते फिरते हैं। वह धमा-चौकड़ी मचती है कि हम लोग ठीक तरह से सो भी नहीं पाते। बर्तन गिरते हैं, डिब्बे खुलते हैं, प्याले टूटते हैं। एक चूहा अँगीठी के पीछे बैठना पसंद करता है, शायद बूढ़ा है उसे सर्दी बहुत लगती है। एक दूसरा है जिसे बाथरूम की टंकी पर चढ़कर बैठना पसंद है। उसे शायद गर्मी बहुत लगती है। बिल्ली हमारे घर में रहती तो नहीं मगर घर उसे भी पसंद है और वह कभी-कभी झाँक जाती है। मन आया तो अंदर आकर दूध पी गई, न मन आया तो बाहर से ही 'फिर आऊँगी' कहकर चली जाती है। शाम पड़ते ही दो-तीन चमगादड़ कमरों के आर-पार पर फैलाए कसरत करने लगते हैं। घर में कबूतर भी हैं। दिन-भर 'गुटर-गूँ गुटर-गूँ' का संगीत सुनाई देता रहता है। इतने पर ही बस नहीं, घर में छिपकलियाँ भी हैं और बर्रे भी हैं और चींटियों की तो जैसे फ़ौज ही छावनी डाले हुए है।
अब एक दिन दो गौरैया सीधी अंदर घुस आईं और बिना पूछे उड़-उड़कर मकान देखने लगीं। पिताजी कहने लगे कि मकान का निरीक्षण कर रही हैं कि उनके रहने योग्य है या नहीं। कभी वे किसी रोशनदान पर जा बैठतीं, तो कभी खिड़की पर। फिर जैसे आई थीं वैसे ही उड़ भी गईं। पर दो दिन बाद हमने क्या देखा कि बैठक की छत में लगे पंखे के गोले में उन्होंने अपना बिछावन बिछा लिया है, और सामान भी ले आईं हैं और मज़े से दोनों बैठी गाना गा रही हैं। ज़ाहिर है, उन्हें घर पसंद आ गया था।
माँ और पिताजी दोनों सोफ़े पर बैठे उनकी ओर देखे जा रहे थे। थोड़ी देर बाद माँ सिर हिलाकर बोलीं, अब तो ये नहीं उड़ेंगी। पहले इन्हें उड़ा देते, तो उड़ जातीं। अब तो इन्होंने यहाँ घोंसला बना लिया है।
इस पर पिताजी को ग़ुस्सा आ गया। वह उठ खड़े हुए और बोले, देखता हूँ ये कैसे यहाँ रहती हैं! गौरैयाँ मेरे आगे क्या चीज़ हैं! मैं अभी निकाल बाहर करता हूँ।
छोड़ो जी, चूहों को तो निकाल नहीं पाए, अब चिड़ियों को निकालेंगे! माँ ने व्यंग्य से कहा।
माँ कोई बात व्यंग्य में कहें, तो पिताजी उबल पड़ते हैं वह समझते हैं कि माँ उनका मज़ाक़ उड़ा रही हैं। वह फ़ौरन उठ खड़े हुए और पंखे के नीचे जाकर ज़ोर से ताली बजाई और मुँह से 'श...शू' कहा, बाँहें झुलाई, फिर खड़े-खड़े कूदने लगे, कभी बाहें झुलाते, कभी 'श...शू' करते।
गौरैयों ने घोंसले में से सिर निकालकर नीचे की ओर झाँककर देखा और दोनों एक साथ 'चीं-चीं करने लगीं। और माँ खिलखिलाकर हँसने लगीं।
पिताजी को ग़ुस्सा आ गया, इसमें हँसने की क्या बात है?
माँ को ऐसे मौक़ों पर हमेशा मज़ाक़ सूझता है। हँसकर बोली, चिड़ियाँ एक दूसरी से पूछ रही हैं कि यह आदमी कौन है और नाच क्यों रहा है?
तब पिताजी को और भी ज़्यादा ग़ुस्सा आ गया और वह पहले से भी ज़्यादा ऊँचा कूदने लगे।
गौरैयाँ घोंसले में से निकलकर दूसरे पंखे के डैने पर जा बैठीं। उन्हें पिताजी का नाचना जैसे बहुत पसंद आ रहा था। माँ फिर हँसने लगीं, ये निकलेंगी नहीं, जी। अब इन्होंने अंडे दे दिए होंगे।
निकलेंगी कैसे नहीं? पिताजी बोले और बाहर से लाठी उठा लाए। इसी बीच गौरैयाँ फिर घोंसले में जा बैठी थीं। उन्होंने लाठी ऊँची उठाकर पंखे के गोले को ठकोरा। 'चीं-चीं' करती गौरैयाँ उड़कर पर्दे के डंडे पर जा बैठीं।
इतनी तकलीफ़ करने की क्या ज़रूरत थी। पंखा चला देते तो ये उड़ जातीं। माँ ने हँसकर कहा।
पिताजी लाठी उठाए पर्दे के डंडे की ओर लपके। एक गौरैया उड़कर किचन के दरवाज़े पर जा बैठी। दूसरी सीढ़ियोंवाले दरवाज़े पर।
माँ फिर हँस दी। तुम तो बड़े समझदार हो जी, सभी दरवाज़े खुले हैं और तुम गौरैयों को बाहर निकाल रहे हो। एक दरवाज़ा खुला छोड़ो, बाक़ी दरवाज़े बंद कर दो। तभी ये निकलेंगी।
अब पिताजी ने मुझे झिड़ककर कहा, तू खड़ा क्या देख रहा है? जा, दोनों दरवाज़े बंद कर दे!
मैंने भागकर दोनों दरवाज़े बंद कर दिए केवल किचनवाला दरवाज़ा खुला रहा।
पिताजी ने फिर लाठी उठाई और गौरैयों पर हमला बोल दिया। एक बार तो झुलती लाठी माँ के सिर पर लगते-लगते बची। चीं-चीं करती चिड़ियाँ कभी एक जगह तो कभी दूसरी जगह जा बैठतीं। आख़िर दोनों किचन की ओर खुलने वाले दरवाज़े में से बाहर निकल गईं। माँ तालियाँ बजाने लगीं। पिताजी ने लाठी दीवार के साथ टिकाकर रख दी और छाती फैलाए कुर्सी पर आ बैठे।
आज दरवाज़े बंद रखो उन्होंने हुक्म दिया। एक दिन अंदर नहीं घुस पाएँगी, तो घर छोड़ देंगी।
तभी पंखे के ऊपर से चीं-चीं की आवाज़ सुनाई पड़ी। और माँ खिलखिलाकर हँस दी। मैंने सिर उठाकर ऊपर की ओर देखा, दोनों गौरैया फिर से अपने घोंसले में मौजूद थीं।
दरवाज़े के नीचे से आ गई हैं, माँ बोलीं।
मैंने दरवाज़े के नीचे देखा। सचमुच दरवाज़ों के नीचे थोड़ी-थोड़ी जगह ख़ाली थी।
पिताजी को फिर ग़ुस्सा आ गया। माँ मदद तो करती नहीं थीं, बैठी हँसे जा रही थीं।
अब तो पिताजी गौरैयों पर पिल पड़े। उन्होंने दरवाज़ों के नीचे कपड़े ठूँस दिए ताकि कहीं कोई छेद बचा नहीं रह जाए। और फिर लाठी झुलाते हुए उन पर टूट पड़े। चिड़ियाँ चीं-चीं करती फिर बाहर निकल गईं। पर थोड़ी ही देर बाद वे फिर कमरे में मौजूद थीं। अबकी बार वे रोशनदान में से आ गई थी जिसका एक शीशा टूटा हुआ था।
देखो—जी, चिड़ियों को मत निकालो, माँ ने अबकी बार गंभीरता से कहा, अब तो इन्होंने अंडे भी दे दिए होंगे। अब ये यहाँ से नहीं जाएँगी।
क्या मतलब? मैं क़ालीन बरबाद करवा लूँ? पिताजी बोले और कुर्सी पर चढ़कर रोशनदान में कपड़ा ठूँस दिया और फिर लाठी झुलाकर एक बार फिर चिड़ियों को खदेड़ दिया। दोनों पिछले आँगन की दीवार पर जा बैठीं।
इतने में रात पड़ गई। हम खाना खाकर ऊपर जाकर सो गए। जाने से पहले मैंने आँगन में झाँककर देखा, चिड़ियाँ वहाँ पर नहीं थीं। मैंने समझ लिया कि उन्हें अक्ल आ गई होगी। अपनी हार मानकर किसी दूसरी जगह चली गई होंगी।
दूसरे दिन इतवार था। जब हम लोग नीचे उतरकर आए तो वे फिर से मौजूद थीं और मज़े से बैठी मल्हार गा रही थीं। पिताजी ने फिर लाठी उठा ली। उस दिन उन्हें गौरैयों को बाहर निकालने में बहुत देर नहीं लगी।
अब तो रोज़ यही कुछ होने लगा। दिन में तो वे बाहर निकाल दी जातीं पर रात के वक़्त जब हम सो रहे होते, तो न जाने किस रास्ते से वे अंदर घुस आतीं।
पिताजी परेशान हो उठे। आख़िर कोई कहाँ तक लाठी झुला सकता है? पिताजी बार-बार कहें, मैं हार मानने वाला आदमी नहीं हूँ। पर आख़िर वह भी तंग आ गए थे। आख़िर जब उनकी सहनशीलता चुक गई तो वह कहने लगे कि वह गौरैयों का घोंसला नोचकर निकाल देंगे। और वह फ़ौरन ही बाहर से एक स्टूल उठा लाए।
घोंसला तोड़ना कठिन काम नहीं था। उन्होंने पंखे के नीचे फ़र्श पर स्टूल रखा और लाठी लेकर स्टूल पर चढ़ गए। किसी को सचमुच बाहर निकालना हो, तो उसका घर तोड़ देना चाहिए, उन्होंने ग़ुस्से से कहा।
घोंसले में से अनेक तिनके बाहर की ओर लटक रहे थे, गौरैयों ने सजावट के लिए मानो झालर टाँग रखी हो। पिताजी ने लाठी का सिरा सूखी घास के तिनकों पर जमाया और दाईं ओर को खींचा। दो तिनके घोंसले में से अलग हो गए और फरफराते हुए नीचे उतरने लगे।
चलो, दो तिनके तो निकल गए, माँ हँसकर बोलीं, अब बाक़ी दो हज़ार भी निकल जाएँगे!
तभी मैंने बाहर आँगन की ओर देखा और मुझे दोनों गौरैयाँ नज़र आईं। दोनों चुपचाप दीवार पर बैठी थीं। इस बीच दोनों कुछ-कुछ दुबला गई थीं, कुछ-कुछ काली पड़ गई थीं। अब वे चहक भी नहीं रही थीं।
अब पिताजी लाठी का सिरा घास के तिनकों के ऊपर रखकर वहीं रखे-रखे घुमाने लगे। इससे घोंसले के लंबे-लंबे तिनके लाठी के सिरे के साथ लिपटने लगे। वे लिपटते गए, लिपटते गए, और घोंसला लाठी के इर्द-गिर्द खिंचता चला आने लगा। फिर वह खींच-खींचकर लाठी के सिरे के इर्द-गिर्द लपेटा जाने लगा। सूखी घास और रूई के फाहे, और धागे और थिगलियाँ लाठी के सिरे पर लिपटने लगीं। तभी सहसा ज़ोर की आवाज़ आई, चीं-चीं, चीं-चीं!
पिताजी के हाथ ठिठक गए। यह क्या? क्या गौरैयाँ लौट आईं हैं? मैंने झट से बाहर की ओर देखा। नहीं, दोनों गौरैयाँ बाहर दीवार पर गुमसुम बैठी थीं।
चीं-चीं, चीं-चीं! फिर आवाज़ आई। मैंने ऊपर देखा। पंखे के गोले के ऊपर से नन्हीं-नन्हीं गौरैयाँ सिर निकाले नीचे की ओर देख रही थी और चीं-चीं किए जा रही थीं। अभी भी पिताजी के हाथ में लाठी थी और उस पर लिपटा घाँसले का बहुत-सा हिस्सा था। नन्हीं-नन्हीं दो गौरैयाँ! वे अभी भी झाँके जा रही थीं और ची-चीं करके मानो अपना परिचय दे रही थीं, हम आ गई हैं। हमारे माँ-बाप कहाँ हैं?
मैं अवाक् उनकी ओर देखता रहा। फिर मैंने देखा, पिताजी स्टूल पर से नीचे उतर आए हैं। और घोंसले के तिनकों में से लाठी निकालकर उन्होंने लाठी को एक ओर रख दिया है और चुपचाप कुर्सी पर आकर बैठ गए हैं। इस बीच माँ कुर्सी पर से उठीं और सभी दरवाज़े खोल दिए। नन्हीं चिड़ियाँ अभी भी हाँफ-हाँफकर चिल्लाए जा रही थीं और अपने माँ-बाप को बुला रही थीं।
उनके माँ-बाप झट-से उड़कर अंदर आ गए और चीं-चीं करते उनसे जा मिले और उनकी नन्हीं-नन्हीं चोंचों में चुग्गा डालने लगे। माँ-पिताजी और मैं उनकी ओर देखते रह गए। कमरे में फिर से शोर होने लगा था, पर अबकी बार पिताजी उनकी ओर देख-देखकर केवल मुसकराते रहे।
ghar mein hum teen hi vyakti rahte hain—man, pitaji aur main. par pitaji kahte hain ki ye ghar saray bana hua hai. hum to jaise yahan mehman hain, ghar ke malik to koi dusre hi hain.
angan mein aam ka peD hai. tarah tarah ke pakshi us par Dera Dale rahte hain. jo bhi pakshi pahaDiyon ghatiyon par se uDta hua dilli pahunchta hai, pitaji kahte hain vahi sidha hamare ghar pahunch jata hai, jaise hamare ghar ka pata likhvakar laya ho. yahan kabhi tote pahunch jate hain, to kabhi kauve aur kabhi tarah tarah ki gauraiyan. wo shor machta hai ki kanon ke parde phat jayen, par log kahte hain ki pakshi ga rahe hain!
ghar ke andar bhi yahi haal hai. bisiyon to chuhe baste hain. raat bhar ek kamre se dusre kamre mein bhagte phirte hain. wo dhama chaukDi machti hai ki hum log theek tarah se so bhi nahin pate. bartan girte hain, Dibbe khulte hain, pyale tutte hain. ek chuha angithi ke pichhe baithna pasand karta hai, shayad buDha hai use sardi bahut lagti hai. ek dusra hai jise bathrum ki tanki par chaDhkar baithna pasand hai. use shayad garmi bahut lagti hai. billi hamare ghar mein rahti to nahin magar ghar use bhi pasand hai aur wo kabhi kabhi jhaank jati hai. man aaya to andar aakar doodh pi gai, na man aaya to bahar se hi phir auungi kahkar chali jati hai. shaam paDte hi do teen chamgadaD kamron ke aar paar par phailaye kasrat karne lagte hain. ghar mein kabutar bhi hain. din bhar gutar goon gutar goon ka sangit sunai deta rahta hai. itne par hi bas nahin, ghar mein chhipakaliyan bhi hain aur barre bhi hain aur chintiyon ki to jaise fauj hi chhavani Dale hue hai.
ab ek din do gauraiya sidhi andar ghus ain aur bina puchhe uD uDkar makan dekhne lagin. pitaji kahne lage ki makan ka nirikshan kar rahi hain ki unke rahne yogya hai ya nahin. kabhi ve kisi roshandan par ja baithtin, to kabhi khiDki par. phir jaise aai theen vaise hi uD bhi gain. par do din baad hamne kya dekha ki baithak ki chhat mein lage pankhe ke gole mein unhonne apna bichhavan bichha liya hai, aur saman bhi le ain hain aur maze se donon baithi gana ga rahi hain. zahir hai, unhen ghar pasand aa gaya tha.
maan aur pitaji donon sofe par baithe unki or dekhe ja rahe the. thoDi der baad maan sir hilakar bolin, ab to ye nahin uDengi. pahle inhen uDa dete, to uD jatin. ab to inhonne yahan ghonsla bana liya hai.
is par pitaji ko ghussa aa gaya. wo uth khaDe hue aur bole, dekhta hoon ye kaise yahan rahti hain! gauraiyan mere aage kya cheez hain! main abhi nikal bahar karta hoon.
chhoDo ji, chuhon ko to nikal nahin pae, ab chiDiyon ko nikalenge! maan ne vyangya se kaha.
maan koi baat vyangya mein kahen, to pitaji ubal paDte hain wo samajhte hain ki maan unka mazaq uDa rahi hain. wo fauran uth khaDe hue aur pankhe ke niche jakar zor se tali bajai aur munh se sha. . . shoo kaha, banhen jhulai, phir khaDe khaDe kudne lage, kabhi bahen jhulate, kabhi sha. . . shoo karte.
gauraiyon ne ghonsle mein se sir nikalkar niche ki or jhankakar dekha aur donon ek saath cheen cheen karne lagin. aur maan khilakhilakar hansne lagin.
pitaji ko ghussa aa gaya, ismen hansne ki kya baat hai?
maan ko aise mauqon par hamesha mazaq sujhta hai. hansakar boli, chiDiyan ek dusri se poochh rahi hain ki ye adami kaun hai aur naach kyon raha hai?
tab pitaji ko aur bhi zyada ghussa aa gaya aur wo pahle se bhi zyada uncha kudne lage.
gauraiyan ghonsle mein se nikalkar dusre pankhe ke Daine par ja baithin. unhen pitaji ka nachna jaise bahut pasand aa raha tha. maan phir hansne lagin, ye niklengi nahin, ji. ab inhonne anDe de diye honge.
niklengi kaise nahin? pitaji bole aur bahar se lathi utha laye. isi beech gauraiyan phir ghonsle mein ja baithi theen. unhonne lathi uunchi uthakar pankhe ke gole ko thakora. cheen cheen karti gauraiyan uDkar parde ke DanDe par ja baithin.
itni taklif karne ki kya zarurat thi. pankha chala dete to ye uD jatin. maan ne hansakar kaha.
pitaji lathi uthaye parde ke DanDe ki or lapke. ek gauraiya uDkar kichan ke darvaze par ja baithi. dusri siDhiyonvale darvaze par.
maan phir hans di. tum to baDe samajhdar ho ji, sabhi darvaze khule hain aur tum gauraiyon ko bahar nikal rahe ho. ek darvaza khula chhoDo, baqi darvaze band kar do. tabhi ye niklengi.
ab pitaji ne mujhe jhiDakkar kaha, tu khaDa kya dekh raha hai? ja, donon darvaze band kar de!
mainne bhagkar donon darvaze band kar diye keval kichanvala darvaza khula raha.
pitaji ne phir lathi uthai aur gauraiyon par hamla bol diya. ek baar to jhulti lathi maan ke sir par lagte lagte bachi. cheen cheen karti chiDiyan kabhi ek jagah to kabhi dusri jagah ja baithtin. akhir donon kichan ki or khulne vale darvaze mein se bahar nikal gain. maan taliyan bajane lagin. pitaji ne lathi divar ke saath tikakar rakh di aur chhati phailaye kursi par aa baithe.
aaj darvaze band rakho unhonne hukm diya. ek din andar nahin ghus payengi, to ghar chhoD dengi.
tabhi pankhe ke uupar se cheen cheen ki avaz sunai paDi. aur maan khilakhilakar hans di. mainne sir uthakar uupar ki or dekha, donon gauraiya phir se apne ghonsle mein maujud theen.
darvaze ke niche se aa gai hain, maan bolin.
mainne darvaze ke niche dekha. sachmuch darvazon ke niche thoDi thoDi jagah khali thi.
pitaji ko phir ghussa aa gaya. maan madad to karti nahin theen, baithi hanse ja rahi theen.
ab to pitaji gauraiyon par pil paDe. unhonne darvazon ke niche kapDe thoons diye taki kahin koi chhed bacha nahin rah jaye. aur phir lathi jhulate hue un par toot paDe. chiDiyan cheen cheen karti phir bahar nikal gain. par thoDi hi der baad ve phir kamre mein maujud theen. abki baar ve roshandan mein se aa gai thi jiska ek shisha tuta hua tha.
dekho—ji, chiDiyon ko mat nikalo, maan ne abki baar gambhirta se kaha, ab to inhonne anDe bhi de diye honge. ab ye yahan se nahin jayengi.
kya matlab? main qalin barbad karva loon? pitaji bole aur kursi par chaDhkar roshandan mein kapDa thoons diya aur phir lathi jhulakar ek baar phir chiDiyon ko khadeD diya. donon pichhle angan ki divar par ja baithin.
itne mein raat paD gai. hum khana khakar uupar jakar so ge. jane se pahle mainne angan mein jhankakar dekha, chiDiyan vahan par nahin theen. mainne samajh liya ki unhen akl aa gai hogi. apni haar mankar kisi dusri jagah chali gai hongi.
dusre din itvaar tha. jab hum log niche utarkar aaye to ve phir se maujud theen aur maze se baithi malhar ga rahi theen. pitaji ne phir lathi utha li. us din unhen gauraiyon ko bahar nikalne mein bahut der nahin lagi.
ab to roz yahi kuch hone laga. din mein to ve bahar nikal di jatin par raat ke vaqt jab hum so rahe hote, to na jane kis raste se ve andar ghus atin.
pitaji pareshan ho uthe. akhir koi kahan tak lathi jhula sakta hai? pitaji baar baar kahen, main haar manne vala adami nahin hoon. par akhir wo bhi tang aa ge the. akhir jab unki sahanshilata chuk gai to wo kahne lage ki wo gauraiyon ka ghonsla nochkar nikal denge. aur wo fauran hi bahar se ek stool utha laye.
ghonsla toDna kathin kaam nahin tha. unhonne pankhe ke niche farsh par stool rakha aur lathi lekar stool par chaDh ge. kisi ko sachmuch bahar nikalna ho, to uska ghar toD dena chahiye, unhonne ghusse se kaha.
ghonsle mein se anek tinke bahar ki or latak rahe the, gauraiyon ne sajavat ke liye mano jhalar taang rakhi ho. pitaji ne lathi ka sira sukhi ghaas ke tinkon par jamaya aur dain or ko khincha. do tinke ghonsle mein se alag ho ge aur pharaphrate hue niche utarne lage.
chalo, do tinke to nikal ge, maan hansakar bolin, ab baqi do hazar bhi nikal jayenge!
tabhi mainne bahar angan ki or dekha aur mujhe donon gauraiyan nazar ain. donon chupchap divar par baithi theen. is beech donon kuch kuch dubla gai theen, kuch kuch kali paD gai theen. ab ve chahak bhi nahin rahi theen.
ab pitaji lathi ka sira ghaas ke tinkon ke uupar rakhkar vahin rakhe rakhe ghumane lage. isse ghonsle ke lambe lambe tinke lathi ke sire ke saath lipatne lage. ve lipatte ge, lipatte ge, aur ghonsla lathi ke ird gird khinchta chala aane laga. phir wo kheench khinchkar lathi ke sire ke ird gird lapeta jane laga. sukhi ghaas aur rui ke phahe, aur dhage aur thigaliyan lathi ke sire par lipatne lagin. tabhi sahsa zor ki avaz aai, cheen cheen, cheen cheen!
pitaji ke haath thithak ge. ye kyaa? kya gauraiyan laut ain hain? mainne jhat se bahar ki or dekha. nahin, donon gauraiyan bahar divar par gumsum baithi theen.
cheen cheen, cheen cheen! phir avaz aai. mainne uupar dekha. pankhe ke gole ke uupar se nanhin nanhin gauraiyan sir nikale niche ki or dekh rahi thi aur cheen cheen kiye ja rahi theen. abhi bhi pitaji ke haath mein lathi thi aur us par lipta ghansale ka bahut sa hissa tha. nanhin nanhin do gauraiyan! ve abhi bhi jhanke ja rahi theen aur chi cheen karke mano apna parichay de rahi theen, hum aa gai hain. hamare maan baap kahan hain?
main avak unki or dekhta raha. phir mainne dekha, pitaji stool par se niche utar aaye hain. aur ghonsle ke tinkon mein se lathi nikalkar unhonne lathi ko ek or rakh diya hai aur chupchap kursi par aakar baith ge hain. is beech maan kursi par se uthin aur sabhi darvaze khol diye. nanhin chiDiyan abhi bhi haanph hanphakar chillaye ja rahi theen aur apne maan baap ko bula rahi theen.
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ab pitaji ne mujhe jhiDakkar kaha, tu khaDa kya dekh raha hai? ja, donon darvaze band kar de!
mainne bhagkar donon darvaze band kar diye keval kichanvala darvaza khula raha.
pitaji ne phir lathi uthai aur gauraiyon par hamla bol diya. ek baar to jhulti lathi maan ke sir par lagte lagte bachi. cheen cheen karti chiDiyan kabhi ek jagah to kabhi dusri jagah ja baithtin. akhir donon kichan ki or khulne vale darvaze mein se bahar nikal gain. maan taliyan bajane lagin. pitaji ne lathi divar ke saath tikakar rakh di aur chhati phailaye kursi par aa baithe.
aaj darvaze band rakho unhonne hukm diya. ek din andar nahin ghus payengi, to ghar chhoD dengi.
tabhi pankhe ke uupar se cheen cheen ki avaz sunai paDi. aur maan khilakhilakar hans di. mainne sir uthakar uupar ki or dekha, donon gauraiya phir se apne ghonsle mein maujud theen.
darvaze ke niche se aa gai hain, maan bolin.
mainne darvaze ke niche dekha. sachmuch darvazon ke niche thoDi thoDi jagah khali thi.
pitaji ko phir ghussa aa gaya. maan madad to karti nahin theen, baithi hanse ja rahi theen.
ab to pitaji gauraiyon par pil paDe. unhonne darvazon ke niche kapDe thoons diye taki kahin koi chhed bacha nahin rah jaye. aur phir lathi jhulate hue un par toot paDe. chiDiyan cheen cheen karti phir bahar nikal gain. par thoDi hi der baad ve phir kamre mein maujud theen. abki baar ve roshandan mein se aa gai thi jiska ek shisha tuta hua tha.
dekho—ji, chiDiyon ko mat nikalo, maan ne abki baar gambhirta se kaha, ab to inhonne anDe bhi de diye honge. ab ye yahan se nahin jayengi.
kya matlab? main qalin barbad karva loon? pitaji bole aur kursi par chaDhkar roshandan mein kapDa thoons diya aur phir lathi jhulakar ek baar phir chiDiyon ko khadeD diya. donon pichhle angan ki divar par ja baithin.
itne mein raat paD gai. hum khana khakar uupar jakar so ge. jane se pahle mainne angan mein jhankakar dekha, chiDiyan vahan par nahin theen. mainne samajh liya ki unhen akl aa gai hogi. apni haar mankar kisi dusri jagah chali gai hongi.
dusre din itvaar tha. jab hum log niche utarkar aaye to ve phir se maujud theen aur maze se baithi malhar ga rahi theen. pitaji ne phir lathi utha li. us din unhen gauraiyon ko bahar nikalne mein bahut der nahin lagi.
ab to roz yahi kuch hone laga. din mein to ve bahar nikal di jatin par raat ke vaqt jab hum so rahe hote, to na jane kis raste se ve andar ghus atin.
pitaji pareshan ho uthe. akhir koi kahan tak lathi jhula sakta hai? pitaji baar baar kahen, main haar manne vala adami nahin hoon. par akhir wo bhi tang aa ge the. akhir jab unki sahanshilata chuk gai to wo kahne lage ki wo gauraiyon ka ghonsla nochkar nikal denge. aur wo fauran hi bahar se ek stool utha laye.
ghonsla toDna kathin kaam nahin tha. unhonne pankhe ke niche farsh par stool rakha aur lathi lekar stool par chaDh ge. kisi ko sachmuch bahar nikalna ho, to uska ghar toD dena chahiye, unhonne ghusse se kaha.
ghonsle mein se anek tinke bahar ki or latak rahe the, gauraiyon ne sajavat ke liye mano jhalar taang rakhi ho. pitaji ne lathi ka sira sukhi ghaas ke tinkon par jamaya aur dain or ko khincha. do tinke ghonsle mein se alag ho ge aur pharaphrate hue niche utarne lage.
chalo, do tinke to nikal ge, maan hansakar bolin, ab baqi do hazar bhi nikal jayenge!
tabhi mainne bahar angan ki or dekha aur mujhe donon gauraiyan nazar ain. donon chupchap divar par baithi theen. is beech donon kuch kuch dubla gai theen, kuch kuch kali paD gai theen. ab ve chahak bhi nahin rahi theen.
ab pitaji lathi ka sira ghaas ke tinkon ke uupar rakhkar vahin rakhe rakhe ghumane lage. isse ghonsle ke lambe lambe tinke lathi ke sire ke saath lipatne lage. ve lipatte ge, lipatte ge, aur ghonsla lathi ke ird gird khinchta chala aane laga. phir wo kheench khinchkar lathi ke sire ke ird gird lapeta jane laga. sukhi ghaas aur rui ke phahe, aur dhage aur thigaliyan lathi ke sire par lipatne lagin. tabhi sahsa zor ki avaz aai, cheen cheen, cheen cheen!
pitaji ke haath thithak ge. ye kyaa? kya gauraiyan laut ain hain? mainne jhat se bahar ki or dekha. nahin, donon gauraiyan bahar divar par gumsum baithi theen.
cheen cheen, cheen cheen! phir avaz aai. mainne uupar dekha. pankhe ke gole ke uupar se nanhin nanhin gauraiyan sir nikale niche ki or dekh rahi thi aur cheen cheen kiye ja rahi theen. abhi bhi pitaji ke haath mein lathi thi aur us par lipta ghansale ka bahut sa hissa tha. nanhin nanhin do gauraiyan! ve abhi bhi jhanke ja rahi theen aur chi cheen karke mano apna parichay de rahi theen, hum aa gai hain. hamare maan baap kahan hain?
main avak unki or dekhta raha. phir mainne dekha, pitaji stool par se niche utar aaye hain. aur ghonsle ke tinkon mein se lathi nikalkar unhonne lathi ko ek or rakh diya hai aur chupchap kursi par aakar baith ge hain. is beech maan kursi par se uthin aur sabhi darvaze khol diye. nanhin chiDiyan abhi bhi haanph hanphakar chillaye ja rahi theen aur apne maan baap ko bula rahi theen.
unke maan baap jhat se uDkar andar aa ge aur cheen cheen karte unse ja mile aur unki nanhin nanhin chonchon mein chugga Dalne lage. maan pitaji aur main unki or dekhte rah ge. kamre mein phir se shor hone laga tha, par abki baar pitaji unki or dekh dekhkar keval musakrate rahe.
हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों का व्यापक शब्दकोश : हिन्दवी डिक्शनरी
‘हिन्दवी डिक्शनरी’ हिंदी और हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों के शब्दों का व्यापक संग्रह है। इसमें अंगिका, अवधी, कन्नौजी, कुमाउँनी, गढ़वाली, बघेली, बज्जिका, बुंदेली, ब्रज, भोजपुरी, मगही, मैथिली और मालवी शामिल हैं। इस शब्दकोश में शब्दों के विस्तृत अर्थ, पर्यायवाची, विलोम, कहावतें और मुहावरे उपलब्ध हैं।