प्रस्तुत पाठ एनसीईआरटी की कक्षा बारहवीं के पाठ्यक्रम में शामिल है।
हर की पौड़ी पर साँझ कुछ अलग रंग में उतरती है। दीया-बाती का समय या कह लो आरती की बेला। पाँच बजे जो फूलों के दोने एक-एक रुपए के बिक रहे थे, इस वक़्त दो-दो के हो गए हैं। भक्तों को इससे कोई शिकायत नहीं। इतनी बड़ी-बड़ी मनोकामना लेकर आए हुए हैं। एक-दो रुपए का मुँह थोड़े ही देखना है। गंगा सभा के स्वयंसेवक ख़ाकी वर्दी में मुस्तैदी से घूम रहे हैं। वे सबको सीढ़ियों पर बैठने की प्रार्थना कर रहे हैं। शांत होकर बैठिए, आरती शुरू होने वाली है। कुछ भक्तों ने स्पेशल आरती बोल रखी है। स्पेशल आरती यानी एक सौ एक या एक सौ इक्यावन रुपएवाली। गंगातट पर हर छोटे-बड़े मंदिर पर लिखा है। 'गंगा जी का प्राचीन मंदिर।' पंडितगण आरती के इंतज़ाम में व्यस्त हैं। पीतल की नीलांजलि में सहस्र बत्तियाँ घी में भिगोकर रखी हुई हैं। सबने देशी घी के डब्बे अपनी ईमानदारी के प्रतीकस्वरूप सजा रखे हैं। गंगा की मूर्ति के साथ-साथ चामुंडा, बालकृष्ण, राधाकृष्ण, हनुमान, सीताराम की मूर्तियों की शृंगारपूर्ण स्थापना है। जो भी आपका आराध्य हो, चुन लें।
आरती से पहले स्नान! हर-हर बहता गंगाजल, निर्मल, नीला, निष्पाप। औरतें डुबकी लगा रही हैं। बस उन्होंने तट पर लगे कुंडों से बँधी ज़ंजीरें पकड़ रखी हैं। पास ही कोई-न-कोई पंडा जजमानों के कपड़ों-लत्तों की सुरक्षा कर रहा है। हर एक के पास चंदन और सिंदूर की कटोरी है। मर्दों के माथे पर चंदन तिलक और औरतों के माथे पर सिंदूर का टीका लगा देते हैं पंडे। कहीं कोई दादी-बाबा पहला पोता होने की ख़ुशी में आरती करवा रहे हैं, कहीं कोई नई बहू आने की ख़ुशी में। अभी पूरा अँधेरा नहीं घिरा है। गोधूलि बेला है।
यकायक सहस्र दीप जल उठते हैं पंडित अपने आसन से उठ खड़े होते हैं। हाथ में अँगोछा लपेट के पंचमंज़िली नीलांजलि पकड़ते हैं और शुरू हो जाती है आरती। पहले पुजारियों के भर्राए गले से समवेत स्वर उठता है—जय गंगे माता, जो कोई तुझको ध्याता, सारे सुख पाता, जय गंगे माता। घंटे घड़ियाल बजते हैं। मनौतियों के दीये लिए हुए फूलों की छोटी-छोटी किश्तियाँ गंगा की लहरों पर इठलाती हुई आगे बढ़ती हैं। ग़ोताख़ोर दोने पकड़, उनमें रखा चढ़ावे का पैसा उठाकर मुँह में दबा लेते हैं। एक औरत ने इक्कीस दोने तैराएँ हैं। गंगापुत्र जैसे ही एक दोने से पैसा उठाता है, औरत अगला दोना सरका देती है। गंगापुत्र उस पर लपकता है कि पहले दोने की दीपक से उसके लँगोट में आग की लपट लग जाती है। पास खड़े लोग हँसने लगते हैं। पर गंगापुत्र हतप्रभ नहीं होता। वह झट गंगाजी में बैठ जाता है। गंगा मैया ही उसकी जीविका और जीवन है। इसके रहते वह बीस चक्कर मुँह भर-भर रेज़गारी बटोरता है। उसकी बीवी और बहन कुशाघाट पर रेज़गारी बेचकर नोट कमाती हैं। एक रुपए के पच्चासी पैसे। कभी-कभी अस्सी भी देती हैं। जैसा दिन हो।
पुजारियों का स्वर थकने लगता है तो लता मंगेशकर की सुरीली आवाज़ लाउडस्पीकरों के साथ सहयोग करने लगती है और आरती में यकायक एक स्निग्ध सौंदर्य की रचना हो जाती है। 'ओम जय जगदीश हरे' से हर की पौड़ी गुंजायमान हो जाती है।
औरतें ज़्यादातर नहाकर वस्त्र नहीं बदलतीं। गीले कपड़ों में ही खड़ी-खड़ी आरती में शामिल हों जाती हैं। पीतल की पंचमंज़िली नीलांजलि गर्म हो उठी है। पुजारी नीलांजलि को गंगाजल से स्पर्श कर, हाथ में लिपटे अँगोछे को नामालूम ढंग से गीला कर लेते हैं। दूसरे यह दृश्य देखने पर मालूम होता है वे अपना संबोधन गंगाजी के गर्भ तक पहुँचा रहे हैं। पानी पर सहस्र बातीवाले दीपकों की प्रतिच्छवियाँ झिलमिला रही हैं। पूरे वातावरण में अगरु-चंदन की दिव्य सुगंध है। आरती के बाद बारी है संकल्प और मंत्रोच्चार की। भक्त आरती लेते हैं, चढ़ावा चढ़ाते हैं। स्पेशल भक्तों से पुजारी ब्राह्मण-भोज, दान, मिष्ठान की धनराशि क़बूलवाते हैं। आरती के क्षण इतने भव्य और दिव्य रहे हैं कि भक्त हुज्जत नहीं करते। ख़ुशी-ख़ुशी दक्षिणा देते हैं। पंडित जी प्रसन्न होकर भगवान के गले से माला उतार उतारकर यजमान के गले में डालते हैं। फिर जी खोलकर देते हैं प्रसाद, इतना कि अपना हिस्सा खाकर भी ढेर सा बच रहता है, बाँटने के लिए-मुरमरे, इलायचीदाना, केले और पुष्प।
ख़र्च हुआ पर भक्तों के चेहरे पर कोई मलाल नहीं। कई ख़र्च सुखदायी होते हैं।
कुछ पंडे अभी भी अपने तख़्त पर जमे हैं। देर से आने वाले भक्तों का स्नान ध्यान अभी जारी है। आरती के दोने फिर एक रुपए में बिकने लगे हैं। गंगाजल आकाश के साथ रंग बदल रहा है।
संभव काफ़ी देर से नहा रहा था। जब घाट पर आया तो मंगल पंडा बोले, 'का हो जजमान, बड़ी देर लगाय दी। हम तो डर गए थे।'
संभव हँसा। उसके एक सार ख़ूबसूरत दाँत साँवले चेहरे पर फब उठे। उसने लापरवाही से कपड़े पहने और जाँघिया निचोड़कर थैले में डाला। जब वह कुरते से पोंछकर चश्मा लगा रहा था, पंडे ने उसके माथे पर चंदन तिलक लगाने को हाथ बढ़ाया।
'उ हूँ।' उसने चेहरा हटा लिया तो मंगल पंडा ने कहा, 'चंदन तिलक के बग़ैर अस्नान अधूरा होता है बेटा।'
संभव ने चुपचाप तिलक लगवा लिया। वह वापस सीढ़ियाँ चढ़ ही रहा था कि पौड़ी पर बने एक छोटे से मंदिर के पुजारी ने आवाज़ लगाई, 'अरे दर्शन तो करते जाओ'।
संभव ठिठक गया।
उसकी इन चीज़ों में नियमित आस्था तो नहीं थी पर नानी ने कहा था, 'मंदिर में बीस आने चढ़ाकर आना।'
संभव ने कुरते की जेब में हाथ डाला। एक रुपए का नोट तो मिल गया चवन्नी के लिए उसे कुछ प्रयत्न करना पड़ा। चवन्नी जेब में नहीं थी। संभव ने थैला खखोरा। पुजारी ने उसकी परेशानी ताड़ ली।
इधर आओ, हम दे रेज़गारी।
संभव ने झेंपते हुए एक का नोट जेब में रखकर दो का नोट निकाला। पुजारी जी ने चरणामृत दिया और लाल रंग का कलावा बाँधने के लिए हाथ बढ़ाया।
संभव का ध्यान कलावे की तरफ़ नहीं था। वह गंगा जी की छटा निहार रहा था। तभी एक और दुबली नाज़ुक सी कलाई पुजारी की तरफ़ बढ़ आई। पुजारी ने उस पर कलावा बाँध दिया। उस हाथ ने थाली में सवा पाँच रुपए रखे।
लड़की अब बिलकुल बराबर में खड़ी, आँख मूँदकर अर्चन कर रही थी। संभव ने यकायक मुड़कर उसकी ओर ग़ौर किया। उसके कपड़े एकदम भीगे हुए थे, यहाँ तक कि उसके गुलाबी आँचल से संभव के कुर्ते का एक कोना भी गीला हो रहा था। लड़की के लंबे गीले बाल पीठ पर काले चमकीले शॉल की तरह लग रहे थे। दीपकों के नीम उजाले में, आकाश और जल की साँवली संधि-बेला में, लड़की बेहद सौम्य, लगभग काँस्य प्रतिमा लग रही थी।
लड़की ने कहा, पंडित जी, आज तो आरती हो चुकी। क्या करें हमें देर हो गई।
पुजारी ने उत्साह से कहा, इससे क्या, हम हिंया कराय दें। का कराना है संकल्प, कल्याण-मंत्र, आरती जो कहो?
नहीं हम कल आरती की बेला आएँगे। लड़की ने कहा।
संभव इंतज़ार में खड़ा था कि पुजारी उसे पचहत्तर पैसे लौटाए। लेकिन पुजारी भूल चुका था। जाने कैसे पुजारी ने लड़की के 'हम' को युगल अर्थ में लिया कि उसके मुँह से अनायास आशीष निकली, सुखी रहो, फूलोफलो, जब भी आओ साथ ही आना, गंगा मैया मनोरथ पूरे करें।
लड़की और लड़का दोनों अकबका गए।
लड़की छिटककर दूर खड़ी हो गई।
लड़के को तुरंत वहाँ से चल पड़ने की जल्दी हो गई।
शायद उनकी चप्पलें एक ही रखवाले के यहाँ रखी हुई थीं। टोकन देकर चप्पलें लेते समय दोनों की निगाहें एक बार फिर टकरा गईं। आँखों का चकाचौंध अभी मिटा नहीं था।
संभव आगे बढ़कर कहना चाहता था, देखिए इसमें मेरी कोई ग़लती नहीं थी। पुजारी ने ग़लत अर्थ ले लिया। लड़की कहना चाहती थी, “आपको इतना पास नहीं खड़ा होना चाहिए था।
लड़की ने अपना होंठ दाँतों में दबाकर छोड़ दिया। भूल तो उसी की थी। बाद में तो वही आई थी। अँधेरे से घबराकर कहाँ, कितनी पास खड़ी हुई, उसे कुछ ख़बर नहीं थी। लेकिन बातचीत के लायक़ दोनों की मनःस्थिति नहीं थी। पहचान भी नहीं। दोनों ने नज़रें बचाते हुए चप्पलें पहनीं।
लड़की घबराहट में ठीक से चप्पल पहन नहीं पाई। थोड़ी सी अँगूठे में अटकाकर ही आगे बढ़ गई। संभव ने आगे लपककर देखना चाहा कि लड़की किस तरफ़ गई। वह घाट की भीड़ को काटता हुआ सब्ज़ीमंडी पहुँच गया। हर की पौड़ी और सब्ज़ीमंडी के बीच अनेक घुमावदार गलियाँ थीं। लड़का देख नहीं पाया लड़की कहाँ ओझल हो गई।
नानी का घर क़रीब आ गया था लेकिन लड़का घर नहीं गया। वह वापस अनदेखी गलियों में चक्कर लगाता रहा। उसने चूड़ी की समस्त दुकानों पर नज़र दौड़ाई। हर दुकान पर भीड़ थी पर एक भीगी, गुलाबी आकृति नहीं थी। आख़िर भटकते-भटकते संभव हार गया। पस्त क़दमों से वह घर की ओर मुड़ा।
नानी ने द्वार खोलते हुए कहा, “कहाँ रह गए थे लल्ला। मैं तो जी में बड़ा काँप रही थी। तुझे तो तैरना भी न आवे। कहीं पैर फिसल जाता तो मैं तेरी माँ को कौन मुँह दिखाती।
संभव कुछ नहीं बोला। थैला तख़्त पर पटक, पैर धोने नल के पास चला गया।
नानी बोली, ब्यालू कर ले।
संभव फिर भी नहीं बोला।
नानी की आदत थी एक बात को कई-कई बार कहती। संभव तख़्त पर लेट गया।
नानी ने कहा, “थक गया न। अरे तुझे मेले-ठेले में चलने की आदत थोड़ेई है। कल बैसाखी है, इसलिए भीड़ बहुत बढ़ गई है। अभी तो कल देखना, तिल धरने की जगह नहीं मिलेगी पौड़ी पर। चल उठ खायबे को खा ले।
मुझे भूख नहीं है, संभव ने कहा और करवट बदल ली।
“अरे क्या हो गया। अस्नान के बाद भी भूख नाँय चमकी। तभी न इतनी सींक सलाई देही है। मैंने सबिता से पहले ही कही थी, इसे अकेले ना भेज। यहाँ जी ना लगे इसका। नानी पास खड़े खटोले पर अधलेटी हो गई। उम्र के साथ-साथ नानी की काया इतनी संक्षिप्त हो गई थी कि वे फैल पसर कर सोती तो भी उनके लिए खटोला पर्याप्त था। पर उन्हें सिकुड़कर, गठरी बनकर सोने की आदत थी।
गंगा को छूकर आती हवा से आँगन काफ़ी शीतल था। ऊपर से नानी ने रोज़ की तरह शाम को चौक धो डाला था।
नींद और स्वप्न के बीच संभव की आँखों में घाट की पूरी बात उतर आई। लड़की का आँख मूँदकर अर्चना करना, माथे पर भीगे बालों की लट कुरते को छूता उसका गुलाबी आँचल और पुजारी से कहता उसका सौम्य स्वर 'हम कल आएँगे।'
संभव की आँख खुल गई। यह तो वह भूल ही गया था। लड़की ने कल वहाँ आने का वचन दिया था। संभव आशा और उत्साह से उठ बैठा।
नानी को झकझोरते हुए बोला, “नानी, नानी चलो खा लें मुझे भूख लगी है। नानी की नींद झूले के समान थी, कभी गहरी, कभी उथली। उथले झोटे में उन्हें धेवते की सुध आई। वे रसोई से थाली उठा लाईं।
संभव ने बहुत मगन होकर खाना शुरू किया, वाह नानी! क्या आलू टमाटर बनाया है, माँ तो ऐसा बिलकुल नहीं बना सकतीं। ककड़ी का रायता मुझे बहुत पसंद है।
खाते-खाते संभव को याद आया आशीर्वचन की दुर्घटना तो बाद में घटी थी। वह कौर हाथ में लिए बैठा रह गया। उसकी आँखों के बीच आगे कुछ घंटे पहले का सारा दृश्य घूम गया। पुजारी का वह मंत्रोच्चार जैसा पवित्र उद्गार 'सुखी रहो फूलो-फलो, सारे मनोरथ पूरे हों। जब भी आओ साथ ही आना।' लड़की का चिहुँकना, छिटककर दूर खड़े होना, घबराहट में चप्पल भी ठीक से न पहन पाना और आगे बढ़ जाना।
संभव ने विचलित स्वर में कहा, मुझे भूख नाँय मैं तो यों ही उठ बैठा था।
सारी रात संभव की आँखों में शाम मँडराती रही। उसकी ज़्यादा उम्र नहीं थी। इसी साल एम. ए. पूरा किया था। अब वह सिविल सर्विसिस प्रतियोगिताओं में बैठने वाला था। माता-पिता का ख़याल था वह हरिद्वार जाकर गंगा जी के दर्शन कर ले तो बेखटके सिविल सेवा में चुन लिया जाएगा। लड़का इन टोटकों को नहीं मानता था पर घूमना और नानी से मिलना उसे पसंद था।
अभी तक उसके जीवन में कोई लड़की किसी अहम भूमिका में नहीं आई थी। लड़कियाँ या तो क्लास में बाईं तरफ़ की बेंचों पर बैठने वाली एक क़तार थी या फिर ताई-चाची की लड़कियाँ जिनके साथ खेलते खाते वह बड़ा हुआ था। इस तरह बिलकुल अकेली, अनजान जगह पर एक अनाम लड़की का सद्य-स्नात दशा में सामने आना, पुजारी का ग़लत समझना, आशीर्वाद देना, लड़की का घबराना और चल देना सब मिलाकर एक नई निराली अनुभूति थी जिसमें उसे कुछ सुख और ज़्यादा बेचैनी लग रही थी। उसने मन ही मन तय किया कि कल शाम पाँच बजे से ही वह घाट पर जाकर बैठ जाएगा। पौड़ी पर इस तरह बैठेगा कि कल वाले पुजारी के देवालय पर सीधी आँख पड़े।
उसने तो लड़की का नाम भी नहीं पूछा। वैसे वह हरिद्वार की नहीं लगती थी। कैसी लगती थी, संभव ने याद करने की कोशिश की। उसे सिर्फ़ उसकी दुबली पतली काया, गुलाबी साड़ी, और भीगी-भीगी श्याम सलोनी आँखें दिखीं। उसे अफ़सोस था वह उसे ठीक से देख भी नहीं पाया पर यह तय था कि वह उसे हज़ारों की भीड़ में भी पहचान लेगा।
अभी चिड़ियों ने आँगन में लगे अमरूद के पेड़ पर चहचहाना शुरू ही किया था कि नानी ने आवाज़ दी, लल्ला चलेगा गंगाजी, आज बैसाखी है।
संभव को लगा वह रातभर सोया नहीं है। नानी की मौजूदगी में जैसे उसे संकोच हो रहा था। उसने कहा, “तुम मेरे भी नाम की डुबकी लगा लेना नानी, मैं तो अभी सोऊँगा।
नानी द्वार उढ़काकर चली गईं, तो लड़के ने अपनी कल्पना को निर्द्वंद्व छोड़ दिया। आज जब वह सलोनी उसे दिखेगी तो वह उसके पास जाकर कहेगा, “पुजारी जी की नादानी का मुझे बेहद अफ़सोस है। यक़ीन मानिए, पंडित जी मेरे लिए भी उतने ही अनजान हैं। जितने आपके लिए। लड़की कहेगी, कोई बात नहीं।
वह पूछेगा, “आप दिल्ली से आई हैं?
लड़की कहेगी, “नहीं हम तो...के हैं।
बस उसके हाथ पते की बात लग जाएगी। अगर उसने रुख़ दिखाया तो वह कहेगा, मेरा नाम संभव है और आपका?
वह क्या कहेगी? उसका नाम क्या होगा। वह बी.ए. में पढ़ रही होगी या एम.ए. में? इन सवालों के जवाब वह अभी ढूँढ़ भी नहीं पाया था कि नानी वापस आ गई।
ले तू अभी तक सुपने ले रहा है, वहाँ लाखन लाख लोग नहान कर लिए। अरे कभी तो बड़ों का कहा कर लो। लड़के की तंद्रा नष्ट हो गई। नानी उवाच के बीच सपने नौ दो ग्यारह हो गए।
लड़के ने उठते-उठते तय किया कि इस वक़्त वह घाट तक चला तो जाएगा, पर नहाएगा नहीं। हाथ-मुँह धोकर प्रार्थना कर लेगा। कुछ देर पौड़ी पर बैठ गंगा की जलराशि निहारेगा। लौटते हुए मथुरा जी की प्राचीन दुकान से गर्म जलेबी ख़रीदेगा और वापस आ जाएगा। उसने कुरते की जेब में बीस का नोट डाला और चल दिया।
वास्तव में पौड़ी पर आज अद्भुत भीड़ थी। गंगा के घाट से भी चौड़ा मानव-रेला दिखाई दे रहा था। भोर की आरती हो चुकी थी। लेकिन भजन ज़ोर-शोर से चले जा रहे थे। नारियल, फूल और प्रसाद की घनघोर बिक्री थी।
भीड़ लड़के ने दिल्ली में भी देखी थी, बल्कि रोज़ देखता था। दफ़्तर जाती भीड़, ख़रीद फ़रोख़्त करती भीड़, तमाशा देखती भीड़, सड़क क्रॉस करती भीड़। लेकिन इस भीड़ का अंदाज़ निराला था। इस भीड़ में एकसूत्रता थी। न यहाँ जाति का महत्त्व था, न भाषा का, महत्त्व उद्देश्य का था और वह सबका समान था, जीवन के प्रति कल्याण की कामना। इस भीड़ में दौड़ नहीं थी, अतिक्रमण नहीं था और भी अनोखी बात यह थी कि कोई भी स्नानार्थी किसी सैलानी आनंद में डुबकी नहीं लगा रहा था। बल्कि स्नान से ज़्यादा समय ध्यान ले रहा था। दूर जलधारा के बीच एक आदमी सूर्य की और उन्मुख हाथ जोड़े खड़ा था। उसके चेहरे पर इतना विभोर, विनीत भाव था मानो उसने अपना सारा अहम त्याग दिया है, उसके अंदर 'स्व' से जनित कोई कुंठा शेष नहीं है, वह शुद्ध रूप से चेतनस्वरूप, आत्माराम और निर्मलानंद है।
एक छोटे से लड़के ने लगभग हँसते हुए उसका ध्यान भंग किया। भैया आप नहीं नहाएँगे? संभव ने ग़ौर किया। जाने कब पौड़ी पर उसके नज़दीक यह बच्चा आ बैठा था। उसका चंदन चर्चित था। चेहरे पर चमकीली ताज़गी थी।
“अकेले हो?
नहीं बुआ साथ हैं।
कहाँ से आए हो?
रोहतक
अब वापस जाओगे?
नहीं बच्चे ने चमकीली आँखों से बताया, “अभी तो मंसा देवी जाना है, वह उधर। बच्चा सामने पहाड़ी पर बना एक मंदिर इंगित से दिखाने लगा।
यह स्थल संभव को पहले दिन से ही अपनी ओर खींच रहा था। लेकिन नानी ने उसे बरज दिया था, ना लल्ला मंसा देवी जाना है तो क्या वह झूलागाड़ी में तो बैठियो न। रस्सी से चलती है, क्या पता कब टूट जाए। एक बार टूटी थी, हज़ारन मरे गिरे थे। जाना है तो चढ़कर जाना, उसका महातम अलग है।
संभव बहुत शारीरिक मेहनत में यक़ीन नहीं करता था। बरसों से कुर्सी पर बैठ पढ़ते-पढ़ते उसे सक्रियता के नाम पर हमेशा किसी दिमाग़ी हरकत का ही ध्यान आता था।
उसे यहाँ सुबह-सुबह नानी का झाडू लगाना, चक्की चलाना, पानी भरना, रात के माँजे बरतन फिर से धो-धोकर लगाना, सब कष्ट दे रहा था। वह एतराज़ नहीं कर रहा था तो सिर्फ़ इसलिए कि महज़ चार दिन रुककर वह नानी की दिनचर्या में हस्तक्षेप करने का अधिकारी नहीं बन सकता।
संभव ने बच्चे से कहा, “अगर गिर गए तो?
बच्चा हँसा, “इतने बड़े होकर डरते हो भैया? गिरेंगे कैसे, इतने लोग जो चढ़ रहे हैं।
शहर के इतिहास के साथ-साथ संभव उसका भूगोल भी आत्मसात करना चाहता था। इसलिए थोड़ी देर बाद वह अटकता-भटकता, उस जगह पहुँच गया जहाँ से रोपवे शुरू होती थी।
रोपवे के नाम में कोई धर्माडंबर नहीं था। 'उषा ब्रेको सर्विस' की खिड़की के आगे लंबा क्यू था। वहीं मंसा देवी पर चढ़ाने वाली चुनरी और प्रसाद की थैलियाँ बिक रही थीं। पाँच, सात और ग्यारह रुपए की। कई बच्चे बिंदी-पाउडर और उसके साँचे बेच रहे थे, तीन-तीन रुपए। उन्होंने अपनी हथेली पर कलात्मक बिंदियाँ बना रखी थीं। नमूने की ख़ातिर। उससे पहले संभव ने कभी बिंदी जैसे शृंगार प्रसाधन पर ध्यान नहीं दिया था। अब यकायक उसे ये बिंदियाँ बहुत आकर्षक लगीं। मन ही मन उसने एक बिंदी उस अज्ञातयौवना के माथे पर सजा दी। माँग में तारे भर देने जैसे कई गाने उसे आधे अधूरे याद आकर रह गए। उसका नंबर बहुत जल्द आ गया। अब वह दूसरी क़तार में था जहाँ से केबिल कार में बैठना था। सभी काम बड़ी तत्परता से हो रहे थे।
जल्द ही वह उस विशाल परिसर में पहुँच गया जहाँ लाल, पीली, नीली, गुलाबी केबिल कार बारी-बारी से आकर रुकतीं चार यात्री बैठातीं और रवाना हो जातीं। केबिल कार का द्वार खोलने और बंद करने की चाभी ऑपरेटर के नियंत्रण में थी। संभव एक गुलाबी केबिल कार में बैठ गया। कल से उसे गुलाबी के सिवा और कोई रंग सुहा ही नहीं रहा था। उसके सामने की सीट पर एक नवविवाहित दंपति चढ़ावे की बड़ी थैली और एक वृद्ध चढ़ावे की छोटी थैली लिए बैठे थे।
संभव को अफ़सोस हुआ कि वह चढ़ावा ख़रीदकर नहीं लाया। इस वक़्त जहाँ से केबिल कार गुज़र रही थी, नीचे क़तारबद्ध फूल खिले हुए थे। लगता था रंग-बिरंगी वादियों से कोई हिंडोला उड़ा जा रहा है।
एक बार चारों ओर के विहंगम दृश्य में मन रम गया तो न मोटे-मोटे फ़ौलाद के खंभे नज़र आए और न भारी केबिल वाली रोपवे। पूरा हरिद्वार सामने खुला था। जगह-जगह मंदिरों के बुर्ज, गंगा मैया की धवल धार और सड़कों के ख़ूबसूरत घुमाव। नीचे सड़क के रास्ते चढ़ते, हाँफते लोग। लिमका की दुकानें और नाम अनाम पेड़।
बहुत जल्द उनकी केबिल कार मंसा देवी के द्वार पर पहुँच गई। यहाँ फिर चढ़ावा बेचने वाले बच्चे नज़र आए।
संभव ने एक थैली ख़रीद ली और सीढ़ियाँ चढ़कर प्रांगण में पहुँच गया।
नाम मंसा देवी का था पर वर्चस्व सभी देवी-देवताओं का मिला जुला था।
एकदम अंदर के प्रकोष्ठ में चामुंडा रूप धारिणी मंसादेवी स्थापित थीं। व्यापार यहाँ भी था। मनोकामना के हेतुक लाल-पीले धागे सवा रुपए में बिक रहे थे। लोग पहले धागा बाँधते, फिर देवी के आगे शीश नवाते।
संभव ने भी पूरी श्रद्धा के साथ मनोकामना की, गाँठ लगाई, सिर झुकाया, नैवेद्य चढ़ाया और वहाँ से बाहर आ गया।
आँगन में रुद्राक्ष मालाओं की अनेक गुमटियाँ थीं, जहाँ दस रुपए से लेकर तीन हज़ार तक की मालाओं पर लिखा था—'असली रुद्राक्ष, नक़ली साबित करने वाले को पाँच सौ रुपए इनाम।'
एक तरफ़ हलवाई गर्म जलेबी, पूरी, कचौड़ी छान रहे थे। मेले का माहौल था।
संभव वापस केबिल कार की क़तार में लग गया।
वापसी का रास्ता ढलवाँ था। कार और भी जल्द नीचे पहुँच रही थी।
इस बार संभव के साथ तीन समवयस्क लड़के बैठे हुए थे वह केबिल कार की ढलवाँ दौड़ देख रहा था कि यकायक दो आश्चर्य एक साथ घटित हुए।
वह बच्चा जो पौड़ी पर उसके क़रीब आकर बैठ गया था। दूर पीली केबिल कार में नज़र आया। बच्चे की लाल क़मीज़ उसे अच्छी तरह याद थी। हालाँकि इतनी दूर से उसका चेहरा स्पष्ट नज़र नहीं आ रहा था।
और बच्चे से सटी हुई जो दुबली, पतली, श्याम सलोनी आकृति बैठी थी। वह थी वहीं लड़की जो कल शाम के झुटपुटे में हर की पौड़ी पर उससे टकराई थी।
संभव बेहद बेचैन हो गया। वह दाएँ-बाएँ झुक-झुककर चीह्नने की कोशिश करने लगा। उसका मन हुआ पंछी की तरह उड़कर पीली केबिल कार में पहुँच जाए।
बहुत जल्द केबिल कार वापस नीचे पहुँच गई।
संभव ने आगे-आगे जाते बच्चे को लपककर कंधे से थाम लिया और बोला, कहो दोस्त?
बच्चे ने अचकचाकर उसकी ओर देखा—“अरे भैया। रुककर बोला, “हमने सोचा जब हमारा दोस्त नहीं डरता तो हो जाए एक ट्रिप।
तभी आगे से एक महीन सी आवाज़ ने कहा, मन्नू घर नहीं चलना है।
बालक मन्नू ने कहा, अभी आया बुआ।
संभव ने अस्फुट स्वर में पूछा, ये तुम्हारी बुआ हैं।
और क्या मन्नू ने साश्चर्य जवाब दिया।
हमें नहीं मिलाओगे, हम तो तुम्हारे दोस्त हैं।
मन्नू वाक़ई उसका हाथ खींचता हुआ चल दिया, बुआ, बुआ, इनसे मिलो, ये हैं हमारे नए दोस्त...
उसने प्रश्नवाचक नज़रों से संभव को देखा, अपना नाम ख़ुद बताइए। वह अपना बताता, इससे पहले उसी महीन मीठी आवाज़ ने कहा, ऐसे कैसे दोस्त हैं तुम्हारे, तुम्हें उनका नाम भी नहीं पता?
अब संभव ने ग़ौर किया, बिलकुल वही कंठ, वही उलाहना, वही अंदाज़। पुलक से उसका रोम-रोम हिल उठा। हे ईश्वर! उसने कब सोचा था मनोकामना का मौन उद्गार इतनी शीघ्र शुभ परिणाम दिखाएगा।
लड़की ने आज गुलाबी परिधान नहीं पहना था पर सफ़ेद साड़ी में लाज से गुलाबी होते हुए उसने मंसा देवी पर एक और चुनरी चढ़ाने का संकल्प लेते हुए सोचा, “मनोकामना की गाँठ भी अद्भुत, अनूठी है, इधर बाँधो उधर लग जाती है...”
पारो बुआ, पारो बुआ इनका नाम है... मन्नू ने बुआ का आँचल खींचते हुए कहा।
संभव देवदास संभव ने हँसते हुए वाक्य पूरा किया। उसे भी मनोकामना का पीला-लाल धागा और उसमें पड़ी गिठान का मधुर स्मरण हो आया।
har ki pauDi par saanjh kuch alag rang mein utarti hai. diya bati ka samay ya kah lo aarti ki bela. paanch baje jo phulon ke done ek ek rupe ke bik rahe the, is vaqt do do ke ho ge hain. bhakton ko isse koi shikayat nahin. itni baDi baDi manokamana lekar aaye hue hain. ek do rupe ka munh thoDe hi dekhana hai. ganga sabha ke svyansevak khaki vardi mein mustaidi se ghoom rahe hain. ve sabko siDhiyon par baithne ki pararthna kar rahe hain. shaant hokar baithiye, aarti shuru hone vali hai. kuch bhakton ne speshal aarti bol rakhi hai. speshal aarti yani ek sau ek ya ek sau ikyavan rupevali. gangatat par har chhote baDe mandir par likha hai. ganga ji ka prachin mandir. panDitgan aarti ke intzaam mein vyast hain. pital ki nilanjali mein sahasr battiyan ghi mein bhigokar rakhi hui hain. sabne deshi ghi ke Dabbe apni iimandari ke prtikasvrup saja rakhe hain. ganga ki murti ke saath saath chamunDa, balkrishn. radhakrishn, hanuman, sitaram ki murtiyon ki shringarpurn sthapana hai. jo bhi aapka aradhya ho, chun len.
aarti se pahle snaan! har har bahta gangajal, nirmal, nila, nishpap. aurten Dubki laga rahi hain. bas unhonne tat par lage kunDon se bandhi zanjiren pakaD rakhi hain. paas hi koi na koi panDa jajmanon ke kapDon latton ki suraksha kar raha hai. har ek ke paas chandan aur sindur ki katori hai. mardon ke mathe par chandan tilak aur aurton ke mathe par sindur ka tika laga dete hain panDe. kahin koi dadi baba pahla pota hone ki khushi mein aarti karva rahe hain, kahin koi nai bahu aane ki khushi mein. abhi pura andhera nahin ghira hai. godhuli bela hai.
yakayak sahasr deep jal uthte hain panDit apne aasan se uth khaDe hote hain. haath mein angochha lapet ke panchmanjili nilanjali pakaDte hain aur shuru ho jati hai aarti. pahle pujariyon ke bharraye gale se samvet svar uthta hai—jay gange mata, jo koi tujhko dhyata, sare sukh pata, jay gange mata. ghante ghaDiyal bajte hain. manautiyon ke diye liye hue phulon ki chhoti chhoti kishtiyan ganga ki lahron par ithlati hui aage baDhti hain. ghotakhor done pakaD, unmen rakha chaDhave ka paisa uthakar munh mein daba lete hain. ek aurat ne ikkis done tairayen hain. gangaputr jaise hi ek done se paisa uthata hai, aurat agla dona sarka deti hai. gangaputr us par lapakta hai ki pahle done ki dipak se uske langot mein aag ki lapat lag jati hai. paas khaDe log hansne lagte hain. par gangaputr hataprabh nahin hota. wo jhat gangaji mein baith jata hai. ganga maiya hi uski jivika aur jivan hai. iske rahte wo bees chakkar munh bhar bhar rezgari batorta hai. uski bivi aur bahan kushaghat par rezgari bechkar not kamati hain. ek rupe ke pachchasi paise. kabhi kabhi assi bhi deti hain. jaisa din ho.
pujariyon ka svar thakne lagta hai to lata mangeshkar ki surili avaz lauDaspikron ke saath sahyog karne lagti hai aur aarti mein yakayak ek snigdh saundarya ki rachna ho jati hai. om jay jagdish hare se har ki pauDi gunjayman ho jati hai.
aurten zyadatar nahakar vastra nahin badaltin. gile kapDon mein hi khaDi khaDi aarti mein shamil hon jati hain. pital ki panchmanzili nilanjali garam ho uthi hai. pujari nilanjali ko gangajal se sparsh kar, haath mein lipte angochhe ko namalum Dhang se gila kar lete hain. dusre ye drishya dekhne par malum hota hai ve apna sambodhan gangaji ke garbh tak pahuncha rahe hain. pani par sahasr bativale dipkon ki prtichchhaviyan jhilmila rahi hain. pure vatavran mein agaru chandan ki divya sugandh hai. aarti ke baad bari hai sankalp aur mantrochchar ki. bhakt aarti lete hain, chaDhava chaDhate hain. speshal bhakton se pujari brahman bhoj, daan, mishthan ki dhanrashi qabulvate hain. aarti ke kshan itne bhavya aur divya rahe hain ki bhakt hujjat nahin karte. khushi khushi dakshina dete hain. panDit ji prasann hokar bhagvan ke gale se mala utaar utarkar yajman ke gale mein Dalte hain. phir ji kholkar dete hain parsad, itna ki apna hissa khakar bhi Dher sa bach rahta hai, bantne ke liye muramre, ilaychidana, kele aur pushp.
kharch hua par bhakton ke chehre par koi malal nahin. kai kharch sukhdai hote hain.
kuch panDe abhi bhi apne takht par jame hain. der se aane vale bhakton ka snaan dhyaan abhi jari hai. aarti ke done phir ek rupe mein bikne lage hain. gangajal akash ke saath rang badal raha hai.
sambhav kafi der se nha raha tha. jab ghaat par aaya to mangal panDa bole, ka ho jajman, baDi der lagay di. hum to Dar ge the.
sambhav hansa. uske ek saar khubsurat daant sanvle chehre par phab uthe. usne laparvahi se kapDe pahne aur janghiya nichoDkar thaile mein Dala. jab wo kurte se ponchhkar chashma laga raha tha, panDe ne uske mathe par chandan tilak lagane ko haath baDhaya.
u hoon. usne chehra hata liya to mangal panDa ne kaha, chandan tilak ke baghair asnan adhura hota hai beta.
sambhav ne chupchap tilak lagva liya. wo vapas siDhiyan chaDh hi raha tha ki pauDi par bane ek chhote se mandir ke pujari ne avaz lagai, are darshan to karte jao.
sambhav thithak gaya.
uski in chizon mein niymit astha to nahin thi par nani ne kaha tha, mandir mein bees aane chaDhakar aana.
sambhav ne kurte ki jeb mein haath Dala. ek rupe ka not to mil gaya chavanni ke liye use kuch prayatn karna paDa. chavanni jeb mein nahin thi. sambhav ne thaila khakhora. pujari ne uski pareshani taaD li.
idhar aao, hum de rezgari.
sambhav ne jhempte hue ek ka not jeb mein rakhkar do ka not nikala. pujari ji ne charnamrit diya aur laal rang ka kalava bandhne ke liye haath baDhaya.
sambhav ka dhyaan kalave ki taraf nahin tha. wo ganga ji ki chhata nihar raha tha. tabhi ek aur dubli nazuk si kalai pujari ki taraf baDh aai. pujari ne us par kalava baandh diya. us haath ne thali mein sava paanch rupe rakhe.
laDki ab bilkul barabar mein khaDi, ankh mundakar archan kar rahi thi. sambhav ne yakayak muDkar uski or ghaur kiya. uske kapDe ekdam bhige hue the, yahan tak ki uske gulabi anchal se sambhav ke kurte ka ek kona bhi gila ho raha tha. laDki ke lambe gile baal peeth par kale chamkile shaul ki tarah lag rahe the. dipkon ke neem ujale mein, akash aur jal ki sanvli sandhi bela mein, laDki behad saumya, lagbhag kansya pratima lag rahi thi.
laDki ne kaha, panDit ji, aaj to aarti ho chuki. kya karen hamein der ho gai.
pujari ne utsaah se kaha, isse kya, hum hinya karay den. ka karana hai sankalp, kalyan mantr, aarti jo kaho?
nahin hum kal aarti ki bela ayenge. laDki ne kaha.
sambhav intzaar mein khaDa tha ki pujari use pachhattar paise lautaye. lekin pujari bhool chuka tha. jane kaise pujari ne laDki ke hum ko yugal arth mein liya ki uske munh se anayas ashish nikli, sukhi raho, phulophlo, jab bhi aao saath hi aana, ganga maiya manorath pure karen.
laDki aur laDka donon akabka ge.
laDki chhitakkar door khaDi ho gai.
laDke ko turant vahan se chal paDne ki jaldi ho gai.
shayad unki chapplen ek hi rakhvale ke yahan rakhi hui theen. tokan dekar chapplen lete samay donon ki nigahen ek baar phir takra gain. ankhon ka chakachaundh abhi mita nahin tha.
laDki ne apna honth danton mein dabakar chhoD diya. bhool to usi ki thi. baad mein to vahi aai thi. andhere se ghabrakar kahan, kitni paas khaDi hui, use kuch khabar nahin thi. lekin batachit ke layaq donon ki manःsthiti nahin thi. pahchan bhi nahin. donon ne nazren bachate hue chapplen pahnin.
laDki ghabrahat mein theek se chappal pahan nahin pai. thoDi si anguthe mein atkakar hi aage baDh gai. sambhav ne aage lapakkar dekhana chaha ki laDki kis taraf gai. wo ghaat ki bheeD ko katta hua sabjimanDi pahunch gaya. har ki pauDi aur sabjimanDi ke beech anek ghumavadar galiyan theen. laDka dekh nahin paya laDki kahan ojhal ho gai.
nani ka ghar qarib aa gaya tha lekin laDka ghar nahin gaya. wo vapas andekhi galiyon mein chakkar lagata raha. usne chuDi ki samast dukanon par nazar dauDai. har dukan par bheeD thi par ek bhigi, gulabi akriti nahin thi. akhir bhatakte bhatakte sambhav haar gaya. past qadmon se wo ghar ki or muDa.
nani ne dvaar kholte hue kaha, “kahan rah ge the lalla. main to ji mein baDa kaanp rahi thi. tujhe to tairna bhi na aave. kahin pair phisal jata to main teri maan ko kaun munh dikhati.
sambhav kuch nahin bola. thaila takht par patak, pair dhone nal ke paas chala gaya.
nani boli, byalu kar le.
sambhav phir bhi nahin bola.
nani ki aadat thi ek baat ko kai kai baar kahti. sambhav takht par let gaya.
nani ne kaha, “thak gaya na. are tujhe mele thele mein chalne ki aadat thoDei hai. kal baisakhi hai, isliye bheeD bahut baDh gai hai. abhi to kal dekhana, til dharne ki jagah nahin milegi pauDi par. chal uth khaybe ko kha le.
“are kya ho gaya. asnan ke baad bhi bhookh nanya chamki. tabhi na itni seenk salai dehi hai. mainne sabita se pahle hi kahi thi, ise akele na bhej. yahan ji na lage iska. nani paas khaDe khatole par adhleti ho gai. umr ke saath saath nani ki kaya itni sankshipt ho gai thi ki ve phail pasar kar soti to bhi unke liye khatola paryapt tha. par unhen sikuDkar, gathri bankar sone ki aadat thi.
ganga ko chhukar aati hava se angan kafi shital tha. uupar se nani ne roz ki tarah shaam ko chauk dho Dala tha.
neend aur svapn ke beech sambhav ki ankhon mein ghaat ki puri baat utar aai. laDki ka ankh mundakar archna karna, mathe par bhige balon ki lat kurte ko chhuta uska gulabi anchal aur pujari se kahta uska saumya svar hum kal ayenge.
sambhav ki ankh khul gai. ye to wo bhool hi gaya tha. laDki ne kal vahan aane ka vachan diya tha. sambhav aasha aur utsaah se uth baitha.
nani ko jhakjhorte hue bola, “nani, nani chalo kha len mujhe bhookh lagi hai. nani ki neend jhule ke saman thi, kabhi gahri, kabhi uthli. uthle jhote mein unhen dhevte ki sudh aai. ve rasoi se thali utha lain.
sambhav ne bahut magan hokar khana shuru kiya, vaah nani! kya aalu tamatar banaya hai, maan to aisa bilkul nahin bana saktin. kakDi ka rayata mujhe bahut pasand hai.
khate khate sambhav ko yaad aaya ashirvachan ki durghatna to baad mein ghati thi. wo kaur haath mein liye baitha rah gaya. uski ankhon ke beech aage kuch ghante pahle ka sara drishya ghoom gaya. pujari ka wo mantrochchar jaisa pavitra udgaar sukhi raho phulo phalo, sare manorath pure hon. jab bhi aao saath hi aana. laDki ka chihunkna, chhitakkar door khaDe hona, ghabrahat mein chappal bhi theek se na pahan pana aur aage baDh jana.
sambhav ne vichlit svar mein kaha, mujhe bhookh nanya main to yon hi uth baitha tha.
sari raat sambhav ki ankhon mein shaam manDrati rahi. uski zyada umr nahin thi. isi saal em. e. pura kiya tha. ab wo sivil sarvisez pratiyogitaon mein baithne vala tha. mata pita ka khayal tha wo haridvar jakar ganga ji ke darshan kar le to bekhatke sivil seva mein chun liya jayega. laDka in totkon ko nahin manata tha par ghumna aur nani se milna use pasand tha.
abhi tak uske jivan mein koi laDki kisi aham bhumika mein nahin aai thi. laDkiyan ya to klaas mein banyi taraf ki benchon par baithne vali ek qatar thi ya phir tai chachi ki laDkiyan jinke saath khelte khate wo baDa hua tha. is tarah bilkul akeli, anjan jagah par ek anam laDki ka sadya snaat dasha mein samne aana, pujari ka ghalat samajhna, ashirvad dena, laDki ka ghabrana aur chal dena sab milakar ek nai nirali anubhuti thi jismen use kuch sukh aur zyada bechaini lag rahi thi. usne man hi man tay kiya ki kal shaam paanch baje se hi wo ghaat par jakar baith jayega. pauDi par is tarah baithega ki kal vale pujari ke devalay par sidhi ankh paDe.
usne to laDki ka naam bhi nahin puchha. vaise wo haridvar ki nahin lagti thi. kaisi lagti thi, sambhav ne yaad karne ki koshish ki. use sirf uski dubli patli kaya, gulabi saDi, aur bhigi bhigi shyaam saloni ankhen dikhin. use afsos tha wo use theek se dekh bhi nahin paya par ye tay tha ki wo use hazaron ki bheeD mein bhi pahchan lega.
abhi chiDiyon ne angan mein lage amrud ke peD par chahchahana shuru hi kiya tha ki nani ne avaz di, lalla chalega gangaji, aaj baisakhi hai.
sambhav ko laga wo ratbhar soya nahin hai. nani ki maujudgi mein jaise use sankoch ho raha tha. usne kaha, “tum mere bhi naam ki Dubki laga lena nani, main to abhi sounga.
nani dvaar uDhkakar chali gain, to laDke ne apni kalpana ko nirdvandv chhoD diya. aaj jab wo saloni use dikhegi to wo uske paas jakar kahega, “pujari ji ki nadani ka mujhe behad afsos hai. yaqin maniye, panDit ji mere liye bhi utne hi anjan hain. jitne aapke liye. laDki kahegi, koi baat nahin.
wo puchhega, “aap dilli se aai hain?
laDki kahegi, “nahin hum to. . . ke hain.
bas uske haath pate ki baat lag jayegi. agar usne rukh dikhaya to wo kahega, mera naam sambhav hai aur apka?
wo kya kahegi? uska naam kya hoga. wo bi. e. mein paDh rahi hogi ya em. e. men? in savalon ke javab wo abhi DhoonDh bhi nahin paya tha ki nani vapas aa gai.
le tu abhi tak supne le raha hai, vahan lakhan laakh log nahan kar liye. are kabhi to baDon ka kaha kar lo. laDke ki tandra nasht ho gai. nani uvaach ke beech sapne nau do gyarah ho ge.
laDke ne uthte uthte tay kiya ki is vaqt wo ghaat tak chala to jayega, par nahayega nahin. haath munh dhokar pararthna kar lega. kuch der pauDi par baith ganga ki jalrashi niharega. lautte hue mathura ji ki prachin dukan se garam jalebi kharidega aur vapas aa jayega. usne kurte ki jeb mein bees ka not Dala aur chal diya.
vastav mein pauDi par aaj adbhut bheeD thi. ganga ke ghaat se bhi chauDa manav rela dikhai de raha tha. bhor ki aarti ho chuki thi. lekin bhajan zor shor se chale ja rahe the. nariyal, phool aur parsad ki ghanghor bikri thi.
bheeD laDke ne dilli mein bhi dekhi thi, balki roz dekhta tha. daftar jati bheeD, kharid farokht karti bheeD, tamasha dekhti bheeD, saDak kraus karti bheeD. lekin is bheeD ka andaz nirala tha. is bheeD mein eksutrata thi. na yahan jati ka mahattv tha, na bhasha ka, mahattv uddeshya ka tha aur wo sabka saman tha, jivan ke prati kalyan ki kamna. is bheeD mein dauD nahin thi, atikrman nahin tha aur bhi anokhi baat ye thi ki koi bhi snanarthi kisi sailani anand mein Dubki nahin laga raha tha. balki snaan se zyada samay dhyaan le raha tha. door jaldhara ke beech ek adami surya ki aur unmukh haath joDe khaDa tha. uske chehre par itna vibhor, vinit bhaav tha mano usne apna sara aham tyaag diya hai, uske andar sva se janit koi kuntha shesh nahin hai, wo shuddh roop se chetnasvrup, atmaram aur nirmlanand hai.
ek chhote se laDke ne lagbhag hanste hue uska dhyaan bhang kiya. bhaiya aap nahin nahayenge? sambhav ne ghaur kiya. jane kab pauDi par uske nazdik ye bachcha aa baitha tha. uska chandan charchit tha. chehre par chamkili tazgi thi.
“akele ho?
nahin bua saath hain.
kahan se aaye ho?
rohtak
ab vapas jaoge?
nahin bachche ne chamkili ankhon se bataya, “abhi to mansa devi jana hai, wo udhar. bachcha samne pahaDi par bana ek mandir ingit se dikhane laga.
ye sthal sambhav ko pahle din se hi apni or kheench raha tha. lekin nani ne use baraj diya tha, na lalla mansa devi jana hai to kya wo jhulagaDi mein to baithiyo na. rassi se chalti hai, kya pata kab toot jaye. ek baar tuti thi, hazaran mare gire the. jana hai to chaDhkar jana, uska mahatam alag hai.
sambhav bahut sharirik mehnat mein yaqin nahin karta tha. barson se kursi par baith paDhte paDhte use sakriyta ke naam par hamesha kisi dimaghi harkat ka hi dhyaan aata tha.
use yahan subah subah nani ka jhaDu lagana, chakki chalana, pani bharna, raat ke manje bartan phir se dho dhokar lagana, sab kasht de raha tha. wo etraaz nahin kar raha tha to sirf isliye ki mahz chaar din rukkar wo nani ki dincharya mein hastakshep karne ka adhikari nahin ban sakta.
sambhav ne bachche se kaha, “agar gir ge to?
bachcha hansa, “itne baDe hokar Darte ho bhaiya? girenge kaise, itne log jo chaDh rahe hain.
shahr ke itihas ke saath saath sambhav uska bhugol bhi atmasat karna chahta tha. isliye thoDi der baad wo atakta bhatakta, us jagah pahunch gaya jahan se ropve shuru hoti thi.
ropve ke naam mein koi dharmaDambar nahin tha. usha breko sarvis ki khiDki ke aage lamba kyu tha. vahin mansa devi par chaDhane vali chunari aur parsad ki thailiyan bik rahi theen. paanch, saat aur gyarah rupe ki. kai bachche bindi pauDar aur uske sanche bech rahe the, teen teen rupe. unhonne apni hatheli par kalatmak bindiyan bana rakhi theen. namune ki khatir. usse pahle sambhav ne kabhi bindi jaise shringar prasadhan par dhyaan nahin diya tha. ab yakayak use ye bindiyan bahut akarshak lagin. man hi man usne ek bindi us agyatyauvna ke mathe par saja di. maang mein tare bhar dene jaise kai gane use aadhe adhure yaad aakar rah ge. uska nambar bahut jald aa gaya. ab wo dusri qatar mein tha jahan se kebil kaar mein baithna tha. sabhi kaam baDi tatparta se ho rahe the.
jald hi wo us vishal parisar mein pahunch gaya jahan laal, pili, nili, gulabi kebil kaar bari bari se aakar ruktin chaar yatri baithatin aur ravana ho jatin. kebil kaar ka dvaar kholne aur band karne ki chabhi aupretar ke niyantran mein thi. sambhav ek gulabi kebil kaar mein baith gaya. kal se use gulabi ke siva aur koi rang suha hi nahin raha tha. uske samne ki seet par ek navvivahit dampati chaDhave ki baDi thaili aur ek vriddh chaDhave ki chhoti thaili liye baithe the.
sambhav ko afsos hua ki wo chaDhava kharidkar nahin laya. is vaqt jahan se kebil kaar guzar rahi thi, niche qatarbaddh phool khile hue the. lagta tha rang birangi vadiyon se koi hinDola uDa ja raha hai.
ek baar charon or ke vihangam drishya mein man ram gaya to na mote mote faulad ke khambhe nazar aaye aur na bhari kebil vali ropve. pura haridvar samne khula tha. jagah jagah mandiron ke burj, ganga maiya ki dhaval dhaar aur saDkon ke khubsurat ghumav. niche saDak ke raste chaDhte, hanphate log. limka ki dukanen aur naam anam peD.
bahut jald unki kebil kaar mansa devi ke dvaar par pahunch gai. yahan phir chaDhava bechne vale bachche nazar aaye.
sambhav ne ek thaili kharid li aur siDhiyan chaDhkar prangan mein pahunch gaya.
naam mansa devi ka tha par varchasv sabhi devi devtaon ka mila jula tha.
ekdam andar ke prakoshth mein chamunDa roop dharini mansadevi sthapit theen. vyapar yahan bhi tha. manokamana ke hetuk laal pile dhage sava rupe mein bik rahe the. log pahle dhaga bandhte, phir devi ke aage sheesh navate.
sambhav ne bhi puri shraddha ke saath manokamana ki, gaanth lagai, sir jhukaya, naivedya chaDhaya aur vahan se bahar aa gaya.
angan mein rudraksh malaon ki anek gumatiyan theen, jahan das rupe se lekar teen hazar tak ki malaon par likha tha—asli rudraksh, naqli sabit karne vale ko paanch sau rupe inaam.
ek taraf halvai garam jalebi, puri, kachauDi chhaan rahe the. mele ka mahaul tha.
sambhav vapas kebil kaar ki qatar mein lag gaya.
vapsi ka rasta Dhalvan tha. kaar aur bhi jald niche pahunch rahi thi.
is baar sambhav ke saath teen samavyask laDke baithe hue the wo kebil kaar ki Dhalvan dauD dekh raha tha ki yakayak do ashcharya ek saath ghatit hue.
wo bachcha jo pauDi par uske qarib aakar baith gaya tha. door pili kebil kaar mein nazar aaya. bachche ki laal qamiz use achchhi tarah yaad thi. halanki itni door se uska chehra aspasht nazar nahin aa raha tha.
aur bachche se sati hui jo dubli, patli, shyaam saloni akriti baithi thi. wo thi vahin laDki jo kal shaam ke jhutpute mein har ki pauDi par usse takrai thi.
sambhav behad bechain ho gaya. wo dayen bayen jhuk jhukkar chihnne ki koshish karne laga. uska man hua panchhi ki tarah uDkar pili kebil kaar mein pahunch jaye.
bahut jald kebil kaar vapas niche pahunch gai.
sambhav ne aage aage jate bachche ko lapakkar kandhe se thaam liya aur bola, kaho dost?
bachche ne achakchakar uski or dekha—“are bhaiya. rukkar bola, “hamne socha jab hamara dost nahin Darta to ho jaye ek trip.
tabhi aage se ek mahin si avaz ne kaha, mannu ghar nahin chalna hai.
balak mannu ne kaha, abhi aaya bua.
sambhav ne asphut svar mein puchha, ye tumhari bua hain.
aur kyaa mannu ne sashcharya javab diya.
hamen nahin milaoge, hum to tumhare dost hain.
mannu vaqii uska haath khinchta hua chal diya, bua, bua, inse milo, ye hain hamare ne dost. . .
usne prashnavachak nazron se sambhav ko dekha, apna naam khud bataiye. wo apna batata, isse pahle usi mahin mithi avaz ne kaha, aise kaise dost hain tumhare, tumhein unka naam bhi nahin pata?
ab sambhav ne ghaur kiya, bilkul vahi kanth, vahi ulahna, vahi andaz. pulak se uska rom rom hil utha. he iishvar! usne kab socha tha manokamana ka maun udgaar itni sheeghr shubh parinam dikhayega.
laDki ne aaj gulabi paridhan nahin pahna tha par safed saDi mein laaj se gulabi hote hue usne mansa devi par ek aur chunari chaDhane ka sankalp lete hue socha, “manokamana ki gaanth bhi adbhut, anuthi hai, idhar bandho udhar lag jati hai. . . ”
paro bua, paro bua inka naam hai. . . mannu ne bua ka anchal khinchte hue kaha.
sambhav devdas sambhav ne hanste hue vakya pura kiya. use bhi manokamana ka pila laal dhaga aur usmen paDi githan ka madhur smran ho aaya.
har ki pauDi par saanjh kuch alag rang mein utarti hai. diya bati ka samay ya kah lo aarti ki bela. paanch baje jo phulon ke done ek ek rupe ke bik rahe the, is vaqt do do ke ho ge hain. bhakton ko isse koi shikayat nahin. itni baDi baDi manokamana lekar aaye hue hain. ek do rupe ka munh thoDe hi dekhana hai. ganga sabha ke svyansevak khaki vardi mein mustaidi se ghoom rahe hain. ve sabko siDhiyon par baithne ki pararthna kar rahe hain. shaant hokar baithiye, aarti shuru hone vali hai. kuch bhakton ne speshal aarti bol rakhi hai. speshal aarti yani ek sau ek ya ek sau ikyavan rupevali. gangatat par har chhote baDe mandir par likha hai. ganga ji ka prachin mandir. panDitgan aarti ke intzaam mein vyast hain. pital ki nilanjali mein sahasr battiyan ghi mein bhigokar rakhi hui hain. sabne deshi ghi ke Dabbe apni iimandari ke prtikasvrup saja rakhe hain. ganga ki murti ke saath saath chamunDa, balkrishn. radhakrishn, hanuman, sitaram ki murtiyon ki shringarpurn sthapana hai. jo bhi aapka aradhya ho, chun len.
aarti se pahle snaan! har har bahta gangajal, nirmal, nila, nishpap. aurten Dubki laga rahi hain. bas unhonne tat par lage kunDon se bandhi zanjiren pakaD rakhi hain. paas hi koi na koi panDa jajmanon ke kapDon latton ki suraksha kar raha hai. har ek ke paas chandan aur sindur ki katori hai. mardon ke mathe par chandan tilak aur aurton ke mathe par sindur ka tika laga dete hain panDe. kahin koi dadi baba pahla pota hone ki khushi mein aarti karva rahe hain, kahin koi nai bahu aane ki khushi mein. abhi pura andhera nahin ghira hai. godhuli bela hai.
yakayak sahasr deep jal uthte hain panDit apne aasan se uth khaDe hote hain. haath mein angochha lapet ke panchmanjili nilanjali pakaDte hain aur shuru ho jati hai aarti. pahle pujariyon ke bharraye gale se samvet svar uthta hai—jay gange mata, jo koi tujhko dhyata, sare sukh pata, jay gange mata. ghante ghaDiyal bajte hain. manautiyon ke diye liye hue phulon ki chhoti chhoti kishtiyan ganga ki lahron par ithlati hui aage baDhti hain. ghotakhor done pakaD, unmen rakha chaDhave ka paisa uthakar munh mein daba lete hain. ek aurat ne ikkis done tairayen hain. gangaputr jaise hi ek done se paisa uthata hai, aurat agla dona sarka deti hai. gangaputr us par lapakta hai ki pahle done ki dipak se uske langot mein aag ki lapat lag jati hai. paas khaDe log hansne lagte hain. par gangaputr hataprabh nahin hota. wo jhat gangaji mein baith jata hai. ganga maiya hi uski jivika aur jivan hai. iske rahte wo bees chakkar munh bhar bhar rezgari batorta hai. uski bivi aur bahan kushaghat par rezgari bechkar not kamati hain. ek rupe ke pachchasi paise. kabhi kabhi assi bhi deti hain. jaisa din ho.
pujariyon ka svar thakne lagta hai to lata mangeshkar ki surili avaz lauDaspikron ke saath sahyog karne lagti hai aur aarti mein yakayak ek snigdh saundarya ki rachna ho jati hai. om jay jagdish hare se har ki pauDi gunjayman ho jati hai.
aurten zyadatar nahakar vastra nahin badaltin. gile kapDon mein hi khaDi khaDi aarti mein shamil hon jati hain. pital ki panchmanzili nilanjali garam ho uthi hai. pujari nilanjali ko gangajal se sparsh kar, haath mein lipte angochhe ko namalum Dhang se gila kar lete hain. dusre ye drishya dekhne par malum hota hai ve apna sambodhan gangaji ke garbh tak pahuncha rahe hain. pani par sahasr bativale dipkon ki prtichchhaviyan jhilmila rahi hain. pure vatavran mein agaru chandan ki divya sugandh hai. aarti ke baad bari hai sankalp aur mantrochchar ki. bhakt aarti lete hain, chaDhava chaDhate hain. speshal bhakton se pujari brahman bhoj, daan, mishthan ki dhanrashi qabulvate hain. aarti ke kshan itne bhavya aur divya rahe hain ki bhakt hujjat nahin karte. khushi khushi dakshina dete hain. panDit ji prasann hokar bhagvan ke gale se mala utaar utarkar yajman ke gale mein Dalte hain. phir ji kholkar dete hain parsad, itna ki apna hissa khakar bhi Dher sa bach rahta hai, bantne ke liye muramre, ilaychidana, kele aur pushp.
kharch hua par bhakton ke chehre par koi malal nahin. kai kharch sukhdai hote hain.
kuch panDe abhi bhi apne takht par jame hain. der se aane vale bhakton ka snaan dhyaan abhi jari hai. aarti ke done phir ek rupe mein bikne lage hain. gangajal akash ke saath rang badal raha hai.
sambhav kafi der se nha raha tha. jab ghaat par aaya to mangal panDa bole, ka ho jajman, baDi der lagay di. hum to Dar ge the.
sambhav hansa. uske ek saar khubsurat daant sanvle chehre par phab uthe. usne laparvahi se kapDe pahne aur janghiya nichoDkar thaile mein Dala. jab wo kurte se ponchhkar chashma laga raha tha, panDe ne uske mathe par chandan tilak lagane ko haath baDhaya.
u hoon. usne chehra hata liya to mangal panDa ne kaha, chandan tilak ke baghair asnan adhura hota hai beta.
sambhav ne chupchap tilak lagva liya. wo vapas siDhiyan chaDh hi raha tha ki pauDi par bane ek chhote se mandir ke pujari ne avaz lagai, are darshan to karte jao.
sambhav thithak gaya.
uski in chizon mein niymit astha to nahin thi par nani ne kaha tha, mandir mein bees aane chaDhakar aana.
sambhav ne kurte ki jeb mein haath Dala. ek rupe ka not to mil gaya chavanni ke liye use kuch prayatn karna paDa. chavanni jeb mein nahin thi. sambhav ne thaila khakhora. pujari ne uski pareshani taaD li.
idhar aao, hum de rezgari.
sambhav ne jhempte hue ek ka not jeb mein rakhkar do ka not nikala. pujari ji ne charnamrit diya aur laal rang ka kalava bandhne ke liye haath baDhaya.
sambhav ka dhyaan kalave ki taraf nahin tha. wo ganga ji ki chhata nihar raha tha. tabhi ek aur dubli nazuk si kalai pujari ki taraf baDh aai. pujari ne us par kalava baandh diya. us haath ne thali mein sava paanch rupe rakhe.
laDki ab bilkul barabar mein khaDi, ankh mundakar archan kar rahi thi. sambhav ne yakayak muDkar uski or ghaur kiya. uske kapDe ekdam bhige hue the, yahan tak ki uske gulabi anchal se sambhav ke kurte ka ek kona bhi gila ho raha tha. laDki ke lambe gile baal peeth par kale chamkile shaul ki tarah lag rahe the. dipkon ke neem ujale mein, akash aur jal ki sanvli sandhi bela mein, laDki behad saumya, lagbhag kansya pratima lag rahi thi.
laDki ne kaha, panDit ji, aaj to aarti ho chuki. kya karen hamein der ho gai.
pujari ne utsaah se kaha, isse kya, hum hinya karay den. ka karana hai sankalp, kalyan mantr, aarti jo kaho?
nahin hum kal aarti ki bela ayenge. laDki ne kaha.
sambhav intzaar mein khaDa tha ki pujari use pachhattar paise lautaye. lekin pujari bhool chuka tha. jane kaise pujari ne laDki ke hum ko yugal arth mein liya ki uske munh se anayas ashish nikli, sukhi raho, phulophlo, jab bhi aao saath hi aana, ganga maiya manorath pure karen.
laDki aur laDka donon akabka ge.
laDki chhitakkar door khaDi ho gai.
laDke ko turant vahan se chal paDne ki jaldi ho gai.
shayad unki chapplen ek hi rakhvale ke yahan rakhi hui theen. tokan dekar chapplen lete samay donon ki nigahen ek baar phir takra gain. ankhon ka chakachaundh abhi mita nahin tha.
laDki ne apna honth danton mein dabakar chhoD diya. bhool to usi ki thi. baad mein to vahi aai thi. andhere se ghabrakar kahan, kitni paas khaDi hui, use kuch khabar nahin thi. lekin batachit ke layaq donon ki manःsthiti nahin thi. pahchan bhi nahin. donon ne nazren bachate hue chapplen pahnin.
laDki ghabrahat mein theek se chappal pahan nahin pai. thoDi si anguthe mein atkakar hi aage baDh gai. sambhav ne aage lapakkar dekhana chaha ki laDki kis taraf gai. wo ghaat ki bheeD ko katta hua sabjimanDi pahunch gaya. har ki pauDi aur sabjimanDi ke beech anek ghumavadar galiyan theen. laDka dekh nahin paya laDki kahan ojhal ho gai.
nani ka ghar qarib aa gaya tha lekin laDka ghar nahin gaya. wo vapas andekhi galiyon mein chakkar lagata raha. usne chuDi ki samast dukanon par nazar dauDai. har dukan par bheeD thi par ek bhigi, gulabi akriti nahin thi. akhir bhatakte bhatakte sambhav haar gaya. past qadmon se wo ghar ki or muDa.
nani ne dvaar kholte hue kaha, “kahan rah ge the lalla. main to ji mein baDa kaanp rahi thi. tujhe to tairna bhi na aave. kahin pair phisal jata to main teri maan ko kaun munh dikhati.
sambhav kuch nahin bola. thaila takht par patak, pair dhone nal ke paas chala gaya.
nani boli, byalu kar le.
sambhav phir bhi nahin bola.
nani ki aadat thi ek baat ko kai kai baar kahti. sambhav takht par let gaya.
nani ne kaha, “thak gaya na. are tujhe mele thele mein chalne ki aadat thoDei hai. kal baisakhi hai, isliye bheeD bahut baDh gai hai. abhi to kal dekhana, til dharne ki jagah nahin milegi pauDi par. chal uth khaybe ko kha le.
“are kya ho gaya. asnan ke baad bhi bhookh nanya chamki. tabhi na itni seenk salai dehi hai. mainne sabita se pahle hi kahi thi, ise akele na bhej. yahan ji na lage iska. nani paas khaDe khatole par adhleti ho gai. umr ke saath saath nani ki kaya itni sankshipt ho gai thi ki ve phail pasar kar soti to bhi unke liye khatola paryapt tha. par unhen sikuDkar, gathri bankar sone ki aadat thi.
ganga ko chhukar aati hava se angan kafi shital tha. uupar se nani ne roz ki tarah shaam ko chauk dho Dala tha.
neend aur svapn ke beech sambhav ki ankhon mein ghaat ki puri baat utar aai. laDki ka ankh mundakar archna karna, mathe par bhige balon ki lat kurte ko chhuta uska gulabi anchal aur pujari se kahta uska saumya svar hum kal ayenge.
sambhav ki ankh khul gai. ye to wo bhool hi gaya tha. laDki ne kal vahan aane ka vachan diya tha. sambhav aasha aur utsaah se uth baitha.
nani ko jhakjhorte hue bola, “nani, nani chalo kha len mujhe bhookh lagi hai. nani ki neend jhule ke saman thi, kabhi gahri, kabhi uthli. uthle jhote mein unhen dhevte ki sudh aai. ve rasoi se thali utha lain.
sambhav ne bahut magan hokar khana shuru kiya, vaah nani! kya aalu tamatar banaya hai, maan to aisa bilkul nahin bana saktin. kakDi ka rayata mujhe bahut pasand hai.
khate khate sambhav ko yaad aaya ashirvachan ki durghatna to baad mein ghati thi. wo kaur haath mein liye baitha rah gaya. uski ankhon ke beech aage kuch ghante pahle ka sara drishya ghoom gaya. pujari ka wo mantrochchar jaisa pavitra udgaar sukhi raho phulo phalo, sare manorath pure hon. jab bhi aao saath hi aana. laDki ka chihunkna, chhitakkar door khaDe hona, ghabrahat mein chappal bhi theek se na pahan pana aur aage baDh jana.
sambhav ne vichlit svar mein kaha, mujhe bhookh nanya main to yon hi uth baitha tha.
sari raat sambhav ki ankhon mein shaam manDrati rahi. uski zyada umr nahin thi. isi saal em. e. pura kiya tha. ab wo sivil sarvisez pratiyogitaon mein baithne vala tha. mata pita ka khayal tha wo haridvar jakar ganga ji ke darshan kar le to bekhatke sivil seva mein chun liya jayega. laDka in totkon ko nahin manata tha par ghumna aur nani se milna use pasand tha.
abhi tak uske jivan mein koi laDki kisi aham bhumika mein nahin aai thi. laDkiyan ya to klaas mein banyi taraf ki benchon par baithne vali ek qatar thi ya phir tai chachi ki laDkiyan jinke saath khelte khate wo baDa hua tha. is tarah bilkul akeli, anjan jagah par ek anam laDki ka sadya snaat dasha mein samne aana, pujari ka ghalat samajhna, ashirvad dena, laDki ka ghabrana aur chal dena sab milakar ek nai nirali anubhuti thi jismen use kuch sukh aur zyada bechaini lag rahi thi. usne man hi man tay kiya ki kal shaam paanch baje se hi wo ghaat par jakar baith jayega. pauDi par is tarah baithega ki kal vale pujari ke devalay par sidhi ankh paDe.
usne to laDki ka naam bhi nahin puchha. vaise wo haridvar ki nahin lagti thi. kaisi lagti thi, sambhav ne yaad karne ki koshish ki. use sirf uski dubli patli kaya, gulabi saDi, aur bhigi bhigi shyaam saloni ankhen dikhin. use afsos tha wo use theek se dekh bhi nahin paya par ye tay tha ki wo use hazaron ki bheeD mein bhi pahchan lega.
abhi chiDiyon ne angan mein lage amrud ke peD par chahchahana shuru hi kiya tha ki nani ne avaz di, lalla chalega gangaji, aaj baisakhi hai.
sambhav ko laga wo ratbhar soya nahin hai. nani ki maujudgi mein jaise use sankoch ho raha tha. usne kaha, “tum mere bhi naam ki Dubki laga lena nani, main to abhi sounga.
nani dvaar uDhkakar chali gain, to laDke ne apni kalpana ko nirdvandv chhoD diya. aaj jab wo saloni use dikhegi to wo uske paas jakar kahega, “pujari ji ki nadani ka mujhe behad afsos hai. yaqin maniye, panDit ji mere liye bhi utne hi anjan hain. jitne aapke liye. laDki kahegi, koi baat nahin.
wo puchhega, “aap dilli se aai hain?
laDki kahegi, “nahin hum to. . . ke hain.
bas uske haath pate ki baat lag jayegi. agar usne rukh dikhaya to wo kahega, mera naam sambhav hai aur apka?
wo kya kahegi? uska naam kya hoga. wo bi. e. mein paDh rahi hogi ya em. e. men? in savalon ke javab wo abhi DhoonDh bhi nahin paya tha ki nani vapas aa gai.
le tu abhi tak supne le raha hai, vahan lakhan laakh log nahan kar liye. are kabhi to baDon ka kaha kar lo. laDke ki tandra nasht ho gai. nani uvaach ke beech sapne nau do gyarah ho ge.
laDke ne uthte uthte tay kiya ki is vaqt wo ghaat tak chala to jayega, par nahayega nahin. haath munh dhokar pararthna kar lega. kuch der pauDi par baith ganga ki jalrashi niharega. lautte hue mathura ji ki prachin dukan se garam jalebi kharidega aur vapas aa jayega. usne kurte ki jeb mein bees ka not Dala aur chal diya.
vastav mein pauDi par aaj adbhut bheeD thi. ganga ke ghaat se bhi chauDa manav rela dikhai de raha tha. bhor ki aarti ho chuki thi. lekin bhajan zor shor se chale ja rahe the. nariyal, phool aur parsad ki ghanghor bikri thi.
bheeD laDke ne dilli mein bhi dekhi thi, balki roz dekhta tha. daftar jati bheeD, kharid farokht karti bheeD, tamasha dekhti bheeD, saDak kraus karti bheeD. lekin is bheeD ka andaz nirala tha. is bheeD mein eksutrata thi. na yahan jati ka mahattv tha, na bhasha ka, mahattv uddeshya ka tha aur wo sabka saman tha, jivan ke prati kalyan ki kamna. is bheeD mein dauD nahin thi, atikrman nahin tha aur bhi anokhi baat ye thi ki koi bhi snanarthi kisi sailani anand mein Dubki nahin laga raha tha. balki snaan se zyada samay dhyaan le raha tha. door jaldhara ke beech ek adami surya ki aur unmukh haath joDe khaDa tha. uske chehre par itna vibhor, vinit bhaav tha mano usne apna sara aham tyaag diya hai, uske andar sva se janit koi kuntha shesh nahin hai, wo shuddh roop se chetnasvrup, atmaram aur nirmlanand hai.
ek chhote se laDke ne lagbhag hanste hue uska dhyaan bhang kiya. bhaiya aap nahin nahayenge? sambhav ne ghaur kiya. jane kab pauDi par uske nazdik ye bachcha aa baitha tha. uska chandan charchit tha. chehre par chamkili tazgi thi.
“akele ho?
nahin bua saath hain.
kahan se aaye ho?
rohtak
ab vapas jaoge?
nahin bachche ne chamkili ankhon se bataya, “abhi to mansa devi jana hai, wo udhar. bachcha samne pahaDi par bana ek mandir ingit se dikhane laga.
ye sthal sambhav ko pahle din se hi apni or kheench raha tha. lekin nani ne use baraj diya tha, na lalla mansa devi jana hai to kya wo jhulagaDi mein to baithiyo na. rassi se chalti hai, kya pata kab toot jaye. ek baar tuti thi, hazaran mare gire the. jana hai to chaDhkar jana, uska mahatam alag hai.
sambhav bahut sharirik mehnat mein yaqin nahin karta tha. barson se kursi par baith paDhte paDhte use sakriyta ke naam par hamesha kisi dimaghi harkat ka hi dhyaan aata tha.
use yahan subah subah nani ka jhaDu lagana, chakki chalana, pani bharna, raat ke manje bartan phir se dho dhokar lagana, sab kasht de raha tha. wo etraaz nahin kar raha tha to sirf isliye ki mahz chaar din rukkar wo nani ki dincharya mein hastakshep karne ka adhikari nahin ban sakta.
sambhav ne bachche se kaha, “agar gir ge to?
bachcha hansa, “itne baDe hokar Darte ho bhaiya? girenge kaise, itne log jo chaDh rahe hain.
shahr ke itihas ke saath saath sambhav uska bhugol bhi atmasat karna chahta tha. isliye thoDi der baad wo atakta bhatakta, us jagah pahunch gaya jahan se ropve shuru hoti thi.
ropve ke naam mein koi dharmaDambar nahin tha. usha breko sarvis ki khiDki ke aage lamba kyu tha. vahin mansa devi par chaDhane vali chunari aur parsad ki thailiyan bik rahi theen. paanch, saat aur gyarah rupe ki. kai bachche bindi pauDar aur uske sanche bech rahe the, teen teen rupe. unhonne apni hatheli par kalatmak bindiyan bana rakhi theen. namune ki khatir. usse pahle sambhav ne kabhi bindi jaise shringar prasadhan par dhyaan nahin diya tha. ab yakayak use ye bindiyan bahut akarshak lagin. man hi man usne ek bindi us agyatyauvna ke mathe par saja di. maang mein tare bhar dene jaise kai gane use aadhe adhure yaad aakar rah ge. uska nambar bahut jald aa gaya. ab wo dusri qatar mein tha jahan se kebil kaar mein baithna tha. sabhi kaam baDi tatparta se ho rahe the.
jald hi wo us vishal parisar mein pahunch gaya jahan laal, pili, nili, gulabi kebil kaar bari bari se aakar ruktin chaar yatri baithatin aur ravana ho jatin. kebil kaar ka dvaar kholne aur band karne ki chabhi aupretar ke niyantran mein thi. sambhav ek gulabi kebil kaar mein baith gaya. kal se use gulabi ke siva aur koi rang suha hi nahin raha tha. uske samne ki seet par ek navvivahit dampati chaDhave ki baDi thaili aur ek vriddh chaDhave ki chhoti thaili liye baithe the.
sambhav ko afsos hua ki wo chaDhava kharidkar nahin laya. is vaqt jahan se kebil kaar guzar rahi thi, niche qatarbaddh phool khile hue the. lagta tha rang birangi vadiyon se koi hinDola uDa ja raha hai.
ek baar charon or ke vihangam drishya mein man ram gaya to na mote mote faulad ke khambhe nazar aaye aur na bhari kebil vali ropve. pura haridvar samne khula tha. jagah jagah mandiron ke burj, ganga maiya ki dhaval dhaar aur saDkon ke khubsurat ghumav. niche saDak ke raste chaDhte, hanphate log. limka ki dukanen aur naam anam peD.
bahut jald unki kebil kaar mansa devi ke dvaar par pahunch gai. yahan phir chaDhava bechne vale bachche nazar aaye.
sambhav ne ek thaili kharid li aur siDhiyan chaDhkar prangan mein pahunch gaya.
naam mansa devi ka tha par varchasv sabhi devi devtaon ka mila jula tha.
ekdam andar ke prakoshth mein chamunDa roop dharini mansadevi sthapit theen. vyapar yahan bhi tha. manokamana ke hetuk laal pile dhage sava rupe mein bik rahe the. log pahle dhaga bandhte, phir devi ke aage sheesh navate.
sambhav ne bhi puri shraddha ke saath manokamana ki, gaanth lagai, sir jhukaya, naivedya chaDhaya aur vahan se bahar aa gaya.
angan mein rudraksh malaon ki anek gumatiyan theen, jahan das rupe se lekar teen hazar tak ki malaon par likha tha—asli rudraksh, naqli sabit karne vale ko paanch sau rupe inaam.
ek taraf halvai garam jalebi, puri, kachauDi chhaan rahe the. mele ka mahaul tha.
sambhav vapas kebil kaar ki qatar mein lag gaya.
vapsi ka rasta Dhalvan tha. kaar aur bhi jald niche pahunch rahi thi.
is baar sambhav ke saath teen samavyask laDke baithe hue the wo kebil kaar ki Dhalvan dauD dekh raha tha ki yakayak do ashcharya ek saath ghatit hue.
wo bachcha jo pauDi par uske qarib aakar baith gaya tha. door pili kebil kaar mein nazar aaya. bachche ki laal qamiz use achchhi tarah yaad thi. halanki itni door se uska chehra aspasht nazar nahin aa raha tha.
aur bachche se sati hui jo dubli, patli, shyaam saloni akriti baithi thi. wo thi vahin laDki jo kal shaam ke jhutpute mein har ki pauDi par usse takrai thi.
sambhav behad bechain ho gaya. wo dayen bayen jhuk jhukkar chihnne ki koshish karne laga. uska man hua panchhi ki tarah uDkar pili kebil kaar mein pahunch jaye.
bahut jald kebil kaar vapas niche pahunch gai.
sambhav ne aage aage jate bachche ko lapakkar kandhe se thaam liya aur bola, kaho dost?
bachche ne achakchakar uski or dekha—“are bhaiya. rukkar bola, “hamne socha jab hamara dost nahin Darta to ho jaye ek trip.
tabhi aage se ek mahin si avaz ne kaha, mannu ghar nahin chalna hai.
balak mannu ne kaha, abhi aaya bua.
sambhav ne asphut svar mein puchha, ye tumhari bua hain.
aur kyaa mannu ne sashcharya javab diya.
hamen nahin milaoge, hum to tumhare dost hain.
mannu vaqii uska haath khinchta hua chal diya, bua, bua, inse milo, ye hain hamare ne dost. . .
usne prashnavachak nazron se sambhav ko dekha, apna naam khud bataiye. wo apna batata, isse pahle usi mahin mithi avaz ne kaha, aise kaise dost hain tumhare, tumhein unka naam bhi nahin pata?
ab sambhav ne ghaur kiya, bilkul vahi kanth, vahi ulahna, vahi andaz. pulak se uska rom rom hil utha. he iishvar! usne kab socha tha manokamana ka maun udgaar itni sheeghr shubh parinam dikhayega.
laDki ne aaj gulabi paridhan nahin pahna tha par safed saDi mein laaj se gulabi hote hue usne mansa devi par ek aur chunari chaDhane ka sankalp lete hue socha, “manokamana ki gaanth bhi adbhut, anuthi hai, idhar bandho udhar lag jati hai. . . ”
paro bua, paro bua inka naam hai. . . mannu ne bua ka anchal khinchte hue kaha.
sambhav devdas sambhav ne hanste hue vakya pura kiya. use bhi manokamana ka pila laal dhaga aur usmen paDi githan ka madhur smran ho aaya.
हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों का व्यापक शब्दकोश : हिन्दवी डिक्शनरी
‘हिन्दवी डिक्शनरी’ हिंदी और हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों के शब्दों का व्यापक संग्रह है। इसमें अंगिका, अवधी, कन्नौजी, कुमाउँनी, गढ़वाली, बघेली, बज्जिका, बुंदेली, ब्रज, भोजपुरी, मगही, मैथिली और मालवी शामिल हैं। इस शब्दकोश में शब्दों के विस्तृत अर्थ, पर्यायवाची, विलोम, कहावतें और मुहावरे उपलब्ध हैं।