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जौहरी

jauhari

एच.जी.वेल्ज़

और अधिकएच.जी.वेल्ज़

    चांसलरी लेन में किन्हीं अपरिहार्य व्यस्तताओं के चलते मैं रात को नौ बजे तक व्यस्त रहा आया था और हल्के से सिरदर्द के कारण मेरा मन तो आगे काम करने का रह गया था और ही किसी प्रकार के मनोरंजन की तलाश का। ट्रैफ़िक से सँकरी हो चुकी उस गली में झाँकता छोटा-सा आकाश ख़ामोश रात की घोषणा कर रहा था, इसीलिए मैंने नदी के किनारे जा आँखों को आराम देने के विचार से नदी में शहर की झिलमिलाती रोशनियों को देखने का निश्चय कर लिया। अब इसमें तो कोई संदेह है ही नहीं कि शोर-शराबे भरे शहर की रातों में सुकून अधिक नहीं मिलता। अंधकार कृपा कर गंदगी को छिपा देता है और इस तेज़ी से भागते युग की लाल, चमकीली नारंगी, गैस की पीली और बिजली की तेज़ सफ़ेद रोशनियाँ धुँधली परछाइयों में दिखती गुमती—रहती हैं—गहरी स्याह और गाढ़े लाल रंग के बीच। वाटरलू पुल पर लगे सौ लैंप पोस्टों की रोशनियाँ नदी के ढाल को स्पष्ट कर देती हैं और उसके ऊपर से झाँकती रहती हैं वेस्टमिस्टर टावर्स की स्याह परछाइयाँ। ख़ामोशी के साथ काली नदी बहती रहती है, जिसे कभी-कभार कोई लहर भंग कर देती है और नदी के ऊपर तैरती रोशनियों की परछाइयों के टुकड़े हो जाते हैं।

    “आह! प्यारी सर्द, लेकिन गर्म रात।” मेरे पास से आवाज़ आई।

    मैंने सिर घुमाया तो एक आदमी को निकट ही दीवार पर झुका पाया। सज्जनता से भरा एक चेहरा, बदसूरत कहीं से नहीं, हालाँकि गाल में गड्ढे थे और रंगत पीली। ऊपरी बंद बटन के कोट का खड़ा कालर उसके जीवन-स्तर की घोषणा करता हुआ। मुझे अचानक महसूस हुआ कि उसे उत्तर देने का अर्थ था अपने नाश्ते और रात काटने के किराए से हाथ धोना।

    मैंने उसे आश्चर्य से देखा। क्या उसके पास ऐसा कुछ बतलाने को होगा, जो उस रक़म के उपयुक्त हो अथवा यह व्यक्ति भी उन लोगों में से है, जो अपनी ज़िंदगी की कहानी सुनाने का सामर्थ्य नहीं रखते। उसका चौड़ा माथा और आँखें बुद्धिमान होने की घोषणा कर रही थीं, लेकिन उसके काँपते हुए निचले ओंठ ने अंत में मुझे निर्णय लेने में सहायता की।

    “हुऽऽ कुछ अधिक ही” मैंने उत्तर दिया, “लेकिन हमारी ज़रूरत के अनुकूल तो क़तई नहीं।”

    “क्या कह रहे हैं आप!” उसने अभी भी नदी के दूसरे किनारे को देखते हुए कहा, “फ़िलहाल तो ठीक ही है...कम से कम अभी।”

    “सबसे बेहतर है” कुछ पल रुकने के बाद उसने आगे कहा, “लंदन में कुछ शांति और सुकून देने वाली जगह को पा लेना। पूरे दिन भर की थकान भरी व्यावसायिकी मीटिंगों की व्यस्तता, ऊपर से समय पर पहुँच काम को सही अंजाम दे देना वह भी ट्रैफ़िक के सारे ख़तरों के बावजूद—शांति देने वाला कहीं और कोई स्थान भी नहीं।” अपने वाक्यों को वह रुक-रुककर पूरा कर रहा था।

    “स्वाभाविक है इस दुनिया की परेशानियों से आप अच्छी तरह परिचित ही होंगे, अन्यथा आप कम से कम यहाँ तो नहीं ही होते। लेकिन क्षमा कीजिएगा, आप मेरी जैसी थकान का अनुभव को क़तई नहीं कर रहे होंगे। कभी-कभी तो मन में आता है कि यह खेल क्या इतना महत्वपूर्ण है भी? मुझे तो लगता है मुझे सब कुछ छोड़-छाड़कर मुक्त हो जाना चाहिए, लेकिन फिर दूसरा पक्ष यह भी है कि यदि मैं अपनी महत्वाकांक्षा से मुक्ति पा लूँ-हालाँकि उसने मुझे पूरी तरह निचोड़ तो लिया ही है—तो मेरे पास शेष ज़िंदगी में सिवाए पश्चाताप करने के कुछ भी नहीं बचेगा।”

    इतना कह वह ख़ामोश हो गया। मैंने उसे आश्चर्य से देखा। मेरा सामना किसी निराशा की गर्त में पड़े यदि किसी आदमी से कभी हुआ था—तो वह यही था और मेरे सामने प्रत्यक्ष खड़ा था। उसकी हालत बदहाल थी—बड़ी दाढ़ी और बालों ने हफ़्तों से कंघी के दर्शन भी नहीं किए थे, उसके हालात को देखकर तो ऐसा लगता था, जैसे वह पूरे हफ़्ते किसी कचरे के डिब्बे में पड़ा रहा हो। और उस पर मज़ाक यह है, वह बड़े व्यवसाय की परेशानियों की चर्चा कर रहा था। उसे देख सुन ठहाका लगाकर हँसने का मन हो रहा था। या तो वह पागल था या फिर वह अपनी ग़रीबी का मज़ाक उड़ा रहा था।

    “यदि महत्वाकांक्षा और पद प्रतिष्ठा,” मैंने कहा “की परेशानियाँ स्वाभाविक हैं तथा श्रम और बेचैनी भरी होती हैं तो बदले में वे संतुष्टि भी तो दे जाती हैं—प्रभाव क्षमता, भला करने की शक्ति, असहायों-निर्धनों की सहायता और इन सबसे ऊपर आत्मसंतुष्टि।”

    उस परिस्थिति विशेष में मेरे मुंह से निकली ये भलमनसाहत की नसीहतों के मूल में मुझे पता है नीचता थी। उसके वाक्यों और उसके हाव-भाव और वेशभूषा के विरोधाभास को देख मैंने वह सब कहा था। अपनी बात पूरी करते-करते मुझे ऐसा कहने का पछतावा होने लगा था।

    उसने अपना दुबला-पतला लेकिन शांत चेहरा मेरी ओर घुमाया और कहा, “सॉरी, मैं तो यह भूल ही गया था कि आपकी समझ में मेरी समस्या आई नहीं होगी।”

    कहकर कुछ पल तक वह मुझे गौर से देखता रहा और फिर कहा, “इसमें तो कोई संदेह ही नहीं है कि सब कुछ अविश्वसनीय और अकल्पनीय है। सच तो यह है कि जब मैं आपको बतलाऊँगा न, तब भी आप विश्वास नहीं करेंगे और इसलिए आपसे कहना अधिक सुरक्षित है, साथ ही अपने दिल का बोझ उतर जाने से मुझे कुछ राहत भी मिलेगी। ऐसा है फ़िलहाल मेरे हाथों में एक बड़ा उद्योग है, वास्तव में बड़ा, लेकिन हाल फ़िलहाल कुछ समस्याएँ हैं। सच तो यह है कि...मैं हीरे बनाता हूँ।”

    “मेरा विचार है”, मैंने कहा “शायद इन दिनों तुम्हारे पास कोई काम नहीं है।”

    “मैं इस अविश्वास से थक गया हूँ”, उसने परेशान हो कहा और अपने गंदे से कोट की बटनें खोल उसने एक छोटी-सी थैली निकाली, जो उसकी गर्दन में रस्सी से बंधी लटकी थी। थैली से उसने भूरे रंग का एक पत्थर निकाल मेरी ओर बढ़ाते हुए कहा, आप बतला सकते हैं यह क्या है?” वाक्य पूरा करते उसने मुझे वह पत्थर दे दिया।

    अब सच यह था कि वर्ष डेढ़ वर्ष पहले मुझे कुछ फ़्री टाइम मिला था, जिसमें मैंने लंदन से साइंस डिग्री प्राप्त कर ली थी, अत: मुझे भौतिक शास्त्र तथा खनिज विज्ञान का कुछ चलताऊ-सा ज्ञान हो गया था। अनगढ़ हीरे की तरह वह कुछ-कुछ दिख रहा था, हालाँकि वह था बड़ा-क़रीब मेरे अँगूठे के बराबर। उसे उँगलियों में ले उसे घुमा-फिरा कर मैं परखने लगा। वह अष्टकोणी था और उसका कुछ हिस्सा तराशा गया था, जैसा बहुमूल्य खनिजों में प्राय: होता है। अपना जेबी चाकू निकाल मैंने खरोंचने की कोशिश की, लेकिन असफल रहा। गैस लैंप की रोशनी में सामने झुक अपनी हाथ घड़ी के काँच पर उस पत्थर से लकीर खींची तो उस पर आसानी से एक सफ़ेद लाइन बन गई।

    मैंने काँच को उत्साह से भर देखते हुए कहा—“यह दिखता तो हीरा जैसा ही है। यदि यह सचमुच में हीरा है तो हीरों की दुनिया में इसे चमत्कार ही स्वीकारा जाएगा। बहरहाल तुम्हें यह कहाँ मिला?”

    “मैंने इसे बनाया है”, उसने कहा “लाइए मुझे दे दीजिए।”

    मेरे हाथ से उसने उसे थैली में जल्दी से डाला और गर्दन में थैली टांग, बटन बंद कर लिए।

    “मैं आपको सौ पाउंड में दे दूँगा”, उसने अचानक फुसफुसाते हुए उत्साह से भर कर कहा। यह सुनते ही मेरे संदेह जाग गए। वो हीरे की तरह का कठोर कुरंडम भी तो हो सकता है, जो दिखने में हीरे जैसा है। फिर यदि वास्तव में यह हीरा ही है तो इसके पास भला आया कैसे और सबसे अहम प्रश्न यह मात्र सौ पाउंड में क्यों बेच रहा है?

    हम दोनों ने ही एक-दूसरे की आँखों में झाँका। वह उत्सुक था ईमानदारी से व्यग्र। उस पल तो मुझे विश्वास हो गया कि वह मुझे हीरा बेचने की ही कोशिश कर रहा है। और फिर मैं कोई धनवान तो था नहीं, सौ पाउंड जेब से निकल जाने पर अच्छा ख़ासा बैंक बैलेंस कम हो जाएगा और फिर कोई भी थोड़ी बहुत बुद्धि वाला आदमी भी गैस लाइट की रोशनी में किसी आवारा से दिखते आदमी से कम से कम हीरा तो नहीं ही ख़रीदेगा। लेकिन यह भी सच है कि उतने बड़े आकार के हीरे का अर्थ हज़ारों पाउंड होता है। तभी मेरे मन में प्रश्न उठा कि इतने बड़े आकार का हीरा तो चर्चित होना चाहिए और उसका वर्णन प्रत्येक जवाहरात की पुस्तक में मिलना चाहिए। इसके साथ ही मुझे नकली हीरों और केपटाउन के काफ़िरों के पास मिले हल्के हीरों की कहानियाँ याद आने लगीं। अंत में मैंने ख़रीदने के सवाल को पूरी तरह किनारे कर दिया।

    “अच्छा, तुम्हें यह मिला कैसे?” मैंने पूछा।

    “मैंनेऽऽऽ मैंने इसे बनाया है।”

    मैंने मोसायन के बारे में सुन रखा था, लेकिन मुझे पता था कि उसके हीरे बहुत छोटे थे। मैंने सिर हिला दिया।

    “मुझे लगता है आप जवाहरातों के बारे में कुछ कुछ जानते हैं। ठीक है, मैं आपको अपने विषय में बतलाता हूँ, तब शायद आप इसे ख़रीदने के बारे में निर्णय कर सकें।” इतना कह उसने नदी की ओर पीठ की और अपने दोनों हाथ जेब में डाल एक लंबी साँस लेते हुए कहा “मैं जानता था कि आप विश्वास नहीं करेंगे।”

    ‘हीरे’ उसने कहना शुरू किया—और जैसे-जैसे वह बोलता गया उसकी आवाज़ आवारा की जगह शिक्षित व्यक्ति की भाषा में परिवर्तित होती चली गई—“प्राप्त करने के लिए कार्बन को उपयुक्त बहाव और दबाव की आवश्यकता होती है, तभी हीरे के कण प्राप्त किए जा सकते हैं —काले चारकोल पाउडर के रूप में नहीं, वरन् छोटे-छोटे हीरों के रूप में। यह सत्य तो रसायनिकों को वर्षों से पता है, लेकिन उचित फ्ल्क्स (बहाव) जिसमें कार्बन पिघलता है अथवा उपयुक्त दबाव की मात्रा कोई नहीं जानता। परिणामस्वरूप रसायन शास्त्रियों द्वारा निर्मित हीरे छोटे, कंकड़-पत्थर ही घोषित किए जाते हैं। आप जानते हैं मैंने अपना पूरा जीवन इसी समस्या के हल करने में लगा क्या दिया, खपा ही दिया है।”

    “मैंने हीरे निर्माण की वास्तविक परिस्थिति को जानने की शुरूआत सत्रह वर्ष की उम्र में की थी और अब बत्तीस वर्ष का हूँ। मेरी राय में तो दस वर्ष का विचार मंथन और शक्ति लगा दें या बीस वर्ष का, इस खेल के लिए ज़्यादा नहीं है। सुखद परिणाम की तुलना में।” ज़रा सोचिए, आदमी को सही विधि का पता चल जाए और रहस्य के सार्वजनिक होने तक जब हीरा कोयले जैसा सुलभ हो जाएगा, तब तक तो वह व्यक्ति करोड़ों कमा लेगा, करोड़ों!”

    इतना कह वह ख़ामोश हो मेरी ओर सहानुभूति की अपेक्षा से देखने लगा। उसकी आँखें भूख से चमक रहीं थीं।

    “अब सोचिए” उसने कुछ रुक कर कहा कि मैं इस ख़ोज की कगार पर खड़ा हूँ और आपके सामने उपस्थित हूँ।”

    “मेरे पास” उसने आगे कहना शुरू किया, “एक हजार पाउंड के आसपास थे, और मैं इक्कीस वर्ष का था। तब मेरा विचार था कि किसी स्कूल में पार्ट टाइम पढ़ा कर मैं अपना रिसर्च आराम से करता रहूँगा। एक-दो वर्ष तो पढ़ाई में निकल गए विशेषकर बर्लिन में और उसके बाद मैंने अपना काम प्रारंभ कर दिया। मेरी सबसे बड़ी समस्या तो रिसर्च को गुप्त रखने की थी। आप समझ रहे हैं मेरी समस्या की गंभीरता को। यदि एक व्यक्ति को भी मेरे काम की हवा लग जाती तो पता नहीं कितने लोग इसी काम में जुट जाते और फिर मैं कोई महान वैज्ञानिक तो हूँ नहीं कि मैं उनसे पहिले ख़ोज कर ही लूँ, इसकी कोई गारंटी नहीं है। और सबसे महत्वपूर्ण यह था कि यदि मुझे धनवान बनना है तो किसी को भी कानों-कान पता नहीं चलना चाहिए कि मैं हीरों का निर्माण टनों की मात्रा में आराम से कर सकता हूँ। अत: मुझे पूरी तरह अकेले ही काम करना था। शुरूआत में तो मेरे पास एक प्रयोगशाला थी, लेकिन जब मेरी पूंजी ख़त्म होने लगी, तो मैंने अपना प्रयोग कैटिश शहर के एक गंदे से कमरे में करना शुरू किया, जहाँ अपने प्रयोग के तामझाम के बीच मैं ज़मीन पर चटाई में सोया करता था। मेरी पूँजी बह चुकी थी। वैज्ञानिक उपकरणों के अलावा और कुछ तो मैं ख़रीद ही नहीं पा रहा था। मैंने अध्यापन कर गाड़ी घसीटने की कोशिश की, लेकिन मैं अच्छा शिक्षक नहीं हूँ और ही मेरे पास विश्वविद्यालय की डिग्री ही थी, रसायन शास्त्र को छोड़कर अन्य विषयों का ज्ञान भी पर्याप्त था। ऊपर से मैंने पाया कि मेरे पास काम अधिक था और जेबें ख़ाली थीं। इन सब विपरीत परिस्थितियों के बावजूद मैं उद्देश्य के निकट पहुँच रहा था। तीन वर्ष पहले मैंने फ्लक्स (बहाव) की समस्या हल कर ली, साथ ही अपने फ्लक्स में कुछ कार्बन मिश्रण को एक गन बैरल में पानी के साथ अच्छी तरह से बंद कर दिया और उसे भट्टी में तपाने लगा।”

    इतना कह वह रुक गया।

    “यह तो ख़ासा ख़तरनाक ही था” मैंने कहा।

    “हाँ...वह फट गया था और मेरे कमरे की खिड़कियाँ और सभी उपकरण नष्ट हो गए थे, लेकिन साथ ही मुझे हीरे का पाउडर मिल गया था। उबलते मिश्रण पर अधिक दबाव द्वारा कणों के बनने की समस्या पर सिर खपाते वक़्त मुझे पेरिस लेबोरेटरी डेस पांडरेस एट सल्फट्रेस में किए गए डोर्बे के रिसर्च को पढ़ने का अवसर मिला था, उसी के अनुसार चलने पर स्टील सिलेंडर में डायनामाइट से विस्फोट हो गया था। लेकिन इस विधि से सिलेंडर के फटने की कोई आशंका नहीं थी। दक्षिण अफ्रीका में किए जाने वाले चट्टानों के विस्फोट की तरह क़तई नहीं। इस अप्रत्याशित विस्फोट से मेरी परेशानियाँ बढ़ गई थीं, क्योंकि मेरी माली हालत के अनुसार सिलेंडर ख़ासा मँहगा था, अत: मैंने अपने काम लायक सिलेंडर फिर से बनाया, ठीक उस रिसर्च के अनुसार। सब कुछ व्यवस्थित ढंग से कर फर्नेस में आग लगा कुछ समय के लिए मैं टहलने बाहर चला गया।

    उसके तरीक़े को सुन मैं अपनी हँसी को रोक नहीं पाया। “क्या तुमने यह भी नहीं सोचा कि तुम्हारी इस हरकत से पूरा मकान भी तो उड़ सकता था। क्या उसमें दूसरे लोग नहीं रहते थे?”

    “मैं तो विज्ञान की भलाई के लिए कर रहा था” उसने कुछ देर तक ख़ामोश रहने के बाद कहा, “मेरे घर की निचली मंजिल में एक फेरीवाले का परिवार था, मेरे पीछे एक पत्र लिखने वाला और ऊपर दो फूल बेचने वाली स्त्रियाँ थीं। उस समय मेरे मन में ऐसा कोई विचार ही नहीं आया था। लेकिन संभवत: उस समय उनमें से कुछ घर से बाहर गए हुए थे।”

    “जब मैं वापस लौटा तो सब कुछ वैसा ही था, जैसा गर्म लाल कोयलों के बीच मैं छोड़कर गया था। विस्फोट ने केस को तोड़ा नहीं था। उसके अलावा एक और समस्या मेरे सामने खड़ी हो गई। आप तो जानते ही हैं कि कण निर्माण में सर्वाधिक महत्वपूर्ण होता है समय। यदि आपने ज़रा-सी भी जल्दबाज़ी कर दी तो क्रिस्टल छोटे आकार में बनेंगे—अधिक समय देने पर ही उनका आकार बढ़ेगा। इसलिए मैंने उपकरण को ठंडा होने के लिए दो वर्ष के लिए जस का तस छोड़ दिया, लेकिन मकान किराया, आग जलाए रखने के ख़र्च से भी बड़ी समस्या पेट की भूख शांत करने की मेरे सामने विकराल रूप में खड़ी थी।

    “मैं आपको बतला नहीं सकता, कितनी शिफ़्टों में उन दिनों मैं काम कर रहा था हीरा बनाने के लिए। मैंने उन दिनों अखबार बेचे, घोड़ों को पकड़कर खड़ा रहा, टैक्सी के दरवाज़े खोले, कई हफ़्तों तक लिफ़ाफ़ों पर पता लिखता रहा। एक आदमी के यहाँ सहायक का काम भी शुरू किया, जिसके पास एक ठेला था—सड़क के एक छोर पर वही आवाज़ लगाया करता था और दूसरे पर मैं। बीच में तो ऐसा समय भी आया जब मेरे पास कोई काम था ही नहीं—उस समय मैंने भीख तक माँगी। क्या हफ़्ता था वो! एक दिन कोयला समाप्त होने को था और पेट में एक दाना भी मैंने नहीं डाला था, तभी एक आदमी ने जो एक लड़की को पटाकर ले जाना चाहता था, उस पर रौब झाड़ने के लिए मुझे छै पैंस दिए थे। उसके घमंड का आभारी था मैं। वहीं पास की मछली की दुकान से क्या ख़ुशबू रही थी, लेकिन मैंने वो रक़म पूरी की पूरी कोयले पर ख़र्च कर दी और अपनी भट्टी को फिर से लाल कर दिया। भूख आदमी को गधा बनने पर मजबूर कर देता है।

    “तीन हफ़्ते पहले मैंने अंत में आग बुझा दी थी। मैंने सिलेंडर को उठाया, हालाँकि वह बेहद गर्म था, उसने मेरे हाथों को छूने की सज़ा भी तुरंत दे दी। लेकिन इसके बावजूद मैंने उस लावा जैसे पदार्थ को खरोंचा और एक लोहे की प्लेट में इकट्ठा कर लिया। मुझे तीन बड़े और पाँच छोटे हीरे मिल गए थे। जब मैं फ़र्श पर बैठा हथोड़ा चला रहा था, तभी मेरा दरवाज़ा खुला और मेरा पत्र लेखक घटिया पड़ोसी भीतर गया। वह शराब पिए हुए था, जैसा वह हमेशा पिए रहता है।

    “आतंकवादी” उसने कहा। “तुम शराब पिए हुए हो” मैंने उसे समझाते हुए कहा, “हत्यारे शैतान!” उसने कहा। “उसके बाप के पास जाओ ना” मैंने कहा, मेरा तात्पर्य झूठों के बाप से था। “परवाह नहीं” कहते उसने आँख मारी और हिचकी ली। वह दरवाज़े के सामने खड़ा था, उसकी दूसरी आँख दरवाज़े पर टिकी थी। वह बड़बड़ाए जा रहा था कि कैसे वह मेरे कमरे में तलाशी लेता रहा है और उस सुबह ही वह थाने गया था और कैसे पुलिस ने सब कुछ नोट कर लिया था और अब जेल में चक्की पीसने को तैयार रहूँ मैं। सुनते ही मुझे अहसास हो गया कि मैं जंजाल में फँस चुका हूँ। अब या तो मुझे पुलिस को अपना रहस्य बतलाना होगा और ऐसा करने पर सब कुछ जग ज़ाहिर हो जाएगा और ऐसा करने पर आतंकवादी घोषित कर दिया जाऊँगा। बहरहाल उठ कर मैं पड़ोसी के पास पहुँचा और उसका कालर पकड़ पिटाई की और हीरे उठा कर वहाँ से भाग लिया। उसी शाम के अख़बार में मेरे घर कैटिश को टाउन बम फैक्ट्री घोषित कर दिया गया। और इस तरह मैं तो उन्हें बेच ही सकता हूँ, भेंट ही कर सकता हूँ।”

    “अब यदि मैं प्रसिद्ध जौहरियों की दुकानों में जाऊँगा न, तो वे मुझे कुछ देर रुकने को कह नौकर से पुलिस को बुलाने का इशारा कर देंगे और मुझे तुरंत कहना पड़ेगा कि मैं इंतज़ार नहीं कर सकता। मैं चोरी का सामान बेचने वाले के पास गया था। उसे मैंने जो हीरा दिया, वह तो उसने रख लिया और धमकाते हुए कहा जाओ पुलिस में रिपोर्ट कर दो, मैं तुम्हें तो हीरा दूँगा और ही रुपए और हाल-फ़िलहाल मैं गर्दन में हजारों पाउंड के हीरे लटकाए भटक रहा हूँ। और मेरे पास तो सिर छिपाने को कोई छत है और ही पेट में एक दाना। आप पहले व्यक्ति हैं, जिसे मैंने अपनी पूरी दास्तान सुनाई है। प्लीज़ मेरा विश्वास करें, मैं झूठ नहीं बोल रहा हूँ। चेहरे से आप मुझे सज्जन लगे इसलिए आपसे कह दिया, क्योंकि मैं मुसीबत का मारा हूँ।” अपनी बात पूरी कर उसने मेरी आँखों में झाँका।

    “वर्तमान में तो” मैंने कहा, “हीरा ख़रीदना पागलपन ही होगा, साथ ही मैं जेब में सौ पाउंड के नोट लेकर तो निकला नहीं हूँ और फिर सबसे बड़ी बात मैं तुम्हारी कहानी पर आधा विश्वास कर रहा हूँ। अत: मैं यह कर सकता हूँ कि यदि तुम चाहो तो कल मेरे ऑफ़िस में जाना।”

    “तो आपके विचार से मैं चोर हूँ ऐं” उसने तेज़ आवाज़ में कहा “आप पहिले से ही पुलिस को ख़बर कर देंगे, हैं न। नहीं मैं आपके जाल में फँसने वाला नहीं हूँ।”

    उसने मेरा कार्ड ले लिया और मेरी सद्भावना भी।

    “अच्छी तरह सोच-विचार कर लेना और फिर जाना”—...मैंने कहा।

    उसने संदेह के साथ सिर हिलाते हुए कहा, “किसी किसी दिन मैं आपका आधा सिक्का ब्याज सहित लौटा दूँगा—ऐसा ब्याज कि आप अचंभे में पड़ जाएँगे।” उसने कहा, “बहरहाल मेरे रहस्य को आप प्लीज़ किसी को बतलाइएगा नहीं...हाँ मेरा पीछा करने की भी आवश्यकता नहीं है।”

    उसने सड़क पार की और अँधेरे में एसेक्स स्ट्रीट की सीढ़ियाँ चढ़ने लगा। उसे जाने दिया और यही अंतिम बार था जब मैंने उसे देखा था।

    बाद में मुझे दो पत्र मिले, जिसमें उसने एक पते पर नगद नोट भेजने को लिखा था। साथ ही चेक भेजने को मना किया था। इस पूरे मामले पर मैंने ध्यान से सोचा विचारा और मुझे जो बेहतर लगा, मैंने वही किया। एक बार वह घर आया, लेकिन तब मैं बाहर था। मेरे नौकर ने बतलाया कि वह बेहद दुबला-पतला और गंदा था, साथ ही बुरी तरह खांस रहा था। वह कोई संदेश नहीं छोड़ गया था। जहाँ तक इस कहानी का प्रश्न है, यही इसका अंत है। कभी कभार मैं उसके हालात के बारे में सोचता रहता हूँ। क्या वो कोई पागल था या क़ीमती पत्थरों का व्यापारी या फिर क्या उसने वास्तव में हीरे बनाए थे। जैसा उसने कहा था! उसके पत्र से तो यही लगता है कि मैंने अपनी ज़िंदगी का सबसे अच्छा अवसर गँवा दिया है। यह भी हो सकता है कि वह मर-खप गया हो और उसके हीरे कहीं कूड़े-कचरे में पड़े होंगे। मैं यह बात तो पूरे विश्वास के साथ कहता हूँ कि वह हीरा मेरे अँगूठे से बड़ा था, हो सकता है वह अभी भी उसे बेचने के लिए भटक रहा हो। यह भी हो सकता है कि वह संपन्न समाज में एक दिन प्रकट हो और मुझे शर्मिंदा करे मेरी मूर्खता पर। कभी-कभी सोचता हूँ कि मुझे पाँच पाउंड की रिस्क तो कम से कम लेनी ही चाहिए थी।

    स्रोत :
    • पुस्तक : विश्व की श्रेष्ठ कहानियाँ (खण्ड-2) (पृष्ठ 31)
    • संपादक : ममता कालिया
    • रचनाकार : एच.जी.वेल्ज़
    • प्रकाशन : लोकभारती प्रकाशन
    • संस्करण : 2005
    हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों का व्यापक शब्दकोश : हिन्दवी डिक्शनरी

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