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फ़ौजी लड़कियाँ

fauji laDkiyan

चिनुआ अचेबे

चिनुआ अचेबे

फ़ौजी लड़कियाँ

चिनुआ अचेबे

और अधिकचिनुआ अचेबे

    पहली बार जब वे एक-दूसरे की राहों से गुज़रे तो कुछ भी नहीं हुआ। यह उन संघर्षमय दिनों की बात है, जब हर रोज़ हज़ारों नौजवानों को और कभी-कभी लड़कियों को भी भर्ती दफ़्तरों से निराश वापस लौटना पड़ता था, क्योंकि नवगठित देश की सुरक्षा के लिए हथियार उठाने बहुत अधिक लोग रहे थे।

    दूसरी बार वे आवका के एक चेक-पॉइंट पर मिले। लड़ाई शुरू हो चुकी थी और दूर उत्तरी क्षेत्रों से धीरे-धीरे दक्षिण की ओर बढ़ रही थी। वह औनित्शा से ऐनूगू की ओर जा रहा था और जल्दी में था। हालाँकि बौद्धिक स्तर पर वह सड़क-अवरोधों पर अच्छी तरह तलाशी के हक़ में था, लेकिन जब भी उसे तलाशी देनी पड़ती थी, भावात्मक स्तर पर उसे हमेशा बुरा लगता था। हालाँकि वह स्वयं इस बात को मानने को तैयार नहीं था। लेकिन लोग मानते थे कि अगर आपकी तलाशी ली गई तो आप बड़े आदमी नहीं हैं। अक्सर वह अपनी गहरी, प्रभावशाली आवाज़ में यह कहकर—रेगिनाल्ड न्वानक्वो, न्याय मंत्रालय-तलाशी से बच जाता था। इसका असर तुरन्त होता था, लेकिन कई बार अज्ञानता के कारण या विशुद्ध हठीलेपन के कारण चेक-पॉइंट के लोग उसके इस कथन से प्रभावित होने से इंकार कर देते थे। जैसा कि अभी आवका पर हुआ था। मार्क 4 की भारी राईफ़लें उठाए हुए दो कांस्टेबल दूर सड़क के किनारे से नज़र रखे हुए थे और तलाशी का काम उन्होंने स्थानीय निगरानी करने वालों पर छोड़ दिया था।

    “मुझे जल्दी है” —उसने लड़की से कहा, जो उसकी कार तक गई थी।

    “मेरा नाम रेगिनाल्ड न्वानक्वो है, न्याय मंत्रालय।”

    “नमस्ते सर, मैं आपकी कार का बूट देखना चाहती हूँ।’

    “हे भगवान! तुम्हारे ख़याल से बूट में क्या है?”

    “मैं नहीं जानती, सर।”

    ग़ुस्सा दबाते हुए वह कार से बाहर निकला, पीछे गया, बूट खोला और बाएँ हाथ से ढक्कन उठाते हुए दाएँ से यूँ इशारा किया, जैसे कह रहा हो—आपके बाद!

    “हो गई तसल्ली?” उसने पूछा।

    “जी, सर। क्या मैं आपकी गाड़ी का पिजन-होल देख सकती हूँ?”

    “ओह गॉड!”

    “देरी के लिए माफ़ी, सर आप ही लोगों ने हमें यह काम सौंपा है।”

    “कोई बात नहीं, तुम बिल्कुल ठीक कहती हो। यह रहा ग्लव-बॉक्स। देख लो कुछ भी नहीं है।

    “ठीक है, सर! बंद कर दीजिए,” उसने पीछे का दरवाज़ा खोलकर सीटों के नीचे झाँका। तब उसने पहली बार लड़की को ध्यान से देखा—पीछे से। वह ख़ूबसूरत लड़की थी, जिसने उभारवाली नीली जर्सी, ख़ाकी जीन्स तथा कैनवेस के जूते पहन रखे थे और बालों को नए स्टाइल की प्लीटों में बाँध रखा था, जिससे लड़कियों के चेहरों पर विद्रोह का-सा भाव जाता था, जिसे लोगों ने-जाने क्यों—“एयरफोर्स बेस’ का नाम दे दिया था। वह कुछ-कुछ जानी-पहचानी सी लगती थी।

    “मैं ठीक हूँ, सर,” उसने अंत में कहा जिसका मतलब था कि वह अपना काम ख़त्म कर चुकी थी। “आपने मुझे पहचाना नहीं?”

    “नहीं, क्यों?”

    “जब मैं स्कूल छोड़कर सेना में भर्ती होने जा रही थी तो आपने मुझे ऐनूगू तक लिफ़्ट दी थी।”

    “ओ, हाँ, तुम्हीं वह लड़की हो। मैंने तुम्हें वापस स्कूल जाने को कहा था क्योंकि फ़ौज में लड़कियों की ज़रूरत नहीं है, फिर क्या हुआ?”

    उन्होंने मुझे वापस स्कूल जाने को कहा या रेडक्रॉस में भरती होने को कहा।”

    “देखा, तुमने, मैंने ठीक कहा था न। तब तुम यहाँ क्या कर रही हो?”

    “सिर्फ़ सिविल-डिफैंस के साथ थोड़ा-सा हाथ बँटा रही हूँ।”

    “चलो ठीक है, यक़ीनन तुम बहुत ही अच्छी लड़की हो।” वही दिन था जिस दिन उसने सोचा कि क्रांति में आख़िर कुछ है। उसने पहले भी लड़कियों और औरतों को मार्चिंग तथा प्रदर्शन करते देखा था, लेकिन वह उनके बारे में ठीक-ठाक धारणा नहीं बना पाया था। इसमें तो कोई सन्देह नहीं कि औरतें और लड़कियाँ अपने बारे में गंभीरता से सोचती थीं, जो गलियों में छड़ियाँ उठाए और सिरों पर स्टील हैल्मेटों की जगह सूप के कटोरे रखे आगे-पीछे ड्रिल किया करती थीं। उन दिनों का सबसे मशहूर मज़ाक था वह बैनर जिसके पीछे-पीछे स्थानीय स्कूल की लड़कियाँ चलती थीं और जिस पर लिखा रहता था—वी० आर० इम्प्रैग्नेबल!”

    लेकिन आवका चेक-पॉइंट पर उस लड़की के साथ उस मुलाक़ात के बाद वह दुबारा तो लड़कियों का मज़ाक ही उड़ा सका और ही क्रांति की बात का, क्योंकि उस लड़की की कार्य-कुशलता में सादगी और आत्म विश्वास ने उसे एकदम छिछोरेपन का अपराधी घोषित कर दिया था। क्या कहा था उसने—“हम वही काम कर रहे हैं, जो आप लोगों ने हमें सौंपा है।” वह उसका भी लिहाज़ नहीं करने जा रही थी, जिसने एक बार उस पर एहसान किया था। उसे यक़ीन था कि वह अपने पिता की तलाशी भी उसी सख़्ती से लेती।

    जब वे तीसरी बार एक-दूसरे की राहों से गुज़रे तो अठारह महीने बीत चुके थे और हालात काफ़ी ख़राब थे। मौत और भुखमरी ने पहले दिनों के स्वाभिमान को भगा दिया था, जिसका स्थान ले लिया था विशुद्ध निराशा ने और कहीं-कहीं पत्थर-सी कठोर और कभी-कभी आत्म-घातक अवज्ञा ने। आश्चर्य की बात है कि ऐसे वक़्त में भी कुछ लोग ऐसे थे, जिनकी एकमात्र इच्छा वक़्त रहते जीवन की अच्छी वस्तुओं को हथियाना तथा चरम सीमा तक मौज़ उड़ाना थी। ऐसे लोगों के लिए दुनिया में एक अजीबो-ग़रीब तौर पर सामान्यता लौट आई थी। सभी चेक-पॉइंट ग़ायब हो गए। लड़कियाँ फिर लड़कियाँ बन गईं और लड़के, लड़के। जीवन बहुत ही संकुचित, घिरा हुआ तथा निराशाजनक हो गया था, जिसमें कुछ अच्छाइयाँ थीं, कुछ बुराइयाँ और ढेर-सी वीरता, जो इस कहानी के पात्रों से परे रिफ्यूजी कैंपों, चिथड़ों में लिपटे, गोली के निशाने के सामने डटे, भूखे-नंगे लेकिन साहसी लोगों में दिखाई देती थी।

    रेगिनाल्ड न्वानक्वो उन दिनों औवैरी में रह रहा था तथा उस दिन वह राशन की तलाश में न्क्वैरी गया हुआ था। औवैरी में उसे कैरीटास में कुछ मछली, डिब्बाबंद माँस तथा घटिया अमेरिकी खाद्य, जिसे खाद्य फार्मूला दो कहते थे और जो किसी क़िस्म का पशुओं का चारा था, मिल गया था। उसे लगता था कि कैथोलिक होने की वजह से उसे कैरीटास में नुक़सान होता था। इसीलिए वह न्क्वैरी में चावल, बींस तथा गेबन-गारी नामक एक बढ़िया अनाज की तलाश में अपने एक दोस्त के पास आया था, जो डब्ल्यू सी सी का एक डिपो चलाता था।

    वह औवैरी से सुबह छह बजे ही निकल पड़ा था, ताकि अपने दोस्त को डिपो में ही पकड़ सके, जो हवाई हमले के डर से 8-30 के बाद वहाँ नहीं रुकता था। न्वानक्वो के लिए वह दिन भाग्यशाली था। कुछ दिन पहले कई जहाज़ों के अचानक एकसाथ जाने के कारण डिपो में एक दिन पहले ही रसद का बहुत बड़ा स्टॉक आया था। जब उसका ड्राइवर टिन, थैले और कार्टन उसकी गाड़ी में लाद रहा था तो भूखी भीड़ ने जो हमेशा रिलीफ़-सैंटरों के गिर्द जुटी रहती थी, कई फ़ब्तियाँ कसीं जैसे कि ‘वार कैन कन्टीन्यू’ जिसका आशय डब्ल्यू सी सी से था। कोई और चिल्लाया ‘इरेवोलू’, उसके दोस्तों ने उत्तर दिया ‘शम’। ‘इरेवोलू’ ‘शम’!

    ‘इसोफ़ेली’, ‘शम’! ‘इसोफ़ेली’, ‘म्बा’

    न्वानक्वो को बहुत शर्म आई—चिथड़ों तथा नंगी पसलियों वाली भीड़ से नहीं, लेकिन उनके बीमार जिस्मों तथा दोष लगाती आँखों से। उसे ज़्यादा बुरा लगता अगर वे कुछ भी कह कर चुपचाप उसकी गाड़ी के बूट में दूध, अंडे का पाउडर, दलिया, माँस और मछली के डिब्बों को लदता देखते रहते। सामान्यतया चारों ओर फैली मुसीबतों के बीच इस प्रकार की ख़ुशक़िस्मती पर शर्म आना अनिवार्य था, लेकिन कोई क्या कर सकता था? दूर ओग्बू गाँव में रह रही उसकी पत्नी और चार बच्चे पूरी तरह उस द्वारा भेजी गई राहत पर निर्भर थे। वह उन्हें क्वाशीख़ोर जैसी घातक बीमारी के मुँह में तो नहीं धकेल सकता था। वह सिर्फ़ इतना कर सकता था—और कर रहा था—कि जब भी उसे आज की तरह अच्छी रसद मिल जाती थी तो वह उसका कुछ हिस्सा अपने ड्राइवर जॉनसन को दे देता था, जिसकी पत्नी और छह बच्चे थे—या सात—और जिसकी तनख़्वाह दस पाउंड प्रति माह थी। बाज़ार में ‘गारी’ अन्न की कीमत एक पाउंड प्रति सिगरेट-टिन तक पहुँच गई थी। ऐसी हालत में वह भीड़ के लिए कुछ भी नहीं कर सकता था। ज़्यादा से ज़्यादा वह अपने पड़ोसी के लिए कुछ कर सकता था। बस, यही कुछ!

    औवैरी से वापस आते समय, सड़क के किनारे खड़ी एक ख़ूबसूरत लड़की ने लिफ़्ट माँगी। उसने ड्राइवर को रुकने को कहा। चारों ओर से बीसियों पैदल चलने वाले —धूल से सने और थके—जिनमें कुछ फ़ौजी थे और कुछ सिविलियन, गाड़ी की ओर झपटे।

    “नहीं, नहीं, नहीं,” न्वानक्वो ने सख़्ती से कहा—“मैं तो उस सुंदरी के लिए रुका हूँ। मेरा टायर ख़राब है और मैं सिर्फ़ एक ही यात्री को ले सकता हूँ। सॉरी!”

    “बेटे, प्लीज़”। हैंडल पकड़ते हुए एक निराश बुढ़िया ने कहा।

    “बुढ़िया तू मरना चाहती है?” ड्राइवर ने उसे धकेलते हुए और गाड़ी बढ़ाते हुए कहा।

    न्वानक्वो ने अब तक किताब खोल ली थी और नज़रें उसमें गड़ा दी थीं। लगभग एक मील तक उसने लड़की की तरफ़ देखा ही नहीं। आख़िर लड़की को चुप्पी बहुत भारी लगी और उसने कहा,

    “आपने आज मुझे बचा लिया, शुक्रिया!”

    “इसमें क्या बात है, कहाँ जा रही हो?”

    “औवैरी, आपने मुझे पहचाना नहीं?”

    “ओ, हाँ ज़रूर। मैं भी कितना बेवक़ूफ़ हूँ, तुम?”

    “ग्लैडिस।”

    “हाँ, हाँ, फ़ौजी लड़की। ग्लैडिस तुम बदल गई हो। ख़ूबसूरत तो तुम हमेशा ही थी, लेकिन अब तो तुम रूप की रानी लगती हो। क्या करती हो आजकल?”

    “मैं आजकल फ़्यूल डायरेक्ट्रेट में हूँ।”

    “बहुत अच्छी बात है।”

    अच्छी बात तो है, उसने सोचा, लेकिन दुखद भी। वह एक गाढ़े रंग का विग पहने हुए थी, महँगी स्कर्ट और लो-कट का ब्लाउज़। उसके जूते ज़रूर गेबन से आए होंगे और काफ़ी महँगे होंगे। कुल मिला कर, न्वानक्वो ने सोचा, उसे किसी अमीर आदमी की रखैल होना चाहिए। ऐसा आदमी जो लड़ाई से पैसों के पहाड़ बना रहा होगा।

    “मैंने आज तुम्हें लिफ़्ट देकर अपना एक उसूल तोड़ा है। आजकल मैं लिफ़्ट बिल्कुल भी नहीं देता।”

    “क्यों?”

    आख़िर आप कितने लोगों को ले जा सकते हैं? बेहतर है कि कोशिश ही मत करो। उस बुढ़िया को ही लो।”

    “मैंने सोचा था कि आप उसे बिठा लेंगे।”

    वह इस पर कुछ भी नहीं बोला। चुप्पी के एक और दौर के बाद ग्लैडिस को लगा कि वह बुरा मान गया है। इसीलिए उसने जोड़ा—

    “मेरे लिए अपना उसूल तोड़ने का शुक्रिया।” वह उसके थोड़े परे मुड़े हुए चेहरे को पढ़ने की कोशिश कर रही थी। वह मुस्कुराया, मुड़ा, उसकी गोदी पर हल्के से हाथ मारा और पूछा,

    “औवैरी में तुम क्या करने जा रही हो?”

    “मैं अपनी सहेली से मिलने जा रही हूँ।”

    “सहेली? पक्की बात?”

    “क्यों नहीं...अगर आप मुझे उसके घर तक छोड़ें तो उससे मिल भी सकते हैं। बस एक ही डर है कि वह कहीं वीक-एण्ड पर निकल गई हो। तब तो गड़बड़ हो जाएगी।”

    “क्यों?”

    “क्योंकि अगर वह घर पर हुई तो सड़क पर सोना पड़ेगा।”

    “मैं तो प्रार्थना कर रहा हूँ कि वह घर पर ही हो।”

    “क्यों?”

    “क्योंकि अगर वह घर पर हुई तो मैं तुम्हें रात के लिए और सुबह नाश्ते के लिए न्यौता दे सकूँगा।”

    “क्या है?” उसने ड्राइवर से पूछा, जिसने एकाएक गाड़ी रोक दी थी। जवाब की ज़रूरत ही नहीं थी। सामने खड़ी भीड़ ऊपर देख रही थी। तीनों गाड़ी से निकलते ही झाड़ियों की ओर भागे, गर्दनें पीछे आसमान पर लगी थीं। लेकिन अलार्म ग़लत था।

    आसमान साफ़ और बेआवाज़ था, सिर्फ़ दो गिद्ध ऊँची उड़ान भर रहे थे। भीड़ में से एक मसखरे ने उनको ‘फाइटर’ और बॉम्बर’ का नाम दे दिया और सभी राहत की हँसी हँस उठे। तीनों फिर गाड़ी में सवार हुए तथा यात्रा जारी रही।

    “अभी रेड्स के लिए जल्दी है,” उसने ग्लैडिस से कहा, जो अभी भी अपने दोनों हाथ छातियों पर रखे हुए थी, मानों दिल की धक् धक् सुन रही हो। “वे दस बजे से पहले नहीं आते हैं।”

    लेकिन ग्लैडिस डर के मारे बोल भी नहीं पा रही थी। न्वानक्वो को एक मौक़ा दिखाई दिया और उसने उसे तुरंत हथिया लिया—

    “तुम्हारी सहेली कहाँ रहती है?”

    “250, डग्लस रोड।”

    “ओह, यह तो शहर के बीचो-बीच है। बहुत ही वाहियात जगह है। खंदक और कुछ और। मैं तुम्हें वहाँ शाम छह बजे से पहले जाने की सलाह नहीं दूँगा। सुरक्षित नहीं है। अगर तुम्हें बुरा लगे तो मैं तुम्हें अपने यहाँ लिए चलता हूँ। जैसे ही छह बजेंगे मैं तुम्हें तुम्हारी सहेली के यहाँ छोड़ आऊँगा। ठीक है?”

    “ठीक है,” उसने बेजान-से स्वर में कहा। “मुझे इससे बहुत डर लगता है। इसीलिए मैंने औवैरी में काम करने से भी इन्कार कर दिया था। जाने किसने मुझे आज यहाँ आने की सलाह दी थी।”

    “कोई बात नहीं, हमें तो आदत हो गई है।”

    “लेकिन आप के साथ आपका परिवार तो नहीं है न?”

    “नहीं,” उसने कहा, “किसी का भी परिवार यहाँ नहीं है। हम कहते हैं कि इसका कारण एयर-रेड्स है, लेकिन सच्चाई कुछ और है। औवैरी मौज-मस्ती का शहर है और हम लोग मस्त कुँवारों की तरह रहते हैं।”

    “मैंने भी कुछ ऐसा ही सुना है।”

    “सुना ही नहीं, तुम आज देखोगी भी। मैं तुम्हें आज एक बहुत ही मस्ती-भरी पार्टी में ले जाऊँगा। मेरे एक दोस्त का, जो लेफ़्टिनेंट कर्नल है, आज जन्मदिवस है। उसकी पार्टी है। उन्होंने साउंड स्मैशर्स बैंड किराये पर लिया है। मुझे विश्वास है तुम्हें मज़ा आएगा।”

    लेकिन उसे इस बात पर शर्म आई। उसे पार्टियों तथा रास-रंग से बहुत चिढ़ थी, जबकि उसके दोस्त मक्खियों की तरह उससे चिपके रहते थे। और यह सब बात वह इसलिए कर रहा था, क्योंकि वह एक लड़की को घर ले जाना चाहता था। और लड़की भी वह जिसका एक समय जंग में अटूट विश्वास था और जिसे (उसे यक़ीन था) किसी रंगरलिए ने धोखा दिया था। क्षोभ में उसने सिर हिलाया।

    “क्या हुआ?” ग्लैडिस ने पूछा।

    “कुछ नहीं, यूँ ही कुछ सोचने लगा था।”

    बाक़ी यात्रा लगभग चुप्पी में कटी।

    वह इतनी तेज़ी से उसके घर में घुल-मिल गई, जैसे कि उसकी नियमित गर्ल-फ्रेंड हो। उसने घरेलू पोशाक पहनी और अपना भड़कीला विग उतार दिया।

    “तुम्हारे बालों की सजावट बहुत अच्छी है। तुम इन्हें विग में क्यों छुपाए रखती हो?”

    “शुक्रिया,” उसने कुछ देर तक उसके सवाल का जवाब दिया ही नहीं।

    फिर कहा, “आदमी लोग भी मसखरे होते हैं।”

    “क्यों?”

    “तुम तो रूप की रानी लगती हो”, उसने उसकी नकल उतारी।

    “ओह, वह बात। मैं तो उसे अक्षरश: सच मानता हूँ।” उसने उसे अपनी ओर खींचा और चूम लिया। तो उसने ऐतराज ही किया और ही पूरी तरह समर्पण। शुरुआत के लिए न्वानक्वो को यह अच्छा लगा। इन दिनों बहुत-सी लड़कियाँ आसानी से मान जाती थी। कुछ लोगों ने इसे ‘बीमारी-ए-जंग’ का नाम दे दिया था।

    कुछ देर बाद वह अपने दफ़्तर हाज़िरी लगाने गया और वह रसोई में लंच के लिए नौकर की मदद करने लगी। उसने सिर्फ़ हाज़िरी ही लगाई होगी, क्योंकि वह आधे घंटे में ही लौट आया। हाथ मलते हुए बोला कि वह अपनी रूप की रानी से ज़्यादा देर दूर नहीं रह सकता था।

    जब वे लंच कर रहे थे तो वह बोली, “तुम्हारे फ़्रिज में तो कुछ भी नहीं है!”

    “जैसे?” उसने बुरा-सा मानते हुए पूछा।

    “जैसे माँस” उसने बिना झिझक के उत्तर दिया।

    “तुम अभी भी माँस खाती हो?” उसने सवाल किया।

    “मैं भला कौन होती हूँ, लेकिन आप जैसे बड़े लोग खाते हैं।”

    “मुझे पता नहीं, तुम किन बड़े लोगों की बात कर रही हो। लेकिन वे मेरे जैसे नहीं है। मैं तो दुश्मन से कारोबार करके पैसा बनाता हूँ और ही राहत का सामान बेचकर या...

    “आगस्टा का ब्वॉय-फ्रेंड भी ये सब नहीं करता। उसे सिर्फ़ विदेशी मुद्रा मिलती है।”

    “कैसे मिलती है? वह सरकार को धोखा देता है—ऐसे मिलती है उसे विदेशी मुद्रा।”

    “चाहे वह कोई भी हो। वैसे यह आगस्टा कौन है?”

    “मेरी सहेली।”

    “ओह।”

    “पिछली बार उसने मुझे तीन डॉलर दिए थे, जिन्हें मैंने पैंतालीस पाउंड में बदल लिया। उस आदमी ने आगस्टा को पचास डॉलर दिए थे।”

    “ख़ैर मेरी प्यारी, मैं विदेशी मुद्रा की भी दलाली नहीं करता और मेरे फ़्रिज में माँस भी नहीं है। हम एक जंग लड़ रहे हैं और मुझे सिर्फ़ यह पता है कि फ्रंट पर हमारे कुछ नौजवान तीन-तीन दिन में एक बार जौ का पानी पीकर लड़ रहे हैं।”

    “यह तो ठीक ही है। बदर लड़ी है, लगूर खाई है।”

    “बात यह भी नहीं है—इससे भी बुरी है”, उसने कहा। ग़ुस्से से उसकी ज़ुबान लड़खड़ाने लगी थी। “लोग हर रोज़ मारे जा रहे हैं। इस वक़्त जब हम-तुम बात कर रहे हैं, उस वक़्त भी कोई मारा जा रहा है।”

    “यह तो ठीक है” उसने फिर कहा।

    “हवाई जहाज़!” लड़का रसोई से चिल्लाया।

    “हाय माँ”—ग्लैडिस चिल्लाई। जैसे ही वे पास के पत्तों और लाल मिट्टी से बनी खंदक की ओर, सिर पर हाथ धरे, शरीर को झुकाये हुए भागे, आसमान जेट विमानों तथा घरेलू विमान-भेदी तोपों की गरजती आवाज़ से फट पड़ा।

    खंदक में, विमानों के चले जाने के बाद और देर से शुरू हुई तोपों की घन गरज ख़त्म हो जाने के बाद भी वह उससे चिपकी रही।

    “वह जहाज़ तो सिर्फ़ ऊपर से गुज़र रहा था” न्वानक्वो ने कहा। उसकी आवाज़ कुछ काँप-सी रही थी। “उसने, कुछ भी नहीं गिराया। उसकी दिशा से लग रहा था कि लड़ाई के मोर्चे पर जा रहा था। शायद हमारे सैनिक उन पर दबाव डाल रहे हैं, इसीलिए वे ऐसा करते हैं। जब भी हमारे सैनिक दबाव डालते हैं वे रूसियों और मिस्र को हवाई जहाजों के लिए एस एस भेज देते हैं।” उसने लंबी साँस ली।

    उसने कुछ भी नहीं कहा, सिर्फ़ उससे चिपकी रही। वे सुनते रहे। उनका नौकर साथ वाले घर के नौकर को बतला रहा था कि वे दो थे। एक ने यूँ डाइव मारी और दूसरे ने यूँ।

    “हम भी अच्छी तरह देख रहे हैं”, दूसरे ने उतने ही उत्साह से कहा।

    “कहना तो नहीं चाहिए। लेकिन इन मसीनों से लोगों का मरना देखने में सुंदर लगेगा न, भगवान क़सम।”

    “सोचो!” आख़िरकार ग्लैडिस ने ज़ुबान का इस्तेमाल करते हुए कहा। न्वानक्वो ने सोचा कि वह चंद लफ़्ज़ों में ही या सिर्फ़ एक ही लफ़्ज़ से अर्थ की कई परतों को व्यक्त कर सकती थी। इस एक लफ़्ज़ में—सोचो—आश्चर्य, आलोचना तथा शायद इन लोगों के लिए एक तरह की प्रशंसा भी छिपी थी, जो मौत के हरकारों के बारे में भी मज़ाक कर सकते थे।

    “डरो मत,” उसने कहा। वह उसके और नज़दीक गई और वह उसे चूमने लगा, उसकी छातियाँ दबाने लगा। वह धीरे-धीरे खुलने लगी और फिर पूरी तरह से खुल गई। खंदक में अंधेरा था, वहाँ झाड़ू भी नहीं लगी थी और उसमें कीड़े-पतंगे हो सकते थे। उसने घर में से चटाई लाने की सोची, फिर ख़याल छोड़ दिया। और कोई हवाई जहाज़ सकता था। पड़ोसी या आता-जाता कोई आकर उनके ऊपर पड़ सकता था। यह तो लगभग वैसी ही परिस्थिति होगी, जिसमें लोगों ने हवाई हमले के समय दिन-दहाड़े एक आदमी को नंग-धड़ंग अपने बेड रूम से निकलकर भागते देखा था और उसके पीछे-पीछे वैसी ही हालत में एक औरत भी थी।

    जैसा कि ग्लैडिस को डर था, उसकी सहेली घर पर नहीं थी। लगता था कि उसके प्रभावशाली दोस्त ने लिवरविल में ख़रीदारी के लिए उसके पीछे हवाई-जहाज़ में एक सीट हासिल कर ली थी। कम-से-कम पड़ोसियों को तो यही अंदाज़ा था।

    “कमाल है”, न्वानक्वो ने वापिसी पर कहा। “वह लड़ाकू विमान पर जूतों, विगों, पैंटो, ब्रा, कॉस्मैटिक्स और ऐसी चीज़ों से लदी-फँदी लौटेगी, जिन्हें फिर वह हज़ारों पाउंड की क़ीमत पर बेच देगी। तुम लड़कियाँ सचमुच जंग पर हो, नहीं!”

    वह कुछ नहीं बोली और उसे लगा कि आख़िरकार वह उसे कचोटने में सफल हो गया है। लेकिन एकाएक वह बोली, “तुम मर्द लोग तो चाहते ही हो कि हम यही सब कुछ करें।”

    “ख़ैर,” उसने कहा, “मैं एक ऐसा मर्द हूँ, जो नहीं चाहता कि तुम यह सब करो। तुम्हें ख़ाकी जीन्स में वह लड़की याद है, जिसने बेरहमी से चेक-पॉइंट पर मेरी तलाशी ली थी?”

    वह हँसने लगी।

    “मैं चाहता हूँ तुम फिर से वही लड़की बन जाओ। तुम्हें याद है?’’ कोई विग नहीं, और जहाँ तक मुझे याद है कोई इयरिंग तक नहीं...”

    “देखो, झूठ नहीं...मैंने इयरिंग पहन रखे थे।”

    “चलो ठीक है, लेकिन समझ आई कि मैं क्या कह रहा हूँ?”

    “वो वक़्त गया। अब तो सब बचना चाहते हैं। इसे कहते हैं नंबर छह। तुम अपना नंबर छह निकालो; मैं अपना नम्बर छह निकालती हूँ। सब कुछ ठीक-ठाक।”

    लेफ़्टिनेंट कर्नल की पार्टी में एक अजीब-सी बात हो गई। लेकिन उसके होने से पहले सब ठीक-ठाक चल रहा था। बकरे का माँस था, मुर्ग़ा और चावल तथा ढेर-सी देसी शराब, जिसमें से एक का नाम उन्होंने ट्रेसर रख छोड़ा था, क्योंकि वह हलक़ को जलाती हुई उतरती थी। मज़ाक की बात तो यह थी कि बोतल में देखने पर वह नारंगी के रस जैसी सीधी-सादी लगती थी। लेकिन सबसे ज़्यादा जिस चीज़ ने हंगामा खड़ा किया वह थी डबलरोटी। असली। बैंड भी अच्छा और लड़कियाँ भी बहुत-सी थीं। माहौल को और भी बेहतर बनाने के लिए दो गोरे निकले जो रेडक्रॉस में थे। साथ में लाए वे एक बोतल कूर्वेज़्यो की और एक स्कॉच की। पार्टी ने पहले तो खड़े होकर उनका अभिनंदन किया और फिर सभी भागे एक-एक घूँट पाने के लिए। कुछ देर बाद एक गोरे के व्यवहार से लगा कि उसने पहले से ही काफ़ी पी रखी थी, जिसका कारण शायद यह था कि गई रात एक पायलेट जिसे वह अच्छी तरह जानता था, ख़राब मौसम में राहत सामग्री लाते समय एयरपोर्ट पर हवाई दुर्घटना में मारा गया था।

    पार्टी में उस समय तक कम लोगों ने ही इस दुर्घटना के बारे में सुना था। सो सारे वातावरण में तुरंत मुर्दनी-सी छा गई।

    नाच रहे कुछ जोड़े तुंरत वापस अपनी सीटों पर चले गए तथा बैंड बजना बंद हो गया। तब एकाएक अकारण ही रेडक्रॉस वाला आदमी गरज पड़ा—“एक आदमी ने—शरीफ़ आदमी ने—क्यों अपनी जान दे दी, बेकार ही। चार्ली को मरने की ज़रूरत नहीं थी। इस सड़ियल जगह के लिए तो बिल्कुल नहीं। यहाँ हर चीज़ बू मारती है। ये लड़कियाँ भी जो बनी-ठनी, मुस्कराती यहाँ आई हैं, किसी काम की नहीं हैं, मछली का एक टुकड़ा—या एक अमेरिकी डॉलर—बस और ये साली हमबिस्तर होने को तैयार हैं।’

    उबाल के बाद आई चुप्पी में एक नौजवान अफ़सर उसके पास गया और उसे तीन तमाचे जड़ दिए—दाएँ! बाएँ! उसे सीट से खींच कर उठा लिया (उसकी आँखों में आँसुओं जैसा कुछ था) और बाहर धकेल दिया। उसका दोस्त भी जिसने उसे चुप कराने की कोशिश की थी, पीछे-पीछे बाहर चला गया। निस्तब्ध पार्टी में उनकी कार के जाने की आवाज़ साफ़ सुनाई दी। अफ़सर जिसने तमाचे जड़े थे, हाथ झाड़ता हुआ अपनी सीट पर वापस गया।

    “साला चूतिया!” उसने रोबीली आवाज़ में कहा। सभी लड़कियों ने अपनी नज़रों से उसे अहसास करा दिया कि वे उसे मर्द और हीरो समझती हैं।

    “आप उसे जानते हैं?” ग्लैडिस ने न्वानक्वो से पूछा। उसने उत्तर नहीं दिया। बदले में सारी पार्टी को सम्बोधित करते हुए कहा—

    “वह पिये हुए था,” उसने कहा।

    “मुझे इस बात की परवाह नहीं,” अफ़सर ने कहा, “जब आदमी पिये होता है, तभी वह वही कहता है जो उसके मन में होता है।”

    “तो तुमने उसे उस बात के लिए पीटा जो उसके मन में थी,” मेज़बान ने कहा।

    “ऐसी ही भावना होनी चाहिए, जो”

    “शुक्रिया जनाब,” जो ने सैल्यूट करते हुए कहा।

    “तो उसका नाम जो है।” ग्लैडिस और उसके बाईं ओर बैठी लड़की ने एक दूसरे की तरफ़ मुड़ते हुए एकसाथ कहा।

    उसी समय न्वानक्वो और दूसरी ओर बैठा एक और दोस्त एक-दूसरे से दबी ज़ुबान में, बहुत ही दबी ज़ुबान में कह रहे थे कि हालाँकि वह आदमी बददिमाग़ और बेहूदा था, लेकिन लड़कियों के बारे में उसने जो कुछ भी कहा था वह दुर्भाग्यवश कटु सत्य था, सिर्फ़ कहने वाला आदमी ग़लत था।

    जब डांस दुबारा शुरू हुआ तो कैप्टन जो ग्लैडिस के पास आया और डांस के लिए कहा। उसके मुँह से लफ़्ज़ निकलने से पहले ही वह कूदकर खड़ी हो गई। तब उसे अचानक याद आया, वह मुड़ी और उसने न्वानक्वो से इजाज़त माँगी। साथ ही कैप्टन ने भी मुड़कर कहा,

    “माफ़ कीजिए।”

    “जाइए, जाइए,” न्वानक्वो ने दोनों के बीच कहीं देखते हुए कहा।

    डांस देर तक चला और वह बिना जताए उन्हें देखता रहा। कभी-कभी ऊपर से रसद का हवाई जहाज़ गुज़रता तो कोई यह कह कर बत्ती बुझा देता कि कहीं दुश्मन का हो। लेकिन असल में तो यह अंधेरे में डांस करने का तथा लड़कियों को गुदगुदाने का बहाना था, क्योंकि दुश्मन के हवाई जहाज़ों की आवाज़ तो ख़ूब पहचानी हुई थी। ग्लैडिस जब वापिस आई तो बहुत संकोच-भरी थी और उसने न्वानक्वो को अपने साथ नाचने को कहा। लेकिन उसने मना कर दिया। “मेरी परवाह मत करो”, उसने कहा, “मैं तो यहाँ बैठकर तुम लोगों को डांस करता देखकर मज़े ले रहा हूँ।”

    “तब चलिए,” उसने कहा, “अगर आप डांस नहीं करेंगे।”

    “लेकिन मैं तो कभी डांस नहीं करता। विश्वास करो। जाओ, मज़े करो।”

    उसने अगला डांस लेफ़्टिनेंट कर्नल के साथ किया और फिर कैप्टन जो के साथ। इसके बाद न्वानक्वो उसे वापस घर ले चलने के लिए मान गया।

    “मुझे दुख है कि मैं डांस नहीं करता”, उसने वापस कार में जाते समय कहा, “लेकिन मैंने क़सम खाई है जब तक यह लड़ाई चलेगी, मैं डांस नहीं करूँगा।”

    वह कुछ नहीं बोली।

    “मैं उस पायलेट जैसे आदमी के बारे में सोच रहा हूँ, जो कल रात मारा गया। उसका तो इस लड़ाई से कोई सम्बन्ध नहीं था। वह तो हमारे लिए रसद...”।

    “मुझे उम्मीद है कि उसका दोस्त उस जैसा नहीं होगा”, ग्लैडिस ने कहा।

    “वह तो अपने दोस्त के कारण उखड़ा हुआ था। लेकिन मैं तो यह कहने की कोशिश कर रहा हूँ कि जब उस जैसे लोग मारे जा रहे हों, जब मोर्चे पर हमारे नौजवान मारे जा रहे हों तो हम लोगों को चुपचाप बैठे रहना या पार्टियाँ देना या डांस करना कितना उचित है?”

    “लेकिन आप ही तो मुझे वहाँ ले गए थे,” अंत में उसने विरोध करते हुए कहा, “वो तो आप ही के दोस्त हैं। मैं तो उन्हें जानती भी नहीं थी।”

    “देखो, मेरी प्यारी ग्लैडिस, मैं तुम्हें दोष नहीं दे रहा हूँ। मैं तो तुम्हे सिर्फ़ यह बतला रहा हूँ कि मैं डांस क्यों नहीं करता। ख़ैर छोड़ो कुछ और बात करें...तुम अभी भी कल ही वापिस जाने पर आमादा हो? मेरा ड्राइवर तुम्हें सोमवार सुबह-सुबह काम पर वक़्त से पहुँचा सकता है। नहीं? चलो, जैसी तुम्हारी मर्ज़ी। तुम मालिक हो।”

    जिस आसानी से वह उसके बिस्तर पर चली आई और जिस भाषा का उसने इस्तेमाल किया, उससे उसे आश्चर्य हुआ।

    “बमबारी करना चाहते हो?” उसने पूछा। और जवाब की परवाह किए बिना बोली, शुरू करो, लेकिन अपने सिपाही अंदर मत छोड़ना!”

    एक बात तो एकदम साफ़ थी—वह किसी सैनिक अफ़सर की रखैल थी। दो सालों में कितना ज़बर्दस्त फ़र्क़ गया है। यही क्या कम कमाल था कि उसे अभी अपना पहला जीवन याद था, अपना नाम याद था? अगर शराबी रेडक्रॉस वाला क़िस्सा दुबारा हुआ, उसने सोचा, तो वह उसके साथ खड़ा होगा—सारी पार्टी को बतला देगा कि वह आदमी कितना सच्चा है। सारी-की-सारी पीढ़ी को क्या हो गया है? क्या यही हैं कल की माताएँ!

    लेकिन सुबह होते-होते वह बेहतर महसूस करने लगा और उसकी राय में भी उदारता गई। उसने सोचा कि ग्लैडिस तो उस समाज का एक छोटा-सा प्रतिबिंब है, जो पूरी तरह सड़ चुका है और जिसमें कीड़े रेंग रहे हैं। लेकिन शीशा साबुत है, सिर्फ़ थोड़ी सी धूल जम गई है। ज़रूरत है तो एक साफ़, सफ़ेद कपड़े की। “इसके प्रति भी मेरा कुछ फ़र्ज़ है,” उसने स्वयं से कहा, “वह छोटी-सी लड़की जिसने एक दिन मुझे हमारे ख़तरे का अहसास कराया था, अब स्वयं ख़तरे में है। कुछ ख़तरनाक असर पड़ रहा है उस पर।”

    वह इस घातक असर की जड़ में जाना चाहता था। वह असर सिर्फ़ उसकी अच्छे दिनों की दोस्त आगस्टा—या जो कुछ भी उसका नाम रहा हो—का नहीं था। इसकी तह में ज़रूर कोई आदमी होगा—शायद उन बेरहम व्यापारियों में से एक जो विदेशी मुद्रा की चोरी करते हैं और जो युवकों के जीवन को ख़तरे में डालकर उन्हें दुश्मनों की सीमा के पार भेजते हैं, ताकि तस्करी की चीज़ों को सिगरेटों में बदलकर करोड़ों कमा सकें। या फिर उन ठेकेदारों में से होगा जो सेना को भेजी जाने वाली रसद की चोरी करके पैसों के पहाड़ बना रहे थे। या शायद कोई घिनौना और बुज़दिल सैनिक अफ़सर जो बैरकों के गंदे फिकरे और बहादुरी के झूठे क़िस्सों से भरा हुआ था। उसने उसे ड्राइवर के साथ अकेले ही भेजने का फैसला किया था। लेकिन नहीं, वह ख़ुद जाएगा और देखेगा कि वह कहाँ रहती थी? कुछ-न-कुछ ज़रूर सामने आएगा। इसी पर वह ग्लैडिस को बचाने की योजना आधारित करेगा। जैसे-जैसे वह इस ट्रिप की तैयारी करने लगा, प्रति पल ग्लैडिस के प्रति उसकी भावनाएँ नर्म होती गईं। उसने एक दिन पहले रिलीफ़ सेंटर से मिले राशन का आधा भाग उसके लिए अलग कर दिया। हालाँकि हालात ख़राब थे, लेकिन उसने सोचा था कि जिस लड़की के पास खाने के लिए कुछ होगा, वह कम ललचाएगी। वह डब्ल्यू सी सी में अपने दोस्त से हर हफ़्ते उसके लिए कुछ-न-कुछ देने की बात करेगा। उपहार देखकर ग्लैडिस की आँखों में आँसू गए। न्वानक्वो के पास पैसे तो अधिक नहीं थे, लेकिन उसने जोड़-जाड़ कर बीस पाउंड भी उसे दे दिए।

    “मेरे पास विदेशी मुद्रा तो नहीं है और मैं जानता हूँ कि ये ज़्यादा देर तक नहीं चल सकते, लेकिन...”

    वह दौड़कर आई और उससे लिपटकर रोने लगी। उसने उसके ओंठ और आँखें चूम लीं और मुसीबत के मारों के बारे में कुछ बुदबुदाया, जिसे वह समझ नहीं पाई। न्वानक्वो ने सोचा कि मेरे कारण ही उसने अपना विग उतार कर बैग में रख लिया है।

    “मैं चाहता हूँ कि तुम मुझसे एक वादा करो”, उसने कहा।

    “क्या?”

    “बमबारी वाली वह शब्दावली तुम कभी इस्तेमाल नहीं करोगी।”

    आँसू-भरी आँखों से वह मुस्कराई। “तुम्हें पसंद नहीं है न? लेकिन सभी लड़कियाँ ऐसे ही कहती हैं।”

    “ख़ैर, तुम दूसरी लड़कियों से अलग हो। वादा करोगी न?”

    “अच्छा।”

    उन्हें जाने में देर हो गई थी। जब वे गाड़ी में बैठे तो गाड़ी ने स्टार्ट होने से इंकार कर दिया। इंजन में इधर-उधर हाथ मारने के बाद ड्राइवर ने कहा कि बैटरी बैठ गई थी। न्वानक्वो हैरान हो उठा। उसी हफ़्ते उसने दो सैल बदलने में चौंतीस पाउंड ख़र्चे थे और बदलने वाले मैकेनिक ने कहा था कि यह छह महीने तक चलेगी। नई बैटरी ख़रीदने का तो सवाल ही नहीं उठता था, क्योंकि उसकी क़ीमत दो सौ पचास पाउंड तक जा पहुँची थी। ज़रूर ड्राइवर ने कोई लापरवाही दिखाई होगी, उसने सोचा।

    “यह कल रात हुआ होगा,’’ ड्राइवर ने कहा।

    “कल रात क्या हुआ था?’’ —न्वानक्वो ने ग़ुस्से से पूछा, यह सोचते हुए कि बदतमीज़ी की हद हो गई है। लेकिन ड्राइवर का ऐसा कोई आशय नहीं था।

    “क्योंकि हम हेडलाइट्स इस्तेमाल करते रहे थे।”

    “तो क्या हमसे उम्मीद की जाती है कि हम लाइटें जलाएँ? जाओ, धक्का लगाने के लिए कुछ लोगों को लाओ।” वह ग्लैडिस के साथ बाहर निकलकर घर में वापस चला आया और ड्राइवर पड़ोस के घरों में दूसरे नौकरों को मदद के लिए ढूँढ़ने निकला।

    सड़क पर आध-घंटा आगे-पीछे धक्का लगाने के बाद तथा धक्का लगाने वालों की ज़ोर-शोर से दी गई सलाहों के बाद गाड़ी में जान वापस आई और एग्ज़ॉस्ट से धुएँ के काले बादल निकलने लगे।

    जब वे चले तो उसकी घड़ी में साढ़े आठ बजे थे। कुछ मील दूर एक अपाहिज़ सिपाही ने लिफ़्ट के लिए हाथ दिया।

    “रोको!” न्वानक्वो चिल्लाया। ड्राइवर ने ब्रेक पर अपना पूरा पैर जाम कर दिया और फिर आश्चर्य से उसकी ओर देखा।

    “तुमने उस सिपाही को हाथ हिलाते नहीं देखा? वापिस चलो और उसे बिठाओ।”

    “माफ़ कीजिए, सर”, ड्राइवर ने कहा, “मुझे पता नहीं था कि सा’ब लिफ़्ट देना माँगता।”

    “अगर नहीं पता तो पूछो। वापिस लो।”

    सिपाही जो छोटा-सा-लड़का-भर था, पसीने से लथपथ चीकट-सी ख़ाकी वर्दी पहने था और घुटने से नीचे उसकी टाँग ग़ायब थी। यह जानकर कि कार उसके लिए रुकी थी वह सिर्फ़ आभारी ही नहीं बल्कि चकित भी था। उसने पहले लकड़ी की, अपनी घटिया-सी बैसाखियाँ पकड़ाईं जिन्हें ड्राइवर ने आगे दोनों सीटों के बीच टिका दिया, फिर वह स्वयं अंदर बैठ गया।

    “शुक्रिया, सर,” उसने गर्दन पीछे घुमाते हुए कहा। उसकी साँस बुरी तरह फूल रही थी।

    “मैं आपका आभारी हूँ। मैडम, शुक्रिया!”

    “ख़ुशी तो हमें है,” न्वानक्वो ने कहा। “यह घाव कहाँ लगा?”

    “अजुमिनी पर, सर। दस जनवरी को।”

    “कोई बात नहीं, सब ठीक हो जाएगा। हमें तुम नौजवानों पर गर्व है। सब ख़त्म हो जाने पर तुम लोगों को उचित पदक मिलेंगे, यह हम विश्वास दिलाते हैं।”

    “मैं भगवान से आपके लिए प्रार्थना करूँगा, सर!”

    अगले-घंटे तक वे चुपचाप रहे। जैसे ही गाड़ी एक पुल की तरफ़ उतराई से उतरी, कोई चिल्लाया—शायद ड्राईवर या सिपाही—“वे गए!” ब्रेक की आवाज़ चिल्लाहट और आसमान फटने की आवाज़ में घुल गई। गाड़ी रुकने से पहले ही दरवाज़े खुल गए और वे अंधाधुंध झाड़ियों की ओर भागने लगे। ग्लैडिस न्वानक्वो से आगे थी। तब उस शोर-शराबे में उन्होंने सिपाही के चिल्लाने की आवाज़ सुनी, “आकर, मेरे लिए दरवाज़ा खोलो!” उसे ग्लैडिस के रुकने का आभास हुआ और फिर वह उससे आगे निकल गया। उसने ग्लैडिस को भागते रहने को कहा। तभी उस अस्त-व्यस्त वातावरण में एक ऊँची सीटी की आवाज़ बरछे की तरह नीचे गिरी, ज़ोर की हलचल के साथ एक धमाका हुआ और सब कुछ तितर-बितर हो गया। जिस पेड़ से वह लगा खड़ा था, वह दूर झाड़ियों में जा गिरा। फिर एक और भयानक ऊँची सीटी की आवाज़ और आस-पास वही तोड़-फोड़ फिर एक और, और उसके बाद न्वानक्वो को कुछ सुनाई नहीं दिया।

    वह उठा तो चारों ओर रोने की आवाज़ें थीं, धुआँ था, बदबू और चिराँयध का माहौल था। उसने ख़ुद को घसीटा तथा उन आवाजों की ओर चला।

    दूर से उसने! आँसुओं और ख़ून से भरे ड्राइवर को अपनी ओर आते देखा। फिर उसकी नज़र गई—अपनी गाड़ी के चिथड़ों तथा लड़की और सिपाही की गड्डमड्ड, क्षत-विक्षत लाशों की ओर—और वह चिल्लाकर ढह पड़ा।

    स्रोत :
    • पुस्तक : विश्व की श्रेष्ठ कहानियाँ (खण्ड-2) (पृष्ठ 260)
    • संपादक : ममता कालिया
    • रचनाकार : चिनुआ अचेबे
    • प्रकाशन : लोकभारती प्रकाशन
    • संस्करण : 2005
    हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों का व्यापक शब्दकोश : हिन्दवी डिक्शनरी

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