मार्टिन सिड ने अपने पिता की स्टडी के दरवाज़े पर दस्तक दी। तत्काल एक गुर्राहट उभरी और उसके पिता की आवाज़ आई, “अंदर आ जाओ!”
आम तौर पर मार्टिन अपने पिता के आराम या अध्ययन में हस्तक्षेप नहीं करता था। उसका पिता किताबों का कीड़ा था और उसे यह बात बिलकुल पसंद नहीं थी कि कोई उसे अध्ययन के समय परेशान करे, किंतु आज समस्या दूसरी ही थी। कर्नल टाउन सिड ने नौकर को भेजकर उसे बुलाया था, क्योंकि वह उससे किसी महत्त्वपूर्ण मामले पर बातचीत करना चाहता था।
“आओ मार्टिन!” कर्नल सिड ने कहा, “बैठ जाओ!” उसने एक कुर्सी की ओर संकेत किया और मर्टिन चुपचाप कुर्सी पर बैठकर जिज्ञासु दृष्टि से अपने पिता की ओर देखने लगा। उसके चेहरे से प्रकट होता था कि वह इस प्रकार बुलाए जाने पर परेशान है।
“कहिए डैडी!” मार्टिन ने अंततः कहा।
मार्टिन सोच रहा था कि कोई विशेष बात अवश्य है, जो उसके पिता ने उसे बुलाया है। वह अभी किसी निष्कर्ष पर न पहुँच सका था कि कर्नल की आवाज़ उसके कानों से टकराई, “मैं तुमसे एक महत्त्वपूर्ण मामले पर बातचीत करना चाहता हूँ।” मार्टिन की बाईं आँख की पलक जिज्ञासु अंदाज़ में कमान का रूप धारण कर गई। वह मन ही मन सोच रहा था कि गत कई दिनों के अंतराल में उससे ऐसी कौन-सी ग़लती हुई है, जो इस समय सामने आने वाली है।
“तुम इन दिनों स्नेडरा मेक्स टेड से बहुत मिलते रहे हो!” कर्नल की आवाज़ अधिकारपूर्ण थी।
“जी हाँ!...वास्तव में…” मार्टिन ने स्वीकार किया, पर वह तो एक ठीक-ठाक लड़की है!”
“ठीक-ठाक से तुम्हारा क्या मतलब है?” कर्नल ने पूछा।
“मेरा मतलब है, वह अच्छी लड़की है। वह माडलिंग नहीं करती, शो-गर्ल नहीं है। इसके अतिरिक्त…इस प्रकार की कोई अन्य ख़राबी भी उसमें नहीं है।”
“शटअप!” कर्नल गुर्राया, “ये सब बातें मुझे भी पता हैं कि वह ऐसी लड़की नहीं है, क्या मैं उसे या उसकी माँ को अच्छी तरह नहीं जानता? जो कुछ मैं कहना चाहता हूँ, वह यह है कि तुम कुछ समय से उस लड़की के साथ बहुत अधिक दिखाई दे रहे हो!”
“जी हाँ!” मार्टिन ने कहा, “मैं उसके बहुत समीप रहा हूँ, पर अन्य भी बहुत-सी लड़कियाँ मेरे आस-पास मौजूद हैं डैडी!”
“मुझे अन्य लड़कियों में कोई दिलचस्पी नहीं है।” कर्नल का स्वर अधिक कठोर हो गया, “मैं केवल तुमसे यह पता करना चाहता हूँ कि क्या तुम स्नेडरा से प्रेम करते हो?”
“मैं इस संबंध में कुछ नहीं कह सकता!” मार्टिन ने गुद्दी सहलाई और सिर झुकाकर कहा।
“क्या वह तुमसे प्रेम करती है?” कर्नल ने पता करना चाहा।
“उसने अब तक तो ऐसी कोई बात नहीं कही है।”
“इन सब बातों को मस्तिष्क से झटक दो।” कर्नल का मूड बिगड़ने की चरम सीमा तक पहुँच गया, “क्या तुम दोनों में चुंबन-आलिंगन होता रहा है या इस प्रकार की अन्य बातें?”
“आख़िर इन बातों से आपका क्या मतलब है? क्या आप मेरी और स्नेडरा की शादी कराना चाहते हैं? मैं जानता हूँ कि वह एक अच्छी लड़की है, इसके अतिरिक्त वह एक ऊँचे परिवार से संबंध रखती है और...”
“मैं तुम्हारी शादी के लिए प्रयत्न कर रहा हूँ। इनके प्रतिकूल मैं यह परामर्श देना चाहता हूँ कि स्नेडरा से शादी करना मूर्खता है, पागलपन है।”
“वह क्यों डैडी?” मार्टिन ने विस्मय से पिता की ओर देखा।
“एक शाप का चक्कर है!” कर्नल ने कहा।
“शाप?” मार्टिन ने विस्मय से पलकें झपकाईं।
“आज से दो सौ वर्ष पूर्व टाउन सिड परिवार का एक नवयुवक स्नेडरा के परिवार की एक लड़की के प्रेम में फँस गया था। उन्होंने सभी के विरोध के बावजूद शादी कर ली। बाद में स्थिति ख़राब हो गई। लड़के ने विष खाकर आत्महत्या कर ली थी। उसने मृत्यु-शय्या पर यह शाप दिया कि यदि हमारे परिवार के किसी नवयुवक ने स्नेडरा परिवार की किसी लड़की से शादी की, तो उनका गृहस्थ जीवन कटु हो जाएगा। इस संबंध में एक उदाहरण मिसेज़ मैक्स टेड से मुझे मिल चुका है।”
“देखिए डैडी!” मार्टिन हाथ उठाकर बोला, “मैं जानता हूँ कि कई वर्ष तक आप पुरातत्त्व विशेषज्ञ रहे हैं, पर मुझे आशा है कि आप इस प्रकार की ग़लत धारणाओं पर विश्वास नहीं रखते होंगे। क्या मैं ठीक कह रहा हूँ डैडी?”
“यदि तुम चाहो तो इसे वहम भी कह सकते हो, पर अतीत में ऐसा हो चुका है। वह लड़का बेहद असहायावस्था में मौत का शिकार हुआ था। इसके अतिरिक्त दुलहिन एक महीने के अंदर-अंदर मर गई थी। संभवतः उसे किसी घोड़े ने कुचल दिया था।
इसलिए मैं इस मामले में अपनी भावनाओं को स्पष्ट रूप से प्रकट कर देना चाहता हूँ।”
कर्नल ने गहरी गंभीरता से कहा।
और ये भावनाएँ क्या हैं डैडी?”
“तुम्हें इस लड़की स्नेडरा से मिलना-जुलना छोड़ देना चाहिए। यदि तुम उसे बहुत अधिक पसंद करने लगे, तो संभव है, तुम्हारे मस्तिष्क में उससे शादी करने का उन्माद समा जाए, ऐसा किसी भी अवस्था में नहीं होना चाहिए। मैं कठोरता से इस बात का विरोध करूँगा।”
“लेकिन यह एक अजीब बात है डैडी, कि स्नेडरा की माँ का ख़याल है कि मैं उसकी बेटी के लिए एक उपयुक्त लड़का नहीं हूँ। वह अपनी बेटी से भी यह बात कह चुकी हूँ, लेकिन मैं हैरान हूँ। वह कि...“मार्टिन ने मुस्कराकर अपना वाक्य अधूरा छोड़ दिया।”
“क्या हैरानी है?” कर्नल गुर्राया।
'इसका साफ़ मतलब है कि स्नेडरा मेरे बारे में अपनी माँ से विचार प्रकट कर चुकी है। यदि ऐसा न होता, तो उसकी माँ को इतनी अजीब बात कहने की ज़रूरत क्यों पेश आती?” मार्टिन ने छत को घूरते हुए उत्तर दिया, उसके होंठों पर अब तक मुस्कराहट थी।
“ख़ैर, मैं इस शाप का प्रभाव इस परिवार पर देखता चला आया हूँ। इसलिए मैं गंभीरता से सोच रहा हूँ कि तुम्हें इस लड़की से दूर रहने का निर्देश दे दूँ। मेरी यह बात हृदयंगम कर लो कि यह शादी हरगिज़ नहीं हो सकती।” यह कहते हुए कर्नल की त्योरियाँ चढ़ गईं।
“आपका मतलब है कि मैं स्नेडरा से बिलकुल संबंध विच्छेद कर लूँ?”
“मैं यह बात तुम्हारी इच्छा पर छोड़ रहा हूँ।” कर्नल ने गहरी गंभीरता से कहा, “मैं केवल यह चाहता हूँ कि इस लड़की के बारे में गंभीरता मत अपनाना, नहीं तो मैं बहुत नाराज़ हो जाऊँगा। इस संबंध में तुम्हें मेरी ओर से किसी प्रकार की सहायता की आशा नहीं रखनी चाहिए।”
मार्टिन ने एक लंबी साँस ली और कहा, “बहुत अच्छा, डैडी!”
“तुम अब जा सकते हो।” कर्नल ने कहा, “सावधान रहना!”
मार्टिन पुस्तकालय से बाहर निकला और कुछ देर तक चुपचाप खड़ा सोचता रहा। उसके बाद वह चिंतातुर अंदाज़ में अपने कमरे की ओर बढ़ गया। कुछ देर बाद उसने रिसीवर उठाया और स्नेडरा का नंबर मिलाया।
दूसरी ओर से स्नेडरा की माँ ने कॉल रिसीव की।
मार्टिन जल्दी से बोला, “क्या स्नेडरा बाहर गई हुई है, मिसेज़ मेक्स टेड?”
“मुझे खेद है कि तुम्हारा अनुमान ठीक है।” मिसेज़ मेक्स टेड ने बेहद रूखे स्वर में कहा और बातचीत का सिलसिला काट दिया। मार्टिन चुपचाप खड़ा फ़ोन को घूरता रहा। फिर उसने भी रिसीवर रख दिया। कुछ देर बाद उसने अपना हैट उठाया और तेज़ी से सीढ़ियाँ उतरता हुआ नीचे आया और स्नेडरा के घर की ओर चल दिया। वह इस मामले को साफ़ करना चाहता था। उसे विस्मय था कि इन बड़ों के दिमाग़ में न जाने कहाँ से वहम बैठ गया है!
अभी स्नेडरा के घर से आधे रास्ते में था कि रुक गया। सामने से तेज़-तेज़ चलती हुई एक लड़की आ रही थी। यह लड़की स्नेडरा ही थी। वह निकट आई तो सीधे उसकी बाँहों में समा गई। स्नेडरा ने अस्त-व्यस्त साँसों के बीच पूछा, “क्या अभी कुछ देर पहले फ़ोन पर तुम्हीं मम्मी से बातें कर रहे थे?”
“हाँ, मैंने ही फ़ोन किया था!”
“मेरा भी यही ख़याल था। मम्मी टाल रही थी। पर मेरा अनुमान था कि दूसरी ओर से तुम ही बोल रहे हो। मैं इस समय यही पता करने के लिए तुम्हारे घर जा रही थी।”
“सुनो स्नेडी!” मार्टिन ने प्रेम से कहा, “आख़िर तुम्हारी माँ को यह हरकत करने की क्या ज़रूरत थी? आख़िर मुझसे क्या ग़लती हुई है?”
“कम से कम मेरी जानकारी में तो ऐसी कोई बात नहीं है,” स्नेडरा ने कहा, “मेरा ख़याल है, यह सब उसी शाप का सिलसिला है। मम्मी को भी उसके बारे में अचानक कहीं से पता चला है। क्या तुम इस शाप के बारे में कुछ जानते हो?”
“हाँ, मुझे पता है,” मार्टिन ने कहा, “दुर्भाग्य से मैं अभी-अभी डैडी के साथ इसी विषय पर बातचीत करके आया हूँ, वह भी इस वहम के शिकार हैं। वह पुरातत्त्व विशेषज्ञ रह चुके हैं।”
“बिलकुल यही बात मेरी मम्मी भी कहती हैं,” स्नेडरा ने कहा, “वह रहस्यपूर्ण विद्याओं में रुचि रखती हैं। ज्योतिष विद्या और शुभ नक्षत्रों आदि पर उन्हें बहुत विश्वास है।”
“मेरा भी यही ख़याल है,” मार्टिन ने विवशता से कहा, “आओ, कहीं बैठकर चाय पिएँ।”
दोनों एक कैफ़े में जा बैठे। चाय की प्यालियों में चम्मच हिलाते हुए वे दोनों ग़हरी सोच में डूबे हुए थे।
“मुझे आशा है कि कम से कम तुम इस वहम को कोई महत्त्व नहीं दे रही हो।” कुछ देर बाद मार्टिन ने स्नेडरा को संबोधित करते हुए पूछा। स्नेडरा ने जल्दी से नज़र उठाकर मार्टिन की ओर देखा।
“मेरे बारे में यह ख़याल तुम्हारे मस्तिष्क में कैसे आया?” स्नेडरा ने रूखेपन से कहा, “मैं तो इन बातों को सरासर बकवास समझती हूँ।”
“ख़ैर!” मार्टिन ने एक लंबी साँस ली, “जहाँ तक मेरा ख़याल है, तुम्हारी माँ मुझे एक चंचल नवयुवक समझती हैं, ठीक है न?” स्नेडरा ने उसकी ओर देखा। उसकी आँखों में असीम प्रेम की भावनाएँ करवटें ले रही थीं।
“नहीं मार्टिन, मैंने इस बारे में कभी नहीं सोचा, बस कोई महत्त्वपूर्ण निश्चय करने से पहले तुम्हें चाहिए कि कोई कारनामा दिखाकर यह यक़ीन दिला दो कि तुम कोई नकारा लड़के नहीं हो।”
“ओह, तो मानो तुम मेरे बारे में कभी ग़लतफ़हमी का शिकार नहीं हुईं!” मार्टिन ने निश्चितता की साँस ली, “हमारे घर में तो मेरे डैडी मुझसे ऐसा व्यवहार करते हैं जैसे मैं उनका बेटा नहीं, बल्कि उनका कोई जूनियर अफ़सर हूँ, वह सदा हुक्म देने के आदी रहे हैं।
“क्या तुम्हारा अपना दिमाग़ काम नहीं करता?” स्नेडरा ने बुरा-सा मुँह बनाया।
मार्टिन ने सीधे स्नेडरा की आँखों में झाँका और उसकी नज़र कुछ देर तक वहीं जमी रही। “तुम ठीक कहती हो! मेरा अपना दिमाग़ मौजूद है। और मैं सदा उसका ही उपयोग करने का आदी रहा हूँ। मैं सोच रहा हूँ स्नेडी...कि क्या तुम मुझसे शादी करोगी?”
स्नेडरा ने आश्चर्य से उसकी ओर देखा। उसकी आँखें सामान्य से अधिक फैली हुई थीं, “यह इस बात पर निर्भर है मार्टिन कि क्या तुम सचमुच मुझसे शादी करना चाहते हो? कहीं ऐसा तो नहीं कि कर्नल और मेरी मम्मी की बात को ग़लत सिद्ध करने के लिए ही तुम शादी का पक्का इरादा कर बैठे हो?” स्नेडरा बोली।
“फ़िलहाल तो तुम इन दोनों ही बातों को सामने रख सकती हो, “मार्टिन ने मुस्कराकर कहा, “मेरी मुलाक़ात बहुत-सी लड़कियों से रही है, पर उनकी स्थिति मेरी दृष्टि में इतना महत्त्व नहीं रखती। ख़ैर, मैं तुमसे बहुत अधिक प्रभावित हूँ स्नेडी!”
यह कहकर मार्टिन कुछ देर चुपचाप सोचता रहा। फिर उसने कहा, “तुम शायद इस बात पर यक़ीन न करो, पर यह सत्य है, तुमसे शादी की प्रार्थना करने का विचार पहले भी कई बार मेरे मस्तिष्क में आ चुका है। मैंने अपने इस विचार को प्रकट नहीं किया, क्योंकि मैं फ़िलहाल स्वतंत्र जीवन व्यतीत करना चाहता था...ख़ैर, मुझे आशा है कि तुम मेरे दिमाग़ में यह विचार अधिक दृढ़ कर सकती हो।”
“यदि तुम मुझसे पूछो तो मैं तुमसे यह आशा कर रही हूँ कि तुम मेरे इरादे को दृढ़ बनाने में मेरी मदद करोगे।”
मार्टिन के जाते ही कर्नल भी सीधा स्नेडरा के घर पहुँचा। उसकी माँ ने कर्नल का गरिमापूर्वक स्वागत किया, वे दोनों बैठक में जा बैठे।
“मैंने आज लड़के को हतोत्साहित किया है!” कर्नल ने कहकहा मारकर कहा, “मुझे यक़ीन है कि वह अब तुम्हारे घर की ओर नहीं आएगा।”
“लेकिन कर्नल,” मिसेज़ मैक्स टेड ने गंभीरता से कहा, “हम पारिवारिक परंपराओं के विरुद्ध एक-दूसरे को चाहते हैं, और इस वहम को ग़लत सिद्ध करना चाहते हैं, जो एक अवधि से दोनों परिवारों में दीवार बना हुआ है। मेरा विचार है, हमें अब शादी करने में देर नहीं करनी चाहिए।”
“तुम्हारा विचार ठीक है। मैं कल ही एक दावत में शादी की घोषणा कर दूँगा।” कर्नल ने कहा और विजयपूर्ण अंदाज़ में बाईं मूँछ को बल देने लगा। उसने प्रेम से मिसेज़ मैक्स टेड का हाथ थाम लिया और मिसेज़ मैक्स टेड, जिसके पति का निधन हुए छह वर्ष हो गए थे, उसकी बाँहों में गिर गई।
martin siD ne apne pita ki study ke darvaze par dastak di. tatkal ek gurrahat ubhri aur uske pita ki avaz i, “andar aa jao!”
aam taur par martin apne pita ke aram ya adhyayan mein hastakshaep nahin karta tha. uska pita kitabon ka kiDa tha aur use ye baat bilkul pasand nahin thi ki koi use adhyayan ke samay pareshan kare, kintu aaj samasya dusri hi thi. colonel town siD ne naukar ko bhejkar use bulaya tha, kyonki wo usse kisi mahattvapurn mamle par batachit karna chahta tha.
“ao martin!” colonel siD ne kaha, “baith jao!” usne ek kursi ki or sanket kiya aur martin chupchap kursi par baithkar jij~naasu drishti se apne pita ki or dekhne laga. uske chehre se prakat hota tha ki wo is prakar bulaye jane par pareshan hai.
“kahiye daddy!” martin ne antat kaha.
martin soch raha tha ki koi vishesh baat avashy hai, jo uske pita ne use bulaya hai. wo abhi kisi nishkarsh par na pahunch saka tha ki colonel ki avaz uske kanon se takrai, “main tumse ek mahattvapurn mamle par batachit karna chahta hoon. ” martin ki bain ankh ki palak jij~naasu andaz mein kaman ka roop dharan kar gai. wo man hi man soch raha tha ki gat kai dinon ke antral mein usse aisi kaun si ghalati hui hai, jo is samay samne aane vali hai.
“tum in dinon sneDra meks teD se bahut milte rahe ho!” colonel ki avaz adhikarpurn thi.
“ji haan!. . . vastav men…” martin ne svikar kiya, par wo to ek theek thaak laDki hai!”
“theek thaak se tumhara kya matlab hai?” colonel ne puchha.
“mera matlab hai, wo achchhi laDki hai. wo maDling nahin karti, sho girl nahin hai. iske atirikt…is prakar ki koi any kharabi bhi usmen nahin hai. ”
“shatap!” colonel gurraya, “ye sab baten mujhe bhi pata hain ki wo aisi laDki nahin hai, kya main use ya uski maan ko achchhi tarah nahin janta? jo kuch main kahna chahta hoon, wo ye hai ki tum kuch samay se us laDki ke saath bahut adhik dikhai de rahe ho!”
“ji haan!” martin ne kaha, “main uske bahut samip raha hoon, par any bhi bahut si laDkiyan mere aas paas maujud hain daddy!”
“mujhe any laDkiyon mein koi dilchaspi nahin hai. ” colonel ka svar adhik kathor ho gaya, “main keval tumse ye pata karna chahta hoon ki kya tum sneDra se prem karte ho?”
“main is sambandh mein kuch nahin kah sakta!” martin ne guddi sahlai aur sir jhukakar kaha.
“kya wo tumse prem karti hai?” colonel ne pata karna chaha.
“usne ab tak to aisi koi baat nahin kahi hai. ”
“in sab baton ko mastishk se jhatak do. ” colonel ka mood bigaDne ki charam sima tak pahunch gaya, “kya tum donon mein chumban alingan hota raha hai ya is prakar ki any baten?”
“akhir in baton se aapka kya matlab hai? kya aap meri aur sneDra ki shadi karana chahte hain? main janta hoon ki wo ek achchhi laDki hai, iske atirikt wo ek unche parivar se sambandh rakhti hai aur. . . ”
“main tumhari shadi ke liye prayatn kar raha hoon. inke pratikul main ye paramarsh dena chahta hoon ki sneDra se shadi karna murkhata hai, pagalpan hai. ”
“vah kyon daddy?” martin ne vismay se pita ki or dekha.
“ek shaap ka chakkar hai!” colonel ne kaha.
“shaap?” martin ne vismay se palken jhapkain.
“aaj se do sau varsh poorv town siD parivar ka ek navyuvak sneDra ke parivar ki ek laDki ke prem mein phans gaya tha. unhonne sabhi ke virodh ke bavjud shadi kar li. baad mein sthiti kharab ho gai. laDke ne vish khakar atmahatya kar li thi. usne mirtyu shayya par ye shaap diya ki yadi hamare parivar ke kisi navyuvak ne sneDra parivar ki kisi laDki se shadi ki, to unka grihasth jivan katu ho jayega. is sambandh mein ek udaharn mrs maiks teD se mujhe mil chuka hai. ”
“dekhiye daddy!” martin haath uthakar bola, “main janta hoon ki kai varsh tak aap puratattv visheshaj~n rahe hain, par mujhe aasha hai ki aap is prakar ki ghalat dharnaon par vishvas nahin rakhte honge. kya main theek kah raha hoon daddy?”
“yadi tum chaho to ise vahm bhi kah sakte ho, par atit mein aisa ho chuka hai. wo laDka behad ashayavastha mein maut ka shikar hua tha. iske atirikt dulhin ek mahine ke andar andar mar gai thi. sambhvat use kisi ghoDe ne kuchal diya tha.
isliye main is mamle mein apni bhaunaun ko aspasht roop se prakat kar dena chahta hoon. ”
colonel ne gahri gambhirta se kaha.
aur ye bhavnayen kya hain daddy?”
“tumhen is laDki sneDra se milna julna chhoD dena chahiye. yadi tum use bahut adhik pasand karne lage, to sambhav hai, tumhare mastishk mein usse shadi karne ka unmaad sama jaye, aisa kisi bhi avastha mein nahin hona chahiye. main kathorta se is baat ka virodh karunga. ”
“lekin ye ek ajib baat hai daddy, ki sneDra ki maan ka khayal hai ki main uski beti ke liye ek upyukt laDka nahin hoon. wo apni beti se bhi ye baat kah chuki hoon, lekin main hairan hoon. wo ki. . . “martin ne muskrakar apna vaaky adhura chhoD diya. ”
“kya hairani hai?” colonel gurraya.
iska saaf matlab hai ki sneDra mere bare mein apni maan se vichar prakat kar chuki hai. yadi aisa na hota, to uski maan ko itni ajib baat kahne ki zarurat kyon pesh ati?” martin ne chhat ko ghurte hue uttar diya, uske honthon par ab tak muskrahat thi.
“khair, main is shaap ka prabhav is parivar par dekhta chala aaya hoon. isliye main gambhirta se soch raha hoon ki tumhein is laDki se door rahne ka nirdesh de doon. meri ye baat hridayangam kar lo ki ye shadi hargiz nahin ho sakti. ” ye kahte hue colonel ki tyoriyan chaDh gain.
“apka matlab hai ki main sneDra se bilkul sambandh vichchhed kar loon?”
“main ye baat tumhari ichha par chhoD raha hoon. ” colonel ne gahri gambhirta se kaha, “main keval ye chahta hoon ki is laDki ke bare mein gambhirta mat apnana, nahin to main bahut naraz ho jaunga. is sambandh mein tumhein meri or se kisi prakar ki sahayata ki aasha nahin rakhni chahiye. ”
martin ne ek lambi saans li aur kaha, “bahut achchha, daddy!”
“tum ab ja sakte ho. ” colonel ne kaha, “savdhan rahna!”
martin pustakalaya se bahar nikla aur kuch der tak chupchap khaDa sochta raha. uske baad wo chintatur andaz mein apne kamre ki or baDh gaya. kuch der baad usne receiver uthaya aur sneDra ka number milaya.
dusri or se sneDra ki maan ne call risiv ki.
martin jaldi se bola, “kya sneDra bahar gai hui hai, mrs meks teD?”
“mujhe khed hai ki tumhara anuman theek hai. ” mrs meks teD ne behad rukhe svar mein kaha aur batachit ka silsila kaat diya. martin chupchap khaDa phone ko ghurta raha. phir usne bhi receiver rakh diya. kuch der baad usne apna hat uthaya aur tezi se siDhiyan utarta hua niche aaya aur sneDra ke ghar ki or chal diya. wo is mamle ko saaf karna chahta tha. use vismay tha ki in baDon ke dimagh mein na jane kahan se vahm baith gaya hai!
abhi sneDra ke ghar se aadhe raste mein tha ki ruk gaya. samne se tez tez chalti hui ek laDki aa rahi thi. ye laDki sneDra hi thi. wo nikat i to sidhe uski banhon mein sama gai. sneDra ne ast vyast sanson ke beech puchha, “kya abhi kuch der pahle phone par tumhin mammy se baten kar rahe the?”
“haan, mainne hi phone kiya tha!”
“mera bhi yahi khayal tha. mammy taal rahi thi. par mera anuman tha ki dusri or se tum hi bol rahe ho. main is samay yahi pata karne ke liye tumhare ghar ja rahi thi. ”
“suno sneDi!” martin ne prem se kaha, “akhir tumhari maan ko ye harkat karne ki kya zarurat thee? akhir mujhse kya ghalati hui hai?”
“kam se kam meri jankari mein to aisi koi baat nahin hai,” sneDra ne kaha, “mera khayal hai, ye sab usi shaap ka silsila hai. mammy ko bhi uske bare mein achanak kahin se pata chala hai. kya tum is shaap ke bare mein kuch jante ho?”
“haan, mujhe pata hai,” martin ne kaha, “durbhagy se main abhi abhi daddy ke saath isi vishay par batachit karke aaya hoon, wo bhi is vahm ke shikar hain. wo puratattv visheshaj~n rah chuke hain. ”
“bilkul yahi baat meri mammy bhi kahti hain,” sneDra ne kaha, “vah rahasyapurn vidyaon mein ruchi rakhti hain. jyotish viddya aur shubh nakshatron aadi par unhen bahut vishvas hai. ”
“mera bhi yahi khayal hai,” martin ne vivashta se kaha, “ao, kahin baithkar chaay piyen. ”
donon ek cafe mein ja baithe. chaay ki pyaliyon mein chammach hilate hue ve donon ghahri soch mein Dube hue the.
“mujhe aasha hai ki kam se kam tum is vahm ko koi mahattv nahin de rahi ho. ” kuch der baad martin ne sneDra ko sambodhit karte hue puchha. sneDra ne jaldi se nazar uthakar martin ki or dekha.
“mere bare mein ye khayal tumhare mastishk mein kaise aya?” sneDra ne rukhepan se kaha, “main to in baton ko sarasar bakvas samajhti hoon. ”
“khair!” martin ne ek lambi saans li, “jahan tak mera khayal hai, tumhari maan mujhe ek chanchal navyuvak samajhti hain, theek hai n?” sneDra ne uski or dekha. uski ankhon mein asim prem ki bhavnayen karvaten le rahi theen.
“nahin martin, mainne is bare mein kabhi nahin socha, bus koi mahattvapurn nishchay karne se pahle tumhein chahiye ki koi karnama dikhakar ye yaqin dila do ki tum koi nakara laDke nahin ho. ”
“oh, to mano tum mere bare mein kabhi ghaltafahmi ka shikar nahin huin!” martin ne nishchitta ki saans li, “hamare ghar mein to mere daddy mujhse aisa vyvahar karte hain jaise main unka beta nahin, balki unka koi juniyar afsar hoon, wo sada hukm dene ke aadi rahe hain.
“kya tumhara apna dimagh kaam nahin karta?” sneDra ne bura sa munh banaya.
martin ne sidhe sneDra ki ankhon mein jhanka aur uski nazar kuch der tak vahin jami rahi. “tum theek kahti ho! mera apna dimagh maujud hai. aur main sada uska hi upyog karne ka aadi raha hoon. main soch raha hoon sneDi. . . ki kya tum mujhse shadi karogi?”
sneDra ne ashchary se uski or dekha. uski ankhen samany se adhik phaili hui theen, “yah is baat par nirbhar hai martin ki kya tum sachmuch mujhse shadi karna chahte ho? kahin aisa to nahin ki colonel aur meri mammy ki baat ko ghalat siddh karne ke liye hi tum shadi ka pakka irada kar baithe ho?” sneDra boli.
“filaha to tum in donon hi baton ko samne rakh sakti ho, “martin ne muskrakar kaha, “meri mulaqat bahut si laDkiyon se rahi hai, par unki sthiti meri drishti mein itna mahattv nahin rakhti. khair, main tumse bahut adhik prabhavit hoon sneDi!”
ye kahkar martin kuch der chupchap sochta raha. phir usne kaha, “tum shayad is baat par yaqin na karo, par ye saty hai, tumse shadi ki pararthna karne ka vichar pahle bhi kai baar mere mastishk mein aa chuka hai. mainne apne is vichar ko prakat nahin kiya, kyonki main filaha svatantr jivan vyatit karna chahta tha. . . khair, mujhe aasha hai ki tum mere dimagh mein ye vichar adhik driDh kar sakti ho. ”
“yadi tum mujhse puchho to main tumse ye aasha kar rahi hoon ki tum mere irade ko driDh banane mein meri madad karoge. ”
martin ke jate hi colonel bhi sidha sneDra ke ghar pahuncha. uski maan ne colonel ka garimapurvak svagat kiya, ve donon baithak mein ja baithe.
“mainne aaj laDke ko hatotsahit kiya hai!” colonel ne kahakha markar kaha, “mujhe yaqin hai ki wo ab tumhare ghar ki or nahin ayega. ”
“lekin colonel,” mrs maiks teD ne gambhirta se kaha, “ham parivarik parampraon ke viruddh ek dusre ko chahte hain, aur is vahm ko ghalat siddh karna chahte hain, jo ek avadhi se donon parivaron mein divar bana hua hai. mera vichar hai, hamein ab shadi karne mein der nahin karni chahiye. ”
“tumhara vichar theek hai. main kal hi ek davat mein shadi ki ghoshanaa kar dunga. ” colonel ne kaha aur vijaypurn andaz mein bain moonchh ko bal dene laga. usne prem se mrs maiks teD ka haath thaam liya aur mrs maiks teD, jiske pati ka nidhan hue chhah varsh ho gaye the, uski banhon mein gir gai.
martin siD ne apne pita ki study ke darvaze par dastak di. tatkal ek gurrahat ubhri aur uske pita ki avaz i, “andar aa jao!”
aam taur par martin apne pita ke aram ya adhyayan mein hastakshaep nahin karta tha. uska pita kitabon ka kiDa tha aur use ye baat bilkul pasand nahin thi ki koi use adhyayan ke samay pareshan kare, kintu aaj samasya dusri hi thi. colonel town siD ne naukar ko bhejkar use bulaya tha, kyonki wo usse kisi mahattvapurn mamle par batachit karna chahta tha.
“ao martin!” colonel siD ne kaha, “baith jao!” usne ek kursi ki or sanket kiya aur martin chupchap kursi par baithkar jij~naasu drishti se apne pita ki or dekhne laga. uske chehre se prakat hota tha ki wo is prakar bulaye jane par pareshan hai.
“kahiye daddy!” martin ne antat kaha.
martin soch raha tha ki koi vishesh baat avashy hai, jo uske pita ne use bulaya hai. wo abhi kisi nishkarsh par na pahunch saka tha ki colonel ki avaz uske kanon se takrai, “main tumse ek mahattvapurn mamle par batachit karna chahta hoon. ” martin ki bain ankh ki palak jij~naasu andaz mein kaman ka roop dharan kar gai. wo man hi man soch raha tha ki gat kai dinon ke antral mein usse aisi kaun si ghalati hui hai, jo is samay samne aane vali hai.
“tum in dinon sneDra meks teD se bahut milte rahe ho!” colonel ki avaz adhikarpurn thi.
“ji haan!. . . vastav men…” martin ne svikar kiya, par wo to ek theek thaak laDki hai!”
“theek thaak se tumhara kya matlab hai?” colonel ne puchha.
“mera matlab hai, wo achchhi laDki hai. wo maDling nahin karti, sho girl nahin hai. iske atirikt…is prakar ki koi any kharabi bhi usmen nahin hai. ”
“shatap!” colonel gurraya, “ye sab baten mujhe bhi pata hain ki wo aisi laDki nahin hai, kya main use ya uski maan ko achchhi tarah nahin janta? jo kuch main kahna chahta hoon, wo ye hai ki tum kuch samay se us laDki ke saath bahut adhik dikhai de rahe ho!”
“ji haan!” martin ne kaha, “main uske bahut samip raha hoon, par any bhi bahut si laDkiyan mere aas paas maujud hain daddy!”
“mujhe any laDkiyon mein koi dilchaspi nahin hai. ” colonel ka svar adhik kathor ho gaya, “main keval tumse ye pata karna chahta hoon ki kya tum sneDra se prem karte ho?”
“main is sambandh mein kuch nahin kah sakta!” martin ne guddi sahlai aur sir jhukakar kaha.
“kya wo tumse prem karti hai?” colonel ne pata karna chaha.
“usne ab tak to aisi koi baat nahin kahi hai. ”
“in sab baton ko mastishk se jhatak do. ” colonel ka mood bigaDne ki charam sima tak pahunch gaya, “kya tum donon mein chumban alingan hota raha hai ya is prakar ki any baten?”
“akhir in baton se aapka kya matlab hai? kya aap meri aur sneDra ki shadi karana chahte hain? main janta hoon ki wo ek achchhi laDki hai, iske atirikt wo ek unche parivar se sambandh rakhti hai aur. . . ”
“main tumhari shadi ke liye prayatn kar raha hoon. inke pratikul main ye paramarsh dena chahta hoon ki sneDra se shadi karna murkhata hai, pagalpan hai. ”
“vah kyon daddy?” martin ne vismay se pita ki or dekha.
“ek shaap ka chakkar hai!” colonel ne kaha.
“shaap?” martin ne vismay se palken jhapkain.
“aaj se do sau varsh poorv town siD parivar ka ek navyuvak sneDra ke parivar ki ek laDki ke prem mein phans gaya tha. unhonne sabhi ke virodh ke bavjud shadi kar li. baad mein sthiti kharab ho gai. laDke ne vish khakar atmahatya kar li thi. usne mirtyu shayya par ye shaap diya ki yadi hamare parivar ke kisi navyuvak ne sneDra parivar ki kisi laDki se shadi ki, to unka grihasth jivan katu ho jayega. is sambandh mein ek udaharn mrs maiks teD se mujhe mil chuka hai. ”
“dekhiye daddy!” martin haath uthakar bola, “main janta hoon ki kai varsh tak aap puratattv visheshaj~n rahe hain, par mujhe aasha hai ki aap is prakar ki ghalat dharnaon par vishvas nahin rakhte honge. kya main theek kah raha hoon daddy?”
“yadi tum chaho to ise vahm bhi kah sakte ho, par atit mein aisa ho chuka hai. wo laDka behad ashayavastha mein maut ka shikar hua tha. iske atirikt dulhin ek mahine ke andar andar mar gai thi. sambhvat use kisi ghoDe ne kuchal diya tha.
isliye main is mamle mein apni bhaunaun ko aspasht roop se prakat kar dena chahta hoon. ”
colonel ne gahri gambhirta se kaha.
aur ye bhavnayen kya hain daddy?”
“tumhen is laDki sneDra se milna julna chhoD dena chahiye. yadi tum use bahut adhik pasand karne lage, to sambhav hai, tumhare mastishk mein usse shadi karne ka unmaad sama jaye, aisa kisi bhi avastha mein nahin hona chahiye. main kathorta se is baat ka virodh karunga. ”
“lekin ye ek ajib baat hai daddy, ki sneDra ki maan ka khayal hai ki main uski beti ke liye ek upyukt laDka nahin hoon. wo apni beti se bhi ye baat kah chuki hoon, lekin main hairan hoon. wo ki. . . “martin ne muskrakar apna vaaky adhura chhoD diya. ”
“kya hairani hai?” colonel gurraya.
iska saaf matlab hai ki sneDra mere bare mein apni maan se vichar prakat kar chuki hai. yadi aisa na hota, to uski maan ko itni ajib baat kahne ki zarurat kyon pesh ati?” martin ne chhat ko ghurte hue uttar diya, uske honthon par ab tak muskrahat thi.
“khair, main is shaap ka prabhav is parivar par dekhta chala aaya hoon. isliye main gambhirta se soch raha hoon ki tumhein is laDki se door rahne ka nirdesh de doon. meri ye baat hridayangam kar lo ki ye shadi hargiz nahin ho sakti. ” ye kahte hue colonel ki tyoriyan chaDh gain.
“apka matlab hai ki main sneDra se bilkul sambandh vichchhed kar loon?”
“main ye baat tumhari ichha par chhoD raha hoon. ” colonel ne gahri gambhirta se kaha, “main keval ye chahta hoon ki is laDki ke bare mein gambhirta mat apnana, nahin to main bahut naraz ho jaunga. is sambandh mein tumhein meri or se kisi prakar ki sahayata ki aasha nahin rakhni chahiye. ”
martin ne ek lambi saans li aur kaha, “bahut achchha, daddy!”
“tum ab ja sakte ho. ” colonel ne kaha, “savdhan rahna!”
martin pustakalaya se bahar nikla aur kuch der tak chupchap khaDa sochta raha. uske baad wo chintatur andaz mein apne kamre ki or baDh gaya. kuch der baad usne receiver uthaya aur sneDra ka number milaya.
dusri or se sneDra ki maan ne call risiv ki.
martin jaldi se bola, “kya sneDra bahar gai hui hai, mrs meks teD?”
“mujhe khed hai ki tumhara anuman theek hai. ” mrs meks teD ne behad rukhe svar mein kaha aur batachit ka silsila kaat diya. martin chupchap khaDa phone ko ghurta raha. phir usne bhi receiver rakh diya. kuch der baad usne apna hat uthaya aur tezi se siDhiyan utarta hua niche aaya aur sneDra ke ghar ki or chal diya. wo is mamle ko saaf karna chahta tha. use vismay tha ki in baDon ke dimagh mein na jane kahan se vahm baith gaya hai!
abhi sneDra ke ghar se aadhe raste mein tha ki ruk gaya. samne se tez tez chalti hui ek laDki aa rahi thi. ye laDki sneDra hi thi. wo nikat i to sidhe uski banhon mein sama gai. sneDra ne ast vyast sanson ke beech puchha, “kya abhi kuch der pahle phone par tumhin mammy se baten kar rahe the?”
“haan, mainne hi phone kiya tha!”
“mera bhi yahi khayal tha. mammy taal rahi thi. par mera anuman tha ki dusri or se tum hi bol rahe ho. main is samay yahi pata karne ke liye tumhare ghar ja rahi thi. ”
“suno sneDi!” martin ne prem se kaha, “akhir tumhari maan ko ye harkat karne ki kya zarurat thee? akhir mujhse kya ghalati hui hai?”
“kam se kam meri jankari mein to aisi koi baat nahin hai,” sneDra ne kaha, “mera khayal hai, ye sab usi shaap ka silsila hai. mammy ko bhi uske bare mein achanak kahin se pata chala hai. kya tum is shaap ke bare mein kuch jante ho?”
“haan, mujhe pata hai,” martin ne kaha, “durbhagy se main abhi abhi daddy ke saath isi vishay par batachit karke aaya hoon, wo bhi is vahm ke shikar hain. wo puratattv visheshaj~n rah chuke hain. ”
“bilkul yahi baat meri mammy bhi kahti hain,” sneDra ne kaha, “vah rahasyapurn vidyaon mein ruchi rakhti hain. jyotish viddya aur shubh nakshatron aadi par unhen bahut vishvas hai. ”
“mera bhi yahi khayal hai,” martin ne vivashta se kaha, “ao, kahin baithkar chaay piyen. ”
donon ek cafe mein ja baithe. chaay ki pyaliyon mein chammach hilate hue ve donon ghahri soch mein Dube hue the.
“mujhe aasha hai ki kam se kam tum is vahm ko koi mahattv nahin de rahi ho. ” kuch der baad martin ne sneDra ko sambodhit karte hue puchha. sneDra ne jaldi se nazar uthakar martin ki or dekha.
“mere bare mein ye khayal tumhare mastishk mein kaise aya?” sneDra ne rukhepan se kaha, “main to in baton ko sarasar bakvas samajhti hoon. ”
“khair!” martin ne ek lambi saans li, “jahan tak mera khayal hai, tumhari maan mujhe ek chanchal navyuvak samajhti hain, theek hai n?” sneDra ne uski or dekha. uski ankhon mein asim prem ki bhavnayen karvaten le rahi theen.
“nahin martin, mainne is bare mein kabhi nahin socha, bus koi mahattvapurn nishchay karne se pahle tumhein chahiye ki koi karnama dikhakar ye yaqin dila do ki tum koi nakara laDke nahin ho. ”
“oh, to mano tum mere bare mein kabhi ghaltafahmi ka shikar nahin huin!” martin ne nishchitta ki saans li, “hamare ghar mein to mere daddy mujhse aisa vyvahar karte hain jaise main unka beta nahin, balki unka koi juniyar afsar hoon, wo sada hukm dene ke aadi rahe hain.
“kya tumhara apna dimagh kaam nahin karta?” sneDra ne bura sa munh banaya.
martin ne sidhe sneDra ki ankhon mein jhanka aur uski nazar kuch der tak vahin jami rahi. “tum theek kahti ho! mera apna dimagh maujud hai. aur main sada uska hi upyog karne ka aadi raha hoon. main soch raha hoon sneDi. . . ki kya tum mujhse shadi karogi?”
sneDra ne ashchary se uski or dekha. uski ankhen samany se adhik phaili hui theen, “yah is baat par nirbhar hai martin ki kya tum sachmuch mujhse shadi karna chahte ho? kahin aisa to nahin ki colonel aur meri mammy ki baat ko ghalat siddh karne ke liye hi tum shadi ka pakka irada kar baithe ho?” sneDra boli.
“filaha to tum in donon hi baton ko samne rakh sakti ho, “martin ne muskrakar kaha, “meri mulaqat bahut si laDkiyon se rahi hai, par unki sthiti meri drishti mein itna mahattv nahin rakhti. khair, main tumse bahut adhik prabhavit hoon sneDi!”
ye kahkar martin kuch der chupchap sochta raha. phir usne kaha, “tum shayad is baat par yaqin na karo, par ye saty hai, tumse shadi ki pararthna karne ka vichar pahle bhi kai baar mere mastishk mein aa chuka hai. mainne apne is vichar ko prakat nahin kiya, kyonki main filaha svatantr jivan vyatit karna chahta tha. . . khair, mujhe aasha hai ki tum mere dimagh mein ye vichar adhik driDh kar sakti ho. ”
“yadi tum mujhse puchho to main tumse ye aasha kar rahi hoon ki tum mere irade ko driDh banane mein meri madad karoge. ”
martin ke jate hi colonel bhi sidha sneDra ke ghar pahuncha. uski maan ne colonel ka garimapurvak svagat kiya, ve donon baithak mein ja baithe.
“mainne aaj laDke ko hatotsahit kiya hai!” colonel ne kahakha markar kaha, “mujhe yaqin hai ki wo ab tumhare ghar ki or nahin ayega. ”
“lekin colonel,” mrs maiks teD ne gambhirta se kaha, “ham parivarik parampraon ke viruddh ek dusre ko chahte hain, aur is vahm ko ghalat siddh karna chahte hain, jo ek avadhi se donon parivaron mein divar bana hua hai. mera vichar hai, hamein ab shadi karne mein der nahin karni chahiye. ”
“tumhara vichar theek hai. main kal hi ek davat mein shadi ki ghoshanaa kar dunga. ” colonel ne kaha aur vijaypurn andaz mein bain moonchh ko bal dene laga. usne prem se mrs maiks teD ka haath thaam liya aur mrs maiks teD, jiske pati ka nidhan hue chhah varsh ho gaye the, uski banhon mein gir gai.
स्रोत :
पुस्तक : नोबेल पुरस्कार विजेताओं की 51 कहानियाँ (पृष्ठ 153-159)
संपादक : सुरेन्द्र तिवारी
रचनाकार : हरमन हेस
प्रकाशन : आर्य प्रकाशन मंडल, सरस्वती भण्डार, दिल्ली
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