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गवर्नेस

gavarnes

स्टीफन ज़्वीग

स्टीफन ज़्वीग

गवर्नेस

स्टीफन ज़्वीग

और अधिकस्टीफन ज़्वीग

    दोनों बच्चियाँ अपने कमरे में अकेली थीं। बत्तियाँ बुझा दी गई थीं। चारों ओर अँधेरा था सिवाए धुँधली रोशनी के जो उनके बिस्तरों में से टिमटिमा रही थी। वे इतने आहिस्ता से साँस ले रही थीं, जैसे लगे कि वे सो रही हैं।

    “सुनो,” बिस्तर पर से एक हल्की फुसफुसाहट भरी आवाज़ आई। यह बारह बरस की बच्ची थी।

    “क्या बात है” उसकी बहन ने पूछा जो उससे एक बरस बड़ी थी।

    “मैं बहुत ख़ुश हूँ कि तुम अभी तक जाग रही हो। मुझे तुमसे कुछ कहना है।”

    उसने कुछ जवाब नहीं दिया, पर दूसरे बिस्तरे पर थोड़ी हलचल ज़रूर हुई। बड़ी बच्ची उठकर बैठ गई थी और धुँधली रोशनी में उसकी आँखें चमक रही थीं।

    “मैं तुमसे यह कहना चाहती थी, पर पहले बताओ कि तुमने मिस मान में इन दिनों आए बदलाव पर ग़ौर किया है?”

    “हाँ,” पल भर की चुप्पी के बाद दूसरी बच्ची बोली। “कुछ बात तो ज़रूर है, पर मैं नहीं जानती कि क्या? अब वह पहले की तरह सख़्ती नहीं बरतती। पिछले दो दिनों से मैंने अपनी पढ़ाई नहीं की और उसने मुझे ज़रा भी नहीं डाँटा।

    मैं नहीं जानती उसे क्या हुआ है, पर इतना ज़रूर है कि वह अब हमारी फ़िक्र नहीं करती। हमेशा खोई-खोई रहती है, पहले की तरह वह हमारे साथ खेलती भी नहीं है।”

    “मेरे ख़याल से वह दुखी है, पर ज़ाहिर नहीं करना चाहती। अब वह पिआनो भी नहीं बजाती।” पल भर चुप्पी रही फिर बड़ी लड़की ने पहल की—

    “तुम कह रही थी कि तुम्हें मुझसे कुछ बात करनी है।”

    “हाँ, पर तुम किसी को बताना नहीं, माँ या अपनी दोस्त लॉटी को भी नहीं।”

    “अरे बाबा, नहीं कहूँगी,” दूसरी कुछ उकताकर बोली, “अब बोलो भी।”

    अच्छा सुनो, जब हम सोने के लिए अपने कमरे में आए तो अचानक मुझे याद आया कि मैं मिस मान को शुभरात्रि कहना भूल गई थी। सो बग़ैर जूते पहने पंजों के बल मैं धीमे-धीमे उसके कमरे तक गई, ताकि उसे चौंका सकूँ। मैंने आहिस्ता से उसका दरवाज़ा खोला। पल भर के लिए मुझे लगा कि शायद वह कमरे में नहीं है। बत्ती जल रही थी। मुझे वह कहीं दिखाई नहीं दी, फिर अचानक मैं चौंक पड़ी। मुझे किसी के रोने की आवाज़ सुनाई दी। मैंने देखा वह बिस्तरे में औंधी लेटी हुई थी, सिर तकिए में धँसा रखा था। वह ज़ोर-ज़ोर से सिसकियाँ भर रही थी। मुझे बड़ा अजीब लगा। उसने मुझे नहीं देखा। मैं जैसे गई थी उसी तरह पंजों के बल बाहर गई। मैंने कमरे का दरवाज़ा भेड़ दिया। कुछ पल कमरे के बाहर खड़ी रही। उसकी सिसकियों की आवाज़ दरवाज़े से बाहर तक सुनाई दे रही थी। फिर मैं लौट आई।”

    पल भर ख़ामोशी रही। दोनों में से कोई नहीं बोला। बड़ी लड़की ने एक गहरी साँस ली और बोली—“बेचारी मिस मान!” फिर चुप्पी छा गई।

    “ऐसी क्या बात हो सकती है, वह रो क्यों रही थी?” छोटी लड़की ने बात फिर शुरू की। “हाल में उसका किसी के साथ कोई झगड़ा भी नहीं हुआ है। माँ भी अब उसे उतना डाँटती-फटकारती नहीं है, जैसे अक्सर किया करती थी। यक़ीनन हम उसकी परेशानी का सबब नहीं हो सकते। फिर ऐसी किस बात ने उसे रोने पर मजबूर कर दिया?”

    “मेरे ख़याल से मैं अंदाज़ा लगा सकती हूँ” बड़ी लड़की बोली।

    “क्या बात हो सकती है?”

    उसने जवाब देने में काफ़ी देर की, पर फिर तफ़सील से बताया—

    “मेरे ख़याल से उसे किसी से प्रेम है।”

    “प्रेम?” छोटी लड़की ने चौंककर पूछा। “मगर किससे?”

    “क्या तुमने ग़ौर नहीं किया?”

    “तुम्हारे ख़याल से ओटो तो नहीं?”

    “बेशक वही! वह भी उससे प्यार करता है। पिछले तीन बरसों से वह हमारे साथ रह रहा है, पर पहले कभी हमारे साथ सैर के लिए नहीं आता था। मगर अब पिछले दो-तीन महीने से एक भी दिन नहीं गुज़रा जब वह हमारे साथ आया हो। मिस मान के आने से पहले तक उसने हमसे कभी बात तक नहीं की थी, पर अब दिन भर हमारे साथ चुहलबाज़ी करता रहता है। अब जब भी हम बाहर निकलते हैं, बग़ीचे में या सैर पर या कहीं और तो वह हमसे टकरा ही जाता है, ख़ासकर जहाँ मिस मान हमें ले जाती हैं। तुमने इस पर यक़ीनन ग़ौर किया होगा?”

    “हाँ मैंने ग़ौर किया है।” छोटी बोली, “पर मैं सोच रही थी...”

    उसने वाक्य पूरा नहीं किया।

    “हालाँकि मैं बात को तूल नहीं देना चाहती, पर मुझे लगता है कि वह उससे मिलने के लिए हमें बहाने की तरह इस्तेमाल कर रहा है।”

    देर तक ख़ामोशी रही। दोनों बहनें सोच-विचार करने लगीं। फिर छोटी ही ने बात शुरू की।

    “यदि यह बात है तो वह रो क्यों रही थी? वह उसे इतना पसंद करता है। मुझे तो हमेशा लगता रहा है कि प्रेम में पड़ना काफ़ी सुखद होता है।”

    “मैं भी ऐसा ही सोचती हूँ।” बड़ी ने खोए-खोए अंदाज़ में कहा। “पता नहीं फिर क्या बात है?”

    “बेचारी मिस मान!” एक बार फिर उनींदी-सी आवाज़ आई।

    उस रात उनकी बातचीत यहीं पर ख़त्म हो गई। सुबह हालाँकि दोबारा उन्होंने इस मसले को नहीं उठाया, पर दोनों बख़ूबी जानती थीं कि दूसरी के दिमाग़ में क्या चल रहा है। ऐसा नहीं था कि उन्होंने एक-दूसरे को अर्थभरी नज़रों से देखा हो, यदा-कदा उनकी निगाहें गवर्नेस पर भी टिक जाती थीं। भोजन के वक़्त उन्होंने चचेरे भाई ओटो को यूँ नज़रअंदाज़ किया, मानों वह कोई अजनबी हो। उससे कोई बात नहीं की पर चोरी-छिपे उसका जाएज़ा लेती रहीं। वे जानना चाहती थीं कि मिस मान के साथ उसकी कोई अंदरूनी साँठ-गाँठ है या नहीं? खेलकूद में भी उसका मन नहीं लग रहा था। उन पर बस एक ही धुन सवार थी कि इस रहस्य पर से परदा कैसे उठे? शाम को बड़े अनमनेपन से एक बहन ने दूसरी से पूछा—

    “क्या तुमने आज कुछ ग़ौर किया?”

    “नहीं” बहन ने संक्षिप्त-सा जवाब दिया। इस बारे में बातचीत करने से उन्हें डर लग रहा था। इस तरह कई दिनों तक पहेली बनी रही। दोनों लड़कियाँ चुपचाप हर चीज़ पर नज़र रखतीं। उनके दिमाग़ों में खलबली मची रहती। हर वक़्त बस एक ही ख़याल उन पर हावी रहता कि इस ख़ूबसूरत पहेली को सुलझाएँ तो कैसे?

    रात को खाने के वक़्त छोटी लड़की ने साफ़ देखा गवर्नेस ने ओटो को हल्का-सा इशारा किया। ओटो ने जवाब में गर्दन हिलाई। उत्तेजना के मारे मेज़ के नीचे से उसने अपनी बहन को हल्की-सी लात मारी। बड़ी ने सवालिया नज़रों से छोटी को देखा। जवाब में उसने भी अर्थभरी निगाहें उस पर डालीं। उसके बाद खाने के पूरे वक़्त दोनों बड़ी बेचैन रहीं। खाना ख़त्म कर गवर्नेस ने बच्चियों से कहा—

    “स्टडी रूम में जाकर कुछ काम करो। मेरा सिर फट रहा है, मैं कुछ देर लेटना चाहती हूँ।”

    एकांत मिलते ही छोटी फट पड़ी—

    “तुम देखो, ओटो अब कमरे में जाएगा।”

    “हाँ, मैं जानती हूँ इसलिए उसने हमें यहाँ भेजा है।”

    “हमें दरवाज़े के बाहर से सुनना चाहिए।”

    “पर यदि किसी ने देख लिया तो...”

    “कौन?”

    “माँ।”

    “हाँ, वह तो बहुत बुरा होगा,” छोटी ने घबराकर कहा।

    “तो ठीक है, मैं सुनूँगी और तुम नज़र रखना कि कोई तो नहीं रहा।”

    छोटी ने मुँह फुलाकर कहा, “पर फिर तुम मुझे सब कुछ नहीं बताओगी।”

    “डरो नहीं! मैं सब बताऊँगी”

    “मेरी क़सम?”

    “तेरी क़सम, जब कोई आता दिखे तो तुम खाँसना।”

    वे गलियारे में इंतज़ार करने लगीं। उनके दिल उत्तेजना से धड़क रहे थे। जाने क्या होगा? उन्हें पदचाप सुनाई दी। वे दोनों अँधेरे स्टडी-रूम में छुपकर खड़ी हो गईं। हाँ, यह ओटो था। वह मिस मान के कमरे में गया और दरवाज़ा बंद कर लिया। बड़ी लड़की अपनी जगह पर जा पहुँची और की-होल से कान लगाकर सुनने लगी। उसने साँसें थाम रखी थीं। छोटी उसे ईर्ष्या से देखने लगी। जिज्ञासा से वह बेताब हो रही थी, वह भी दरवाज़े के निकट जा पहुँची, पर बड़ी बहन ने उसे धक्का देकर इशारा किया कि जाकर गलियारे के छोर पर निगरानी रखे। इसी तरह कई मिनट गुज़र गए। छोटी को तो पल-पल पहाड़-सा जान पड़ रहा था। उसकी बेचैनी का पारावार नहीं था। आँसुओं को वह बमुश्किल रोक पा रही थी क्योंकि उसकी बहन सब कुछ सुन रही थी। अचानक एक आवाज़ से वह चौंक उठी और खाँसी। दोनों लड़कियाँ तेज़ी से अपने स्टडी-रूम में घुस गईं। कुछ पल साँस ठीक करने के लिए वे चुप रहीं। फिर छोटी ने बेसब्र हो पूछा—

    “अब ज़रा जल्दी से मुझे सब बताओ।”

    बड़ी बहन दुविधा में पड़ गई। कुछ इस तरह बड़बड़ाई मानो ख़ुद से ही बतिया रही हो।

    “मुझे समझ नहीं रहा।”

    “क्या?”

    “यह कितनी अजीब बात है।”

    “क्या? अरे बोलो भी।” दूसरी कुछ ग़ुस्से में फट पड़ी। बड़ी ने फिर बोलने की कोशिश की। “यह वाक़ई आश्चर्यजनक था। मैं जैसा सोच रही थी उससे एकदम अलग। मेरे ख़्याल से जब वह उसके कमरे में गया तो उसने उसे बांहों में भर लेना चाहा या चूमना चाहा, मगर मिस मान ने रोक दिया और बोली, “नहीं अभी नहीं। मैं तुमसे एक बहुत ज़रूरी बात करना चाहती हूँ।”

    “मैं ठीक से देख नहीं पा रही थी, क्योंकि चाबी बीच में रही थी, पर मैं अच्छी तरह सब सुन रही थी।”

    “क्या बात है?” ओटो ने पूछा। उसका स्वर वाक़ई अलग था। मैंने उसे पहले कभी इस तरह बोलते नहीं सुना है। तुम जानती हो वह कैसे बोलता है। ऊँचा और रोब से, मगर इस बार यक़ीन है वह घबराया हुआ था। मिस मान समझ गई होगी कि वह उसे फुसलाना चाहता है, क्योंकि वह बस इतना ही बोली—“मुझे लगता है कि तुम अच्छी तरह जानते हो।”

    “नहीं, क़तई नहीं।”

    “यदि ऐसा है तो,” वह बेहद उदास स्वर में बोली, “क्यों तुमने मुझसे किनारा कर लिया है? हफ़्ते भर से कोई बात तक नहीं की। क्यों मुझसे हर वक़्त कन्नी काटते फिरते हो; अब तुम उन बच्चियों के पास भी नहीं आते, बग़ीचे में भी मिलने नहीं आते। क्या अचानक तुमने मेरा ख़्याल करना छोड़ दिया है? ओह! तुम अच्छी तरह जानते हो कि तुम ऐसा क्यों कर रहे हो?”

    थोड़ी देर चुप्पी रही, फिर वह बोला—“तुम जानती हो इम्तहान नज़दीक रहे हैं। मुझे अपनी पढ़ाई को छोड़ किसी और चीज़ के लिए वक़्त नहीं मिलता, मैं क्या करूँ?”

    वह रोने लगी और सुबकते हुए बहुत आहिस्ता से उससे पूछा, ‘ओटो, सच-सच बताओ मैंने ऐसा क्या किया है कि तुम मेरे साथ इस तरह बर्ताव कर रहे हो? मैंने तुम पर कोई ज़ोर-ज़बर्दस्ती नहीं की, कोई हक़ नहीं जताया, पर क्या हमें खुलकर बात नहीं कर लेनी चाहिए। तुम्हारे हाव-भाव से साफ़ दिख रहा है कि सब जानते हुए भी तुम अनजान बन रहे हो”... गवर्नेस काँपने लगी। वाक्य भी पूरा नहीं कर पाई। ओटो थोड़ा क़रीब आया और पूछा...

    “क्या जानता हूँ?”

    “हमारे बच्चे के बारे में”

    “बच्चा, यह कैसे मुमकिन है?” छोटी बहन बीच में ही बोल पड़ी।

    “पर उसने तो यही कहा।”

    “हो सकता है तुमने ग़लत सुना हो।”

    “नहीं, मुझे पूरा यक़ीन है। ओटो ने दोहराया भी कि हमारा बच्चा?”

    “थोड़ी देर बाद मिस मान ने पूछा, अब हमें क्या करना चाहिए? ओटो ख़ामोश रहा। उसी वक़्त तुम खाँसी और मुझे वहाँ से भागना पड़ा।

    छोटी काफ़ी डरी हुई और हैरान थी, “पर उसका बच्चा कैसे हो सकता है और बच्चा है कहाँ?”

    “मेरी समझ में भी उतना ही रहा है, जितना तुम्हें रहा है।”

    “शायद उसके घर पर होगा। माँ उसे यहाँ नहीं लाने देती होगी। यक़ीनन यही वजह है कि वह इतनी दुखी है।”

    “ओह पर यह कैसे मुमकिन है, तब तो वह ओटो को जानती तक नहीं थी।”

    वे असहाय हो सोचने लगीं। छोटी लड़की फिर बोली,

    “बच्चा, यह कैसे मुमकिन है? उसका तो विवाह भी नहीं हुआ है। केवल विवाहित लोगों के बच्चे होते हैं।”

    “बेवकूफ़ मत बनो। उसने ओटो से कब विवाह किया?”

    “तो फिर?

    वे एक-दूसरे को ताकने लगीं।

    “बेचारी मिस मान” उनमें से एक दुखी होकर बोली।

    बार-बार इसी जुमले को बोलकर वे करुणा व्यक्त करतीं। पर हर बार उनकी जिज्ञासा और प्रबल हो उठती।

    “तुम्हें क्या लगता है वह बच्चा लड़का होगा या लड़की?”

    “मैं भला कैसे बता सकती हूँ?”

    “यदि मैं होशियारी से उससे पता लगाऊँ तो कैसा रहेगा?”

    “ओ, चुप भी रहो।”

    “क्यों नहीं? वह हमारे साथ कितना अच्छा बर्ताव करती है।”

    ‘‘इससे कोई फ़ायदा नहीं होगा। वे इस तरह की बातें हमारे साथ नहीं करेंगे। जब भी वे इस तरह की बातें करते हैं और हम भूले-भटके वहाँ पहुँच जाएँ तो एकाएक चुप हो जाते हैं जैसे हम कोई दूध पीते बच्चे हों—हालाँकि मैं तेरह की हो चुकी हूँ। इसलिए इस बारे में उससे पूछना बेकार है वह हमें टाल देगी?”

    “पर मैं जानना चाहती हूँ।”

    “मुझे ओटो के रवैये पर वाक़ई हैरानी हो रही है। वह ऐसे जताने लगा, जैसे उसे कुछ पता ही नहीं है। यह कैसे मुमकिन है कि किसी का बच्चा हो और उसे ख़बर तक हो। जैसे सबको पता होता है कि उनके माता-पिता हैं, वैसे ही उनका बच्चा है, यह भी सबको पता होता है।”

    “ओह वह यूँ ही बन रहा था। वह अक्सर कैसे मज़ाक करता रहता है?”

    “पर ऐसी बात पर कोई मज़ाक कैसे कर सकता है? वह तो तब करता है, जब हमें चिढ़ाना होता है।”

    उनकी बातचीत में रुकावट गई, गवर्नेस गई थी। उन्होंने ऐसे जताया जैसे किसी काम में व्यस्त हों। मगर उनकी नज़रों से यह छिपा रह सका कि उसकी आँखें सुर्ख़ थीं और गहरे अवसाद से भरी थीं। वे एकदम शांत बैठी रहीं। उनके दिल में उसके प्रति अलग क़िस्म की करुणा उमड़ रही थी। वे इसी ख़याल में खोई रहीं कि उसका एक बच्चा है, इसलिए वह इतनी उदास है। पर अनजाने ही यह उदासी आहिस्ता-आहिस्ता उन पर छाने लगी थी।

    दूसरे दिन रात के खाने पर उन्हें एक बेहद चौंकाने वाली ख़बर पता चली। ओटो जा रहा था। उसने अंकल से कहा था कि इम्तहान से पहले उसे काफ़ी मेहनत करनी है और यहाँ घर पर पढ़ाई में ध्यान लगाना मुश्किल है। अगले दो महीने वह किसी हॉस्टल में रहेगा।

    दोनों लड़कियाँ उत्तेजना से काँप रही थीं। उन्हें यक़ीन था कि हो हो ओटो के इस तरह जाने के पीछे पिछले दिन की बातचीत का संबंध है। अपने सहज-बोध से उन्होंने जान लिया कि यह कायरता भरा पलायन है। ओटो जब उनसे विदा लेने आया तो वे उसके साथ बेहद बेरुखी से पेश आईं। उन्होंने उसकी तरफ़ पीठ कर ली।

    हालाँकि मिस मान से वह कैसे विदा ले रहा है, इस पर उन्होंने पूरी नज़र रखी। बड़े संयम से मिस मान ने हाथ मिलाया, पर उसके होंठ लरज़ रहे थे। इन दिनों लड़कियों में तब्दीली गई थी। उनकी हँसी कहीं लुप्त हो गई थी। उन्हें किसी चीज़ में रस नहीं आता, आँखें हमेशा उदास रहतीं। वे बेचैनी से यहाँ-वहाँ चहलक़दमी करतीं। अपने से बड़ों के प्रति वे अविश्वास से भर उठी थीं। उन्हें लगता कि छोटी-से-छोटी बात के पीछे उन्हें धोखा देने की मंशा छिपी है। हर वक़्त निगरानी रखने की उधेड़बुन में डूबी रहतीं और दरवाज़े के पीछे छुपकर हर बात सुनतीं। हर वक़्त उस जाल को भेदने के लिए बेताब रहतीं, जिसने उस रहस्य पर पर्दा डाल रखा था फिर कम से कम जाल के सुराखों की मार्फ़त वास्तविक दुनिया की एक झलक पा लेना चाहती थीं।

    बचपन का वह भरोसा, अल्हड़पन और मासूमियत कहीं लुप्त हो गई थी। इसके अलावा हर वक़्त उन पर कोई नया रहस्य खुलने की धुन सवार रहती। हर वक़्त उन्हें यह डर घेरे रहता कि कुछ छूट जाए। चारों ओर छल-फ़रेब के माहौल को देखकर वे ख़ुद भी छल करने लगीं थीं। जब भी उनके माता-पिता या कोई बड़ा उनके आस-पास से गुज़रता तो झट से वे इस तरह दिखावा करने लगतीं, मानो किसी बचकाने काम में लगी हों। बड़ों की दुनिया के ख़िलाफ़ इस साझी मुहिम के मक़सद ने उन्हें एक-दूसरे के और भी क़रीब ला दिया था। अपनी बेबसी और अज्ञान पर जब उनका बस नहीं चलता तो प्यार से एक-दूसरे से लिपट जातीं। कभी-कभार रोने लगतीं। किसी वाजिब वजह के बग़ैर ही उनकी ज़िंदगियों ने करवट बदल ली थी। और उन्हें एक नाज़ुक मोड़ पर लाकर खड़ा कर दिया था।

    उनकी बेहिसाब तकलीफ़ों में यह सबसे बड़ी तकलीफ़ थी, जो उन्हें हर वक़्त सालती रहती। एक-दूसरे से कहे बग़ैर ही उन्होंने मन-ही-मन इरादा कर लिया था कि मिस मान को कम-से-कम परेशानी देंगी। मिस मान जो पहले ही इतनी दुखी और परेशान हैं, उनकी तकलीफ़ों में इजाफ़ा नहीं होने देंगी। वे बेहद मेहनती हो गई थीं। अपनी ज़िम्मेदारी समझने लगी थीं। वे एक-दूसरे की पढ़ाई में मदद करतीं, हमेशा शांत रहतीं और समझदारी से पेश आतीं। पर गवर्नेस थी कि इस पर रत्ती भर भी ध्यान नहीं देती थी। यही बात उन्हें कचोटती। वह अब कितनी बदल चुकी है। उसके साथ जब वे बात करतीं तो लगता जैसे गहरी नींद से जागी हो। वे जब उनकी ओर नज़रें घुमातीं तो लगता बहुत लंबी दूरी तय करके आई हैं। घंटों वह ख़यालों में गुम रहती। लड़कियाँ जब भी उसके क़रीब से गुज़रतीं तो धीमे-धीमे बेआवाज़ पंजों के बल ही चलतीं, ताकि उसके ख़यालों में बाधा पड़े। उन्हें लगता कि वह ज़रूर अपने उस बच्चे के बारे में सोच रही है, जो यहाँ नहीं है। उनके भीतर नारीत्व का जो अंकुर फूट रहा था उसकी वजह से गवर्नेस के प्रति वे पहले से कहीं ज़्यादा अनुराग महसूस करने लगी थीं। उन्हें लगता मिस मान जो हमेशा से बहुत अच्छी थी, कभी-कभार ही डाँटकर बात करती थी, अब तो और ज़्यादा ख़्याल रखने लगी है। दोनों लड़कियों को बस यही लगता कि उसके हर काम में गहरा गम छिपा हुआ है, जो चाहते हुए भी प्रकट हो जाता है। उन्होंने कभी उसे रोते हुए नहीं देखा था, पर उसकी आँखें अक्सर सुर्ख़ दिखाई देतीं। ज़ाहिर था कि वह अपने ग़मों को अपने तक ही रखना चाहती थी। उन्हें इस बात का दुःख था कि वे उसकी कोई मदद नहीं कर पा रही हैं। एक दिन बच्चियों के आते ही गवर्नेस ने मुँह खिड़की की तरफ़ फेर लिया, ताकि झटपट आँसू पोंछ सके। छोटी बहन ने साहस कर उसका हाथ थाम लिया और पूछ ही लिया—

    “मिस मान क्या आप बहुत दुखी हैं, कहीं हमसे तो कोई भूल नहीं हुई है?”

    “नहीं, मेरी प्यारी बच्ची तुम्हारी कोई ग़लती नहीं है।” यह कह उसने बच्ची का माथा चूम लिया। तब से लड़कियाँ हर वक़्त चौकन्नी रहने लगीं। एक दिन उनमें से एक ने बैठकखाने में अचानक कुछ ऐसा सुन लिया, जो दरअसल उनके कानों तक नहीं पहुँचना चाहिए था। उनके माता-पिता आपस में खुसर-पुसर कर रहे थे, पर बच्ची ने काफ़ी कुछ सुन लिया और सोच में डूब गई।

    “हाँ, मेरे दिमाग़ में भी यही बात घूम रही है,” माँ कह रही थी, “कल मैं उससे बात करूँगी।”

    छोटी बहन ने पहले मन-ही-मन सारी बातों पर ग़ौर किया, फिर अपनी बहन से मशविरा करने पहुँच गई।

    “तुम्हारे ख़याल से यह सारी हाय-तौबा किस बारे में हो सकती है?”

    रात को खाने की मेज़ पर दोनों बहनों ने ग़ौर किया कि उनके माता-पिता गवर्नेस को भेदती नज़रों से टटोल रहे थे। फिर एक-दूसरे की ओर भी अर्थभरी नज़रों से देखने लगे। खाने के बाद माँ ने मिस मान से कहा—

    “ज़रा मेरे कमरे में तो आना, तुमसे कुछ बात करनी है।”

    लड़कियाँ उत्तेजना से भर उठीं। ज़रूर कुछ होने वाला है। छिपकर सुनने में वे अब माहिर हो चुकी थीं। अब तो ऐसा करने में उन्हें शर्म भी नहीं आती थी। उनकी बस इतनी मंशा थी कि उनसे जो छिपाया जा रहा है, उसका पता लगाया जाए। जिस कमरे में मिस मान गई थी, उस दरवाज़े के बाहर वे पलक झपकते ही पहुँच गईं। कान लगाकर ध्यान से सुनने लगीं, पर उन्हें केवल फुसफुसाहट सुनाई दे रही थी। तो क्या वे कुछ जान नहीं पाएँगी?

    अचानक एक आवाज़ ऊँची होने लगी। उनकी माँ क्रोधित हो चिल्ला रही थी, “तुम्हें क्या लगता है, हम सब अंधे हैं—तुम्हारी इस हालत पर किसी का ध्यान नहीं जाएगा? क्या इसी तरीक़े से तुम गवर्नेस की अपनी ज़िम्मेदारी निभाओगी? मैं तो इस ख़याल से ही काँप उठती हूँ कि मैंने अपनी बेटियों की तालीम का सारा दारोमदार तुम जैसी गवर्नेस पर छोड़ रखा है। बेशक, तुमने बड़ी बेशर्मी से बच्चियों के प्रति लापरवाही बरती है...”

    गवर्नेस ने विरोध करना चाहा और कुछ बोलने का प्रयास करने लगी, पर वह बहुत धीमे बोल रही थी, ताकि बात बाहर तक सुनाई दे। “हाँ, बोलो-बोलो, यूँ भी हर कुलटा बहाने बनाती ही है। तुम्हारे जैसी स्त्रियाँ पहला मौक़ा पाते ही अपना सब कुछ लुटा देती हैं। ईश्वर भला करे! वाक़ई यह कितनी बेतुकी बात है कि तुम्हारे जैसी एक बदचलन स्त्री गवर्नेस बनकर बैठी है। अब कोई ख़ुशामद नहीं चलेगी। यह मत सोचना कि मैं तुम्हें अब इस घर में रहने दूँगी।”

    बाहर खड़ी लड़कियाँ काँपने लगी थीं। उन्हें पूरी बात समझ तो नहीं आई पर माँ का रवैया उन्हें बड़ा नागवार लगा। मिस मान के आँसुओं से उन्हें जवाब मिल गया था। उनकी आँखों से भी आँसू बहने लगे। माँ का ग़ुस्सा बढ़ता ही जा रहा था।

    “रोने-धोने के अलावा अब तुम कर भी क्या सकती हो? पर तुम्हारे इन आँसुओं का मुझ पर कोई असर नहीं होने वाला है। मुझे तुम जैसों के साथ रत्ती भर भी हमदर्दी नहीं है। अब तुम क्या करोगी? कहाँ जाओगी? इससे मुझे कोई मतलब नहीं है। तुम्हें ख़ुद पता होगा कि ऐसे वक़्त तुम्हारी कौन मदद कर सकता है। मैं तो बस इतना जानती हूँ कि अब तुम एक दिन भी इस घर में नहीं रह सकती।”

    मिस मान का करुण विलाप ही एकमात्र जवाब था। लड़कियों ने किसी को किसी तरह बिलखते नहीं देखा था। उन्हें तो यही लग रहा था कि कोई इस तरह फूट-फूट कर रो रहा हो वह ग़लती कर ही नहीं सकता। कुछ पल उनकी माँ ख़ामोश रही। फिर तीखे लहज़े में बोली—

    “बस मुझे यही कहना था, जाओ और अपना सामान बाँधना शुरू कर दो। कल सुबह आकर अपनी तनख़्वाह ले लेना। अब तुम जा सकती हो।”

    लड़कियाँ भागकर अपने कमरे में गईं। क्या बात हो सकती है? अचानक आए इस तूफ़ान की क्या वजह है? धुँधले काँच के पार की हक़ीकत का उन्हें थोड़ा बहुत अहसास तो ज़रूर था। पहली बार उनके दिलों में अपने माता-पिता के प्रति बग़ावत का जज़्बा पनप रहा था।

    “क्या माँ का इतने कड़े ढंग से बात करना जायज़ था?” बड़ी ने कहा। इतने खुले लफ़्ज़ों में माँ की बुराई सुनकर छोटी थोड़ा घबरा गई और हकलाकर बोलने लगी, “किंतु...पर...हमें नहीं पता कि उसने क्या किया है?”

    “कुछ नहीं किया है। मुझे यक़ीन है मिस मान कुछ ग़लत कर ही नहीं सकती। माँ उसे उतना नहीं जानती जितना हम जानते हैं।”

    “जिस ढंग से वह रो रही थी, वह वाक़ई हिला देने वाला था, मुझे बहुत दुख हो रहा था।”

    “हाँ, वह सब वाक़ई दर्दनाक था। पर माँ जिस तरह से उस पर बरस रही थी, वह वीभत्स था...वाक़ई शर्मनाक!”

    बोलते-बोलते वह ग़ुस्से से काँपने लगी और आँखों से आँसू टपकने लगे।

    इसी पल मिस मान भीतर आई। वह थकी-थकी-सी दिख रही थी।

    “बच्चों, मुझे आज दोपहर तक काफ़ी काम निपटाने हैं। मुझे यक़ीन है कि तुम दोनों मेरे जाने के बाद भी अच्छी तरह से रहोगी? आज की शाम हम साथ गुज़ारेंगे।”

    वह मुड़ी और कमरे से बाहर चली गई। उसने ध्यान ही नहीं दिया कि बच्चियाँ कितनी उदास दिख रही थीं?

    “क्या तुमने देखा उसकी आँखें कितनी लाल हो रखी थीं? मुझे तो बिल्कुल समझ में नहीं आता कि माँ उसके साथ कदर बेरहमी से कैसे पेश सकती हैं?”

    “बेचारी मिस मान!”

    वे रुआँसी हो गई थीं। आँसुओं को रोकने में आवाज़ टूटने लगी। तब माँ उनके कमरे में आई। वह जानना चाहती थी कि वे उसके साथ सैर पर चलना चाहेंगी?

    “नहीं, आज नहीं, माँ।”

    दरअसल उन्हें अपनी माँ से डर लग रहा था और वे उससे नाराज़ भी थीं, क्योंकि माँ ने उन्हें नहीं बताया था कि वह मिस मान को निकाल रही हैं। इस वक़्त वे अकेले रहने के मूड में थीं। वे पिंजरे में क़ैद अबाबील पक्षी की तरह छटपटाहट महसूस कर रही थीं। फ़रेब और चुप्पी का जो माहौल उनके इर्द-गिर्द रचा गया था, उससे वह बुरी तरह विचलित थीं। वे इस उधेड़बुन में थीं कि जाकर मिस मान से पूछें कि आख़िर माज़रा क्या है? वे उसे साफ़-साफ़ बता देना चाहती थीं कि वे चाहती हैं कि वह उनके साथ ही रहे और माँ ने उसके साथ जो बर्ताव किया वह सर्वथा अनुचित था। पर वे मिस मान का दुःख बिल्कुल नहीं बढ़ाना चाहती थीं। दूसरे उन्हें शर्म भी रही थी। भला किस मुँह से वे इस मसले पर कोई बात करेंगी। उन्होंने तो सारी बातें छिपकर सुनी हैं।

    पूरी दोपहर अकेले बड़ी मुश्किल से काटी। पहाड़-सा एक पल उदासी में रोते-बिलखते गुज़रा। उनके ज़ेहन में बस माँ का बेरहम बर्ताव और मिस मान की उदास सिसकियाँ गूँजती रहीं, जो उन्होंने बंद दरवाज़े के बाहर कान लगाकर सुनी थीं।

    शाम को गवर्नेस उनसे मिलने आई, केवल ‘शुभरात्रि’ कहकर जाने लगी। जब वह जाने लगी तो दोनों लड़कियाँ ख़ामोशी को तोड़ने के लिए तड़प उठीं, पर उनके होंठों से एक लफ़्ज़ भी नहीं निकल पाया। दरवाज़े पर पहुँचकर मानो मूक मोह के वशीभूत उसने मुड़कर दोनों लड़कियों को देखा। उनकी आँखों में स्नेह तैर रहा था। उसने दोनों को बांहों में भर लिया। गले लगते ही दोनों फूट-फूटकर रोने लगीं। एक बार फिर उसने दोनों को चूमा और तेज़ी से बाहर निकल गई।

    लड़कियों ने जान लिया कि यही अंतिम विदाई थी।

    “अब हम उसे कभी नहीं देख पाएँगी।” एक ने सुबकते हुए कहा।

    “हाँ, मैं जानती हूँ। कल जब हम स्कूल से लौटेंगी, तब तक वह जा चुकी होगी।”

    “शायद कुछ अरसे बाद हम उससे मिलने जा पाएँगी, तब हो सकता है वह हमें अपना बच्चा दिखाए।”

    “हाँ वह हमेशा से कितनी भली और प्यारी रही है।”

    “बेचारी मिस मान!”

    इस दुखभरे जुमले में मानो उनकी क़िस्मत में क्या बदा है इसका पूर्वाभास झलक रहा था। “मुझे वाक़ई समझ में नहीं रहा है कि अब उसके बग़ैर हम कैसे रहेंगे, क्या करेंगे?”

    “उसकी जगह मैं किसी भी दूसरी गवर्नेस को बर्दाश्त नहीं कर पाऊँगी।”

    “मैं भी नहीं।”

    “मिस मान जैसी कोई और हो ही नहीं सकती। इसके अलावा...”

    उसने वाक्य अधूरा ही छोड़ दिया। उनके भीतर पनप रहे नारीत्व ने अनजाने ही उनके दिलों में मिस मान के प्रति श्रद्धा का भाव पैदा कर दिया था, ख़ासकर जब से उन्हें पता चला था कि उसका एक बच्चा है। यह बात उनके ज़ेहन में घर कर गई थी और इस बात ने उन्हें बहुत भीतर तक छू लिया था।

    “सुनो” एक बोली।

    “बोलो?”

    “मुझे एक तरक़ीब सूझ रही है। क्यूँ हम मिस मान के जाने से पहले कुछ ऐसा करें, जो उसे बहुत अच्छा लगे। कुछ ऐसा जिससे उसे पता चले कि हम उसे कितना चाहते हैं। और यह कि हम माँ के पक्ष में नहीं है? क्या तुम मेरा साथ दोगी?”

    दुनिया का सारा बोझ जैसे उनके नन्हें कमज़ोर कंधों पर आन पड़ा था। उनका वह अलमस्त, अल्हड़ बचपन कहीं पीछे छूट गया था। एक अनजाना भय उनकी राह तक रहा था। घटना की असलियत से वे अभी भी नावाकिफ़ थीं पर उसके भयानक अंजाम से वे जूझ रही थीं। अवसाद एवं अकेलेपन की इस घड़ी में वे एक-दूसरे के क़रीब गई थीं। पर यह एक मूक साहचर्य था। ख़ामोशी के जाल को वे अभी भी तोड़ नहीं पा रही थीं। बड़ों से वे पूरी तरह कटकर रह गई थीं। उनमें से कोई भी उन तक नहीं पहुँच पाता था, क्योंकि उनकी आत्माओं के पट बंद हो चुके थे—शायद आने वाले बहुत लंबे समय तक! आस-पास की हर शै के साथ उनकी जंग जारी थी। महज़ एक दिन में उनकी दुनिया बदल चुकी थी। वे बड़ी हो गई थीं। शाम ढलने तक वे दोनों एकदम तन्हा अपने शयनकक्ष में ही बैठी रहीं। क्षण भर के लिए भी उनके भीतर तनहाई या भयानक अंजाम का भय नहीं जागा, जो अमूमन बच्चों में होता है। हालाँकि बेहिसाब ठंड थी, पर अपनी बेध्यानी में वे कमरे को गर्म रखने वाला उपकरण चालू करना भूल गई थीं। दोनों एक ही बिस्तरे में एक-दूसरे से लिपटकर लेट गईं। अपनी उलझन पर कोई भी बात करने में वे असमर्थ थीं। पर छोटी बहन का बहुत देर से जज़्ब भावनाओं का सोता आँसुओं के ज़रिए फूट पड़ा और उसने राहत महसूस की। फिर बड़ी बहन भी अपनी रुलाई रोक नहीं सकी। इस तरह वे दोनों एक-दूसरे से लिपटकर रोती रहीं।

    अब वे मिस मान के उन्हें छोड़कर चले जाने या माता-पिता से उनके मनमुटाव पर विलाप नहीं कर रही थीं। दरअसल वे इस अहसास की कल्पना मात्र से बुरी तरह दहल गई थीं कि इस विराट अनजानी दुनिया में उनके साथ कुछ भी घट सकता है, जिसकी निर्मम सच्चाई से आज पहली बार उनका साबका हुआ था। वे उस ज़िंदगी से कतराने लगीं, जिसमें वे बड़ी हो रही थीं। वे ऐसे जीवन से खौफ़ खाने लगीं जो बियाबान जंगल की तरह टेढ़े-मेढ़े रास्ते से उन्हें भयभीत कर रहा था। पर उन्हें इस जंगल को पार करना ही था। धीरे-धीरे उनकी यह बेचैनी अलौकिक दृष्टि में तब्दील होती गई। उनकी सिसकियाँ अब धीमी पड़ने लगीं। साँसों में भी एक ठहराव गया। साँसें एक लयात्मक सामंजस्य से चलने लगीं।

    फिर वे दोनों सो गईं।

    स्रोत :
    • पुस्तक : विश्व की श्रेष्ठ कहानियाँ (खण्ड-2) (पृष्ठ 183)
    • संपादक : ममता कालिया
    • रचनाकार : स्टीफन ज़्वीग
    • प्रकाशन : लोकभारती प्रकाशन
    • संस्करण : 2005
    हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों का व्यापक शब्दकोश : हिन्दवी डिक्शनरी

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    ‘हिन्दवी डिक्शनरी’ हिंदी और हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों के शब्दों का व्यापक संग्रह है। इसमें अंगिका, अवधी, कन्नौजी, कुमाउँनी, गढ़वाली, बघेली, बज्जिका, बुंदेली, ब्रज, भोजपुरी, मगही, मैथिली और मालवी शामिल हैं। इस शब्दकोश में शब्दों के विस्तृत अर्थ, पर्यायवाची, विलोम, कहावतें और मुहावरे उपलब्ध हैं।

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