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अब हम इसे रँगते हैं लाल रंग में।
यह लाल!फिर बरामदे रँगे जाने लगे लाल
क्या सुरक्षित है यहाँ?लाल क़िला!
लाल रंग कविता की तरह कौंधता हैलाल के बारे में बहुत सोचती हूँ
लाल टमाटर, हरे टमाटरसभी टमाटर गोल,
आधी दुनिया लाल—आधी काली रह गई।
सड़कें रौंदती फिरती हैंआग बुझाने वाली लाल गाड़ियाँ
लाल बत्ती के बाद भी वे चेहरे बने रहते हैं जो तुम्हारी रफ़्तार में कुछ ख़लल
तुम्हारी आँखों में तैरतेलाल डोरे और सिर्फ़ लाल डोरे
पानी में भीगे लाल बेर और मोटा नमकचटखारे ले-लेकर खाते
सांवरे कहाँ, बोल?ओ री नील जमुना जल।।
तहख़ाने की सीढ़ियों के पासपालथी मारकर बैठे
तुम्हारी हथेली मेंपिघल जाएँगी तमाम बूँदें
सबेरे और शाम नभ के मैदान मेंदेख मुझे मंत्रमुग्ध हो जाता है कवि
अरावली की हरी देह गिराती है बिंब‘स्वरूपसागर’ ताल के शीशे पर
हाथी घोड़ा पालकी,जै कन्हैया लाल की।
लाल क़िले के परिसर मेंदीवान-ए-आम के पीछे
तुम्हें क्या लगता है सभी प्रेम करते हैंसिर्फ़ पैसे से
देश हमारा, धरती अपनी, हम धरती के लाल,नया संसार बसाएँगे, नया इंसान बनाएँगे।
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