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बंस-बंस में प्रगटि भई
बंस-बंस में प्रगटि भई, सब जग करत प्रसंस।बंसी हरि-मुख सों लगी, धन्य वंस कौ बंस॥
नागरीदास
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राजस्थानी लोकगीत : रामदेवजी
चढै चढ़ावे थारै चूरमो और चोट्याला नारेल,बारी जाऊँ ज्यांरी थे पूरो आस॥
राजस्थानी लोकगीत : घोड़ी
घोडी पग मोड़े झांझर बाजे।घोड़ी गई ओ जोसीड़ारी हाट, वारी जाऊँ ओ नारायणगढ़ रो सेवरो।
राजस्थानी लोकगीत : नारंगी
माली का रे खिड़की खोल भंवर उभा बारणै।आओ कँवरां बैठो नी पास, कांई तो कारण आया?
राजस्थानी लोकगीत : शूरा तो रण में भूझिया
बिना बदलाव
बिना बदलाव के प्रगति असंभव है, और जो लोग अपनी सोच नहीं बदल सकते, वे कुछ भी नहीं बदल सकते।
जॉर्ज बर्नार्ड शॉ
प्रेम-पुंज प्रगटै जहाँ
प्रेम-पुंज प्रगटै जहाँ, तहाँ प्रगट हरि होय।‘दया’ दया करि देत है, श्री हरि दरशन सोय॥
दयाबाई
ग़रीब आदमी के घर के कला और संस्कृति
हरिशंकर परसाई
रात, डर और सुबह
और मैं कोने में खड़ी हूँ नंगीमैं देखती हूँ कई निगाहों के सामने ख़ुद को घुटते हुए
नेहा नरूका
सीरिया और इराक़ के बच्चों के लिए
और सिर्फ़ लाल और हरे के बाइनरी कोड को पहचानती हैंपीछे मुड़कर नहीं देखतीं