ठाकुर जनरैल सिंह ने मूँछ पर ताव देते हुए फ़रमाया,
साहब, हल चलाना पाप है
सच यह है कि हल न चलता
तो उनकी हवेली में चूल्हा न जलता
और अगर ठाकुर रोटी न पाते
तो कभी के घाट लग जाते।
मैंने उन्हें अदब से समझाया,
हल चलाना अभी तक पाप है
क्योंकि ज़मीन और डंडे के
मालिक अभी तक आप हैं
और नफ़रत और ग़ुस्से के
बावजूद घरभरन चुपचाप है
फिर भी रोटी के नाते सदियों से
वह आपका ख़ानदानी बाप है।
ठाकुर जनरैल सिंह ने
उतरी हुई मूँछ को फिर ताव दिया,
राम-राम, आपने किस पापी का
नाम लिया धर्म के देश में
याद है, मेरे दादा ने
किस तरह कोड़े से पीट-पीट कर
उसके दादा का भुर्ता बना दिया था
और मेरे बाप ने,
जब पागल हुआ था उसका बाप,
सारा का सारा हलवाहों का टोला जला दिया था
तो जनाब,
हमारी इस महान शानदार परंपरा को
अभी समझा नहीं आपने
और आप कहते हैं
कि ये हलवाहे एक दिन बग़ावत करेंगे
छीन लेंगे ज़मीन
और हम या तो हल चलाएँगे या भूखों मरेंगे ।
तो कान खोल कर सुन लीजिए
कि हलवाहों की छुट्टी कर
हम ट्रैक्टर मँगवाएँगे रूस से
गेंहूँ अमरीका से
लेकिन घरभरन की जाति को
इस पुनीत धरा से भगाएँगे
यानी हमारा प्रगति में भी विश्वास है
कहावत है, भैंस उसकी—लाठी जिसके पास है
फिर भी अगर मानेंगे नहीं ये घरभरन
तो रूस और अमरीका को भी
इनसे लड़ाई करने बुलाएँगे
जैसे वियतनाम में
जैसे कंबोडिया में
इकलौती भारत माता के हम ही असली सपूत हैं
और धाक-धौंस और इज़्ज़त के जितने भी सबूत हैं
उनके अनुसार कह सकते आप हैं
कि रूस और अमरीका हमारे दो-दो बड़े बाप हैं!
- पुस्तक : समय का पहिया (पृष्ठ 92)
- रचनाकार : गोरख पांडेय
- प्रकाशन : संवाद प्रकाशन
- संस्करण : 2004
Additional information available
Click on the INTERESTING button to view additional information associated with this sher.
About this sher
Lorem ipsum dolor sit amet, consectetur adipiscing elit. Morbi volutpat porttitor tortor, varius dignissim.
rare Unpublished content
This ghazal contains ashaar not published in the public domain. These are marked by a red line on the left.