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सोभत स्याम घटा घन की

sobhat syam ghata ghan ki

हरिचरणदास

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सोभत स्याम घटा घन की

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    सोभत स्याम घटा घन की चहूँ कौद में बीजु छटा छहराही।

    चातक मोर के सोर हरै मन सीत समीर सह्यौ नहिं जाही।

    पावस में बनवास बनै हिंयौ तपसी चित में पछिताही।

    जायगो जोग जौ पैचि रख्यो सरमा सरमी गरमी रितु मांही॥

    स्रोत :
    • पुस्तक : मोहन लीला (पृष्ठ 55)
    • संपादक : कृपाशंकर तिवारी
    • रचनाकार : हरिचरणदास
    • प्रकाशन : रोशनलाल जैन एंड संस, जयपुर
    • संस्करण : 1973

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