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ऐसी न देखी सुनी सजनी

aisi na dekhi suni sajni

पद्माकर

पद्माकर

ऐसी न देखी सुनी सजनी

पद्माकर

ऐसी देखी सुनी सजनी धनी बाढ़त जात बियोग की बाधा।

त्यों ‘पद्माकर’मोहन को तब तें कल है कहूँ पल आधा।

लाल गुलाल घलाघल में दृग ठोकर दै गयी रूप अगाधा।

कै गई कै गई चेटक-सी मन लै गई लै गई लै गई राधा॥

किसी स्त्री के वियोग में इस प्रकार की निरंतर बढ़ती हुई बेचैनी मैंने पहले कभी तो देखी ही है और कभी सुनी ही है। पद्माकर कवि कहते हैं कि राधा से बिछुड़ने पर श्रीकृष्ण को आधे क्षण के लिए भी शांति नहीं मिल रही है। लाल गुलाल के ढेर में अगाध रूप-संपन्न राधा अपनी आँखों से ठोकर मार गई है, जिससे वह गुलाल सर्वत्र उड़-उड़कर व्याप्त हो गया है, अर्थात श्रीकृष्ण का सर्वांग प्रेम के रंग से रंजित हो गया है। राधा वहाँ से क्या गई है, वह तो श्रीकृष्ण के मन को जादू से वशीभूत करके अपने साथ ले गई है।

स्रोत :
  • पुस्तक : पद्मावत पंचामृत (पृष्ठ 202)
  • संपादक : विश्वनाथप्रसाद मिश्र
  • रचनाकार : पद्माकर
  • प्रकाशन : श्री रामरत्न पुस्तक भवन, काशी
  • संस्करण : 1992

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