दस सवैय्ये
das sawaiyye
एक
आगि क बाट अकास अंगार चला सखि देस के रौरव बीचे
पेड़े पे रेती इनारे में रेती पराती में रेती बरौनी के नीचे
ऊसर कांकर बंजर पाथर हड्डी से तोरि पसीना से सींचे
फाँसी के फूल कपास उगै गोइयाँ चला मौत के खेतहिं बीचे
दो
ई बिधना बड़ कूर मजूरी के बीच अँगूठा क घाव सड़ैला
बानर दिष्टि छछुंदर देहिं अ पईया क धान से पाला पड़ैला
नेह क दीप भभक बुति जाय सराब क गंध रसोई तड़ैला
जागत नैनन नीर ढुरै अरु सोवत आँखिन सप्न गड़ैला
तीन
पाथर हाथ से पाथर काटत पाथर देहिं में बज्र करेजा
छूटि हथौड़ा अंगूठा पे खच्च से तलफत आपन दर्द धरेजा
होई का हैं बिधि के गरिऔले से चूसि अँगूठा के पीर हरेजा
आँसुन के भितरावा गलावा अ पाथर संगे ई जुद्ध लरेजा
चार
भूखि के राज में मट्टी पियासल फाटल देहिं अंगौछा से ढाँपे
धोती क गाँठ गड़े करियाहिं लिलार क रेख अकासे में काँपे
सपनन में दुलराय जगावे अ आँखिन आगि के ताक़त नापे
बूढ़ भई ई जमीन अगोरति अस्सिल बीरन आय मिलापे
पाँच
जेठ के मासे निचाट निदाघ में होंठ के ऊपर की पपरी-सी
आगि बवंडर पानी क झार के बीचहिं घूम रही चकरी-सी
मरि मरि जीवति आस बटोरति सप्न सजावति जो भँवरी-सी
ऊ अँखियाँ तकलीफ़ के जाल के भीतर देखऽ मरी मछरी-सी
छह
ई बिजुरी चमकावति दुःख ई बादर तोप बनूक चलाई
रोपत रोवत देहिं गलै औ कभू न मिलै तिन सेर रोपाई
धाने के खेत क टूटल मेंड पे क़र्ज़ के ख़ारिज दाख़िल माई
देसे के दीया फतिंगा मजूर क पाँख जरै करपूर की नाई
सात
साँस के आँच परान में बोवै बिरान में रोवै घरे में कलंदर
मूँडी चोराय के आँचर भीतर सुलगत अफनत अंदर अंदर
नेह के बाति पे ताके अकास ज क्रोध करीं त चुपाय भयंकर
का वही देस बसैं हतियार जो खींचेलें सत्त मशीन के मंतर
आठ
परिवार के आरर डार सखी नहिं डारो कभी निज इश्क़ के झूला
रैंप आ मॉडल, कैंप सिपाही, त आधी मजूरी अ चोख त्रिशूला
फाँसी अ गोली अ डॉक्टर वैद स हाथ मिलाय करैं निरमूला
ई नगरी बिच प्रेम करै जे ते खरहा के सींघ आकासे क फूला
नौ
साँवर साँवर आँखि बड़ी बड़ि, चोटी के फीता के रंग सोहाला
ई दुनिया के अन्हारे के बीच में तारा क पाँति उ दाँत बुझाला
नान्ह क मुट्ठी में जाँगर रोपि ज आँखिन में अनबूझ देखाला
ई धरती ह टिकी तोहरे बल बाक़ी त देस पाताले के जाला
दस
माटी में खेलत खात नहात ई माटी क नेह ह माटी क लीला
माटी क फूल अकास पताल भ धूरि के बादर से मन गीला
माटी के नद्दी में माटी क नाव ह माटी क सुग्गा क बोल रसीला
प्लास्टिक पन्नी के राज गली कभो माटी के राज होई अलबीला
- रचनाकार : मृत्युंजय
- प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित
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