मानुष हौं तो वही रसखानि
manush haun to wahi raskhani
मानुष हौं तो वही रसखानि बसौ ब्रज गोकुल गाँव के ग्वारन।
जो पसु हौं तो कहा बसु मेरा चरौं नित नंद की धेनु मँझारन।
पाहन हौं तो वही गिरि को जो धर्यौ कर छत्र पुरंदर कारन।
जो खग हौं तौ बसेरो करौं मिलि कालिंदी-कूल-कदंब की डारन॥
रसखान कहते हैं कि यदि मुझे आगामी जन्म में मनुष्य-योनि मिले तो मैं वही मनुष्य बनूँ जिसे ब्रज और गोकुल गाँव के ग्वालों के साथ रहने का अवसर मिले। आगामी जन्म पर मेरा कोई वश नहीं है, ईश्वर जैसी योनि चाहेगा, दे देगा, इसलिए यदि मुझे पशु-योनि मिले तो मेरा जन्म ब्रज या गोकुल में ही हो, ताकि मुझे नित्य नंद की गायों के मध्य विचरण करने का सौभाग्य प्राप्त हो सके। यदि मुझे पत्थर-योनि मिले तो मैं उसी पर्वत का एक भाग बनूँ जिसे श्रीकृष्ण ने इंद्र का गर्व नष्ट करने के लिए अपने हाथ पर छाते की भाँति उठा लिया था। यदि मुझे पक्षी-योनि मिले, तो मैं ब्रज में ही जन्म पाऊँ ताकि मैं यमुना के तट पर खड़े हुए कदम्ब वृक्ष की डालियों में निवास कर सकूँ।
- पुस्तक : रसखान ग्रंथावली सटीक (पृष्ठ 155)
- रचनाकार : प्रो० देशराजसिंह भाटी
- प्रकाशन : अशोक प्रकाशन
- संस्करण : 1966
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