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ब्रह्म मै ढूँढ्यौ पुरानन गानन

brahm mai Dhuu.nDhyau puraanan gaanan

रसखान

रसखान

ब्रह्म मै ढूँढ्यौ पुरानन गानन

रसखान

और अधिकरसखान

    ब्रह्म मै ढूँढ्यौ पुरानन गानन वेद-रिचा सुनि चौगुने चायन।

    देख्यौ सुन्यौ कबहूँ कितूँ वह कैसे सरूप कैसे सुभायन।

    टेरत हेतर हारि पर्यौ रसखानि बतायौ लोग लुगायन।

    देखौ दुरौ वह कुंज-कुटीर मै बैठौ पलोटत राधिका पायन॥

    रसखान कहते हैं कि मैंने ब्रह्म को पुराणों के गीतों में ढूँढ़ा, वेद-ऋचाओं को चौगुने चाव से इसीलिए सुना कि शायद उन्हीं से ब्रह्म का पता चल जाए। मेरे सारे प्रयत्न निष्फल हुए। मैंने उसे तो कहीं सुना और कहीं देखा। मैं यह भी नहीं जान पाया कि उसका स्वरूप और स्वभाव कैसा है। उसे पुकारते हुए, उसकी खोज करते हुए मैं थक गया और किसी भी पुरुष या स्त्री ने उनका पता नहीं बताया। अंत में वह मुझे कुंज-कुटीर में छिपकर बैठे हुए राधा के पैरों को दबाता हुआ दिखाई दिया।

    स्रोत :
    • पुस्तक : रसखान ग्रंथवाली सटीक (पृष्ठ 163)
    • रचनाकार : प्रो. देशराजसिंह भाटी
    • प्रकाशन : अशोक प्रकाशन
    • संस्करण : 1966

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