करि प्रीति अनीति करै न कहूँ
kari priti aniti karai na kahun
लालबिहारी मिश्र 'द्विजराज'
Laalbihaari mishra 'dwijraj'
करि प्रीति अनीति करै न कहूँ
kari priti aniti karai na kahun
Laalbihaari mishra 'dwijraj'
लालबिहारी मिश्र 'द्विजराज'
और अधिकलालबिहारी मिश्र 'द्विजराज'
करि प्रीति अनीति करै न कहूँ पुनि लालहि दीन को ताड़ै नहीं।
द्विजराज कहै करि दान महा पुनि लालच की गली माँडै नहीं॥
मन जाय न पाप की पंगति में जुटि जुद्ध में विक्रम आड़ै नहीं।
नर किम्मतिवान कहावै सोई समयो परे हिम्मति छाड़े नहीं॥
- पुस्तक : साहित्य प्रभाकर (पृष्ठ 476)
- संपादक : महालचंद बयेद
- रचनाकार : लालबिहारी मिश्र द्विजराज
- प्रकाशन : ओसवाल प्रेस कलकत्ता
- संस्करण : 1937
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