खेलतु फाग लख्यी पिय प्यारी

khelatu phaag lakhyii piy pyaarii

रसखान

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खेलतु फाग लख्यी पिय प्यारी

रसखान

और अधिकरसखान

    खेलतु फाग लख्यी पिय प्यारी को ता सुख की उपमा किहिं दीजै।

    देखत ही बनि आवै भलै रसखान कहा है जो वारि कीजै॥

    ज्यौं ज्यौं छबीली कहै पिचकारी लै एक लई यह दूसरी लीजै।

    त्यौं त्यौं छबीलो छकै छवि छाक सो हेरै हँसे टरै खरौ भीजै॥

    कोई गोपी अपनी सखी से फाग-लीला का वर्णन करती हुई कहती है कि हे सखि! मैंने कृष्ण और उनकी प्यारी राधा को फाग खेलते हुए देखा। उस समय की जो शोभा थी, उसकी किस प्रकार उपमा दी जा सकती है। उस समय की शोभा तो देखते ही बनती है और कोई भी ऐसी वस्तु नहीं है जो उस शोभा पर न्यौछावर की जा सके। ज्यों-ज्यों वह सुंदरी राधा चुनौती देकर एक के बाद दूसरी पिचकारी कृष्ण के ऊपर चलाती है, त्यों-त्यों वे रूप के नशे में मस्त होते जाते हैं। राधा की पिचकारी को देखकर वे हँसते तो हैं, पर वे वहाँ से भागे नहीं और खड़े-खड़े भीगते रहे।

    स्रोत :
    • पुस्तक : रसखान ग्रंथावली सटीक (पृष्ठ 273)
    • रचनाकार : प्रो. देशराजसिंह भाटी
    • प्रकाशन : अशोक प्रकाशन
    • संस्करण : 1966

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