घरहीं घर घैरु करैं घरहाइनें
gharhii.n ghar ghairu karai.n gharhaa.ine.n
ठाकुर बुंदेलखंडी
Thakur Bundelkhandi
घरहीं घर घैरु करैं घरहाइनें
gharhii.n ghar ghairu karai.n gharhaa.ine.n
Thakur Bundelkhandi
ठाकुर बुंदेलखंडी
और अधिकठाकुर बुंदेलखंडी
घरहीं घर घैरु करैं घरहाइनें, नावें धरैं सब गावँ री री।
तब ढोल दै दै बदनाम कियौ, अब कौन को लाज लजावँ री री।
कबि ‘ठाकुर' नैन सों नैन लगे, अब प्रेम सों क्यों न अघावँ री री।
अब होन दै बीस बिसै री हँसी, हिरदै बसी मूरति सावँरी री॥
- पुस्तक : रीतिमुक्त कवि : नया परिदृश्य (पृष्ठ 151)
- संपादक : रामफेर त्रिपाठी
- रचनाकार : ठाकुर बुंदेलखंडी
- प्रकाशन : मधु प्रकाशन, इलाहाबाद
- संस्करण : 1982
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