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घनआनँद जीवन मूल सुजान

ghananand jiwan mool sujan

घनानंद

घनानंद

घनआनँद जीवन मूल सुजान

घनानंद

और अधिकघनानंद

    घनआनँद जीवन मूल सुजान की कौंधनि हूँ कहूँ दरसैं।

    सु जानिए धौं कित छाय रहे दृग चौतग प्रान तपै तरसैं।

    बिन पावस तौ इन थ्यावस हो सु क्यों करि ये अब सो परसैं।

    बदरा बरसै रितु में घिरि कै नित ही अँखियाँ उधरी बरसैं॥

    जीवन के मूल और आनंद के घन सुजान की कौंध के भी दर्शन कहीं नहीं होते। पता नहीं वे कहाँ छाए हुए हैं। इधर नेत्ररूपी चातक के प्राण पिपासा और विरह से संतप्त हैं और उनके लिए तरस रहे हैं। ये नेत्ररूपी चातक बिना वर्षा के किसी प्रकार धैर्य धारण करनेवाले नहीं हैं। अत: उस वर्षा को कैसे प्राप्त करें यह इनके सामने जटिल समस्या है। इन्होंने सोचा की बादल की वह सुखदायिनी घटा जाने कब आए, अत: उसका भ्रम बनाए रखने के लिए इन्होंने अपने नेत्रों से स्वयं वर्षा आरंभ कर दी है।

    स्रोत :
    • पुस्तक : घनानंद-कवित्त (पृष्ठ 102)
    • संपादक : चंद्रशेखर मिश्र
    • रचनाकार : घनानंद
    • प्रकाशन : वाणी वितान प्रकाशन, वाराणसी-1
    • संस्करण : 1972
    हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों का व्यापक शब्दकोश : हिन्दवी डिक्शनरी

    हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों का व्यापक शब्दकोश : हिन्दवी डिक्शनरी

    ‘हिन्दवी डिक्शनरी’ हिंदी और हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों के शब्दों का व्यापक संग्रह है। इसमें अंगिका, अवधी, कन्नौजी, कुमाउँनी, गढ़वाली, बघेली, बज्जिका, बुंदेली, ब्रज, भोजपुरी, मगही, मैथिली और मालवी शामिल हैं। इस शब्दकोश में शब्दों के विस्तृत अर्थ, पर्यायवाची, विलोम, कहावतें और मुहावरे उपलब्ध हैं।

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