ऐसी आवत हैं सखि रो जिय में
aisi aawat hain sakhi ro jiy mein
ऐसी आवत हैं सखि रो जिय में ब्रज छाँड़ि कहूँ अनतैं रहिये।
मुँह नंद कुमार निसंक मिलैं हंसि बात सबै जिय की कहिये।
अति आनंद हाँसि विनोदनि में मनमोहन कंज भुजा गहिये।
सुख होइ सदा पीय संगहि को सुमनोहर मोहि इहै चहिये॥
- पुस्तक : शृंगारमंजरी (पृष्ठ 85)
- रचनाकार : गिरिधर पुरोहित
- प्रकाशन : लोकभारती प्रकाशन
- संस्करण : 1982
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