Font by Mehr Nastaliq Web

सबै जात गोपाल की

sabai jat gopal ki

भारतेंदु हरिश्चंद्र

भारतेंदु हरिश्चंद्र

सबै जात गोपाल की

भारतेंदु हरिश्चंद्र

और अधिकभारतेंदु हरिश्चंद्र

    (एक पंडित और एक क्षत्री आते हैं।)

    क्षत्री—महाराज देखिए बड़ा अंधेर हो गया है कि ब्राह्मणों ने व्यवस्था दे दी कि कायस्थ भी क्षत्री हैं, कहिए अब कैसे काम चलैगा।

    पंडित—क्यों इसमें दोष क्या हुआ? ‘‘सबै जात गोपाल की’’ और फिर यह तो हिंदुओं का शास्त्र पंसारी की दुकान है और अक्षर कल्प वृक्ष है, इसमें तो सब जात की उत्तमता निकल सकती है पर दक्षिणा आपको बाएँ हाथ से रख देनी पड़ेगी, फिर क्या है तो सबै जात गोपाल की।

    क्ष०—भला महराज जो चमार कुछ बनना चाहै तो उसको भी आप बना दीजिएगा!

    पं०—क्या बनना चाहै?

    क्ष०—कहिए ब्राह्मण।

    पं०—हाँ, चमार तो ब्राह्मण हई है इसमें क्या संदेह है। ईश्वर के चर्म से इनकी उत्पत्ति है, इनको यमदंड नही होता। चर्म का अर्थ ढाल है, इससे ये दंड रोक लेते हैं। चमार में तीन अक्षर हैं—‘च’ चारों वेद, ‘म’ महाभारत, ‘र’ रामायण, जो इन तीनों को पढ़ावै वह चमार। पद्य पुराण में लिखा है इन चर्मकारों ने एक बेर यज्ञ किया था, उसी यज्ञ में से चर्मरावती निकली है। अब कर्म भ्रष्ट होने से अन्त्यज हो गए हैं, नही तो हैं असिल में ब्राह्मण। देखो रैदास इनमें कैसे भक्त हुए हैं। लाओ दक्षिणा लाओ, सबै जात गोपाल की!

    क्ष०—और डोम?

    पं०—डोम तो ब्राह्मण क्षत्रिय दोनों कुल के हैं। विश्वामित्र वशिष्ठ वंश के ब्राह्मण डोम हैं और हरिश्चंद्र वेणु वंश के क्षत्रिय डोम हैं, इसमें क्या पूछना है! लाओ दक्षिणा, सबै जात गोपाल की!

    क्ष०—और कृपानिधान! मुसलमान?

    पं०—मिया तो चारों वर्णों में है। वाल्मीकि रामायण में लिखा है जो वर्ण रामायण पढ़ै मीया हो जाए!

    पठन् द्विजो वाग् ऋषभत्वमीयात्।

    स्यात् क्षत्रियो भूमिपतित्वमीयात्।।

    अल्ल्होपनिषद में इनकी बड़ी महिमा लिखी है। द्वारिका में दो भाँति के ब्राह्मण थे। जिनको बलदेव जी (मुशली) मानते थे, उनका नाम मुशलिमान्य हुआ और जिन्हें श्रीकृष्ण मानते उनका नाम कृष्णमान हुआ। अब इन दोनों का अपभ्रंश मुशलमान और कृस्तान हो गया।

    क्ष०—तो क्या आपके मत से कृस्तान भी ब्राह्मण हैं?

    पं०—हई हैं, इसमें क्या पूछना—ईशावास उपनिषद में लिखा है कि सब जग ईसाई है।

    क्ष०—और जैनी?

    पं०—जैनी ब्राह्मण ‘अर्हन्नित्यपि जैनशासनरता’। जैन इनका नाम तब से पड़ा जब से राजा अलर्क की सभा में इन्हें कोई जै कर सका।

    क्ष०—और बौद्ध?

    पं०—बुद्धिवाले अर्थात ब्राह्मण।

    क्ष०—और धोबी?

    पं०—अच्छे खासे ब्राह्मण। जयदेव के जमाने तक धोबी ब्राह्मण होते थे। ‘‘घोई कवि: क्ष्मापति:’’। ये शीतला के रज से हुए हैं, इससे इनका नाम रजक पड़ा।

    क्ष०—और कलवार?

    पं०—क्षत्रिय हैं। शुद्ध शब्द कुलवर है। भट्टी कवि इसी जाति में था।

    क्ष०—और महाराज जी, कुम्हार?

    पं०— ब्राह्मण-घट खर्पर कवि था।

    क्ष०—वेश्या?

    पं०—क्षत्रियानी-रामजनी, कुछ बनियानी अर्थात् वैश्या!

    क्ष०—अहीर?

    पं०—वैश्य-नन्दादिकों के बालकों का द्विजाति संस्कार होता था। ‘‘कुरू द्विजाति संस्कारं स्वस्तिवावाचनपूर्वक’’ भागवत में लिखा है।

    क्ष०—भुइंहार?

    पं०—ब्राह्मण।

    क्ष०—ढूसर?

    पं०—ब्राह्मण। भृगुवंश के ज्वालाप्रसाद पंडित का शास्त्रार्थ पढ़ लीजिए।

    क्ष०—जाट?

    पं०—जाठर क्षत्रिय।

    क्ष०—और कौल?

    पं०— कौल ब्राह्मण।

    क्ष०—घिरकार?

    पं०—क्षत्रिय। शुद्ध शब्द धैर्यकार है।

    क्ष०—और कुनबी और भर और पासी?

    पं०—तीनों ब्राह्मण वंश में हैं। भरतद्वाज से भर, कन्व से कुनबी, पराशर से पाशी।

    क्ष०—भला महाराज! नीचों को तो आपने उत्तम बना दिया, अब कहिए उत्तमों को भी नीच बना सकते हैं?

    पं०—ऊँच नीच क्या, सब ब्रह्म है सब ब्रहम है। आप दक्षिणा दिए चलिए सब कुछ होता चलैगा, सबै जात गोपाल की!

    क्ष०—दक्षिणा मै दूँगा भला, आप इस विषय में भी कुछ परीक्षा दीजिए।

    पं०—पूछिए मैं अवश्य कहूँगा

    क्ष०—कहिए अगरवाले और खत्री?

    पं०—दोनों बढई हैं। जो बढियाँ अगर चंदन का काम बनाते थे उनकी संज्ञा अगरवाले हुई और जो खाट बीनते थे वे खत्री हुए वा खेत अंगोरने वाले खत्री कहलाए।

    क्ष०—और महराज नागर गुजराती!

    पं०—सपेरे औए तेली नाग पकड़ने से नागर और गुल जलाने से गुजराती।

    क्ष०—और महाराज भुइंहार और भाटिये और रोड़े?

    पं०— तीनों शुद्र। भुजा से भुइंहार, भट्टी रखने वाले भाटिये, रोड़क ढोने वाले रोड़े।

    क्ष०—(हाथ जोड़कर) महाराज आप धन्य हौ। लक्ष्मी वा सरस्वती जो चाहै सो करै, चलिए दक्षिणा लीजिए।

    पं०—चलो इस सबका फल तो यही था।

    (दोनों गए)

    स्रोत :
    • पुस्तक : भारतेन्दुकालीन व्यंग परम्परा (पृष्ठ 55)
    • संपादक : ब्रजेंद्रनाथ पांडेय
    • रचनाकार : भारतेंदु हरिश्चंद्र
    • प्रकाशन : कल्याणदास एंड ब्रदर्स
    • संस्करण : 1956

    संबंधित विषय

    हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों का व्यापक शब्दकोश : हिन्दवी डिक्शनरी

    हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों का व्यापक शब्दकोश : हिन्दवी डिक्शनरी

    ‘हिन्दवी डिक्शनरी’ हिंदी और हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों के शब्दों का व्यापक संग्रह है। इसमें अंगिका, अवधी, कन्नौजी, कुमाउँनी, गढ़वाली, बघेली, बज्जिका, बुंदेली, ब्रज, भोजपुरी, मगही, मैथिली और मालवी शामिल हैं। इस शब्दकोश में शब्दों के विस्तृत अर्थ, पर्यायवाची, विलोम, कहावतें और मुहावरे उपलब्ध हैं।

    Additional information available

    Click on the INTERESTING button to view additional information associated with this sher.

    OKAY

    About this sher

    Lorem ipsum dolor sit amet, consectetur adipiscing elit. Morbi volutpat porttitor tortor, varius dignissim.

    Close

    rare Unpublished content

    This ghazal contains ashaar not published in the public domain. These are marked by a red line on the left.

    OKAY

    जश्न-ए-रेख़्ता | 13-14-15 दिसम्बर 2024 - जवाहरलाल नेहरू स्टेडियम, गेट नंबर 1, नई दिल्ली

    टिकट ख़रीदिए