सोरठा

अर्द्धसम मात्रिक छंद। विषम चरणों में तुक और ग्यारह-ग्यारह मात्राएँ और सम चरणों में तेरह-तेरह मात्राएँ। दोहे के चरण उलट देने से सोरठा बन जाता है।

रीतिकाल के नीतिकवि। हिंदी के पहले संबोधन काव्य के रचयिता। 'राजिया' को संबोधित सोरठों के लिए समादृत।

1621 -1675

सिक्खों के नौवें गुरु। निर्भय आचरण, धार्मिक अडिगता और नैतिक उदारता का उच्चतम उदाहरण। मानवीय धर्म एवं वैचारिक स्वतंत्रता के लिए महान शहादत देने वाले क्रांतिकारी संत।

रीतिग्रंथ रचना और प्रबंध रचना, दोनों में समान रूप से कुशल कवि और अनुवादक। प्रांजल और सुव्यवस्थित भाषा के लिए स्मरणीय।

1673 -1760

रीतिकालीन काव्य-धारा के महत्त्वपूर्ण कवि। रीतिमुक्त कवियों में से एक। आचार्य रामचंद्र शुक्ल द्वारा ‘साक्षात् रसमूर्ति’ की उपमा से विभूषित।

1511 -1623

रामभक्ति शाखा के महत्त्वपूर्ण कवि। कीर्ति का आधार-ग्रंथ ‘रामचरितमानस’। उत्तर भारत के मानस को सर्वाधिक प्रभावित करने वाले भक्त कवि।

1693 -1773

'चरनदासी संप्रदाय' से संबंधित संत चरणदास की शिष्या। कविता में सर्वस्व समर्पण और वैराग्य को महत्त्व देने के लिए स्मरणीय।

1833 -1909

सतसई परंपरा के नीति कवि।

1535 -1655

हिंदूवादी कवि। महाराणा प्रताप की शौर्यगाथा ‘विरुद छहतरी’ के लिए स्मरणीय।

1820 -1870

अयोध्या नरेश। रीतिकाल की स्वच्छंद काव्य-धारा के अंतिम कवि। ऋतु वर्णन के लिए प्रसिद्ध।

कृष्ण-भक्त कवि। गोस्वामी हितहरिवंश के शिष्य। सरस माधुर्य और प्रेम के आदर्श निरूपण के लिए स्मरणीय।

1549 -1600

बीकानेर नरेश के भाई और अकबर के दरबारी कवि। भक्ति साहित्य के लिए प्रसिद्ध। 'डिंगल' भाषा के प्रधान कवियों में से एक।

रीतिकालीन अलक्षित कवि।

मधुर उपासना से संबंधित रीतिकालीन भक्त कवि।

1548 -1628

कृष्ण-भक्त कवि। भावों की सरस अभिव्यक्ति के लिए ‘रस की खान’ कहे गए। सवैयों के लिए स्मरणीय।

1556 -1627

भक्तिकाल के प्रमुख कवि। व्यावहारिक और सरल ब्रजभाषा के प्रयोग के ज़रिए काव्य में भक्ति, नीति, प्रेम और शृंगार के संगम के लिए स्मरणीय।

1818 -1878

'राधास्वामी सत्संग' के प्रवर्तक। सरस और हृदयग्राह्य वाणियों के लिए प्रसिद्ध।

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