प्रस्तुत पाठ एनसीईआरटी की कक्षा सातवी के पाठ्यक्रम में शामिल है।
सभागार में शिविर लगने के दो दिन बाद तोत्तो-चान के लिए एक बड़ा साहस करने का दिन आया। इस दिन उसे यासुकी-चान से मिलना था। इस भेद का पता न तो तोत्तो-चान के माता-पिता को था, न ही यासुकी-चान को अपने पेड़ पर चढ़ने का न्योता था।
तोमोए में हरेक बच्चा बाग़ के एक-एकपेड़ को अपने ख़ुद के चढ़ने का पेड़ मानता था। तोत्तो-चान का पेड़ मैदान के बाहरी हिस्से में कुहोन्बुत्सु जानेवाली सड़क के पास था। बड़ा सा पेड़ था उसका, चढ़ने जाओ तो पैर फिसल-फिसल जाते। पर, ठीक से चढ़ने पर ज़मीन से कोई छह फ़ुट की ऊँचाई पर एक द्विशाखा तक पहुँचा जा सकता था। बिलकुल किसी झूले सी आरामदेह जगह थी यह। तोत्तो-चान अकसर खाने की छुट्टी के समय या स्कूल के बाद ऊपर चढ़ी मिलती। वहाँ से सामने दूर तक ऊपर आकाश को या नीचे सड़क पर चलते लोगों को देखा करती थी।
बच्चे अपने-अपने पेड़ को निजी संपत्ति मानते थे। किसी दूसरे के पेड़ पर चढ़ना हो तो उससे पहले पूरी शिष्टता से, “माफ़ कीजिए, क्या मैं अंदर आ जाऊँ?” पूछना पड़ता था।
यासुकी-चान को पोलियो था, इसलिए वह न तो किसी पेड़ पर चढ़ पाता था और न किसी पेड़ को निजी संपत्ति मानता था। अत: तोत्तो-चान ने उसे अपने पेड़ पर आमंत्रित किया था। पर यह बात उन्होंने किसी से नहीं कही, क्योंकि अगर बड़े सुनते तो ज़रूर डाँटते।
घर से निकलते समय तोत्तो-चान ने माँ से कहा कि वह यासुकी-चान के घर डेनेनचोफु जा रही है। चूँकि वह झूठ बोल रही थी, इसलिए उसने माँ की आँखों में झाँका। वह अपनी नज़रें जूतों के फीतों पर ही गड़ाए रही। रॉकी उसके पीछे-पीछे स्टेशन तक आया। जाने से पहले उसे सच बताए बिना तोत्तो-चान से रहा नहीं गया।
“मैं यासुकी-चान को अपने पेड़ पर चढ़ने देनेवाली हूँ”, उसने बताया।
जब तोत्तो-चान स्कूल पहुँची तो रेल-पास उसके गले के आसपास हवा में उड़ रहा था। यासुकी-चान उसे मैदान में क्यारियों के पास मिला। गर्मी की छुट्टियों के कारण सब सूना पड़ा था। यासुकी-चान उससे कुल जमा एक दो वर्ष बड़ा था, पर तोत्तो-चान को वह अपने से बहुत बड़ा लगता था।
जैसे ही यासुकी-चान ने तोत्तो-चान को देखा, वह पैर घसीटता हुआ उसकी ओर बढ़ा। उसके हाथ अपनी चाल को स्थिर करने के लिए दोनों ओर फैले हुए थे। तोत्तो-चान उत्तेजित थी। वे दोनों आज कुछ ऐसा करनेवाले थे जिसका भेद किसी को भी पता न था। वह उल्लास में ठिठियाकर हँसने लगी। यासुकी-चान भी हँसने लगा।
तोत्तो-चान यासुकी-चान को अपने पेड़ की ओर ले गई और उसके बाद वह तुरंत चौकीदार के छप्पर की ओर भागी, जैसा उसने रात को ही तय कर लिया था। वहाँ से वह एक सीढ़ी घसीटती हुई लाई। उसे तने के सहारे ऐसे लगाया, जिससे वह द्विशाखा तक पहुँच जाए। वह कुर्सी से ऊपर चढ़ी और सीढ़ी के किनारे को पकड़ लिया। तब उसने पुकारा, “ठीक है, अब ऊपर चढ़ने की कोशिश करो।”
यासुकी-चान के हाथ-पैर इतने कमज़ोर थे कि वह पहली सीढ़ी पर भी बिना सहारे के चढ़ नहीं पाया सीढ़ी इस पर तोत्तो-चान थी छोटी और नाज़ुक-सी, इससे अधिक सहायता क्या करती! यासुकी-चान को पहली बार लगा की काम उतना आसान नहीं है जितना वह सोचे बैठी थी। अब क्या करे वह?
यासुकी-चान उसके पेड़ पर चढ़े, यह उसकी हार्दिक इच्छा थी। यासुकी-चान के मन में भी उत्साह था। वह उसके सामने गई। उसका लटका चेहरा इतना उदास था कि तोत्तो-चान को उसे हँसाने के लिए गाल फुलाकर तरह-तरह के चेहरे बनाने पड़े।
“ठहरो, एक बात सूझी है।” वह फिर चौकीदार के छप्पर की ओर दौड़ी और हरेक चीज़ उलट-पुलटकर देखने लगी। आख़िर उसे एक तिपाई-सीढ़ी मिली जिसे थामे रहना भी ज़रूरी नहीं था।
वह तिपाई-सीढ़ी को घसीटकर ले गई तो अपनी शक्ति पर हैरान होने लगी। तिपाई को ऊपरी सीढ़ी द्विशाखा तक पहुँच रही थी।
“देखो, अब डरना मत,” उसने बड़ी बहन की-सी आवाज़ में कहा, “डगमगाएगी नहीं।”
यासुकी-चान ने घबराकर तिपाई-सीढ़ी और पसीने से तरबतर तोत्तो-चान की ओर देखा। उसे भी काफ़ी पसीना आ रहा था। उसने पेड़ की ओर देखा और तब निश्चय के साथ पाँव उठाकर पहली सीढ़ी पर रखा।
उन दोनों को यह बिलकुल भी पता न चला कि कितना समय यासुक-चान को ऊपर तक चढ़ने में लगा। सूरज का ताप उनपर पड़ रहा था, पर दोनों का ध्यान यासुकी-चान के ऊपर तक पहुँचने में रमा था। तोत्तो-चान नीचे से उसका एक-एक पैर सीढ़ी पर धरने में मदद कर रही थी। अपने सिर से वह उसके पिछले हिस्से को भी स्थिर करती रही। यासुकी-चान पूरी शक्ति के साथ जूझ रहा था और आख़िर वह ऊपर पहुँच गया।
“हुर्रे!” पर, उसे अचानक सारी मेहनत बेकार लगने लगी। तोत्तो-चान तो सीढ़ी पर से छलाँग लगाकर द्विशाखा पर पहुँच गई, पर यासुकी-चान को सीढ़ी से पेड़ लाने की हर कोशिश बेकार रही। यासुकी-चान सीढ़ी थामे तोत्तो-चान की ओर ताकने लगा।
तोत्तो-चान की रुलाई छूटने को हुई। उसने चाहा था कि यासुकी-चान को अपने पेड़ पर आमंत्रित कर तमाम नई-नई चीज़ें दिखाए।
पर, वह रोई नहीं। उसे डर था कि उसके रोने पर यासुकी-चान भी रो पड़ेगा। उसने यासुकी-चान का पोलियो से पिचकी और अकड़ी उँगलियोंवाला हाथ अपने हाथ मे थाम लिया। उसके ख़ुद के हाथ से वह बड़ा था उँगलियाँ भी लंबी थीं। देर तक तोत्तो-चान उसका हाथ थामे रही। तब बोली, “तुम लेट जाओ, मैं तुम्हें पेड़ पर खींचने की कोशिश करती हूँ।”
उस समय द्विशाखा पर खड़ी तोत्तो-चान यासुकी-चान को पेड़ की ओर खींचते अगर कोई बड़ा देखता तो वह ज़रूर डर के मारे चीख़ उठता। उसे वे सच में जोख़िम उठाते ही दिखाई देते। पर यासुकी-चान को तोत्तो-चान पर पूरा भरोसा था और वह ख़ुद भी यासुकी-चान के लिए भारी ख़तरा उठा रही थी। अपने नन्हें-नन्हें हाथों से वह पूरी ताक़त से यासुकी-चान को खींचने लगी। बादल का एक बड़ा टुकड़ा बीच-बीच में छाया करके उन्हें कड़कती धूप से बचा रहा था।
काफ़ी मेहनत के बाद दोनों आमने-सामने पेड़ से हटाते हुए तोत्तो-चान ने सम्मान से झुककर कहा, “मेरे पेड़ पर तुम्हारा स्वागत है।”
यासुकी-चान डाल के सहारे खड़ा था। कुछ झिझकता हुआ वह मुस्कुराया। तब उसने पूछा, “क्या मैं अंदर आ सकता हूँ?
उस दिन यासुकी-चान ने दुनिया की एक नई झलक देखी, जिसे उसने पहले कभी न देखा था। “तो ऐसा होता है पेड़ पर चढ़ना,” यासुकी-चान ने ख़ुश होते हुए कहा।
वे बड़ी देर तक पेड़ पर बैठे-बैठे इधर-उधर की गप्पें लड़ाते रहे।
“मेरी बहन अमरीका में है, उसने बताया है कि वहाँ एक चीज़ होती है—टेलीविज़न।” यासुकी-चान उमंग से भरा बता रहा था, “वहाँ कहती है कि जब वह जापान में आ जाएगा तो हम घर बैठे-बैठे ही सूमो-कुश्ती देख सकेंगे। वह कहती है कि टेलीविज़न एक डिब्बे जैसा होता है।”
तोत्तो-चान उस समय यह तो न समझ पाई कि यासुकी-चान के लिए, जो कहीं भी दूर तक चल नहीं सकता था, घर बैठे चीज़ों को देख लेने के क्या अर्थ होंगे? वह तो यह ही सोचती रही कि सूमो पहलवान घर में रखे किसी डिब्बे में कैसे समा जाएँगे? उनका आकार तो बड़ा होता है, पर बात उसे बड़ी लुभावनी लगी। उन दिनों टेलीविज़न के बारे में कोई नहीं जानता था। पहले-पहल यासुकी-चान ने ही तोत्तो-चान को उसके बारे में बताया था।
पेड़ मानो गीत गा रहे थे और दोनों बेहद ख़ुश थे। यासुकी-चान के लिए पेड़ पर चढ़ने का यह पहला और अंतिम मौक़ा था।
sabhagar mein shivir lagne ke do din baad totto chaan ke liye ek baDa sahas karne ka din aaya. is din use yasuki chaan se milna tha. is bhed ka pata na to totto chaan ke mata pita ko tha, na hi yasuki chaan ko apne peD par chaDhne ka nyota tha.
tomoe mein harek bachcha baagh ke ek ekpeD ko apne khud ke chaDhne ka peD manata tha. totto chaan ka peD maidan ke bahari hisse mein kuhonbutsu janevali saDak ke paas tha. baDa sa peD tha uska, chaDhne jao to pair phisal phisal jate. par, theek se chaDhne par zamin se koi chhah fut ki uunchai par ek dvishakha tak pahuncha ja sakta tha. bilkul kisi jhule si aramdeh jagah thi ye. totto chaan aksar khane ki chhutti ke samay ya skool ke baad uupar chaDhi milti. vahan se samne door tak uupar akash ko ya niche saDak par chalte logon ko dekha karti thi.
bachche apne apne peD ko niji sampatti mante the. kisi dusre ke peD par chaDhna ho to usse pahle puri shishtata se, “maaf kijiye, kya main andar aa jaun?” puchhna paDta tha.
yasuki chaan ko poliyo tha, isliye wo na to kisi peD par chaDh pata tha aur na kisi peD ko niji sampatti manata tha. atah totto chaan ne use apne peD par amantrit kiya tha. par ye baat unhonne kisi se nahin kahi, kyonki agar baDe sunte to zarur Dantte.
ghar se nikalte samay totto chaan ne maan se kaha ki wo yasuki chaan ke ghar Denenchophu ja rahi hai. chunki wo jhooth bol rahi thi, isliye usne maan ki ankhon mein jhanka. wo apni nazren juton ke phiton par hi gaDaye rahi. rauki uske pichhe pichhe steshan tak aaya. jane se pahle use sach bataye bina totto chaan se raha nahin gaya.
“main yasuki chaan ko apne peD par chaDhne denevali hoon”, usne bataya.
jab totto chaan skool pahunchi to rel paas uske gale ke asapas hava mein uD raha tha. yasuki chaan use maidan mein kyariyon ke paas mila. garmi ki chhuttiyon ke karan sab suna paDa tha. yasuki chaan usse kul jama ek do varsh baDa tha, par totto chaan ko wo apne se bahut baDa lagta tha.
jaise hi yasuki chaan ne totto chaan ko dekha, wo pair ghasitta hua uski or baDha. uske haath apni chaal ko sthir karne ke liye donon or phaile hue the. totto chaan uttejit thi. ve donon aaj kuch aisa karnevale the jiska bhed kisi ko bhi pata na tha. wo ullaas mein thithiyakar hansne lagi. yasuki chaan bhi hansne laga.
totto chaan yasuki chaan ko apne peD ki or le gai aur uske baad wo turant chaukidar ke chhappar ki or bhagi, jaisa usne raat ko hi tay kar liya tha. vahan se wo ek siDhi ghasitti hui lai. use tane ke sahare aise lagaya, jisse wo dvishakha tak pahunch jaye. wo kursi se uupar chaDhi aur siDhi ke kinare ko pakaD liya. tab usne pukara, “theek hai, ab uupar chaDhne ki koshish karo. ”
yasuki chaan ke haath pair itne kamzor the ki wo pahli siDhi par bhi bina sahare ke chaDh nahin paya siDhi is par totto chaan thi chhoti aur nazuk si, isse adhik sahayata kya karti! yasuki chaan ko pahli baar laga ki kaam utna asan nahin hai jitna wo soche baithi thi. ab kya kare vah?
yasuki chaan uske peD par chaDhe, ye uski hardik ichchha thi. yasuki chaan ke man mein bhi utsaah tha. wo uske samne gai. uska latka chehra itna udaas tha ki totto chaan ko use hansane ke liye gaal phulakar tarah tarah ke chehre banane paDe.
“thahro, ek baat sujhi hai. ” wo phir chaukidar ke chhappar ki or dauDi aur harek cheez ulat pulatkar dekhne lagi. akhir use ek tipai siDhi mili jise thame rahna bhi zaruri nahin tha.
wo tipai siDhi ko ghasitkar le gai to apni shakti par hairan hone lagi. tipai ko uupri siDhi dvishakha tak pahunch rahi thi.
“dekho, ab Darna mat,” usne baDi bahan ki si avaz mein kaha, “Dagamgayegi nahin. ”
yasuki chaan ne ghabrakar tipai siDhi aur pasine se tarabtar totto chaan ki or dekha. use bhi kafi pasina aa raha tha. usne peD ki or dekha aur tab nishchay ke saath paanv uthakar pahli siDhi par rakha.
un donon ko ye bilkul bhi pata na chala ki kitna samay yasuk chaan ko uupar tak chaDhne mein laga. suraj ka taap unpar paD raha tha, par donon ka dhyaan yasuki chaan ke uupar tak pahunchne mein rama tha. totto chaan niche se uska ek ek pair siDhi par dharne mein madad kar rahi thi. apne sir se wo uske pichhle hisse ko bhi sthir karti rahi. yasuki chaan puri shakti ke saath joojh raha tha aur akhir wo uupar pahunch gaya.
“hurre!” par, use achanak sari mehnat bekar lagne lagi. totto chaan to siDhi par se chhalang lagakar dvishakha par pahunch gai, par yasuki chaan ko siDhi se peD lane ki har koshish bekar rahi. yasuki chaan siDhi thame totto chaan ki or takne laga.
totto chaan ki rulai chhutne ko hui. usne chaha tha ki yasuki chaan ko apne peD par amantrit kar tamam nai nai chizen dikhaye.
par, wo roi nahin. use Dar tha ki uske rone par yasuki chaan bhi ro paDega. usne yasuki chaan ka poliyo se pichki aur akDi ungliyonvala haath apne haath mae thaam liya. uske khud ke haath se wo baDa tha ungliyan bhi lambi theen. der tak totto chaan uska haath thame rahi. tab boli, “tum let jao, main tumhein peD par khinchne ki koshish karti hoon. ”
us samay dvishakha par khaDi totto chaan yasuki chaan ko peD ki or khinchte agar koi baDa dekhta to wo zarur Dar ke mare cheekh uthta. use ve sach mein jokhim uthate hi dikhai dete. par yasuki chaan ko totto chaan par pura bharosa tha aur wo khud bhi yasuki chaan ke liye bhari khatra utha rahi thi. apne nanhen nanhen hathon se wo puri taqat se yasuki chaan ko khinchne lagi. badal ka ek baDa tukDa beech beech mein chhaya karke unhen kaDakti dhoop se bacha raha tha.
kafi mehnat ke baad donon aamne samne peD se hatate hue totto chaan ne samman se jhukkar kaha, “mere peD par tumhara svagat hai. ”
yasuki chaan Daal ke sahare khaDa tha. kuch jhijhakta hua wo musakuraya. tab usne puchha, “kya main andar aa sakta hoon?
us din yasuki chaan ne duniya ki ek nai jhalak dekhi, jise usne pahle kabhi na dekha tha. “to aisa hota hai peD par chaDhna,” yasuki chaan ne khush hote hue kaha.
ve baDi der tak peD par baithe baithe idhar udhar ki gappen laDate rahe.
“meri bahan amrika mein hai, usne bataya hai ki vahan ek cheez hoti hai—telivizan. ” yasuki chaan umang se bhara bata raha tha, “vahan kahti hai ki jab wo japan mein aa jayega to hum ghar baithe baithe hi sumo kushti dekh sakenge. wo kahti hai ki telivizan ek Dibbe jaisa hota hai. ”
totto chaan us samay ye to na samajh pai ki yasuki chaan ke liye, jo kahin bhi door tak chal nahin sakta tha, ghar baithe chizon ko dekh lene ke kya arth honge? wo to ye hi sochti rahi ki sumo pahlavan ghar mein rakhe kisi Dibbe mein kaise sama jayenge? unka akar to baDa hota hai, par baat use baDi lubhavni lagi. un dinon telivizan ke bare mein koi nahin janta tha. pahle pahal yasuki chaan ne hi totto chaan ko uske bare mein bataya tha.
peD mano geet ga rahe the aur donon behad khush the. yasuki chaan ke liye peD par chaDhne ka ye pahla aur antim mauqa tha.
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हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों का व्यापक शब्दकोश : हिन्दवी डिक्शनरी
‘हिन्दवी डिक्शनरी’ हिंदी और हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों के शब्दों का व्यापक संग्रह है। इसमें अंगिका, अवधी, कन्नौजी, कुमाउँनी, गढ़वाली, बघेली, बज्जिका, बुंदेली, ब्रज, भोजपुरी, मगही, मैथिली और मालवी शामिल हैं। इस शब्दकोश में शब्दों के विस्तृत अर्थ, पर्यायवाची, विलोम, कहावतें और मुहावरे उपलब्ध हैं।
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