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पहाड़ा

pahaDa

संत गुलाल

संत गुलाल

पहाड़ा

संत गुलाल

और अधिकसंत गुलाल

    एका एक अमल जो पावे, साँचा सतगुरु भावे।

    प्रेम पदारथ हिय में राखे, सुमिरत ही सुख पावे॥

    दुआ दोष जो दुरमति छोड़े, तिरगुन ताप बहावे।

    सुरति निरति लै आसन माँड़े, सकल संतोष जो आवे॥

    तिया तिरुकुटी दो मन राखे, झिलिमिलि जोति जगावे।

    उनमुनि लागो बंद सहज धुनि, चंद मंडल घर छावे॥

    चौथे पद पर पग जो नावे, अनुमी डंक बजावे।

    गगन मंडल में बाज़ी माँडो, बंक नाल चलि जावे॥

    पंचएँ परम तत्त जो जानो, सुनि भगवत मन लावे।

    पाँच पचीस सोनि बसि करि के, सेत छत्र सिर छावे॥

    छटएँ छिमा सील जो उपजे, सत्त संतोस चढ़ावे।

    नौ दर छोड़ि दसौ दिखि धावे, सहज समाधि जो पावे॥

    सतएँ सदा सरल मन राखे, शब्द कै भेष बनावे।

    कोटि चंद न्योछावरि वारे, स्रानिक जोति जगावे॥

    अठएँ अगम जोति जो बारे, दरस परस चित लावे।

    सोहं सब्द सुरत निस बासर, अनतहिं कसहुँ जावे॥

    नौवें नाम निरंजन नौका, कनहरि गुनहिं चलावे।

    साँचै गहे झूँठ नहिं आवे, भवसागर तरि जावे॥

    दसएँ द्वार कि ताली खोलै, अविगति गतिहिं समावे।

    सकल कामना मन हूँ पूरन, मन कै मौज मिलावे॥

    एकादस नाम जो पूरन पावे, अगम निगम नहिं भाव।

    कह गुलाल तब सतगुरु चीन्हे, घरहीं में घर छावे॥

    स्रोत :
    • पुस्तक : गुलाल साहेब की बानी (पृष्ठ 128)
    • रचनाकार : गुलाल
    • प्रकाशन : बेलवेडियर प्रेस, प्रयाग
    • संस्करण : 1932

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