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गुणवंती सहु राविआ

gunwanti sahu rawia

गुरु नानक

गुरु नानक

गुणवंती सहु राविआ

गुरु नानक

और अधिकगुरु नानक

    गुणवंती सहु राविआ निगुणि कूके काइ।

    जे गुणवंती थी रहै ता भी सहु रावण जाइ॥

    मेरा कंतु रासालू की धन अवरा रावे जी॥ ॥रहाउ॥

    करणी कामण जे थीऐ जे मनु धागा होइ।

    माणकु मुलि पाईऐ लीजै चिति परोइ॥

    राहु दसाई जुलां आखां अंबड़ीआसु।

    तै सह नालि अकूअणा किउ थीवै घर वासु॥

    नानक एकी बाहरा दूजा नाही कोइ।

    तै सह लगी जे रहै भी सहु रावै सोइ॥

    गुणवती (स्त्री) पति के साथ रमण करती है, गुण-विहीन (स्त्री) (उसके इस भाग्य पर ईर्ष्या के वशीभूत हो) क्यों रोती है? यदि (कोई गुणविहीन स्त्री) गुणवती हो जाए, तो वह भी पति को भोगने के लिए जा सकती है।

    मेर कंत (अत्यंत) रसिक है, फिर स्त्री अन्य वस्तुओं की और क्यों आनंद लेने जाती है?

    यदि शुभ कर्म जादू-टोने का माणिक्य (लाल, रत्न) हो (और) मन (उसे गूँथने वाला) धागा हो, (तात्पर्य यह कि मन शुभ कर्मों को पिरोकर हरी से युक्त कर दे), तो इस माणिक्य के मूल्य को (कोई भी वस्तु) नहीं पा सकती; इसे चित्त के धागे में पिरो लेना चाहिए।

    (मैं) रास्ता तो पूछती हूँ, (पर उस ओर) चलती नहीं (और) कहती (यह) हूँ (कि मैं) (परमात्मा के पास) पहुँच गई हूँ तुझ प्रियतम से (मेरी) बोलचाल नहीं है; (ऐसी परिस्थिति में मेरा) घर में निवास किस प्रकार हो सकता है?

    हे नानक, एक (परमात्मा) के बिना और कोई दूसरा नहीं है। तुझ पति के साथ जो स्त्री जुड़ी रहे, तो वह भी पति के साथ रमण कर सकती है।

    स्रोत :
    • पुस्तक : गुरु नानकदेव वाणी और विचार (पृष्ठ 211)
    • संपादक : रमेशचंद्र मिश्र
    • रचनाकार : गुरु नानक
    • प्रकाशन : संत साहित्य संस्थान
    • संस्करण : 2003

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