भजन तें उत्तम नाम फ़क़ीर।
छिमा सील संतोष सरल चित दरदवंद पर पीर॥
कोमल गदगद गिरा सेाहावन प्रेम सुधा रस छीर।
अनहद नाद सदा फल पायो भोग खाँड घृत खीर॥
ब्रह्म प्रकास को भेख बनायो नाम मेखला चीर।
चमकत नूर ज़हूर जगामग ढाँके सकल सरीर॥
रहनि अचल अस्थिर कर आसन ज्ञान बुद्धि मति धीर।
देखत आतम राम उघारे ज्यौं दरपन मद्धे हीर॥
मोह नदी भ्रम भँवर कठिन है पाप पुन्य दोउ तीर।
हरि जन सहजे उतर गये ज्यों सूखे ताल को झीर॥
जग परपंच करम बहतो है जैसे पवन अरु नीर।
गुरु गम सब्द समुद्रहिं जावे परत भयो जल थीर॥
केलि करत जिय लहरि पिया संग मति बड़ गहिर गंभीर।
ताहि काहि पटतरो दीजै जिन तन मन दिया सीर॥
मन मतंग मतवार बड़ो है सब ऊपर बल बीर।
भीखा हीन मलीन ताहि को छीन भयो जस जीर॥
- पुस्तक : भीखा साहब की बानी (पृष्ठ 21)
- रचनाकार : भीखा साहब
- प्रकाशन : बेलवेडियर प्रेस, इलाहाबाद
- संस्करण : 1919
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