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हरि सौं प्रेम नेम जो रहिहैं

hari saun prem nem jo rahihain

संत परशुरामदेव

संत परशुरामदेव

हरि सौं प्रेम नेम जो रहिहैं

संत परशुरामदेव

और अधिकसंत परशुरामदेव

    हरि सौं प्रेम नेम जो रहिहैं।

    तौ कहा जग उपहास प्रीति ते सरै कहा कोऊ कछु कहिहैं॥

    हरि निज रूप अनूप अभैवर, सुबस भयौ ऐसौ सुख जहिहैं।

    परम पवित्र पतित पावन जस, सो तजि कौन स्वर्ग चढ़िहैं॥

    पतिव्रत गयौ तौ रह्यौ नहीं कछु, या बड़ हानि जानि को सहिहैं।

    कौन पतित पति कौ व्रत परिहरि, भ्रमि संसार धार में बहिहैं॥

    आन उपासन करि पति परिहरि, धृग सोभा ऐसी जो महि हैं।

    तजि पारस पाषान बाँधि उर, बसि घर में घर कौं को दहिहैं॥

    हरि सुख सिंधु अपार प्रगट जस, सेइ सुमिरि सुनि करि जस लहिहैं।

    ‘परसराम’ निर्बाह समझि यह, तजि हरि सिंह स्वान को गहिहैं॥

    स्रोत :
    • पुस्तक : कल्याण पत्रिका (संतबानी अंक) (पृष्ठ 278)
    • संपादक : हनुमान प्रसाद पोद्दार
    • रचनाकार : संत परशुरामदेव
    • प्रकाशन : गीता प्रेस गोरखपुर
    • संस्करण : जनवरी 1955
    हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों का व्यापक शब्दकोश : हिन्दवी डिक्शनरी

    हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों का व्यापक शब्दकोश : हिन्दवी डिक्शनरी

    ‘हिन्दवी डिक्शनरी’ हिंदी और हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों के शब्दों का व्यापक संग्रह है। इसमें अंगिका, अवधी, कन्नौजी, कुमाउँनी, गढ़वाली, बघेली, बज्जिका, बुंदेली, ब्रज, भोजपुरी, मगही, मैथिली और मालवी शामिल हैं। इस शब्दकोश में शब्दों के विस्तृत अर्थ, पर्यायवाची, विलोम, कहावतें और मुहावरे उपलब्ध हैं।

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