मालिक मिहरवान करीम।
गुनहगार हरोज हरदम, पनह राखि रहीम॥
अवलि आख़िर बंद गुनहीं, अमल बद बिसियार।
गरक दुनिया सतारा साहिब, दरद बंद पुकार॥
फरामोस नेकी बंदी करदां बुराई बद फैल।
बकस्यंज तू अजाब आखरि, हुकम हाजरि सैल॥
नांव नेक रहीम राज़िक, पाक परवरदिगार।
गुनह फिल करि देहु दादू, तलब दर दीदार॥
सृष्टि की रचना करने वाले दयालु प्रभु! मैं प्रतिक्षण, प्रतिदिन आपका अपराधी हूँ। हे कृपालु! मुझे आप अपनी शरण में ले लीजिए। मैंने जीवन के प्रांरभ से अंत तक अनेक कुकर्म किए हैं। मैं पाप-कर्मों के संसार-सागर में डूब रहा हूँ। पाप-कर्मों पर पर्दा डालने वाले प्रभु! मुझ दुःखी की पुकार सुनिए। मैंने आपको भूलाकर भले कार्यों की अपेक्षा दुष्कर्म ही किए हैं। आप तो क्षमा करने वाले हैं। आपकी आज्ञा का पालन करने में मुझे प्रसन्नता होती है। हे सबका लालन-पालन करने तथा जीविका प्रदान करने वाले ईश्वर! मेरे अपराधों को क्षमा कीजिए। मैं आपके दर्शनों का प्रबल अभिलाषी हूँ।
- पुस्तक : दादू समग्र (एक) (पृष्ठ 264)
- रचनाकार : दादू दयाल
- प्रकाशन : अमरसत्य प्रकाशन
- संस्करण : 2007
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