क्या फिरत है भुलाना, दिन चार में चलाना।
काया कुटुंब सब लोग, यह जग देख क्यों भुलाना॥
धन माल मुल्क घनेरे, कह कर गये बहुतेरे।
कितने जतन कर बढ़े, घट तंत ना तुलाना॥
हुशियार हो दिवाने, चलना मंजिल बिहाने।
बाकी रहे पै आवता, जमराज का बुलाना॥
लिखते घड़ी-घड़ी, काग़ज़ कलम चढ़ी।
तुलसी हुकुम सरकार का, कह देत हूँ उलाना॥
तू इस संसार में भूला हुआ क्यों फिरता है, तुझे तो चंद दिनों के बाद यानी चारों अवस्था-बाल अवस्था, तरूण अवस्था, यौवन अवस्था व वृद्धावस्था बीतते ही तुझे यहाँ से चले जाना है। फिर तू अपनी देह और कुटुंब परिवार के लोगों को और इस संसार को देख-देखकर, इस बात को क्यों भूल जाता है। अनेक लोगों ने धन संपत्ति इकट्ठी की और कई देश जीते और विविध उपाय करके समृद्ध व शक्तिशाली बने, किंतु वे अपने असली घर का भेद नहीं पा सके। हे पागल! तू सचेत और सावधान हो जा और चलकर अपनी मंजिल पार कर ले, वरना यह काम बाक़ी रह जाएगा और यमराज का बुलावा आ जाएगा। तुलसी साहब कहते हैं कि मैं बार-बार लिखकर तुझे उलाहना देता हूँ और कहता हूँ कि यह हुक्म सरकार यानि मालिक का है।
- पुस्तक : तुलसी साहब (हाथरस वाले) की बानी (पृष्ठ 31)
- संपादक : ज्ञान दास माहेश्वरी
- रचनाकार : तुलसी साहब
- प्रकाशन : स्वामी बाग, आगरा
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