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अब मैं कउनु उपाउ करउँ

ab main kaunu upau karaun

गुरु तेग़ बहादुर

गुरु तेग़ बहादुर

अब मैं कउनु उपाउ करउँ

गुरु तेग़ बहादुर

और अधिकगुरु तेग़ बहादुर

    अब मैं कउनु उपाउ करउँ।

    जिह विधि मन को संसा चूकै, भउ निधि पार परउँ॥

    जनमु पाइ कछु भलो कीनो, ताते अधिक डरउँ।

    मन बच क्रम हरि गुन नहिं गाए, यह जिअ सोच धरउँ॥

    गुर मति सुनि कछु गिआनु उपजिउ, पसु जिउँ सोच भरउँ।

    कहु नानक प्रभु बिरदु पछानउँ, तत्र हउँ पतित तरउँ॥

    स्रोत :
    • पुस्तक : कल्याण पत्रिका (संतबानी अंक) (पृष्ठ 395)
    • संपादक : हनुमान प्रसाद पोद्दार
    • रचनाकार : गुरु तेगबहादुर
    • प्रकाशन : गीता प्रेस गोरखपुर
    • संस्करण : जनवरी 1955

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