राम रस पीजिये रे
ram ras pijiye re
राम रस पीजिये रे, पीये सब सुख होय।
पीवत ही पातक कटैं, सब संतन दिशि जोय॥
निशि दिन सुमिरण कीजिये, तन मन प्राण समोय।
जन्म सफल साँई मिलै, जिव जपि साध हु दोय॥
सकल पतित पावन किये, जे लागे लै लोय।
अति उज्जवल अध ऊतरै, किलविष राले धोय॥
इहिं रस रसिया सब सुखी, दुखी न सुनिये कोय।
जन रज्जब रस पीजिये, संतों पीया सोय॥
राम भक्ति-रस का पान करो, इसे पीने से सब प्रकार से आनंद ही होता है। पीते ही पाप कट जाते हैं। सब संतों की ओर देखते हुए अपने तन, मन, प्राण को प्रभु में लगाकर रात-दिन सुमिरन करना चाहिए। नाम सुमिरन से एक तो जन्म सफल हो जाता है, दूसरे प्रभु प्राप्त हो जाते हैं। अतः भगवान का नाम जप करके दोनों काम करो। जो पापी लोग अपनी वृत्ति लगाकार प्रभु-स्मरण में रहे हैं, उन सभी को प्रभु ने पवित्र किया है। राम-भक्ति से जुड़कर प्राणी का हृदय अति उज्ज्वल हो जाता है। यह स्मरण सभी दोषों को धो डालता है। इस रस के रसिया सभी सुखी हैं, कोई भी दुःखी नहीं सुना जाता। जिस राम-भक्ति रस को संतों ने पान किया है, उसी रस का पान करो। अन्य विषय-रस अंत में दु:खद होंगे।
- पुस्तक : श्री रज्जब वाणी (पृष्ठ 1062)
- संपादक : रत्न स्वामी नारायणदास
- रचनाकार : रज्जब
- प्रकाशन : संत साहित्य प्रकाशन
- संस्करण : 1980
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