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अब समझ रे, मन भाई

ab samajh re, man bhai

गवरी बाई

गवरी बाई

अब समझ रे, मन भाई

गवरी बाई

और अधिकगवरी बाई

    अब समझ रे, मन भाई, इस जग में झूठी सगाइ।

    संगु समधी, कलत्र, कुटंब, सब, स्वारथ को मल्यो आइ।

    आखर बिरीयां आयगी जब, रहेगी न्यारा चटकाइ॥

    झूठी रे काया, झूठी रे माया, झूठे ब्हेन और भाई।

    अंत काल कोइ संग साथी, हंस अकेला जाइ॥

    सोना, चांदी और हीरा, मोती तामें रह्यो ललचाइ।

    मुआ पीछे सब लुंट चलेगी, पिंजरा दीया जलाइ॥

    कहे 'गवरी' सतगुरु की किरपा, ले गोविंद कुं गाइ।

    सुकृत सौदा कर ले बंदे, आवागमन मिटाइ॥

    स्रोत :
    • पुस्तक : गवरी बाई (भारतीय साहित्य के निर्माता)
    • संपादक : मथुरा प्रसाद अग्रवाल
    • रचनाकार : गवरी देवी
    • प्रकाशन : साहित्य अकादेमी, नई दिल्ली
    हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों का व्यापक शब्दकोश : हिन्दवी डिक्शनरी

    हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों का व्यापक शब्दकोश : हिन्दवी डिक्शनरी

    ‘हिन्दवी डिक्शनरी’ हिंदी और हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों के शब्दों का व्यापक संग्रह है। इसमें अंगिका, अवधी, कन्नौजी, कुमाउँनी, गढ़वाली, बघेली, बज्जिका, बुंदेली, ब्रज, भोजपुरी, मगही, मैथिली और मालवी शामिल हैं। इस शब्दकोश में शब्दों के विस्तृत अर्थ, पर्यायवाची, विलोम, कहावतें और मुहावरे उपलब्ध हैं।

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