बारहमासा
barahmasa
कोटि करै जे कोय, सतगुरु बिन प्रभु ना मिलैं॥
मास असाढ़ जन्म सुभ, बादर अलप सुनाव।
करम भरम जल अंतर, प्रभु सों परल दुराव॥
सावन सहज सोहावन, गरजै औ घहराय।
बुंद झलाझलि झलकै, हरि बिनु कछु न सोहाय॥
भादों भवन भयंकर, सुनि रैनी उतपात।
कहिं-कहिं दमकै दामिनी, डरपत है बहू गात॥
मास कुवार अवधि दिन, बरखा बरखि सिराय।
नैन निमिख नाहीं लगै, सिर धुनि-धुनि पछिताय॥
कातिक मास उदासित, सुरति चललि परदेस।
निरति मिलन के कारन, कब धौं मिटहिं कलेस॥
अगहन मास जु ध्यान धन, खेती करत किसान।
नाम बीज लव लावै, बावै से लवै निदान॥
पूस जु मास हवाल है, जाड़-जाड़ नियराय।
ओढ़न जब हरि मिलन को, आनंद प्रेम अघाय॥
माघ मास जु बसंत रितु, फुल्यो काया बन झारि।
सगुन संजेाग बिबिधि तन, मिलि है देव मुरारि॥
फागुन मास जु राग रंग, गुरु के वचन अस्थूल।
नाद बिंद इक सम भयो, जीव सीव करि मूल॥
चैत मास निर्मल तनै, द्रुम नव पल्लव लेत।
रूप अरुन मृदु सकल है, निज आतम छबि देत॥
बैसाख मास फल पूरन, जाग जुक्ति प्रनयाम।
दृष्टि उलटि कै लगि रहो, निसु दिन आठों जाम॥
जेठ बिषम तप भजन को, केवल ब्रह्म बिचार।
कह भीखा सोई धन्न है, जेकर नाम अधार॥
- पुस्तक : भीखा साहब की बानी (पृष्ठ 36)
- रचनाकार : भीखा साहब
- प्रकाशन : बेलवेडियर प्रेस, इलाहाबाद
- संस्करण : 1919
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