म्हारे हरिजू सूँ जुरलि सगाई हो
mhare hariju soon jurali sagai ho
म्हारे हरिजू सूँ जुरलि सगाई हो।
तन-मन-प्रान दान दै पिय को, सहज सरूपम पाई हो॥
अरध-उरध के मध्य निरंतर, सुखमन चौक पुराई हो।
रबि-ससि कुंभक अमृत भरिया, गगन मँडल मठ छाई हो॥
पाँच सखी मिलि मंगल गावहिं, आनँद तूर बजाई हो।
प्रेम तत्त दीपक उजियारो, जगमग जोति जगाई हो॥
साध-संत मिलि कियो बसीठी, सतगुरु लगन लगाई हो।
दरस परस पतिबरता पिय की, सिव घर सक्ति बसाई हो॥
अमर सुहाग भाग उजियारो, पूर्ब प्रीति प्रगटाई हो।
रोम-रोम मन रस के बसि भइ, कैसो पिय मन भाई हो॥
- पुस्तक : केशवदासजी की अमीघूँट (पृष्ठ 5)
- रचनाकार : केशवदास
- प्रकाशन : बेलविडियर प्रिंटिग प्रेस, इलाहाबाद
- संस्करण : 1979
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