मेरे मनुआँ रे तुम तो निपट अनारी
mere manuan re tum to nipat anari
मेरे मनुआँ रे तुम तो निपट अनारी।
कौड़ी-कौड़ी लाख बटोरहु, नाहक किहेहु बेगारी।
तहु चढ़ि चलेहु चारि के काँधे, दूनों हाथ पसारी॥
बहुरि-बहुरि कै राँध परोसी, आये मूड़ फेकारी।
जाति कुटुँब सब रोवन लागे, सँग लागि बूढ़ि महतारी॥
तुहरे संग कोऊ नहिं जाई, कोठा महल अटारी।
अपने स्वारथ को सब रोवै, झूठ-मूठ के आरी॥
धरमराय जब लेखा मँगिहैं, करबेहु कौन बिचारी।
पलटू कहत सुनो भाई साधो, इतनी अरज हमारी॥
हे मेरे मन! तू बड़ा बेवक़ूफ़ है। तूने कौड़ी-कौड़ी कर लाख-करोड़ बटोर लिए। तूने यह व्यर्थ की बेगारी की। अंततः तू चार के कंधों पर चढ़कर हाथ पसारे चल दिया। आस-पास के लोग सिर खोले तथा दुख प्रकट करते हुए आए। जाति और कुटुंब के लोग सब रोने लगे। बूढ़ी माता लिपटकर रोने लगी। याद रखो, तुम्हारे साथ न कोई प्रेमी मित्र जाएगा और न कोठा-महल तथा अटारी। जो लोग रोते हैं वे अपने स्वार्थवश रोते हैं। दुनिया की मित्रता झूठी है। पलटू साहेब कहते हैं कि जब यमराज तुमसे तुम्हारे कर्मों का हिसाब मांगेंगे तब तुम क्या विचार करोगे, और क्या उत्तर दोगे? हे संतो! सुनो, मेरी इतनी ही विनती है कि आज सावधान हो जाओ।
- पुस्तक : पलटू साहेब की बानी (पृष्ठ 406)
- संपादक : अभिलाषा दास
- रचनाकार : पलटू
- प्रकाशन : कबीर आश्रम, कबीर नगर, इलाहाबाद
- संस्करण : 2012
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