मत कर मन मगरूर गुमाना
mat kar man mguruur gumaanaa
मत कर मन मगरूर गुमाना।
काची काया छिन में उड़ जाये, जैसे पीपल का रे पाना॥
राजपाट अरू छत्र सिंघासन छांड चले राजा राना।
जल गया तेल, बुझाइ गइ मिट्टी, मिट्टी में मिल जाना॥
बावन बजार, चौरासी चौवटा, सात समुंदर कोट कहाना।
सोइ रावण रण में रुल्या, ठाम नहीं रे ठिकाना॥
हीरा, मोती आभूषण पैहनते, लौंग सोपारी पान खाना।
झीणा मलमल, जामा पैहनते, सो चले रे मसाना॥
आवे देखन में, जाये जीन्ने, रूप ने नाम धराना।
'गवरी' राम रूठे नहीं जान्या, दुनिया भूली रे दिवाना॥
- पुस्तक : गवरी बाई (भारतीय साहित्य के निर्माता)
- संपादक : मथुरा प्रसाद अग्रवाल
- रचनाकार : गवरी देवी
- प्रकाशन : साहित्य अकादेमी, नई दिल्ली
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