सो बनिया जो मन को तौलै
so baniya jo man ko taulai
सो बनिया जो मन को तौलै।
मनहिं के भीतर बसी बज़ार, मनहीं आपु ख़रीदनहार॥
मनहीं में लेन देन मनहिं दुकान, मनहीं में मन की गुजरान॥
मनहीं में लादै उलदै अनत न जाय, मनहिं की पैदा मनहिं में खाय॥
मनहीं में तराजू मनहीं में सेर, पलटूदास सब मनहीं का फेर॥
सही व्यापारी वह है जो अपने मन को सदैव तौलता रहे, सम्हालता रहे एवं वश में रखे। मन के भीतर ही बाज़ार बसा है और मन स्वयं उसमें सौदा ख़रीदने वाला है। मन के भीतर ही लेन-देन चलता है और मन में ही दुकान लगी है और मन में ही मन का निर्वाह होता है। मन में ही माल लादता है और उतारता है, अलग नहीं जाता। मन में ही पैदा करता है और मन में ही खाता है। मन में ही तराजू है और मन में ही सेर है। पलटू साहेब कहते हैं कि मन ही का सब चक्कर है।
- पुस्तक : पलटू साहेब की बानी (पृष्ठ 438)
- संपादक : अभिलाषा दास
- रचनाकार : पलटू
- प्रकाशन : कबीर आश्रम, कबीर नगर, इलाहाबाद
- संस्करण : 2012
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