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मन रे! सो साचा जूवारी

man re! so sacha juwari

हरिदास निरंजनी

हरिदास निरंजनी

मन रे! सो साचा जूवारी

हरिदास निरंजनी

और अधिकहरिदास निरंजनी

    मन रे! सो साचा जूवारी।

    जूवै खेलि परमनिधि परसै, बहौड़िन रोषै सारी॥

    पहली खेलि बहुत दिन हार्या, सतगुर समझि आई।

    अब वो डाव चरणतलि चूर्या, उलटी सार चलाई॥

    तीन पांच नव डाव खेलै, चलि दसवैं घरि आई।

    अब याह सारि पड़ै नहिं काची, ठौड़ अमौलिक पाई॥

    दुख-सुख डाव चाल चौरासी, त्रिविध ताप तजि पासा।

    सारी प्रांण प्रेम घरि सौंपी, अरथि अलूधी आसा॥

    चित चौपड़ि चेतन घरि चौथे, दोऊ मेल्हि जुग हूवा।

    खेलै सदा सुरति कै नाकै, फूटि चाले जूवा॥

    उनमनि रहै निरंतरि निसदिन, निज तरवर की छाया।

    जन हरीदास सतगुर कै सरणौं, करमन व्यापै माया॥

    स्रोत :
    • पुस्तक : महाराज हरिदासजी की वाणी (पृष्ठ 204)
    • संपादक : मंगलदास स्वामी
    • प्रकाशन : निखिल भारतीय निरंजनी महासभा
    • संस्करण : 1962

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