जो जन भक्त बछल उपवासी
jo jan bhakt bachhal upwasi
जो जन भक्त बछल उपवासी।
ता को भवन भयो उँजियारो, प्रगटी जोति दिवासी॥
लोक लाज कुल कानि बिसारी, सार सब्द को गासी।
तिन्ह को सुजस दसो दिसि बाढ़ो, कवन सकै कर हाँसी॥
हरि व्रत सकल भक्त जन गहि-गहि, जम तें रहे भवासी।
देह धरी परमारथ कारन, अंत अभैपुर बासी॥
काम क्रोध तृस्ना मद मिथ्या, सहज भये बनबासी।
संतत दीन दयाल दयानिधि, धरनीजन सुखरासी॥
- पुस्तक : धरनीदास की बानी (पृष्ठ 16)
- रचनाकार : धरनीदास
- प्रकाशन : वेलवेडियर छापाखाना इलाहाबाद
- संस्करण : 1931
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