जग सूं प्रीति करे जिनि कोइ
jag soon priti kare jini koi
जग सूं प्रीति करे जिनि कोइ।
हंस मूवौ कउवा संगि होई॥
कनक कामनी विषफल योई।
जिहिं देख्या विष व्यापै सोई॥
खाए ते तन कौ होइ नास।
इनका संग तजै सोइ दास॥
अहनिस रहै एक सूँ लीन।
जैसे पानी माँही मीन॥
तबसंताप व्यापै नहिं कोई।
निहचै सब सुख पावै सोइ॥
जन तुरसी ऐसा जन कोई।
राम नाम जपि निरभै होइ॥
उनमन ताली रहै लगाइ।
आपा तजि हरि माहि समाइ॥
- पुस्तक : निरंजनी सप्रदाय और संत तुरसीदास निरंजनी (पृष्ठ 169)
- संपादक : भगीरथ मिश्र
- रचनाकार : तुरसीदास निरंजनी
- प्रकाशन : राष्ट्रभाषा मुख्यालय, पुणे
- संस्करण : 1964
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