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साहिब तो भीतर घट बैठ्या

sahib to bhitar ghat baithya

सैन भगत

सैन भगत

साहिब तो भीतर घट बैठ्या

सैन भगत

और अधिकसैन भगत

    साहिब तो भीतर घट बैठ्या, मैं भरमू चहुँ देस।

    जग माया घण सुंदर लागे, सुंदर रूप रूपेस।

    जें देखूँ आँखाँ करमावे, नजर आवे लेस॥

    भाँत-भाँत का गेहणा बत्ता, भाँत-भाँत का वेस।

    होड़म-होड़ मची जग भीतर, होवे खूब करेस॥

    म्हारो मंदर ऊँची जाणू, थारो घणो छरेस।

    म्हारी मूरत हे अत सुन्दर, थारी घणी घरेस॥

    सुन्दर छवियाँ मंदर दीसे, रघुपति राम रमेस।

    मूरत में हंकार थोपयो, मंदर में बड़वेस॥

    घट-घट शाम समाया साधौ, कण-कण राम रमेस।

    निरख-निरख चित हरसित होवे, रोम-रोम हरसेस॥

    सैना सतगुरू किरपा कर दी, संग मल्या दखेस।

    भीतर घट का द्वार उघार्या, चानण चलक नभेस॥

    साहिब तो भीतर बैठा हुआ है और मैं दूसरे देश घूम-घूम कर उसे खोज रहा हूँ। इस संसार में माया बहुत सुंदर दिखती है। इसका रूप और छवि लुभावनी है। जिधर भी मैं देखता हूँ, आँखें चकाचौंध हो जाती है। कुछ भी दिखाई नहीं देता।भाँति-भाँति के आभूषण, भाँति-भाँति की वेश सज्जा। सब तरफ़ सुंदर बनने और दिखने की होड़ मची हुई है। इसी कारण ख़ूब कलेश हो रहे हैं। मेरा मंदिर ऊँचा है, भव्य है। तुम्हारा मंदिर छोटा है, असुंदर है। मेरे मंदिर में स्थापित मूर्तियाँ अति सुंदर हैं। तेरे मंदिर की मूर्तियाँ सुंदर नहीं हैं। सचमुच मंदिर में स्थापित मूर्तियाँ जो राम-रमेश की हैं, बहुत सुंदर छवियों वाली हैं। किंतु लोगों ने उन सुंदर मूर्तियों में भगवान की जगह अपना अहंकार स्थापित कर दिया है। मंदिर में छोटे-बड़े का भाव स्थापित कर दिया है। हे साधो! राम और श्याम तो घट-घट और कण-कण में समाए हुए हैं। उन्हें निरख कर चित्त हर्षित हो जाता है। रोम-रोम उमंगित-रोमांचित हो जाता है। सैन कहते हैं—मुझ पर सद्गुरू ने कृपा कर दी। उनके साथ और भी दरवेश आए और सद्गुरू ने मेरे हृदय के कपाट खोल दिए। भीतर घट में सूर्य का प्रकाश फैल गया।

    स्रोत :
    • पुस्तक : संत सैन भगत (पृष्ठ 295)
    • संपादक : अशोेक मिश्र
    • रचनाकार : संत सैन भगत
    • प्रकाशन : आदिवासी लोक कला एवं बोली विकास अकादमी, मध्यप्रदेश
    • संस्करण : 2013
    हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों का व्यापक शब्दकोश : हिन्दवी डिक्शनरी

    हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों का व्यापक शब्दकोश : हिन्दवी डिक्शनरी

    ‘हिन्दवी डिक्शनरी’ हिंदी और हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों के शब्दों का व्यापक संग्रह है। इसमें अंगिका, अवधी, कन्नौजी, कुमाउँनी, गढ़वाली, बघेली, बज्जिका, बुंदेली, ब्रज, भोजपुरी, मगही, मैथिली और मालवी शामिल हैं। इस शब्दकोश में शब्दों के विस्तृत अर्थ, पर्यायवाची, विलोम, कहावतें और मुहावरे उपलब्ध हैं।

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