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हरि जन हरि के हाथ बिकाने

hari jan hari ke hath bikane

धरनीदास

धरनीदास

हरि जन हरि के हाथ बिकाने

धरनीदास

और अधिकधरनीदास

    हरि जन हरि के हाथ बिकाने।

    भावै कहा जग धृग जीवन है, भावै कहो बौराने॥

    जाति गँवाय जाति कहाये, साधु संगति ठहराने।

    मेटो दुख दारिद्र परानो, जूठन खाय अघाने॥

    पाँच जने परवल परपंची, उलटि परे बंदिखाने।

    छुटी मजूरी भये हजूरी, साहब के मन माने॥

    निरममता निरबैर समन तें, निरसंका निरवाने।

    धरनी काम राम अपने तें, चरन कमल लपटाने॥

    स्रोत :
    • पुस्तक : धरनीदास की बानी (पृष्ठ 14)
    • रचनाकार : धरनीदास
    • प्रकाशन : वेलवेडियर छापाखाना इलाहाबाद
    • संस्करण : 1931

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