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हरि गुण गाइरे

hari gun gaire

धन्ना भगत

धन्ना भगत

हरि गुण गाइरे

धन्ना भगत

और अधिकधन्ना भगत

    हरि गुण गाइरे, हरि गुण गाई।

    ओर छोडि सबे चतुराई॥

    परम गंग गहि नीर न्हवाऔ, पीतंबर क्यूं सोभे तास।

    चंदन घिसै करौ हरिलेपन, जाकै अंग अनूपम बास।

    अगर चंदन घसि धूप खिड़ाणों, कौण वास मनि राम रलि।

    पत्र पुहुप किसे बनि आणों, जाकों अठारह रोमाबली।

    पूजा भगति किसी भल माने, सनक सनंदन भगत सुकादि।

    सेस महेस मुख नाउं अराधे, पवन पूत जाके ब्रह्मादि।

    जाके नारद निर्ति नटारंभ, सकर अपछरा तोड़े ताल।

    अगिणत महिमा राम तुम्हारी, मैं गुण का जाणों गोपाल।

    अविगत अगम विषम कठिनाई, कहि-कहि कहूं कहिये जाई।

    कहे धनो स्वारथ परमारथ, जिनि पायो तिनि सहज सुभाई।

    स्रोत :
    • पुस्तक : जाटों की गौरव गाथा (पृष्ठ 31)
    • संपादक : पेमाराम , विक्रमादित्य
    • रचनाकार : धन्ना भगत
    • प्रकाशन : राजस्थानी ग्रंथागार
    • संस्करण : 2016

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