Font by Mehr Nastaliq Web

है दुरळभ साध कळू में पूरा

hai durळbh sadh kळu mein pura

बाबा रामदेव

बाबा रामदेव

है दुरळभ साध कळू में पूरा

बाबा रामदेव

और अधिकबाबा रामदेव

    है दुरळभ साध कळू में पूरा, निकळंक करणी सदा निकाळ।

    सुणजौ बात असंग जुग पैलां री, कळजुग आवतां करौ संभाळ॥

    भायां च्यार जुगां री एक चौकड़ी, असंख चौकड़ी पुळ परकास।

    ज्यां पै’ली दाता सरब नीं होता, वां दिनां रा सुणी विचार॥

    निरगुण तीनूं नार उपाई, नेम झेलिया निरगुण नाथ।

    बीज थावर रौ मेळ बंधियौ, इळा-अंबर (इड़ा-अमर) कियौ परकास॥

    बीरां वां दिन बिंदु किया विस्तारा, तीन देवां मिळ परकास।

    गगन अगन घर पवणा पाणी, इंड फोड़ किया लोक पैदास॥

    अखै सुन्न अटळ अविनासी, तीन देवां रै माथै दिया हाथ।

    लिछमी-विष्णु, सावितरी-बिरमा, सगती-शिव किया विकास॥

    सिवराणी नेम पाळिया, निस-दिन पूरय्या पाठ।

    कर पियालो परमेसर पूज्या, सोजी पड़ी बिंदु परकास॥

    नरहर गुरु करी थापना, नेम लिया दसूं अवतार।

    निज धरम री बांधो बेड़ी, सत धरम सूं उतरो पार॥

    कर परकास पिरथी ऊपर, सुर-नर-मुनि दसों अवतार।

    बध्या धरम हुया विस्तारा, रतना तणा हुया बोवार॥

    सतजुग में पहळाद सिंवरिया, रिष मार्कंडेजी रै लाग्या पाँव।

    गुरु नरहरि नेम झेलिया, पाँच किरोड़ पहळाद री लार॥

    सतजुग लार तारणौ तेता, रिष मातंगजी कियौ उपकार।

    गुरु वसीठजी नेम झेलिया, सात किरोड़ हरचंद री लार॥

    कुंता माता सती द्रोपदा, सत धरम री बांधी पाज।

    गुरु दुरवासा नेम झेलिया, नव किरोड़ जुधिष्ठर री लार॥

    निकलंग देव नेम झेलै, रिष मार्कंडेजी करै उपकार।

    बारै किरोड़ उबरिया जांरी, जुग चौथे व्हैला सार॥

    रिख रौ राज राम मत भूली, कोई भूल्या भरम रै जाळ।

    बीती पौ'र घड़ी दिन लारै, सतवादियाँ नैं लेसूं लार॥

    दसल्या भगत काढ़द्यो बारै, कूकर बिणज करै बोपार।

    सोजी पड़ी सबद परवाणै, निकलंग पियालो सदा निकाळ॥

    दसल्या करम कियो मिळ, दुरमत दुविधा दोषण जाळ।

    कर-कर निंदिया पड्या नारकी, डूबूड़ां री झाली चाळ॥

    साध गुरु कर बूझौ, साची राखौ सबद री सार।

    काळ किरोध नै कानै करदौ, लेखौ लेसी बाबो बारंबार॥

    बावन पदम संत व्है भेळा, पेड़ियां बंधसी नव लाख।

    धरम निजार पूजै साध, सदा ज्यांरा मोटा भाग॥

    पांचां ,सातवां, नवां, बारवां, मिळसी पोकर पावन पाट।

    रिष मार्कंडेजी पाट विराजै, निकलंग होसी कोटवाळ॥

    रीत पूरबली चालो संतां, मत भरमो भूल्यां री लार।

    नुगरां री गत कदै नीं हुवै, सतवादी सुगरा व्है पार॥

    बांणी अलख री सांभळी साधो, तन-मन कर गाढ़ा बोवार।

    अजलम सुत रांमदे भणै, निज नांव री बेड़ी उतरै भव जळ पार॥

    दोष रहित कर्म वाले और नित्य माया-पाश से मुक्त रहने वाले सच्चे साधु कलियुग में दुर्लभ हैं। ऐसे कलिकाल के आविर्भाव में संभल जाओ। युगों पूर्व की बात सुनिए।

    भाइयो! चार युगों (सतयुग, त्रेतायुग, द्वापर युग और कलियुग) की एक चतुर्युगी होती है। सृष्टि की रचना के बाद इन युगों की अगणित चौकड़ियाँ बीत गईं। जब कुछ भी अस्तित्व में नहीं था, तब परब्रह्म विद्यमान था। उस काल का विचार सुनिए।

    उस निर्गुण-निराकार परब्रह्म ने त्रिगुण माया उत्पन्न की। निर्गुणनाथ अर्थात् परब्रह्म के सगुण साकार रूप ब्रह्मा, विष्णु और महेश ने सृष्टि के लिए जन्म, पालन संहार का कर्तव्य निरूपण किया। वह पर्व-दिवस था जब सृष्टि सर्जन का शुभ संयोग हुआ। पंचतत्त्व युक्त इस पिंड में जीवात्मा का प्रकाश हुआ।

    भाइयो ! उस काल में परब्रह्म ने ब्रह्मा, विष्णु और महेश के रूप में स्वयं का विस्तार किया। परब्रह्म ने अग्नि, आकाश, भूमि, पवन और पानी, इन पंच-तत्त्वों की स्थापना की; जिनसे एक महाइंड निर्मित हुआ। इस इंड को फोड़कर उसके दोनों कपालों से चौदह लोकों की स्थापना की।

    अक्षय, अनंत-अद्वितीय और नित्य-अविनाशी परब्रह्म ने तीनों देवों (ब्रह्मा, विष्णु और महेश) को आशीर्वाद दिया जिन्होंने क्रमशः सावित्री, लक्ष्मी और पार्वती तीनों देवियों (शक्तियों) के साथ (दाम्पत्य भाव से) मिल कर विकास किया।

    शिवरानी (परम शिव की पराशक्ति) ने (परब्रह्म द्वारा स्थापित) विधान का पालन करते हुए वैदिक विधि की स्थापना की। इस पराशक्ति ने स्थूल शरीर धारण करके परमेश्वर (शिव) की पूजा की जिससे स्थूल शरीर में परमात्मा के प्रकाश रूप में जीव का प्रवेश हुआ।

    मनुष्य रूप में परम गुरु-परमात्मा ने सनातन धर्म की स्थापना की, जिसकी रक्षा करने का संकल्प नरहर (विष्णु) के दसों अवतारों ने लिया। रामदेवजी का कथन है कि उसी अनादि-सनातन धर्म की नौका बनाकर उससे भवसागर को पार करो।

    मुनीजनों, देवताओं और दसों अवतारों ने पृथ्वी पर सनातन धर्म आत्मज्ञान को प्रकाशित किया, धर्म-विस्तार को प्राप्त हुआ और ज्ञान-रत्न का उत्तरोत्तर आदान-प्रदान होता रहा।

    सतयुग में भक्त प्रह्लाद ने ऋषि मार्कंडेय के चरण स्पर्श कर धर्म पर चलते हुए सच्चे हृदय से भगवान् का स्मरण किया। प्रह्लाद ने नृसिंह भगवान् से प्रार्थना की तो भगवान् श्री नृसिंह ने प्रह्लाद के साथ पाँच करोड़ जीवात्माओं को मोक्ष प्रदान किया।

    त्रेतायुग में मातंग ऋषि ने धर्म का प्रचार करके लोकोपकार किया। मुनि वशिष्ठ ने धर्म का विधान बनाया। इसी सत्-धर्म पर चलकर राजा हरिश्चंद्र सात करोड़ जीवों सहित मोक्ष को प्राप्त हुआ।

    द्वापर में गुरु दुर्वासा ने धर्म का विधान बनाया। भक्तमति माता कुंती और द्रोपदी ने धर्म की मर्यादा स्थापित की और धर्मराज युधिष्ठिर ने अपनी भक्ति के प्रताप से अपने साथ नौ करोड़ जीवात्माओं को मोक्ष प्रदान करवाया।

    कलिकाल में भगवान् का कल्कि (निष्कलंकी) अवतार होगा और ऋषि मार्कंडेयजी आएँगे। इसी चौथे युग में कल्कि भगवान बारह करोड़ जीवात्माओं का उद्धार करेंगे।

    रामदेवजी कहते हैं कि ऋषियों के आराध्य देव 'राम' हैं, उसे मत भूलो। परंतु मायाजनित भ्रमजाल में फंसे हुए लोग उस राम को भूल गए हैं। जो सत्यवादी लोग राम को नहीं भूले हैं, उन्हें मैं यथासमय मोक्ष प्रदान करूंगा।

    जो लोग दिखावटी भक्ति करते हैं, और जिनका व्यवहार मानवोचित नहीं अपितु कुत्तों जैसा है; ऐसे लोगों को भक्त समाज से बहिष्कृत कर दो। जिन सच्चे भक्तों को निज शब्द का ज्ञान (आत्मानुभव) हो गया है; उनका शरीर सदा सर्वदा के लिए निष्कलंक हो गया है; ऐसे निष्कलंक मनुष्यों की मोक्ष सुनिश्चित है।

    दुविधा (संशय अज्ञान) ग्रसित मतिहीन लोग व्यभिचारी व्यवहार से दोषों का जाल बुनकर स्वयं उसी में फंस जाते हैं। निंदित कर्म करने वाले इन हतुबुद्धि लोगों ने अज्ञान के अंधकार में डूबे हुए लोगों का आश्रय लिया है; जिनका अनुगमन करके ये लोग निश्चय ही भवसागर में डूबेंगे।

    हे लोगो! सच्चे साधु को गुरु धारण कर गुरु द्वारा निर्दिष्ट धर्म-ज्ञान में सच्ची लगन दृष्टि रखो। काम-क्रोधादि मनुष्य मात्र के लिए काल (मृत्युकारक) हैं; उन्हें दूर कर दो। मनुष्य की करणी का भगवान् सदैव पूरा हिसाब रखते हैं अर्थात् कर्मानुसार ही फल प्रदान करते हैं।

    रामदेवजी आगे कहते हैं कि कलिकाल के चरमोत्कर्ष पर पहुँचने पर अनेक संत एकत्रित होंगे और मानव कल्याण के लिए मोक्ष रूपी महल पर चढ़ने के लिए सोपान निर्मित करेंगे। जो सच्चे साधु हैं वे ऐसे ही सोपान चढ़कर आत्मज्ञान के पुजारी बने हैं; वै सदैव भाग्यशाली हैं।

    सतयुग में मोक्ष को प्राप्त पाँच करोड़, त्रेतायुग में मोक्ष प्राप्त सात करोड़ और द्वापरयुग में मोक्ष प्राप्त नौ करोड़ लोगों के साथ; बचे हुए बारह करोड़ भी तीर्थराज पुष्कर के पवित्र घाट पर मिल जाएँगे। कलियुग की चरम सीमा आने पर ऋषिवर मार्कंडेयजी तीर्थराज पुष्कर के पवित्र तट पर पीठासीन होंगे और वे धर्म का पुनरुत्थान करेंगे। भगवान् कल्की (निष्कलंकी) अवतार धारण करके भक्तों के रक्षक उद्धारक बनेंगे।

    हे संतो! आत्म-बोध ही धर्म की रीत है; इसी पर चलकर ब्रह्म-ज्ञान की प्राप्ति करो। भूले-भटके अज्ञानी लोगों का अनुशरण (अनुगमन) करके भ्रमित मत बनो। सद्गुरु धारण करके उनके सच्चे शिष्य बनो, तभी मोक्ष संभव है।

    अजमल पुत्र रामदेवजी कहते हैं कि हे संतो! निर्गुण निराकार की वाणी अर्थात् अनाहत नाद ध्यान से सुनो। मन में दृढ़ विश्वास तथा संयम धारण करके समाधिस्थ एकाग्र चित्त से इस आत्म-ज्ञान की अनुभूति करो, इसी शब्द ब्रह्म अथवा परब्रह्म की साधना रूपी नौका द्वारा ही भव सागर से पार होना संभव है।

    स्रोत :
    • पुस्तक : बाबै की वांणी (पृष्ठ 57)
    • संपादक : सोनाराम बिश्नोई
    • रचनाकार : बाबा रामदेव
    • प्रकाशन : राजस्थानी ग्रंथागार
    • संस्करण : 2015

    संबंधित विषय

    हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों का व्यापक शब्दकोश : हिन्दवी डिक्शनरी

    हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों का व्यापक शब्दकोश : हिन्दवी डिक्शनरी

    ‘हिन्दवी डिक्शनरी’ हिंदी और हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों के शब्दों का व्यापक संग्रह है। इसमें अंगिका, अवधी, कन्नौजी, कुमाउँनी, गढ़वाली, बघेली, बज्जिका, बुंदेली, ब्रज, भोजपुरी, मगही, मैथिली और मालवी शामिल हैं। इस शब्दकोश में शब्दों के विस्तृत अर्थ, पर्यायवाची, विलोम, कहावतें और मुहावरे उपलब्ध हैं।

    Additional information available

    Click on the INTERESTING button to view additional information associated with this sher.

    OKAY

    About this sher

    Lorem ipsum dolor sit amet, consectetur adipiscing elit. Morbi volutpat porttitor tortor, varius dignissim.

    Close

    rare Unpublished content

    This ghazal contains ashaar not published in the public domain. These are marked by a red line on the left.

    OKAY

    जश्न-ए-रेख़्ता | 13-14-15 दिसम्बर 2024 - जवाहरलाल नेहरू स्टेडियम, गेट नंबर 1, नई दिल्ली

    टिकट ख़रीदिए