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म्हारे हरिजू सूँ जुरलि सगाई हो

mhare hariju soon jurali sagai ho

संत केशवदास

संत केशवदास

म्हारे हरिजू सूँ जुरलि सगाई हो

संत केशवदास

म्हारे हरिजू सूँ जुरलि सगाई हो।

तन-मन-प्रान दान दै पिय को, सहज सरूपम पाई हो।

अरध-उरध के मध्य निरंतर, सुखमन चौक पुराई हो।

रबि-ससि कुंभक अमृत भरिया, गगन मँडल मठ छाई हो॥

पाँच सखी मिलि मंगल गावहिं, आनंद तूर बजाई हो।

प्रेम तत्त दीपक उजियारो, जगमग जोति जगाई हो॥

साध-संत मिलि कियो बसीठी, सतगुरु लगन लगाई हो।

दरस-परस पतिबरता पिय की, सिव घर सक्ति बसाई हो॥

अमर सुहाग भाग उजियारो, पूर्ब प्रीति प्रगटाई हो।

रोम-रोम मन रस के बसि भइ, केसो पिय मन भाई हो॥

स्रोत :
  • पुस्तक : केशवदासजी की अमीघूँट और जीवन-चरित्र (पृष्ठ 5)
  • संपादक : केशवदासजी
  • प्रकाशन : बेलवीडियर प्रिंटिंग वर्क्स, इलाहाबाद
  • संस्करण : 1979

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