क्यों तू फिरै भुलानी जोगिनि
kyo.n tuu phirai bhulaanii jogini
क्यों तू फिरै भुलानी जोगिनि, पिय को मरम न जानी।
अपने पिय को खोजन निकरी, है तू चतुर सयानी।
कंठ में माला खोजै बाहर, अजहूँ लै पहिचानी॥
मृग की नाभि मँहै कस्तूरी, वाको बास बसानी।
खोजत फिरै नहीं वह पावै, होस न करै अपानी॥
लरिका रहै बगल में तेरे, सहर ढोल दै छानी।
खसम रहै पलना पर सूता, पिय पिय करै दिवानी॥
साचा सतगुरु खोजु जाय तू, दयावंत सत-ज्ञानी।
पलटू दास पिया पावैगी, लेहु बचन को मानी॥
हे योगपरायणा विरहिनी मनोवृत्ति! तू भूली-भूली क्यों भटकती है? तू प्रियतम परमात्मा का रहस्य नहीं समझती है। तू बुद्धिमान और समझदार है। तू प्रियतम परमात्मा को खोजने निकली है, जैसे किसी के गले में माला पड़ी हो, परंतु वह उसे बाहर खोजे, वैसे तेरी दशा है। तू आज भी पहचान ले। मृग की नाभि में सुगंधित कस्तूरी है और वह उसकी सुगंधी से ओत-प्रोत है; परंतु वह अज्ञानवश उसे वन-वन खोजता है और पाता नहीं है। वह अपनी तरफ़ चेत ही नहीं करता है कि कस्तूरी मेरी नाभि में है। बालक तेरे पास में है, परंतु तू उसकी खोज में ढोल बजाकर शहर की गली-गली में भटक रही है। पति शय्या पर सोया है, परंतु तू दीवानी प्रियतम-प्रियतम कहते हुए उसे बाहर पुकार रही है। पलटू साहेब कहते हैं कि सच्चे सद्गुरु की खोज करो जो दयावान और सत्य स्वरूप का ज्ञानी हो, फिर तू उनके उपदेश से समझ जाएगी कि प्रियतम परमात्मा आत्मा ही है। मेरी इस बात को मान लो।
- पुस्तक : पलटू साहेब की बानी (पृष्ठ 389)
- संपादक : अभिलाषा दास
- रचनाकार : पलटू
- प्रकाशन : कबीर आश्रम, कबीर नगर, इलाहाबाद
- संस्करण : 2012
Additional information available
Click on the INTERESTING button to view additional information associated with this sher.
About this sher
Lorem ipsum dolor sit amet, consectetur adipiscing elit. Morbi volutpat porttitor tortor, varius dignissim.
rare Unpublished content
This ghazal contains ashaar not published in the public domain. These are marked by a red line on the left.